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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
अर्थ – जिनेन्द्र भगवानने तत्त्वोंकी रुचि अर्थात् श्रद्धाप्रतीतिको सम्यक्त्व ( सम्यग्दर्शन ) तत्त्वोंको प्रकर्षरूप कहने अर्थात् जाननेको सम्यग्ज्ञान, और पापक्रियाओंसे निवृत्त होनेको सम्यक्चारित्र कहा है ॥ ५ ॥
इन सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्रमेंसे प्रथम सम्यग्दर्शनका वर्णन करते हैं,जीवादिपदार्थानां श्रद्धानं तद्धि दर्शनम् ।
निसर्गेणाधिगत्या वा तद्भव्यस्यैव जायते ॥ ६ ॥
अर्थ —जो जीवादि पदार्थोका श्रद्धान करना है वही नियमसे दर्शन है । यह सम्यग्दर्शन निसर्ग ( स्वभावसे) अथवा अधिगमसे ( परोपदेशसे ) भव्य जीवोंकेही उत्पन्न होता है । अभव्य नहिं होता ॥ ६ ॥
क्षीणप्रशान्तमिश्रासु मोहप्रकृतिषु क्रमात् ।
तत् स्याद्रव्यादिसामग्र्या पुंसां सद्दर्शनं त्रिधा ॥ ७ ॥
अर्थ -- यह सम्यग्दर्शन पुरुषोंके द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावरूप सामग्रीसे दर्शन मोह कर्मकी तीन प्रकृतियोंके क्षय, उपशम तथा क्षयोपशमरूप होने से क्रमशः तीन प्रकारका है -१ क्षायिकसम्यक्त्व २ उपशमसम्यक्त्व और ३ क्षयोपशमसम्यक्त्व ॥ ७ ॥
उक्तं च ग्रन्थान्तरे
" भव्यः प्रर्याप्तकः संज्ञी जीवः पञ्चेन्द्रियान्वितः । काललब्ध्यादिना युक्तः सम्यक्त्वं प्रतिपद्यते ॥ १ ॥ सम्यक्त्वमथ तत्त्वार्थश्रद्धानं परिकीर्तितं । तस्योपशमिको भेदः क्षायिको मिश्र इत्यपि ॥ २ ॥
अर्थ - " जो भव्य हो, पर्याप्तक हो मनसहित संज्ञी पंचेन्द्री हो और काललव्धि आदि सामग्रीसहित हो वही जीव सम्यक्त्वको प्राप्त होता है ॥ १ ॥ सात तत्त्वोंका श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन कहा गया है । उसके उपशम, क्षायक और मिश्र अर्थात् क्षायोपशमिक ये तीन भेद हैं ॥ २ ॥
सप्तानां प्रशमात्सम्यक् क्षयादुभयतोऽपि च । प्रकृतीनामिति प्राहुस्तत्रैविध्यं सुमेधसः ॥ ३ ॥
अर्थ-मोहकर्मकी मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्प्रकृतिमिथ्यात्व तथा अनन्तानुबंधी क्रोध मान माया लोभ इन सात प्रकृतियों के उपशम, क्षायक और क्षायोपशम तीन प्रकार सम्यक्त्व होना सम्यग्ज्ञानी पंडितोंने कहा है । भावार्थ - उपशमसे उपशमसम्यक्त्व और क्षयसे क्षायिक सम्यक्त्व और कुछ क्षय तथा कुछ उपशम होनेसे - क्षायोपशमिक सम्यक्त्व होता है ॥ ३ ॥