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ज्ञानार्णवः ।
१४३ चन्द्रमाको समान वक्र (टेढ़ी ) रहती हैं। अर्थात स्त्रिये हृदयमें कपटभाव अवश्य रखती
. धूमावल्य इवाशङ्कयाः कुर्वन्ति मलिनं क्षणात् ।
मदनोन्मादसंभ्रान्ता योपितः स्वकुलं गृहम् ॥ ८॥ अर्थ-मदनके वेगसे उन्मादयुक्त होकर स्त्रियां अपने कुल और घरको क्षणभरमें मलिन (कलंकित ) करदेती हैं। इस कारण धूमावलीके समान आशंका करने योग्य हैं । अर्थात् जिस प्रकार धूमावलीसे घर काला होनेकी शंका है इसी प्रकार स्त्रियोंकी तरफसे भी शंका रहनी चाहिये ॥ ८ ॥
निर्दयत्वमनार्यत्वं मूर्खत्वमतिचापलम् ।
वश्चकत्वं कुशीलत्वं स्त्रीणां दोपाः खभावजाः ।।९।। अर्थ-निर्दयता, अनार्यता (अपवित्रता), मूर्खता, अतिचपलता, वंचकता और कुशीलता इतने दोष प्रायः स्त्रियोंके स्वाभाविक होते हैं । अर्थात् विना शिखायेही आजाते
विचरन्ति कुशीलेषु लयन्ति कुलक्रमम् ।
न स्मरन्ति गुरुं मित्रं पतिं पुत्रं च योषितः॥१०॥ अर्थ-ये स्त्रियां व्यभिचारी पुरुषोंमें विचरने लग जाती हैं और अपने कुलकमका उल्लंघन करदेती हैं तथा अपने गुरु मित्र (हितैषी) पति पुत्रका संरणतक नहिं करतीं ॥ १० ॥
वश्याञ्जनादितन्त्राणि मन्नयन्त्राद्यनेकधा। ___ व्यर्थीभवन्ति सर्वाणि वनिताराधनं प्रति ॥ ११ ॥ अर्थ-स्त्रीकी आराधनाके लिये (प्रसन्न करनेके लिये ) वशीकरण, अञ्जनादि तथा अनेक प्रकारके यन्त्र-मन्त्र-तंत्रादि समस्त व्यर्थ हो जाते हैं ॥ ११ ॥
अगाधक्रोधवेगान्धाः कर्म कुर्वन्ति तस्त्रियः।
सद्यः पतति येनैतद्भुवनं दुःखसागरे ॥ १२॥ अर्थ-ये स्त्रियां अगाध क्रोधके वेगसे अंधीहुई ऐसा काम करती हैं जिससे शीघ्रही यह जगत् दुःखसागरमें पड़ जाता है ।। १२ ।।
सातव्यमभिवाञ्छन्त्यः कुलकल्पमहीरहम् ।।
अविचार्यैव निघ्नन्ति स्त्रियोऽभीष्टफलप्रदम् ॥ १३॥ अर्थ-खतन्त्रताकी वांछा करती हुई स्त्रियें अभीष्ट (मनोवांछित ) फल देनेवाले अपने कुलरूपी कल्पवृक्षको विना विचारेही मूर्खतासे काट डालती हैं ॥ १३ ॥