Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PRAKRIT TEXT SERIES No. 30 SVAYAMBHŪDEVA'S RITTHANEMICARIYA (HARIVAŃSAPURĀNA) PART III (1) JUJJHA-KAMDA EDITED BY RAM SINH TAMAR PKAKRIT TEXT SOCIETY AHMEDABAD 1996 - Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PRAKRIT TEXT SERIES No. 30 : General Editors : D. D, Malvania H. C. Bhayani SVAYAMBHŪDEVA'S RITTHANEMICARIYA (HARIVAŃSAPURĀNA) PART III (1) JUJJHA-KAMDA EDITED DV RAM SINH TAMAR PKAKRIT TEXT SOCIETY AHMEDABAD 1996 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Published by: Dalsukh Malvania Secretary, Prakrit Text Society Ahmedabad-380 009. (c) Ramsinh Tomar First Edition 1996 Price : 150.00 Printes by : Dharnendra Kapadia Dharnidhar Printers 42, Bhadreshwar Society, Shahibag Road, Ahmedabad-380 004. R. 6631074 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृत ग्रन्थ परिषद् : ग्रन्थाङ्क-३० कइराय-सय भूदेव-किउ रिट्रणेमिचरिउ (हरिवंसपुराणु) तृतीय खण्ड (प्रथम भाग) जुज्झ-कंड : संपादक : राम सिंह तोमर प्राकृत ग्रन्थ परिषद् अहमदाबाद. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निवेदन तेत्तीसमो संधि चउतीसमो संधि पणतीसमो संधि छत्तीसमो संधि सत्ततीसमो संधि अतीसमो संधि उनतालीसमो संधि चालीसमो धि एकचालीस मो संधि बयालीस संधि तेतालीसमो संधि चालीसमो संधि पंचचालीसमो संधि छयालीस संधि सत्तचालीसमो संवि अठचालीस संधि पण संधि पण्णासमो संधि बवण्णासो संघि तिवण्णासो संधि चवण्णासो संधि पंचवण्णासमो संधि छप्पण्णमो संधि सत्तावणमो संधि विषयानुक्रम तइयं जुज्झ कंड पणास संधि अट्ठावणमो संधि उमिसंधि सठिमो संधि एक्सट्ठिमा संघि बासटू ठिमो संधि तेस ठिमो संबि १ ११ २१ ३० ४१ ५१ ६१ ७२ ७९ ८७ ९६ १०५ ११४ १२५ १३७ १५० १६१ १७३ १८१ १९२ २०४ २१४ २२७ १ १७ २५ ३२ ४६ ५४ ६५ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ General Editors' Foreword The Prakrit Text Society has great pleasure in publishing herewith a part of the third Kanda, the Jujjha-kamḍa, as Part III (1) of Svayambhudeva's Riṭṭhamemicariya (Aristanemicarita) or Harivaṁsapurana edited by Professor Ramsinh Tomar. Due to several reasons including printing difficulties this part appears after a lapse of three years after the pubulication of the Jayava-kamḍa. This Part (Sandhis 33-63) contains the text of the first thirtyone Sandhis out of sixty Sandhis of the Jujjha-kamda. We had planned to inclnde in this part the text up to Sandhi 55, the rest of the Jujjha-kamḍa forming the second part, But fearing that it would involve further delay, we are publishing whatever was ready. Hence the discrepancy in pagination. Svayambhu has closely followed Vyasa's Mahabharata for the main narrative accomodating of course characteristically Jain variations. For the accounts of various battles in the Bhisma Parvan and the Drona-parvan he is guided by the Mahabharata. He drops all the long descriptions, dialogues etc. and presents an epitome of the incidents and scenes. A discussion of the manner of his utilization of the Mahabharata we reserve for the subsequent part Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ along with the interesting enquiry as to which recension of the latter was before Svayambhū. That would be also useful in determining the date-limit of that recension. The Prakrit Text Society is thankful to Prof Tomar for making available to it his edition of the Ritthanen icariya for publication. We thank Shri Dharnendra Kapadia for his cooperation in the printing work. Dalsukh Malvapia H, C, Bhayani Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जुज्झ-कंडं तेत्तीसमो संधि * मगहापुर-परमेसरु पुच्छइ गणहरु कुरुव-कंडु गउ खेमेहिं । पंच-महावय-धारा मयण-वियारा जुज्झ-कंडु कहि एवहिं ।।