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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् अब मोक्षका खरूप कहते हैं,
निशेषकर्मसम्बन्धपरिविध्वंसलक्षणः।
जन्मनः प्रतिपक्षो यः स मोक्षः परिकीर्तितः ॥ ६॥ अर्थ-प्रकृति, प्रदेश, स्थिति तथा अनुभागरूप समस्त कर्मोके सम्बन्धका सर्वथा नाशरूप लक्षणवाला तथा जो संसारका प्रतिपक्षी है, वहीं मोक्ष है । यह व्यतिरेकप्रधानतासे मोक्षका खरूप है ॥ ६ ॥
दृग्वीयर्यादिगुणोपेतं जन्मक्लेशैः परिच्युतम् ।
चिदानन्दमयं साक्षान्मोक्षमात्यन्तिकं विदुः॥७॥ अर्थ-दर्शन और वीर्यादि गुणसहित और संसारके क्लेशोंसे रहित, चिदानन्दमयी आत्यन्तकी अवस्थाको साक्षात् मोक्ष कहते हैं । यह अन्वयप्रधानतासे मोक्षका स्वरूप कहा है ॥ ७ ॥
अव सुखकी प्रधानतासे मोक्षका खरूप कहते हैं,- अत्यक्षं विषयातीतं निरौपम्धं खभावजम् ।
___ अविच्छिन्नं सुखं यत्र स मोक्षः परिपट्यते ॥८॥ अर्थ-जिसमें अतीन्द्रिय (इन्द्रियोंसे अतिक्रान्त), विषयोंसे अतीत, उपमारहित, और खाभाविक ( अपने खभावसे ही उत्पन्न हो ऐसा) विच्छेदरहित पारमार्थिक सुख हो, वही मोक्ष कहा जाता है ॥ ८॥
निर्मलो निष्कल शान्तो निष्पन्नोऽत्यन्तनिर्वृतः।
कृतार्थः साधुबोधात्मा यत्रात्मा तत्पदं शिवम् ॥ ९॥ अर्थ-जिसमें यह आत्मा निर्मल (द्रव्यकर्म नो कर्मरहित), शरीररहित, क्षोभरहित, शान्तखरूप, निष्पन्न (सिद्धरूप), अत्यन्त अविनाशी, सुखरूप, कृतकृत्य (जिसको कुछ करना बाकी न हो ऐसा ) तथा समीचीन सम्यग्ज्ञान खरूप हो जाता है । उस पदको ( अवस्थाको) मोक्ष कहते हैं ॥९॥
तस्यानन्तप्रभावस्य कृते त्यक्त्वाखिलनमाः।
तपश्चरन्त्यमी धीराः बन्धविध्वंसकारणम् ॥१०॥ अर्थ-धीरवीर पुरुष इस अनन्त प्रभाववाले मोक्षरूपी कार्यके निमित्त समस्त प्रकारके भ्रमोंको छोडकर कर्मबंधके नष्ट करनेके कारणरूप तपको अंगीकार करते हैं । भावार्थ-सांसारिक समस्त कार्य छोडकर मुनिपद धारण करते हैं ॥ १० ॥
. . सम्यग्ज्ञानादिकं प्राहुर्जिना मुक्तेर्निवन्धनम् । . . . तेनैव साध्यते सिद्धिर्यस्मात्तदर्थिभिः स्फुटम् ॥ ११ ॥