________________
ज्ञानार्णवः । फिर कहते हैं कि, पूर्वकालमें वडे २ पुरुष प्रत्यप्राप्त होगये,'. यस्मिन्संसारकान्तारे यमभोगीन्द्रसेविते।
पुराणपुरुषाः पूर्वमनन्ताः प्रलयं गताः ॥ ६॥ अर्थ-कालरूप सर्पसेवित संसाररूपी वनमें पूर्वकालमें अनेक पुराणपुरुष (शलाकापुरुष) प्रलयको प्राप्त हो गये, उनका विचारकर शोक करना वृथा है ॥ ६॥ फिर भी कालकी प्रबलता दिखाते हैं,
प्रतीकारशतेनापि त्रिदशैन निवार्यते ।
यत्रायमन्तकः पापी नृकीटैस्तत्र का कथा ॥७॥ अर्थ-जब यह पापस्वरूप यम देवताओंके सैंकडों उपायोंसे भी नहिं निवारण किया जाता है, तब मनुष्यरूपी कीड़ेकी तो बात ही क्या? भावार्थ-काल दुर्निवार है।।७।।
गर्भादारभ्य नीयन्ते प्रतिक्षणमखण्डितः ।। . भयाणैः प्राणिनो मूढ कर्मणा यममन्दिरम् ॥ ८॥
अर्थ-हे मूढ प्राणी ! आयुनामा कर्म जीवोंको गर्भावस्थाहीसे निरन्तर प्रतिक्षण अपने प्रयाणोंसे (मंजिलोंसे) यममंदिरकी तरफ ले जाता है सो उसे देख ! ॥ ८॥
यदि दृष्टः श्रुतो वास्ति यमाज्ञायञ्चको बली। तमाराध्य भज खास्थ्यं नैव चेत्किं वृथाश्रमः ॥९॥ अर्थ-हे प्राणी ! यदि तूने किसीको यमराजकी आज्ञाका लोप करनेवाला बलवान् पुरुष देखा वा सुना हो तो तू उसीकी सेवा कर ! अर्थात् उसकी शरण लेकर निश्चिन्त हो रह और यदि ऐसा कोई बलवान् देखा वा सुना नहिं है, तो तेरा खेद करना व्यर्थ है।।९।।
परस्येव न जानाति विपत्तिं स्वस्थ मूढधीः ।
वने सत्त्वसमाकीणे दह्यमाने तरुस्थवत् ॥ १० ॥ अर्थ--ये मूढजन दूसरोंकी आई हुई के समान अपनी आपदाओंको इस प्रकार नहिं जानते; जैसे असंख्य जीवोंसे भरा हुआ वन जलता हो और वृक्षपर बैठा हुआ मनुष्य कहै कि, देखो ये सब जीव जल रहे हैं । परन्तु यह नहिं जाने कि, जब यह वृक्ष जलेगा, तब मैं भी इनके समान ही जल जाऊंगा । यह बड़ी मूर्खता है ॥ १० ॥
यथा बालं तथा वृद्धं यथाढ्यं दुर्विधं तथा । यथा शूरं तथा भीरुं साम्येन असतेऽन्तकः ॥११॥ अर्थ--यह काल जैसे बालकको ग्रसता है, तैसे ही वृद्धको भी ग्रसता है और जैसे धनाढ्यपुरुपको ग्रसता है, उसी प्रकार दरिद्रको भी ग्रसता है । तथा जैसे शूरवीरको असता है, उसी प्रकार कायरको भी प्रसता है। एवम् प्रकार जगतके सब ही जीवोंको समान भा