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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् अथाष्टादशं प्रकरणम् ।
उक्तप्रकारसे सम्यक्चारित्रके वर्णनमें पांच महाव्रतोंका वर्णन किया गया. अव महाव्रत शब्दका अर्थ अहकर इनके दृढ करनेवाली पचीस भावनाओंका तथा पांच समिति व, तीन गुप्तियोंको संक्षेपतासे कहकर रनत्रयके प्रकरणको पूरण करेंगे; अतएव प्रथम ही महाव्रत शब्दका अक्षरार्थ कहते हैं,
उपेन्द्रवज्रा। महत्वहेतोसुणिभिः श्रितानि महान्ति मत्वा त्रिदशैर्नुतानि । महासुखज्ञाननिबन्धनानि महाव्रतानीति सतां मतानि ॥१॥ अर्थ-प्रथम तो ये महाव्रत महत्ताके कारण हैं, इस कारण इनका गुणी पुरुषोंने आश्रय किया है अर्थात् धारण करते हैं । दूसरे-ये खयं महान् हैं इसकारण देवताओंने भी इन्हे नमस्कार किया है । तीसरे–महान् अतीन्द्रिय सुख और ज्ञानके कारण हैं इसकारण ही सत्पुरुषोंने इनकों महाव्रत माना है ॥ १॥
उक्तं च ग्रन्थान्तरे।
आर्या । "आचरितानि महद्भिर्यच महान्तं प्रसाधयन्त्यर्थम् ।
खयमपि महान्ति यस्मान्महाव्रतानीत्यतस्तानि ॥ १॥ अर्थ-अन्य ग्रन्थमें भी कहा है कि इन पांच महाव्रतोंको महापुरुषोंने आचरण किया है, तथा महान् पदार्थ कहिये मोक्षको साधते हैं, तथा स्वयं भी बड़े हैं अर्थात् निदोष हैं इसकारण इनका महाव्रत ऐसा नाम कहा गया है ॥१॥
महाव्रतविशुद्ध्यर्थं भावनाः पञ्चविंशतिः।
परमासाद्य निर्वेदपदवीं भव्य भावय ॥२॥ अर्थ-आचार्यमहाराज कहते हैं कि हे भव्य! ए पांच महाव्रत कहे उनकी शुद्धताके लिये (निर्मलताके लिये) पचीस भावना कही हैं, उन्हें अंगीकार करके वैराग्यपदवीकी भावना कर ॥ २॥ ___ इन २५ भावनाओंके नाम तत्त्वार्थसूत्रादिकी टीकामें प्रसिद्ध हैं, इसकारण यहां नहीं कहे ॥ अव पांच समितियोंको कहते हैं,
ई- भाषेषणादाननिक्षेपोत्सर्गसंज्ञकाः।
सद्भिः समितयः पञ्च निर्दिष्टाः संयतात्मभिः ॥३॥ अर्थ-संयमसहित है आत्मा जिनका ऐसे सत्पुरुषोंने ईर्ष्या, भाषा, एषणा, आदान, निक्षेपण और उत्सर्ग ये हैं नाम जिनके ऐसी पांच समितियें कही हैं ॥ ३ ॥