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ज्ञानार्णवः।
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अथ सत्यमहाव्रतखरूपम् ।
आगे सत्य महाव्रतका वर्णन करते हैं,
यः संयमधुरां धत्ते धैर्यमालम्व्य संयमी।
स पालयति यत्नेन वाग्वने सत्यपादपम् ॥१॥ अर्थ-जो संयमी मुनि धैर्यावलंबन करके संयमकी धुराको (मुनिदीक्षाको) धारण करता है वह मुनि वचनरूपी वनमें सत्यरूपी वृक्षको यत्नके साथ पालन करता है ॥ १ ॥
अहिंसावतरक्षार्थ यमजातं जिनमतम् । ... . नारोहति परां कोटिं तदेवासत्यदूषितम् ॥२॥
अर्थ-जिनेन्द्र भगवान्ने जो यमनियमादिवतोंका समूह कहा है वह एकमात्र अहिंसाव्रतकी रक्षाके लियेही कहा है। क्योंकि अहिंसाव्रत यदि असत्यवचनसे दूपित हो तो वह उत्कृष्टपदको प्राप्त नहीं होता । अर्थात् असत्य वचनके होनेसे अहिंसावत पूर्ण नहीं होता ॥ २ ॥
असत्यमपि तत्सत्यं यत्सत्त्वाशंसकं वचः।
सावधं यच पुष्णाति तत्सत्यमपि निन्दितम् ॥३॥ अर्थ-जो वचन जीवोंका इष्ट हित करनेवाला हो वह असत्य हो तो भी सत्य है और जो वचन पापसहित हिंसारूप कायको पुष्ट करता हो वह सत्यभी हो तो असत्य और निन्दनीय है ।। ३ ॥
अनेकजन्मजक्लेशशुद्ध्यर्थ यस्तपस्यति ।
सर्व सत्त्वहितं शश्वत्स ब्रूते सूनृतं वचः ॥४॥ अर्थ-जो मुनि अनेक जन्ममें उत्पन्न क्लेशों (दुःखों) की शान्तिके लिये तपश्चरण करता है वह जीवोंके हितरूप निरन्तर सत्यवचनही वोलता है । क्योंकि असत्यवचन बोलनेसे मुनिपन नहीं संभवता है ॥ ४ ॥
- सूनृतं करुणाकान्तमविरुडमनाकुलम् । . . अग्राम्यं गौरवाश्लिष्टं वचः शास्त्रे प्रशस्यते ॥५॥
अर्थ-जो वचन सत्य हो, करुणासे व्याप्त हो, विरुद्ध न हो, आकुलतारहित हो, छोटे ग्रामोंकासा गँवारीवचन न हो और गौरवसहित हो अर्थात् जिसमें हलकापन नहीं हो । वही वचन शास्त्रमें प्रशंसा किया गया है ।। ५ ।।
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सथ यस्तपस्यति । ..
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