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ज्ञानार्णवः।
२६३ उपेन्द्रवन्ना। अनारतं निष्करुणखभावः स्वभावतः क्रोधकषायदीसः । मदोडतः पापमतिः कुशीलः स्यान्नास्तिको यः स हि रौद्रधामा ॥५॥
अर्थ-जो पुरुष निरंतर निर्दय स्वभाववाला हो, तथा खभावसे ही क्रोधकषायसे ही प्रज्वलित हो तथा मदसे उद्धत हो, जिसकी बुद्धि पापरूप हो, तथा कुशीली हो, व्यमिचारी हो, नास्तिक हो वह रौद्रध्यानका घर है, अर्थात् ऐसे पुरुपमें यह रौद्रध्यान बसता
शार्दूलविक्रीडितम् । हिंसाकर्मणि कौशलं निपुणता पापोपदेशे भृशम् ____ दाक्ष्यं नास्तिकशासने प्रतिदिनं प्राणातिपाते रतिः। .
संवासः सह निर्दयैरविरतं नैसर्गिकी क्रूरता ___यत्स्यादेहभृतां तब्र गदितं रौद्रं प्रशान्ताशयैः ॥६॥ अर्थ-जीवोंके हिंसाकर्ममें प्रवीणता हो, पापोपदेशमें निपुणता हो, नास्तिक मतमें चातुर्य हो, जीवघातनेमें निरन्तर प्रीति हो तथा निर्दयी पुरुषोंकी निरन्तर संगति हो, स्वभावसे ही क्रूरता हो, दुष्टभाव हो, उसको प्रशान्तचित्तवाले महापुरुषोंने रौद्रध्यान कहा है ॥ ६॥
स्रग्धरा छन्दः।
केनोपायेन घातो भवति तनुमतां का प्रवीणोऽन्न हन्ता.
हन्तुं कस्यानुरागः कतिभिरिह दिनहन्यते जन्तुजातम् । हत्वा पूजां करिष्ये द्विजगुरुमरुतां कीर्तिशान्त्यर्थमित्थम् ..
यत्स्याद्धिंसाभिनन्दो जगति तनुभृतां तद्धि रौद्रं प्रणीतम् ॥७॥ अर्थ-इस जगह जीवोंका घात किस उपायसे हो, यहां घात करनेमें कौन चतुर है, घात करनेमें किसके अनुराग है, यह जीवोंका समूह कितने दिनोंमें मारा जायगा, इन जीवोंको मारकर बलि देकर कीर्ति और शान्तिके लिये ब्राह्मण गुरु देवोंकी पूजा करूंगा, इत्यादि प्रकारसे जीवोंकी हिंसा करनेमें जो आनन्द हो, उसको निश्चय करके रौद्रध्यान कहते हैं ॥ ७ ॥
मालिनी । गगनवनधरित्रीचारिणां देहभाजाम्
दलनदहनवन्धच्छेद्घातेपु यत्नम् । इतिनखकरनेत्रोत्पाटने कौतुकं यत्
सदिह गदितमुच्चैश्चेतसां रौद्रमित्थम् ॥८॥