१ [१] परमेसरु अक्खइ सेणियहो सम्मत्त-लद्धि-अक्खोणियहो सुणु मुह-मज्झत्त (?) वहंतरहो जउहरेहिं पराजउ जह परहो गय पंडव दारावइहे थिय गोविंदे सुहि-पडिवत्ति किय दिवसावसाणे णिसि-आगमणे सु-मण हरि-रुप्पिणि-वर-भवणे ४ वीभच्छु कहइ दामोयरहो कुडिलत्तणु कुरु-परमेसरहो दोवइ-केस-गहु वण-वसणु कि मीर-सरीर-वीर-महणु तव-तालुय-णीय-जीय-हरणु दुज्जोहण-बंदि-मोक्ख-करणु कीया-विणिवायणु गो-गहणु अहिवण्णुत्तर-पाणिग्गहणु तं तुम्ह-पसाएं सव्वु हरि पंडवहं तरंडउं होहि वरि * The following four verses are found in J. at the end of the Kuru-kanda : सव्वे-वि सुया पंजर-सुयव्व पढिअक्खराइं सिक्खंति । कइरायस्स सुओ पुणु, सुओव्व सुइ-गब्भ-स भूओ ॥१ होसंति पिय-सुहिय-माणुसाइं मिलि-त्ति जुवइ-संधाया । सामग्गि तुम्ह सरिसा पुण्णेहिं विणा ण संपडइ ।।२ अरि भमर भसलई दिदिर छप्पय रे दुरेह भणिओ सि मालइ समं च कुसुम पुणो-वि जइ मालइ-च्चेव ।।३ अस्ति का तस्करी राजन् राष्ट्रे त्वद्-भुज-पालिते । आदायादाय मे मांस प्रीणयत्यात्मनस्तनौ ॥४ 1.2 समारणु 9.a, वयणे किं Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ घत्ता कण्हु-वि कहिवि(कहइ) कहाणउ गरहो चिराणउ पूयण-विहलीकरणउ । रिट्ठ-कंठ-संकोडणु अज्जुण-मोडणु गिरि-गोवद्धण-धरणउं॥१० [२] जलयर-आऊरणु अहि- यणु सारंग-पमाण-समायरणु कालिंदी-दहि कालिय-दमणु मुट्ठिय-चाणूर-कंस-बहणु जीवंजस-परियण-सथवणु मगहाहिव-साहण-पट्ठवणु जायत्र-कुल-कोडी-णिग्गमणु देवय-परिरक्खणु वण-गमणु जिण-जम्मणु रुप्पिणि-अवह रणु दप्पुद्धर-चेदि-राय-मरणु महएवी-गोवी-परिणयणु वम्मह-उप्पत्ति पुणागमणु मायंग-विसेस-वेस-करणु णिय-माउल-कण्णा-अवहरणु अणिरुद्ध-कुमारहो ओयरणु संवुब्मउ संव-समायरणु धत्ता रयणिहिँ कहिउ कहाणउं ताम बिहाणउं थिउ अत्थाणे जणद्दणु । परिमिउ वंधव-सयहि विहसिय वयणेहि सुरेहि णाई संकंदणु ।। ९ तहि अवसरे पभणइ दुमय-सुय णारायण-गेमि-हलाउहहो अणिरुद्ध-सच्च-पिहु-पज्जुणहो तुम्हइ-मि मज्झु ण परित्त किय सुहु दुक्खु चविज्जइ केण सहं दूसासणु अज्ज-वि जियइ जहिं कि भीमहो गरुय-गयासणिए तहिं अवसरे जेहिं ण जुझियउ इंदीवर-दीहर-दाम-भुय सिणि-सच्चइ-णिसढ-दसारुहहो उत्तर-विराड-धट्ठज्जुणहो पंडव अवहेरि करेवि थिय ४ केस-गहु हियवउ डहइ महु वोल्लिज्जइ केसव काई तहिं बलु आयह सव्वह वुझियउ ८ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेत्तीसमो संधि घत्ता कहिं पंडव कहिं वंधव थिय जच्चंध-व को-वि णाहि महु सरणउं । दूसासण-सव सत्तहे परिह पवत्तहे) वरि करे अब्भुद्धरणउं॥ ९ . [४] णारायणु पभणइ जायवहो पंचालहो मच्छहो पंडवहो तहो बंधव-सयण-विरोहणहो दिट्टई कम्मइं दुन्जोहणहो कवडक्खेहि वसुमइ अवहरिय अण्ण-वि दोवइ-चिहुरेहि धरिय किं कहिमि णिरिंदहं एह किय जे णिग्गुण ताहं जे होइ सिय ४ गुणवंता गुणेहिं अलंकरिय तरलच्छिए लच्छिए परिहरिय लच्छि-वि अलच्छि विणएण विणु जा जगे णिदिज्जइ जेव तिणु ते कउरव-णिम्मल-कुल-तिलय पंडव पुणु विक्कम-णय-णिलय वप्पिक्कउ-अद्ध-महीयलहो कि होइ ण होइ जुहिट्टिलहो ८ धत्ता कहहो कहहो सामंतहो णं तो मतो महि संदेह-वलग्गी। कि पंडवहं ण जुज्जइ कुरुहुँ जे भुंजइ सयल-कालु आवग्गी॥ ९ संकरिसणु पभणइ कहहो हरि महु चित्तहो भावइ एहु वरि णउ कण्णहो णउ दुजोहणहोणं सउणिहे णउ दूसासणहो आयहो एक्कहो वि ण दोसु तहि कहिं धम्म-पुत्तु दुव्वसणु कहिं सव्वह-मि अणत्थहं मूल-दलु जूयहो जे पहावें गट्ठ णलु दुव्वोलह कुलहरु कलह-णिहि पज्जलइ झत्ति जहिं कोव-सिहि सव्वत्थ-हारि संताव-भरि तं काल-कुटु-वि सु-खद्ध वरि ४ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ वरि उप्परि चडिउ हुवासणहो वरि मंडल गंधारिहिं(?) वसिउ वरि जीविउ गउ जम-सासणहो ण-वि जूअ-विटत्तउ अहिलसिउ ८ घत्ता जहिं णरिंदु जूयारिउ तं देसु वि गंदंतउ अह परयारिउ दुण्णयवंतउ वसुमइ-रणपिडु मंडइ । लच्छि जणद्दण छंडइ । ९ तं णिसुणेवि सच्चइ कुइउ मणे सह-मंडवे तिण-समु गणेवि मई तुहुं चक्किहे गुरु णारायणहो को अवरु जुहि ट्ठिलु अहिखिवइ परमेसरु सोम-वंस-तिल मह-णरु एहु गुरु भीमज्जुणहो पइसारमि इंदपत्थु णयरु अच्छहो पेछंता हरि-वलहो णं गज्जिउ पलय-मेहु गयणे संकरिसण वोल्लिउ काई पई वसुएव-सरिसु अहिवायणहो को फणिवइ फण-कङप्पु छिवइ ४. जहिं अच्छइ सो पवित्त णिलउ को करइ ण पक्खवाउ गुणहो देवावमि दुंदुहि-सुर-पयरु हउं एकु पहुच्चमि पर-वलहो ८ धत्ता चूरमि रह-गय-वाहणु कउरव-साहणु उब्भिय-वीर-पडायहो। अच्छउ तुडिहे वलगगी महि आवग्गी देमि जुहिट्ठिल-रायहो ॥ ९ कियवम्मु ताम मणे विक्कुइउ णं धूमिरु धूमकेउ उइउ जइ तुहं अणिराइउ पंडवहं तो मिलिउ गपि हउ कउरवहं जाणिज्जइ तुम्हहं अम्हह-मि सुहडत्तणु रणमुहे सव्वह-मि वारमइ मुएप्पिणु नीसरिउ अक्स्वोहणि-साहण-परियरिउ | 6.9.a भां. भडायहो; ज. उज्झिवीय खडायही Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेत्तीसमो संधि गउ पासु ताम दुजोहणहो दृण्णय-दुज्जस-कलि-रोहणहो एत्तहे-वि णियंतह जायवहं सिरि-रामालिंगिय-अवयवह तत्रतणय-जमल-भीमज्जुणहं उत्तर-विराड-धट्टज्जुणहं दुमएण पुरोहिउ पट्टविउ दूयत्तणु सयल वि सिक्खविउ धत्ता गउ गयउरु कुरु-राउले णरवर-संकुले पइसारिउ पडिहारें। वर-वायरणभंतरे सुत्त-णिरंतरे सिसु(१) जिह पच्चाहारें ॥९ [८] धयरट्टे पुच्छिउ दूय कहे किं कुसलाविग्घेहि आउ पहे किं कुसल जुहिट्ठिल-राणाहो भीमहो भुवणुण्णय-माणाहो किं कुसलु स-णउलहो अज्जुणहो सुर-भुयणुच्छलिय महा-गुणहो किं कुसलु सव्व-लहुयाराहो सहएबहो अणुवय-धाराहो कि कुसलु सुहद्दहे दोवइहे उत्तरहे पवइढिय-उण्णइहे अहिमण्णु-कुमारहो किं कुसलु जो माय-पियंधि-कमल-भसलु किं कुसलु राम-णारायणहं अवरह-मि अणेयहं सज्जणहं तो चवइ दुउ धयरट्ट सुणि सव्वह-मि कुसलु णियमेण मुणि ८ धत्ता कुसलु जुहिट्ठिल-रायहो सयण-सहायहो णय-विक्कम-संपण्णहो । पर महि-अद्भु ण देंतहो अवगुण लेतहो अकुसलु कउरव-सेण्णहो ॥९ णिय-वयणु पडीवउ संवरइ धयरट्ट हिट्ठिलु संभरइ तुहु पंड विउरु तिहिं भेउ ण-वि पणवइ गंगेय-दोण-किव-वि अहिवायणु सव्वहं पट्टविउ जं जें व आसीसु परिट्ठविउ तं तेंव धयरट्ठ समल्लवहो सुहु जीवहो कुरुब-णराहिवहो ४ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्टणेमिचरिउ मं भडयण मच्छर पडिहउ दुज्जोहणु तिहुयण-जसु लहउ विस-जउहर-जूअई ढोइयई केस-गह-बसणई जोइयई अवराइ-मि छलई जाई कियई तहुँ ताइ मि चित्ते णाहि थियइं . संधाणु समिच्छइ तव-तणउ म वसु विणासहो अप्पणउ धत्ता तो वुच्चइ जच्चंधे कुरुवइ-खंधे रण-भर-सयई पडिच्छइ । महु ण करइ णिवारिउ दुट्ट णिरारिउ दुक्कर संधि समिच्छइ ॥ ९ [१०] महु पुत्तहो एक्कु जे गाहु पर संधाणु ण करइ ण देइ धर जिह फणि ण फणामणि अल्लियइ जिह कुंजर मोत्तिउ गउ धिवइ जिह रवि ण समप्पइ णियय पह जिह सुरवइ देइ ण णियय सह स-कसाय-बाय-संखोहिएण . वोल्लिज्जइ दुमय-पुरोहिएण खग-णाहहो काई करेइ फणि फड मोडेवि तोडेवि लेइ मणि सीहहो करि-कुभई केत्तियई पाडेत्रिणु कड्ढइ मोत्तिय रवि जइ-वि णहंगणे संचरइ पह गहकल्लोलु तो-वि हरइ जसु पुण्णइं सो इंदत्तणउं अवहरइ कवणु एउ चिंत-णउं । ८. घत्ता सायरु रयणइं जोयइ कहो वि ण ढोयइ कायंवरि-मय-मत्तउ । ण सुण्णइ सुरह-मि भासिउ तासु जे पासिउ णवर विरोलणु पत्तउ ॥९ [११] रसु उच्छु ण देइ अ-पीलियउ गंथु वि फलोहु अण-सीलियउ चंदणहो अ-पिट्ठहो गंधु ण-वि साहारु अ-भग्गु ण देइ सवि कसवट्टए कंचणु णिव्वडइ । जइ तुम्हहं सव्वहं आवडइ तो सुदरु सधि-कज्जु करहो मा जलणे जलंतए पइसरहो Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेत्तीसमो संधि पंडवह परक्कम संभरहो विसु भक्खिउ णिग्गय जउहरहो राहा हय परिणिय दुमय-सुय अवहरिय सुहद्द सुहद्द-भुय ओहामिय खंडवे अमर-सय तव-तालुय-कालकेय णिहय कुरुवइ मेल्लाविउ दुज्जएण सहुं विग्गहु कवणु धणंजएण धत्ता स-सर-सरासण-हत्थे एक्के पत्थे गो-गह काई ण पाविय । कण्ण-दोण-दूसासण किव-दुज्जोहण दंतेहिं तिणइं धराविय ॥ [१२] तं सरि-गंदणु चवइ स-गेहउ जं जं भणहि दूय तं तेहउ तहिं काले कण्णु कोवारुणिउ आहुइहि हुयासणु णं हुणिउ दुवियड्ढहो संढहो णिग्गुणहो वलु केत्तिउ वण्णहो अज्जुणहो जइयहुं दोमइ दूसासणेण कड्ढिय णिय-करि णिव-दूसणेण णव-णलिणि व मत्त महा-गएण लंकेसर-घरिणि व अंगरण तवसुय-जम-भीम सहे जएण(?) तइयहुं किउ काई धणंजएण वइयत्तण-वयण-विरोहिएण स-कसाएं वुत्त पुरोहिएण . केस-ग्गहु जं ण मुयावियउ त जणे अणुराउ चडावियउ घत्ता चंगउ किउ पई अत्तणु कण्ण भडत्तणु अग्गए भाइ णिहम्मइ । अज्जुण-वाणहं संकेवि अंगई ढंकेवि विह णासेप्पिणु गम्मइ ॥ ९ तुहुं दुण्णउ दुज्जसु तुहुँ जे कलि उप्पण्णु कण्णु तुहं कुरुहुँ सलि सिय णासिय पई दुजोहणहो तुहुं पलउ असेसहो साहणहो तुहुं पंडव भारहि तुहं जे वलु तुहुं दुम्मुहु सव्वहं खलहं खलु खउ आणेवि कउरव-पंडवहं अवहरेवि सहोयर-वंधवहं 11.9.a ज. हणणसमत्थे 12.8 b अणुराउ. Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहे मरेविलहेसहि कवण गइ भणु भणेवि ण-वितें त्रि हउ गावग्गणणंदणु सिक्खविउ वारवइ पराइ दिट्टु पहु किउ अहिवायणु धीरेहिं कुसलाकुसलि करेष्पिणु - त्रिकम-गुण- भरियई जेण दुजोहण राणउ गावग्गण-णंदणु अतुल-वलु दुज्जोहणु सयल - कला - अहिउ जोइज्जइ जइ तो कुरु-णरहं तत्र-दणु पुणु विवोल्ल करइ दूसासण-कण्ण- सउणि कुरव किं संभरति जलयर - रसिउ किं सरइतिगतउ उत्थरिउ किं सरइ असेसु त्रि कुरव - वलु तो वियसियच्छि - मुह-कंजएण गंधारि भडारा संभरइ धयर सुट्ट सुमरंतु थिउ सुमरिय तुम्हई दूसासणेण ए-विण सुनहिं अंगवइ घरट्ठे पुज्जिउ दूउ गउ तो पच्छ संजउ पट्ठविउ णं दोस-निहाएं गुण- णित्रहु धत्ता पंडव - वीरे हिं - वि ताहं नियत्तियउ आसणु देष्पिणु पुच्छिउ कुरु वलु केत्तिउ ॥ ९ रिट्ठमिचरिउ [१४] वोल्लइ पप्फुल्लिय-मुह कमलु एयारह - अक्खोरिणि सहिउ तुम्हई जि ताहं बलु भायरहं धयरट्ट काई मई संभरइ किं संभरति णर-वावरव (?) खय-काले णाई बइवस - हसिउ सहएव-उल- भीमहुं चरिउ जं पत्थे गोग्गहे किउ विहलु धता पंडव-चरियई पिसुणु अयाणउ [१५] ताई काई ण त्रियप्पइ | वसुमइ अद्भु ण अप्पइ || तव - णंदणु प्रभाणिउ संजएण जइ रज्जु जुहिट्ठिलु परिहरइ जं विसेण भीमु ण-विखयहो णिउ जउहरे विण दड्ढ हुयासणेण ४ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेत्तीसमो संधि सुमरइ केस-गहु दोमइहे जइ तत्ति ण किज्जइ वसुमइहे तं कुरव-राउ संभरइ मणे . मेल्लाविउ वइरिहिं के व रणे संभरिउ पत्थु दुज्जोहणेण किह ण लइउ सिरु सहुं गोहणेण चंपाहिउ चंगउ संभरइ जइ तुम्ह मज्झे मज्झिमु मरइ संभरइ सउणि जइ वीसरेवि अच्छहो वारमइहिं पइसरेवि धत्ता काई जुहिट्ठिल आएं वयणुग्धाएं जुज्झु कंखु रणे रोहणु । अच्छउ महि खलु खेत्तु-वि तिल-तुस-मित्त-वि देइ णाहि दुज्जोहणु ॥ १० [१६] कुरु कुरु-कुल-चित्तें दइव-हय तुम्हइं परमागम-पार-गय ते णिग्गुण तुम्हि गुण-अहिया णय तुम्ह होति दुग्णय-सहिया जसु तुम्हहुं दुज्जसु ताहं घरे महि ताहं परक्कम तुम्ह-करे ते णिग्धिण तुम्हइं खंति-कर ते स-कलुस तुम्हई धम्म-पर ४ गुरु वप्पु पियामहु जहिं मरइ जहिं बंधव-जणु उवसंहरइ जहिं महरिसि-गो-वंभणहुं दुहु सो कवणु रज्जु तं कवणु सुहु ‘जइ सक्कहो तो वरि कहि-मि गय __णउ दोण-पियामह वे-वि हय जइ सक्कहो तो वरि तव-चरणु णउ बंधव-सयणहुं किउ मरणु धत्ता वरि अण्णई दुद्धरिसइं तेरह वरिसइं अच्छिय कहि-मि महावणे । णउ जच्चंधे जाया सय-णव-राया घाइय भूमिहे कारणे ॥ ९ . [१७] सुहि मारेवि कारणे दुज्जसहो लइ काई करेसहो वइवसहो ढुक्कइ पच्छइ जे जर-मरणु तहि अवसीरे तुम्हहो को सरणु पर-बइर अणेय-भवंतरइं णउ सोक्खइं लहहो णिरंतरई अट्ठारह अक्खोहिणिउ जहिं सिद्धति सत्ति किर कवण तहिं ४ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्टणेमिचरिउ तुहुं धम्म-पुत्त दय-धम्म-परु खम-दम-सम-सच्च-सउच्च-घरु जइ अद्ध ण देति दीण-वयण तो किं मारेवा पई सयण जइयतुं दिवसयर-सम-प्पहेण कइकइहे दिण्णु वरु दसरहेण तइयतुं वइसणउं वसुंधर-वि कि रामें भरहहो दिण्ण ण त्रि धत्ता भीमज्जुणेहिं विरुध्देहि वुच्चइ कुध्देहि ताम समरे पहरेसहुँ । लग्गेवि कुरुहुं कडच्छए णिहयहं पच्छए पायच्छित्तु चरेसहुँ ॥ १८ ] जोएप्पिणु वयणु धणंजयहो संदिसइ जुहिट्ठिलु संजयहो भणु कुरुव-णराहिब केत्तिएण णिय-धम्मु चरेवउ खत्तिएण करवाल करेप्पिणु पवरु करे जो हणइं हणेवउ सो समरे ताह-मि महि-अध्दु ण देंताई अम्ह-वि बलिवंडए लिंताई जं होइ होउ तं आहयणे गावग्गणि गंपिणु एम भणे णारायणु भासइ सार-गउ जुज्झेवउ कारणु पद्धरउ परिपुज्जिउ संजउ वियड-पउ सरहसु धयरट्ठहो पासु गउ वित्तंतु कहिउजइ राणाहो लइ आउ विणासु अयाणाहो धत्ता विक्कम-बल-संजुत्तेहिं पंडव-पुत्तेहिं तुम्हहं सिह भंजेवी । दासि जेम उज्जलए वसुमइ कल्लए लेवि सई भुंजेवी ।। इय रिट्ठणेमिचरिए धवलासिया-सयंभुव-कए तेत्तीसमो सग्गो Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउतीसमो संधि आहासइ दूउ माण-गइंदारोहणहो। करे संधि अयाण देहि बुद्धि दुज्जोहणहो ॥