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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । अर्थ-जो पुरुष समस्त परिग्रहोंसे विरक्त हो ®धित सर्पसे कोई जिस प्रकार दर रहता है उसी प्रकार स्त्रियोंके संसर्गसे दूर रहता है, वही मुक्तिरूपी लक्ष्मीको वरता है। अर्थात् प्राप्त होता है ॥ १॥
यथा सद्यो विलीयन्ते गिरयो वज्रताडिताः।
तथा मत्ताङ्गनापाङ्गप्रहारेणाल्पचेतसः॥२॥ अर्थ-जैसे वज्रपातसे ताड़े हुए पर्वत शीग्रही खंड खंड होजाते हैं तैसे यौवनसे मदोन्मत्त स्त्रियोंके नेत्रकटाक्षोंके प्रहारसे अल्पज्ञानी खण्ड २ हो स्त्रियोंमें तन्मय हो जाते हैं । अर्थात् स्त्रियोंका संसर्ग अल्पज्ञोंको खराव करता है ॥२॥
यस्तपखी व्रती मौनी संवृतात्मा जितेन्द्रियः।
कलङ्कयति निःशङ्कं स्त्रीसखः सोऽपि संयमम् ॥३॥ अर्थ-जो मुनि, तपखी, व्रती, मौनी, संवरखरूप, तथा जितेन्द्रिय हो और स्त्रीकी संगति करता हो वह अपने संयमको कलंक ही लगावै ॥ ३ ॥
मासे मासे व्यतिक्रान्ते यः पिवत्यम्बु केवलम् ।
विमुह्यति नरः सोऽपि संगमासाद्य सुभ्रवः॥४॥ __ अर्थ-जो मुनि महीने २ का उपवास करके केवल जलही मात्र ग्रहण करता है ऐसा तपखीभी स्त्रीकी संगति पा मोहित होजाता है ॥ ४ ॥ . . सर्वत्राप्युपचीयन्ते संयमाद्यास्तपस्त्रिनाम् ।
गुणाः किन्त्वगनासङ्गं प्राप्य यान्ति क्षयं क्षणात् ॥५॥ __ अर्थ तपखियोंके संयमादि गुण सब जगह वृद्धिको प्राप्त होते हैं किन्तु अंगनाके संसगको प्राप्त होकर वे गुण क्षणमात्रसे नष्ट हो जाते हैं ॥ ५ ॥
संचरन्ति जगत्यस्मिन्खेच्छयायमिनां गुणाः ।
विलीयन्ते पुनारीवदनेन्दुविलोकनात् ॥६॥ अर्थ-संयमी गणोंके गुण इस जगतमें खेच्छासे यत्र तत्र विस्तारताको प्राप्त होते हैं परन्तु स्त्रियोंके मुखरूपी चंद्रमाके देखनेसे विलीन हो जाते है ॥ ६ ॥
तावद्धत्ते मुनिः स्थैर्य श्रुतं शीलं कुलक्रम।
यावन्मत्ताङ्गनानेत्रवागुराभिने रुद्धयते॥७॥ ' अर्थ-मुनि है सो स्थिरता, शास्त्राध्ययन, शील और कुलक्रम (गुरु आम्नायको) तबतकही धारण करता है जबतक यौवन—मदोन्मत्त स्त्रीके नेत्ररूपी फांसीसे नहीं बँधता अर्थात् स्त्रियोंके नेत्रकटाक्षपात होते ही शास्त्राध्ययनादि सव नष्ट हो जाते हैं ॥७॥