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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
अर्थ — शक्ति और व्यक्तिकी विवक्षासे तीन कालके गोचर साक्षात् सामांन्य नयसे (द्रव्यार्थिकनयसे) एक परमात्माका ही ध्यान करै, अभ्यास करै. भावार्थ यद्यपि संसार मुक्तकी अपेक्षासे आत्मामें भेदनयसे भेद है तथापि शक्ति व्यक्तिके सामान्य नयकी (द्रव्यार्थिक नयकी ) विवक्षासे त्रिकालवर्त्ती आत्मा एक ही है, संसारी मुक्तका भेद नहीं करना. अर्थात् संसार अवस्थामें तौ शक्तिरूप परमात्मा है, और मुक्त अवस्थामें व्यक्तरूप परमात्मा है. अभेदनयकी अपेक्षा आत्मामें भेद नहीं है. इसप्रकार संसार अवस्था में भी आत्माको सिद्धसमान ध्यावै ॥ २१ ॥
arari faarari faष्क्रियं परमाक्षरम् । निर्विकल्पं च निष्कम्पं नित्यमानन्दमन्दिरम् ॥ २२ ॥ विश्वरूपमविज्ञातस्वरूपं सर्वदोदितम् । कृतकृत्यं शिवं शान्तं निष्कलं करुर्णच्युतम् ॥ २३ ॥ निः शेषभवसम्भूतक्लेशद्रुमहुताशनम् । शुद्धमत्यन्तनिर्लेपं ज्ञानराज्यप्रतिष्ठितम् ॥ २४ ॥ विशुद्धादर्श संक्रान्तप्रतिविम्वसमप्रभम् । ज्योतिर्मयं महावीर्यं परिपूर्ण पुरातनम् ॥ २५ ॥ विशुद्धाष्टगुणोपेतं निर्द्वन्द्वं निर्गतामयम् । अप्रमेयं परिच्छिन्नं विश्वतत्त्वव्यवस्थितम् ॥ २६ ॥ यदग्रायं वहिर्भावैग्रचान्तर्मुखैः क्षणात् । तत्स्वभावात्मकं साक्षात्स्वरूपं परमात्मनः ॥ २७ ॥
अर्थ- - परमात्मा कैसा है, उसका स्वरूप कहते हैं. प्रथम तौ साकार है ( आकारसहित है अर्थात् शरीराकर मूर्तीक है ) तथा निर्गताकार कहिये निराकार भी है. पुगलके आकारकी समान उसका आकार नहीं है. निष्क्रिय है ( क्रियासे रहित है ) परमाक्षरस्वरूप है, विकल्परहित है, निष्कम्प है, नित्य है, आनन्दका घर है ॥ २२ ॥ तथा विश्वरूप है, समस्त ज्ञेयोंके ( पदार्थोंके ) आकार जिसमें प्रतिबिंबित हैं, तथा अविज्ञात स्वरूप है, अर्थात् जिसका खरूप मिथ्या दृष्टियोंने नहीं जाना ऐसा है, तथा सदाकाल उदयरूप है, कृतकृत्य है, (जिसको कुछ भी करना नहीं रहा है ), तथा शिव है, कल्याणरूप है, शान्त है (क्षोभरहित है), निष्कल कहिये शरीररहित है, तथा करुणच्युत कहिये शोकरहित है, अथवा करणच्युत कहिये इन्द्रियरहित है ॥ २३ ॥ तथा समस्त भवोंसे (जन्ममरणोंसे) उत्पन्न हुए क्केशरूप वृक्षोंको दग्ध करनेके लिये अग्निके समान
१. 'करणच्युतम्' इत्यपि पाठः ।