१ [१] इच्छहि जइ गयउरु दंतउ इच्छहि जइ कुलु रिद्धि है जंतउ इच्छहि जइ जीयंतई सयणई इच्छहि जइ सुवण्ण-मणि-रयणइं इच्छहि जइ घण्णइं असरालई इच्छहि जइ चामीयर-थालई इच्छहि जइ बहु-रसणा-दामई इच्छहि जइ गोहणई पगामइं इच्छहि जइ सोवण्णई छत्तई इच्छहि जइ णिय-पुत्त-कलत्तई इच्छहि जइ स-रज्जु सीहासणु इच्छहि जइ जियंतु दूसासणु इच्छहि जइ हय-गय-रह-वाहणु चाउरंगउ चउ-पासिउ साहणु इच्छहि जइ समिध्धु कुरु-जंगलु इच्छहि जइ णिय-गोत्तहो मंगलु धत्ता तो विजउ संधि दिज्जउ अदु वसुंधरिहे । मा कमे णिवडंतु कुरु-मिग अजुण-केसरिहे ॥ [२] वुत्तउ किण्ण करेहि अकारणे दुज्जय पंडव होति महारणे जहिं विराडु जहिं दुमउ स-संदणु जहिं सहाउ सयमेव जणद्दणु . जहिं पज्जुण्णु विज्जाहर-सामिउ जेण काल-संवरु ओहामिउ जहिं सच्चइ अक्खोहणि-साहणु जहिं वसुएउ महागय-वाहणु जेण मयंवरे रोहिणि-केरए लाइउ पर-वलु वहे विवरेरए जहिं वलएउ हलाउह-हत्थउ जहिं अपमाणउ तुरय-चलस्थउ जहिं आहुट्ट-कोडि जायव-वलु णं मज्जाय-चत्त सायर-जलु ८ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिडणेमिचरिउ धत्ता जहिं णेमिकुमार जो णिसुणिज्जइ आरिसेहिं । तहिं कुरुव-णरिंद कवणु गहणु तुम्हारिसेहिं ।। [३] कउरव-णाह-जणेरु णिरुत्तर जाउ जाउ मुहे एक्कु-वि अक्खरु गावग्गाणि पयटु णिय-भवणहो ढुक्कु दिवायरो-त्रि अथवणहो विउरु-वि कोक्काविउ धयरट्टे कहे पंचंगु मंतु विणु छट्टे तेण-वि वुत्तु काई मंतिज्जइ पढमउ-परम-धम्मु चितिज्जइ जेत्थु धम्मु तहि सव्वई कज्जई। जेत्थु धम्मु तहिं विउलई रज्जई जेत्थु धम्मु तर्हि सच्च-सउच्चई जेत्थु धम्मु तहिं कुलइ-मि उच्चई जेथु धम्मु तहिं सव्वई दाणई। जेत्थु धम्मु तहिं सण-णाणई जेत्थु धम्मु तर्हि सव्वई सुक्ख इं जेत्थु धम्मु तहिं हांति ण दुक्खई धत्ता धम्मो-वि अहम्मु णाह पयट्टइ हिंस जहिं । पंडवेहि समाणु वइरु करेप्पिणु सोक्खु कहिं ।। [५] धम्में इय देव अजरामर धमें घरिय धरणि स-धराधर धम्में सायर समउ ण चुक्कइ धम्में ओसहि खयहो ण ढुक्कइ धम्में वाइ वाउ महि-मंङले धमें सग्ग-रिद्धि आहंडले धम्में णहल्यले गह-णक्खत्तई धम्में हलहर-चक्कहरत्तई जं जं दीसइ काइ-मि चंगउं तं तं धम्में णिम्मिउ अंगडं धम्मु जे कम्मणु धम्मु रसायणु धम्मु महा-चिंतामणि भावइ धम्मु जे पुण्ण-पवित्त-पयावइ ८ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउतीसमो संधि धम्मेण गरिंद विणु एक्के तेण धत्ता पाएहिं पडइ पुरंदरु-वि थाइ परम्मुहु कुलहरु-वि ॥ दुज्जोहण-जणेरु पडिजंपइ परम--धम्मु सो केण विढप्पइ कहइ गरिंदहो विउरु सणेहें धम्मु विढप्पइ अप्पण-देहें धम्मु विढप्पइ विविह-पयारेहि अज्जव-सच्च-सउच्चायारेहि धम्मु विढप्पइ सुह-परिणामें भत्ति पुत्र-गुरुदेव-पणामें धम्मु विढप्पइ खम-दम-भावे उज्जम-संजम सील-सहावें धम्मु विढप्पइ उत्तम-बुद्धिए काय-वाय-मण-कम्म-विसुद्धिए धम्मु विढप्पइ दंसण-णाणे । आगम-अभयाहार-पंदाणे धम्मु विढप्पइ बहु-उववासेहि आएहि अवरेहि-मि विण्णासेहि घत्ता अह किं वहुएण छुडु जाणिज्जउ धम्म-विहि । धम्मेण जे राय लमइ अक्खय-सुक्ख-णिहि ॥ धम्मु विढप्पइ पंच-पयत्थेहिं हिंसालिय-चोरी-थी-गंथेहि कवण हिंस इंदिय-विद्धसणे . काम-कोह-मय-मोह-विणासणे कवणु असच्चु पाणि-परिरक्खणे सव्वस-हरणावसरे अणक्खणे चोरिय कवण धम्म-पच्छायणे णिय-गुरु-अवगुण-सम-सम्मायणे मेहुणु कवणु सिद्धि-पाणिग्गहे कवणु परिग्गहु गंथ-परिग्गहे एंव विढप्पइ पंचहि भेयहिं कवणु धम्मु जो होइ ण एयहि धम्महो लक्खणु एत्तिउ सीसइ अप्पउ परेण समाणउ दीसइ पंचहुं एम सुरक्खणु किज्जइ चितिउ तहि-मि धम्मु पाविज्जइ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १.४ जो रक्खइ हिंस हो होइ गरिंद धत्ता मुह- गुज्झयरहिं चरण किय आण - वडिच्छिय मोक्ख - सिय ॥ विरुयारउ सन्वहं पुट्ठि मंसु जो णवि छिप्पइ छम्मत्थेर्ण धम्म-विणासु हवइ गुरु-जिंदणे पाउ महंतु दित वारंतहुँ गो-वंभण- रिसि वज्झ करंतहुं पइवय-देव-भोय- फेडत हुँ पावहि पाउ पडइ तिहि दिवसेहि जेम जेम जम- जीउ पवज्जइ जे देव मुवंति ते किमि-कुले जंति [ ७ ] वरि घाइ (य) उ साहु णउ हासिंउ वरि ण न्यविउ विरुध्दु ण वि भासिउ दमिणु दुरुग्गमेण जं जायउ वरि विस-तरु-मंजरि अग्घाई वरि त कियर ण पच्छए खंडिउ वरि पसाउ ण कियउ ण उहडियउ वरि भंडणू ण कियउ ण-वि भग्गउ वरि णउ कीय सेय ण दु-पालिय रिट्टणेमिचरिउ होइ अणेयहुं दुक्खटुं गारउ पायछित्त निद्धम्म- कहेणं जम्मु