________________
२७२ . रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम करके सहित हो, इन्द्रिय मन जिसके वश हो, स्थिरचित्त और . मुक्तिका इच्छक हो, तथा आलस्यरहित उद्यमी और शान्तपरिणामी हो, तथा धैर्यवान् हो, वही प्रशंसनीय है ॥ ३ ॥
चतस्रो भावना धन्याः पुराणपुरुषाश्रिताः। . मैन्यायश्चिरं चित्ते ध्येया धर्मस्य सिद्धये ॥४॥ , अर्थ-तथा मैत्री प्रमोद कारुण्य और माध्यस्थ · इन चार भावनाओंको पुराणपुरुपौने (तीर्थंकरादिकोंने) आश्रित किया है इस कारण धन्य हैं, (प्रशंसनीय है) सो धर्मध्यानकी सिद्धि के लिये इन चारों भावनाओंको चित्तमें ध्यावना चाहिये ॥ ४ ॥ अब प्रथम ही मैत्री भावनाको कहते हैं
क्षुद्रेतरविकल्पेषु चरस्थिरशरीरिषु। ' सुखदुःखाद्यवस्थासु संसृतेषु यथायथम् ॥५॥ नानायोनिगतेष्वेषु समत्वेनाविराधिका।
साध्वी महत्त्वमापन्ना मतिमैत्रीति पठ्यते ॥६॥ अर्थ-शुद्र (सूक्ष्म ) इतर वादर भेदरूप त्रस स्थावर प्राणी सुखदुःखादि अवस्थाओंमें जैसे तैसे तिष्ठे हों-तथा नानाभेदरूप योनियोंमें प्राप्त होनेवाले जीवोंमें समानतासे विराधनेवाली नहीं ऐसी महत्ताको प्राप्त हुई समिचीनबुद्धि मैत्री भावना कही जाती
जीवन्तु जन्तवः सर्वे क्लेशव्यसनवर्जिताः ।
प्रामुवन्तु सुखं त्यक्त्वा वैरं पापं पराभवम् ॥७॥ अर्थ-इस मैत्रीभावनामें ऐसी भावना रहे कि ये सब जीव कष्ट आपदाओंसे वर्जित हो जीओ, तथा वैर पाप अपमानको छोड़कर सुखको प्राप्त होओ. इसप्रकारकी भावनाको मैत्रीभावना कहते हैं ॥ ७॥
दैन्यशोकसमुत्रासरोगपीडार्दितात्मसु । वधबन्धनरुद्धेषु याचमानेषु जीवितम् ॥८॥ क्षुत्तनमाभिभूतेषु शीतायैव्य॑थितेषु च । अविरुद्धेषु निस्त्रिंशैर्यात्यमानेषु निर्दयम् ॥९॥
मरणार्तेषु जीवेषु यत्प्रतीकारवाञ्छया। ___ अनुग्रहमतिः सेयं करुणेति प्रकीर्तिता ॥१०॥ अर्थ-जो जीव दीनतासे तथा शोक भय रोगादिककी पीड़ासे दुःखित हों, पीड़ित हों तथा वध (घात) बंधन सहित रोके हुए हों, अथवा अपने जीवनकी बांछा करते