SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७७ . ज्ञानार्णवः । इसमकार ध्यानके विनके कारण स्थानोंका वर्णन किया दोहा। . जहां क्षोम मन ऊपजै, तहां ध्यान नहीं होय । ऐसे थान विरुद्ध हैं, ध्यानी त्यागै सोय ॥ २७, . इति श्रीशुभचन्द्राचार्यविरचिते योगप्रदीपाधिकारे ज्ञानार्णवे ध्यानविरुद्ध . स्थानवर्णनं नाम सप्तविंशं प्रकरणं समाप्तम् ।। २७ ॥ . . अथ अष्टाविंशं प्रकरणं लिख्यते । अ अब ध्यानके योग्य स्थानोंको कहकर आसनका विधान कहते हैं, तहां प्रथम ध्यानके योग्य स्थान कहते हैं, सिद्धक्षेत्रे महातीर्थ पुराणपुरुषाश्रिते। कल्याणकलिते पुण्ये ध्यानसिद्धिः प्रजायते ॥१॥ . अर्थ-सिद्धक्षेत्र, जहां कि बड़े २ प्रसिद्ध पुरुष ध्यान कर सिद्ध हुए हों, तथा पुराणपुरुष अर्थात् तीर्थकरादिकोंने जिसका आश्रय किया हो ऐसे महातीर्थ; जो तीर्थंकरोंके कल्याणक स्थान हों ऐसे स्थानोंमें ध्यानकी सिद्धि होती है ॥ १ ॥ सागरान्ते वनान्ते वा शैलशङ्गान्तरेऽथवा। '' पुलिने पद्मखण्डान्ते प्राकारे शालसङ्कटे ॥२॥ सरितां सङ्गमे दीपे प्रशस्ते तरुकोटरे। ' "" जीर्णोद्याने स्मशाने वा गुहाग: विजन्तुके ॥ ३॥ सिद्धकूटे जिनागारें कृत्रिमेऽकृत्रिमेऽपि वा। . महर्द्धिकमहाधीरयोगिसंसिद्धवान्छिते ॥४॥ मनःप्रीतिप्रदे शस्ते शङ्काकोलाहलच्युते। . . सर्वतुसुखदे रम्ये सर्वोपद्रववर्जिते ॥५॥ शुन्यवेश्मन्यथ ग्रामे भूगर्भ कदलीगृहे.। . , पुरोपवनवेद्यन्ते मण्डपे चैत्यपादपे॥६॥ . . वर्षातपतुषारादिपवनासारवर्जिते। स्थाने जागर्त्यविश्रान्तं यमी जन्मार्तिशान्तये ॥७॥ १ भूएहे' इत्यपि पाठः।
SR No.010853
Book TitleGyanarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1913
Total Pages471
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy