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ज्ञानार्णवः।
२६७ अर्थ-जो चोरीके कार्योंके उपदेशकी अधिकता तथा चौर्यकर्ममें चतुरता तथा चोरीके कार्योमें ही तत्परचित्त हो उसे चौर्यानंदनामा रौद्रध्यान माना है ॥ २४ ॥
शार्दूलविक्रीटितम्। यचौर्याय शरीरिणामहरहश्चिन्ता समुत्पद्यते ।
कृत्वा चौर्यमपि प्रमोदमतुलं कुर्वन्ति यत्संततम् । चौयेणापि हृते परैः परधने यजायते संभ्रम. स्तचौर्यप्रभवं वदन्ति निपुणा रौद्रं सुनिन्दास्पदम् ॥ २५ ॥ अर्थ-जीवोंके चौर्यकर्मके लिये निरन्तर चिन्ता उत्पन्न हो तथा चोरीकर्म करके भी निरंतर अतुल हर्ष मानें आनंदित हो तथा अन्य कोई चोरीके द्वारा परधनको हरै उसमें हर्ष मानै उसे निपुण पुरुष चौर्य कर्मसे उत्पन्न हुआ रौद्रध्यान कहते हैं. यह ध्यान अतिशय निंदाका कारण है ॥ २५ ॥
उपजातिः। कृत्वा सहाय वरवीरसैन्यं तथाभ्युपायांश्च बहुप्रकारान् । धनान्यलभ्यानि चिरार्जितानि सद्यो हरिष्यामि जनस्य धान्याम् ॥ २६ ॥
अर्थ-इस धरित्रीमें (पृथिवीमें) लोगोंके धन अलभ्य है तथा बहुत कालके संचित किये हुए हैं तो भी मे बड़े २ सुभटोंकी सेनाकी सहायतासे तथा अनेक उपायोंसे तत्कालही हर लाऊंगा ऐसा चोर हूं ॥ २६ ॥
आया। द्विपदचतुष्पदसारं धनधान्यवरागनासमाकीर्णम् । वस्तु परकीयमपि मे स्वाधीनं चौर्यसामर्थ्यात् ॥ २७॥
उपजातिः। इत्थं चुरायां विविधप्रकारः शरीरिभिर्यः क्रियतेऽभिलाफः । अपारदुम्ग्वार्णवहेतुभूतं रौद्रं तृतीयं तदिह प्रणीतम् ॥ २८ ॥
अर्थ-तथा परके द्विपद चौपदोंमें जो सार है अर्थात् उत्तम है तथा धन धान्य श्रेष्ठ स्त्री सहित अन्यकी जो वस्तुयें है सो मेरी चोरी कर्मकी सामर्थ्य से मेरे ही खाधीन है ऐसा विचार कर ॥२७॥ इस प्रकार चोरीमें जीवोंकरके जो अनेक प्रकारकी वांछा की जाय सो तीसरा चौर्यानंदीरौद्रध्यान है. यह रौद्रध्यान अपार दुःखरूपी समुद्र में पटकनेका कारणभूत है ॥२८॥
इस प्रकार रौद्रध्यानके तीसरे भेद चौर्यानंदनामा ध्यानका वर्णन किया। आगे विषयसंरक्षण नामा रौद्रध्यानके चौथे भेदका वर्णन करते हैं,
शार्दूलविक्रीनितम् । यहारम्भपरिग्रहेपु नियतं रक्षार्थमभ्युद्यते
यत्संकल्पपरम्परां वितनुते प्राणीह रौद्राशयः।