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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
दोहा। दुःखके कारण आवतै, दुःखरूप परिणाम । भोग चाहि यह ध्यान दुर, आत तजो अघधाम ॥ २५ ॥ इति श्रीशुभचन्द्राचार्यविरचिते योगप्रदीपाधिकारे ज्ञानार्णवे आर्तध्यान
वर्णनं नाम पञ्चविंशं प्रकरणं समाप्तम् ॥ २५॥
अथ षड्दिशं प्रकरणं लिख्यते ।
आगे रौद्रध्यानका वर्णन करते हैं,- .
रुद्राशयभवं भीममपि रौद्रं चतुर्विधम् ।
कीयमानं विदन्त्वार्याः सर्वसत्त्वाभयप्रदाः॥१॥ अर्थ-हे समस्त जीवोंको अभयदान देनेवाले आर्य पुरुषो! रुद्र आशयसे उत्पन्न हुआ भयानक रौद्रध्यान भी चार प्रकारका कहा है, उसे जानो ॥१॥
रुद्रः क्रूराशयः प्राणी प्रणीतस्तत्त्वदर्शिभिः ।
रुद्रस्य कर्म भावो वा रौद्रमित्यभिधीयते ॥२॥ अर्थ-सत्त्वदर्शी पुरुषोंने क्रूर आशयवाले प्राणीको रुद्र कहा है. उस रुद्र प्राणीके कार्य अथवा उसके भावको ( परिणामको ) रौद्र कहते हैं ॥ २ ॥
हिंसानन्दान्मृषानन्दाचौर्यात्संरक्षणात्तथा । . प्रभवत्यङ्गिनां शश्वदपि रौद्रं चतुर्विधम् ॥३॥ अर्थ-हिंसामें आनन्द माननेसे, तथा मृपामें ( असत्य कहनेमें ) आनन्द माननेसे, चोरीमें आनन्द माननेसे, और विषयोंकी रक्षा करनेमें आनन्द माननेसे जीवोंके रौद्र ध्यान भी निरन्तर चार प्रकारका होता है. अर्थात् हिंसानंद मृपानंद चौर्यानंद और संरक्षणानन्द ये ४ भेद रौद्रध्यानके हैं ॥ ३ ॥ प्रथम ही हिंसानंदनामा रौद्रध्यानको कहते हैं,
हते निष्पीडिते ध्वस्ते जन्तुजाते कर्थिते ।
खेन चान्येन यो हर्षस्तद्धिंसा रौद्रमुच्यते ॥४॥ - अर्थ-जीवोंके समूहको अपनेसे तथा अन्यके द्वारा मारे जानेपर तथा पीडित किये जानेपर तथा ध्वंस करनेपर और धातनेके सम्बन्ध मिलाये जानेपर जो हर्ष माना जाय उसे हिंसानंद नामा रौद्रध्यान कहते हैं ॥ ४ ॥