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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् मौनमेव हितं पुंसां शश्वत्सर्वार्थसिद्धये ।
वचो वाचि प्रियं तथ्यं सर्वसत्वोपकारि यत् ॥ ६॥ अर्थ-पुरुषोंको प्रथम तो समस्त प्रयोजनोंका सिद्ध करनेवाला निरंतर मौनही अव. लंबन करना हितकारी है । और यदि वचन कहनाही पड़े तो ऐसा कहना चाहिये जो सबको प्यारा हो, सत्य हो और समस्त जनोंका हित करनेवाला हो.॥ ६ ॥ .
यो जिनैर्जगतां मार्गः प्रणीतोऽत्यन्तशाश्वतः। .
असत्यवलतः सोऽपि निर्दयैः कथ्यतेऽन्यथा ॥ ७॥ । अर्थ-जिनेन्द्र सर्वज्ञ देवाधिदेवने जगत्के जीवोंको जो अन्तरहित शाश्वत. (सनातन, ध्रुव) मार्ग कहा है, उस मार्गको भी निर्दय पुरुषोंने असत्यके वलसे अन्यथा वर्णन किया है । भावार्थ-विषयी तथा कषायी पुरुष अपने विषयकपाय पुष्ट करनेके लिये उत्तम मार्गका भी उत्थापन करके कुमार्गको चलाते हैं। यह मिथ्यात्वका माहात्म्य है । संसारमें मिथ्यात्व बड़ा बलवान् है ।। ७ ।। . विचासत्यसंदोहं खलैलोकः खलीकृतः।
कुशास्त्रैः खमुखोद्वीयरुत्पाद्य गहनं तमः ॥८॥ अर्थ-दुष्ट निःसार पुरुषोंने असत्यके समूहका विशेष प्रकारसे आन्दोलन करके अपने कपोलकल्पित मिथ्याशास्त्रोंद्वारा गहन अज्ञानान्धकारको उत्पन्न करके इस जगतको दुष्ट वा निःसार बना दिया है । सो ठीक है, जो खार्थी होते हैं वे ऐसी ही दुष्टता करते हैं। किन्तु परके हिताहितमें कुछ भी विचार न करके जिस किसी प्रकारसे अपना खार्थ साधन करते हैं ॥ ८॥ जयन्ति ते जगद्वन्द्या यैः सत्यकरुणामये।
. . ! अवञ्चकेऽपि लोकोऽयं पथि शश्वत्प्रतिष्टितः ॥९॥ अर्थ-जिन पुरुषोंने इस लोकको सत्यरूप, करुणामय तथा वंचनारहित मार्गमें निरंतर चलाया वेही जयशाली हैं और वेही जगतमें वन्दनीय व पूजनीय हैं ।। ९ ॥
असगदनवल्मीके विशाला विषसर्पिणी। ... . __उद्धेजयति वागेव जगदन्तर्विषोल्बणा ॥१०॥ .. • अर्थ--दुष्ट पुरुषोंके मुखरूपी बांबीमें अन्तरंगमें विषसे उत्कृष्ट ऐसी विस्तीर्ण विषवाली जो असत्यवाणीरूपी सर्पिणी रहती है, वही जगत भरको दुःख देती है-॥ १० ॥ .
इन्दुवंशा। न सास्ति काचिद्व्यवहारवर्तिनी न यत्र वाग्विस्फुरति प्रवर्तिका। . : ब्रुवन्नसत्यामिह तां हताशयः करोति विश्वव्यवहारविप्लवम् ॥ ११ ॥