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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् करता है तथा जिस परमात्माको जाननेसे जीव तत्काल इन्द्रसे भी अधिक महत्ताको प्राप्त होता है, उसे ही साक्षात् परमात्मा जानना. वही समस्त लोकको आनन्द देनेवाला निवासस्थान है. वही परम ज्योति (उत्कृष्ट ज्ञानरूप प्रकाशसहित) है, और वही त्राता (रक्षक) है, परम पुरुष है, अचिन्त्यचरित है, अर्थात् जिसका चरित किसीके चिन्तवनमें नहीं आता, ऐसा है ॥ ११ ॥
इत्थं यत्रानवच्छिन्नभावनाभिर्भवच्युतम् ।
भावयत्यनिशं ध्यानी तत्सवीर्य प्रकीर्तितम् ॥४२॥ अर्थ-इस पूर्वोक्त प्रकारसे जो ध्यानी (मुनि) संसाररहित परमात्माको भावनासहित निरन्तर ध्यान करता है, वही सवीर्य ध्यान कहा गया है. भावार्थ-अपने पुरुषार्थको चलाता हुआ परमात्माकी भावना करता ही रहै. क्योंकि, जबतक ध्यानमें स्थिरता रहती है, तवतक ही ध्यान होता है और भावना सदा रहती है ॥ १२ ॥
दोहा। पौरुपकर ध्यावै मुनी, शुद्ध आतमा जोय ।
कर्मरहित वरगुणसहित, तव तैसा ही होय ॥ ३१॥ इति श्रीशुभचन्द्राचार्यविरचिते योगप्रदीपाधिकारे ज्ञानार्णवे सवीर्यध्यान
वर्णनं नाम एकत्रिंशं प्रकरणम् ॥ ३१॥
अथ द्वात्रिंश प्रकरणम् ।
अब वहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्माका निश्चय करके शुद्धोपयोगका वर्णन करते हैं,
अज्ञातखस्वरूपेण परमात्मा न वुध्यते। . ___ आत्मैव प्राग्विनिश्चयो विज्ञातुं पुरुषं परम् ॥१॥ अर्थ-जिसने अपने आत्माका स्वरूप नहीं जाना वह पुरुष परमात्माको नहीं जान सकता. इसकारण, परम पुरुष परमात्माको जाननेकी इच्छा रखनेवाला पहिले अपने आत्माका ही निश्चय करै. भावार्थ-जो आत्मा सर्वथा परमात्मा ही हो तो निश्चय ही क्या करना है और नो परमात्मा नहीं है तो अपनेको परका निश्चय करनेसे क्या फल ! इसकारण आत्मा जैसा है तैसा प्रथम निश्चय करनेसे परमात्मा जाना जाता है ॥ १ ॥
आत्मतत्त्वानभिज्ञस्य न स्यादात्मन्यवस्थितिः ।
मुह्यत्यन्तः पृथक् कर्तुं स्वरूपं देहदेहिनोः॥२॥ अर्थ-यहां यह विशेष है कि, आत्मतत्त्वके यथार्थ · वरूपको नहीं जाननेवाले