णिरत्थु जिणिंद-अ-नंदणे गब्भिणियाहं गब्भु पाडत हुं तीमइ-वाल- विद्ध-णासहु पडिमा चोरी - पडिमा - खंत हुं अहव ति पक्ख-ति-मास-ति-वरिसेहि तइरणं सकुलेणुष्पज्जइ घन्ता लेप्पिणु पंच- महव्वयई । वरिसहूं सट्ठि-सहासयई || [ ८ ] वरिंणउ कियउ घ विष्णासिङ मरणु अणत्थु निंद जसु पासिउ वरि ण दिष्णु तं दाणु पराइउ ण - विं सेविय पुष्णालि पराई वरि भरु लयउ अणंतरे छंडिउ वरि णारूदु ण रुक्खहो पडियउ वरि जिणवरे ण लग्गु ण दुलग्गउ वरि दुणि- लित्त कम ण पक्खवालिय ४ ८ ४ ८ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउतीसमो संघि घत्ता ९ वरि ण किउ सु-कामु पर-जुवई साणंदियई । णा परह कियाइं दुच्चरिएहि वि णिदियई ।। [९] से ण देहु जो धम्म विवज्जिउ सा ण धम्मु जो हिंस-परज्जिउ ते ण वाल सिव-वाल-कडक्खेहि जे ण सहति लोउ रिसि-दिक्खहिं ते ण सीस पर णिम्मिउ भारउ जेहि ण पणविउ तिहुवण-सारउ ते ण कण्ण तरु-कोडर-थाणई। जे ण सुगंति धम्म-वक्खाणई ते ण चक्खु पचक्ख भुयंगम जेहि ण दिट्ठ देव-गुरु-आगम णास-उडाई ताई अ-पसंसई अग्धाइयई जेहिं महु-मंसई त ण वयणु सुंदरु सव्वंगहुँ जं बहु दुट्ठालाव-भुअंगहुँ सा ण जीह जा ण-वि पिय-वाइणि अच्छइ ललललंति जिह णाइणि ते ण उट्ट जे ण-वि विष्फुरिया जम्मण-मरणहुं कारणे डरिया घत्ता ते दंत ण दंत जेहिं अक्वद्धइं खद्धाई । ते ण-वि आलाव जेहिं ण थोत्तई वद्धाइं ॥ [१०] सो ण कंठु पर थाणु सिलेसरु जेण गाइउ देउ जिणेसरु सो ण हियउ जं जिणु अवहेरइ अप्पुणु इच्छइ इंदिय-पेरइ ते ण हत्थ धणु जेहिं ण दिण्णउं चउ-कसाय-भक्गहणु ण छिण्णउ ताम ण ते-वि अवय अंगुलियउ जेहिं जंतु इ सयलु वि दरमलियउं ताई ण सुंदराई णक्खग्गई जाई असइ-थणव-हिं लग्गइं तं ण पोटु जं गुण-परिहरियउं विविह-पयारेहिंदुरिएहि-भरियां सो ण णियंव-पएसु रवण्णउं: जो पर णारि-सएहि पडिवण्ण ते ण पाय जे ण गय सु-खेत्तई जम्मण केवल णिव्वुइ-मेत्तइ ४ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ ९ घत्ता किं चल-णयणेहिं णिय-गुरु-विणय-पयासिरिए । सेवियई ण जाई समणिदिय तिहुयण-सिरिए ॥ [ ११] माणुसु वरिस-सयाउ पउत्तर दस वहरसे सिसु-भाउ णियत्तउ वीसेहिं बट्टेवउ परिसेसई तीसेहिं जोव्वणु अवरु गवेसइ परम-णेहु चालीसेहिं फिट्टइ पंचासेहिं लायण्णु विहट्टइ सट्टिहिं विमल-चक्खु ण विहावइ सुइ सत्तरि वरिसेहिं ण पहावइ विहिं चालीसेहिं मयणु विणासइ दसणावलि णवइहिं बिहासइ वरिस-सएण सरीरु सिटिल्लइ गत्तु मसाणोवरि टिरिटिल्लइ जीवें जाएवउ एक्कंगें सो ण लइज्जइ केण-वि संगे सुहुमु अंणाइ-णिहणु गुण-जाणउ कत्तउ भुत्तउ उद्ध-पयाणउ घत्ता तणु-मेत्तउ णिच्चु कम्म-विमुक्कउ णीसरइ । तिहि समयह मज्झे अवरे कलेवरे पइसरइ ।। [१२] तहि-मि सुक्क सोणियई पडिच्छइ जणणी-जणियाहारु समिच्छइ विणु वयणेण-वि सत्ति पदरिसइ तत्त-लोहु जिह जलु आकरिसइ पहिलए मासे एम उप्पज्जइ वीयए पुणु वुव्वुउ णिप्पज्जइ तइयए मासे पवड्ढिय-मंसउ होइ चउत्थए पुणु चउरंसउ पंचमे पंचावयवालिद्धत छट्ठए सिर-कर-चरण-समिद्धउ सत्तमे अंगुलियउ णह-रोमई णासिय-णयण-कण्ण-मुह-पोमई अट्ठमे गिद्द भुक्ख तिस जाणई णवमए भव-सामग्गी-करणई दसमए अप्पाणउ दरिसावइ कंचुउ मुएवि भुवंगभु णावइ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउतीसमो संधि धत्ता तहो तेत्थु वि दुक्खु णाल छेय-सुइ-विंधणई । थण-दुद्वाहारु वज्झइ वधव-वंधणई ।। _ [१३] दुक्किय-कम्म-पहावें विट्टलु होइ जीउ दुक्कम्महं पोट्टलु सत्त-धाउ सत्तुप्परि-चम्मई सत्तसट्टि तीसद्ध स-मम्मई हड्डुहं तिणि-सयई सु-विसेसहं तिणि सयाई जे संधि-पएसहं अंतह पंच-सयई सण्णामह सत्त-सयई सिरहिं णव-थामह अट्ठवीस किमि-कुलहं रउद्दहं सोलह कंडुराउ णव छिद्दह असिय लक्ख रोमुग्गम-कोडिहिं वाहत्तरि सहास वर-णाडिहिं मुत्तहो कुडउ दिवड्डु पुरीसहो मन्थिक्कंजलि अंतरे सीसहो सुक्क जलि चउरंजलि सोणिउ छंजलि पित्तु ति-अंजलि पाणिउ ८ । घत्ता एउ अवरु वि जीउ दुग्गंध-सरीरि कम्म-णिवद्धउ वहइ जहिं । कवणु पएसु पवित्त तहिं ।। ५ [१४] तहि-मि अणेय रोय कु-कलेवरे दस सिरे अट्ठवीस कण्णांतरे लोयणे रोय वीस छाहत्तार एक्कतीस णासउडह उप्परि पंचसट्ठि मुह-कुहरभंतरे गंड-भेय चउत्रीस गलंतरे उरे एयारहामे अट्ठोयरे असी वाय कफ वीस कलेवरे अट्ठबीस अट्ठारह पित्तई वढिउ सत्त तिणि वरे सत्तई चउ वम्मीय चयारि-वि अप्फर तेरह सण्णिवाय वारह जर सास-कास-उम्माय-भगंदर , गुम्म-वियप्प पंच-पंचावर सन-अंत-विदिउ सलत्तउ(?) मडइ सार सड सरिउ पउत्तउ 14-1b ज. अठतीस. 8 ज. सडइ. १९ पक्राइ ८ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिटणेमिचरिउ एय अणेय रोय सुह-उझिय अवरह केण संस पुणु वुझिय वाहिहिं कह-व कह-व जइ चुक्कइ मरणु अगेय-पयारेहि ढुक्कइ धत्ता तडि-जलण-जलाई जुवइ-जीह-कर-पहरणइं । चोरारि-विसाई आयई मरणहो कारणइं ॥ [१५] तो-वि जीउ जीवेवउ वंछइ मंड-मंड दालिद दम्मइ मंड-मंड पेल्लिज्जइ पावें। कोह-दवग्गि जासु संवज्झइ जम्म-वेल्लि जो डहेवि सक्कइ तिहुवण-वामरि जो वसियउ जो संसारु मुरवि ण णासइ उवसम-सेढि चडेवि णियत्तइ जाइ-जरा-मरणई ण णियच्छई जिह कल्होडु भरेण णिहम्मइ मच्छु जेम जल-जाण-सहावें सो णर-तरु सव्वंगिउ डझइ सो चउ-गइहिं भमंतु ण थक्कइ काल-भुयंगमेण सो डसियउ तहो जम-काउ करोडिहिं वासइ पहिलारए गुण-ठाणे पवत्तइ ८ घत्ता दुक्कम्म-वसेण . जाइ जीउ हेट्ठा-मुहउ । जह कूव-खणेरु सलिलुप्पत्तिहे सम्मुहउ । [१६] परि त कम्मु णराहित्र किज्जइ जेण परम-गुण-ठाणे चडिज्जइ तहिं परमागमे छट्ठ-पयारउ मिच्छाइट्ठि तेत्थु पहिलारउ सासण-सम्माइट्टि दुइज्जङ सम्मा-मिच्छाइट्ठि तइज्ज अवरउं सम्माइट्ठि चउत्थउं पंचमु विरयाविरउ णिउत्तउं ४ - 15.3 ज. जलनालपहावे. Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउतीसमो संघि पुणु छट्ठ पमत्त-थाणतरु खवग-सेढि पुणु सत्तम-ठाणेहिं तेत्थु अपुष्व-करणु पहिलारउं मुहम मोहु उवसंत-कसायउं पुणु स-जोइ सयलामल-केवलु अपमत्त सत्तमउं अणंतर आरुहिएवी गुण-सोवाणेहि पुणु अणिवित्ति-थाणु सुह-गारउं खीण-कसाउ अवरु विक्स्खायउं ८ सव्वोवरि अ-जोइ पर णिक्कलु धत्ता चडइ जीउ उप्परि-मुहउं । घरु घर-सिहरहो सम्मुहउं ॥ १० सुह-कम्म-वसेण जिह थवइ थवंतु तो दुव्वयणासीविस-सप्पे वुत्तु विउरु दुज्जोहण-ब जाणमि जिह परयारु ण रम्मइ जाणमि जिह पहु णरयहो गम्मइ जाणमि जिह दय-धम्मु विढप्पइ जाणमि जिह जम-करणु झडप्पद जाणमि परम-मोक्खु जिह णाणे सग्गु तवेण भोगु वर-दाणे जाणमि जेम पाउ पारंभइ जाणमि सव्वु जेम जं लभइ जाणमि जीउ जेम उप्पज्जइ जाणमि जिह सरीरु विप्पज्जइ जाणमि जेम वहइ दुगंधई रस-बस-सोणिय-मंस-समिच्छई जाणमि जिह वाहिहिं आढप्पइ जाणमि जिह गुण-थाणु विढप्पड़ घत्ता जाणणहं ण जंति विसमई चित्तई कउरवहौं । अच्छउ महि-अद्धु एक्कु-त्रि गामु ण पंडवह ।। [१८] पभणइ विउरु विउरु कुरु णिग्गुण दुजय होंति वे-वि भीमज्जुण जेहिं गियत्तिय विण्णि-वि गोग्गह जाह गया-गंडीव परिगह तेहिं समाणु कवणु समरं गणु णच्छइ अभिडंतु दुज्जोहणु धुउ मरिएवउ कउरव-लोएं पइ कंदेवउ वढिय-सोएं Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० तं एवड्ड दुक्खु को पेक्खइ परम धुरंघरु होज्जहि रजहो णमि - मिहिं णवकारु करेष्पिणु जाउ महारिसि विंझे पट्ठउ सणास - विि इच्छिय-सुहाई रिट्ठणेमिचरिउ मणु महु तणउं तवोवण कंखड हउं पुणु जामि थामि णिय - कज्जहो णिय - सिरे मुट्ठिउ पंच भरेष्पिणु किउ तउ जो पुरुएवें दिट्ठउ धत्ता कहि-मि दिवसेहि कालु किउ । सग्गे सई भुजंतु थिउ || इय रिट्ठमिचरिए धवलइयासिय सयंभुव - कए चउतीसमो सग्गो || ३४ ॥ ८ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पणतीसमो संधि राय-लच्छि-लंछिय-उरहो रण-धुर-धरण किणकिय-खंघहो। स-बलु स-वाहणु सामरिसु कुरुवइ मिलिउ गपि जरसंघहो ॥ १ ८ जहिं वंछिय-विग्गहु कुरुव-राउ किव-कण्ण-पियामह-गुरु-सहाउ पइसरइ तित्थु चक्कवइ-दूउ विण्णाण-कला-गुण-सार-भूउ उवविसणु देवि सव्वायरेण परिपुच्छिउ कुरु-परमेसरेण किं कुसलु गरिंदहो तणए गेहे कि साणुराय सिय वसइ देहे किं गंदण आणावसि विहेय किं किंकर परह अइण्ण-मेय किं हय-गय-रह-रण-भर-समत्थ । किं आण-पडीवा वइरि-सस्थ कि मागह-मंडलु णिरुवसग्गु किं कालजमणु केण-वि ण भग्गु किं जायव सयल करति सेव किं पुच्छिउ दुजोहणेण एव घत्ता वुत्तु णरिंद-महत्तरेण सवह कुसलु अणुझिय-सेकह। एक्कह णवर स-बंधवह अकुसलु वासुऐव-वलएवह ।। [२] कउ कुसलु कण्ह-सकरिसणाई पडिवखु पिहिमि-परिपालु जाहं कउ कुसलु असेसह जायवह कुद्धउ चक्कवइ-कयंतु जाह सुणु कुरुवइ वइयरु कहउं तुज्झु जिह केसव-चक्केसरहं जुज्झु जवणहो जावण-जाण-जुत्त वारवइहे मज्झे वहु वाणि-पुत्त गय पुरु अम्हारउ भंडु लेवि परमेसरु दीसइ तेहिं एवि मरगय-पत्राल-मुत्ताहलेहि कलहोय-महामगि-कंवलेहि तो राएं अखलिय-सासणेण भासिय-पिय-संभासणेण .. किं तुम्हहं कुसल सरीर-वत्त किं सहल मणोरह सहल जत्त ८ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ वुत्तु णाहु णाइत्तएहिं अम्हह होउ विढत्तएण घत्ता मंछुडु आय रायगह-घट्टणे । मूलहो संसउ वट्टइ पट्टणे ॥ [३] जइ त्रिहियत्थित्तणु होत राय तो कि वारवइ मुएवि आय जा सायरु सारेवि वासवेण णिम्मविय कुवेरें केसवेण मेलवेवि पंच पुर एक्क-लग्ग अट्ठारह-कुल-कोडी-समग्ग भुजइ समुद्दविजय हो अमेय कामिणि-व वियड्ढहो वसि विहेय ४ वसुरउ जेत्थु जहिं कामपाल जहिं महुमहु णर-सुर-पलय-काल उप्पण्णु भडारउ णेमि जेत्थु को वण्णेवि सक्कइ रिद्धि तेत्थु अवइण्णु मणोहरु जहिं अणंगु किउ जेण कालरांवरहो भंगु घत्ता सो जणवउ सा वारवइ जइ णिवसिय दस दिवस तहिं ते जायव सो संववहारु । तो संसारहो इत्तिउ सारु ॥ ८ तं वयणु सुणेवि चक्कवइ-दुहिय जीवंजस पुण्णिम-चंद-मुहिय मुच्छंगय णिवडिय भूमि-भाए सहयरिहि भणंतिहिं उठ्ठि माए सिंचिय हरियंदण-वाहिणीहिं विज्जिय चल-चामर-गाहिणीहि कह-कह-वि समुट्ठिय कंस-पात्त णं मगहाहिवहो महा-सिरत्ति संतेण-वि पई चक्केसरेण वसुमइ-ति-खंड-परमेसरेण णिहि-रयणद्धद्ध-धुर घरेण अमरह-मि रणंगणे दुद्धरेण . संतेण-वि पइं एहिय अवस्थ विहवत्तणु गिरलंकार हत्य संतेण-वि पई पइ-मरणु पत्त . संतेण वि पई जीवंति सत्त Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पणतीसमो संधि २२ तं णिसुणेवि मगहाहिवेण अज्जु-ब कल्ले-व तव करमि घत्ता धीरिय घीय माए कि रोवहि । जेंव वइरि सिज्जहं सोवहिं ॥ १ विणिवाइय जेहिं विसुद्ध-वंस ते स-बल-स-वाहण णंद-गोत्र दारावइ जइ कल्लइ ण लेमि अवलोइय मंति स-मच्छरेण कइयहु-मि ण पाविय एह वत्त गरवइ विण्णविउ महत्तरेहिं ते हरि-वल णउ सामण्ण देव . अहिठाणु जासु किउ चासवेण मुट्ठिय-पलंव-चाणूर-कंस . . णिद्ववेवि ठवेत्रि एक्को व दो व तो जलणे जलंतए झंप देमि . णं रासि-गएण सणिच्छरेण जिह वल-णारायण रिद्धि-पत्त चिंतविय विचित्त-पत्तरेहि दुब्बिसह वलुचर सावलेव मंगामु कवणु सहु केसवेण घत्ता जसु सहाउ सयमेव पुरंदरु । जुज्झेवउ कुसुमेहि मि अ-सुदरु ।। ८ चेइ-राउ रणे जेण जिउ तेण समउं वरि संधि किय ९ [६] महुसूयणु पूयण-पलय-लीलु जमलज्जुण-दुम-भंजण-सरीरु आसीविस-विसहर-सयण-कारि कालिंदिय-कालिय-काल-वासु सय-बार-णिवारिय-कालजमणु सो केण धरिज्जइ गरवरेण जसु भायर भायरु कामपालु वसुएउ वप्पु वसु-मयणु पुत्तु 5. 4b रामिहो थिएण. आरुढ-रिट्ठ-णिट्ठवण-सीलु गोवद्ध ण-धर-धरणेक्क-धीरु गय-संख-चक्क-सारंग-धारि चाणूर-कंस-मुट्ठिय-विणासु अवराइय-जीविय-अंत-गमणु जसु दिण्णइ रयणइं सायरेण सयणिज्जउ तिहुयण-सामिसालु अवइण्णु जणद्दणु सो णिरुत्तु Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ जिह लंकाहिउ लक्खणहो वर करेणु जिह केसरिहे णिय-मंति-त्रयण-दुप्पवण-छित्तु मरु मारमि मारण- पयहो ढुक्कु ते णंद-गोत्र केत्तडिय ऋत्थु पेसिउ सुमित्त णामेण दूउ ay जाय-संहो मलेवि थाहो कुल- कोडिहि ढुक्कु त्रिणास-कालु यमेव पयाणु - विदिष्णु आउ मग गणु सांगु अण्णु णाय - सेज्ज पण्णत्ति मणि जेंव अब्भि- हि समर- मुहे हयवरहं सहासें दुज्जएण गउ दूउ पराइउ तुरिउ तेथु तवणिज्ज - पुज - पिंजरिय-देह परिहा-पओलि - पायार-सार वणि-वीहि - विसिय णिरवसेस पइसरिउ तित्थु आवास-मुक्कु पडिवत्ति जंहारुह किय कमेण परमेसरु तुम्हहुं साणुराउ 8.8 a. 1. faffa8s. धत्ता जिह हयगीउ तिट्ठि गरिंदहो । तिह तुज्झु देव गोविंदहो || [७] मगहा हिउ हुयवहु जिह पलित्तु किर मंति भणेवि एत्तडेण चुक्कु जइ रूसमि तो तिअस ं समत्थु जो सयल-कला- -कुल- करण-भूउ जिंव जीविउ लेपिणु कहि-मि जाहो परिकुविउ वसुंधर- सामिसालु सायर - पमाण - साहण-सहाउ दारावर रुप्पिणि पंचयण्णु रिट्ठणे मिचरिउ घा जेव नाग्गयई असेसई दिज्जहि । विहि नारायण एक्कु करेज्जहि ॥ [८] गवर तहद्वे रह-सएण दारावर सुर- णिम्मत्रिय जेन्धु मणि - रयण - किरण - विष्फुरिय-गेह उत्तंग-तोरणग्धविय-वार सइ जिह पर- पुरिसहं दुप्पवेस जहिं महुमहु तं अत्थाणु ढुक्कु वोल्लिज्जइ अखलिय - विक्कमेण एतडउ णवर गरुयउ विसाउ ४ ८ ४ ८ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पणतीसमो संधि धत्ता जल-दुग्गंतरे पइसरेवि जं अवहेरि करेविणु अच्छहो । जासु पसाएं एह सिय कि चक्कवइ-वयणु ण णियच्छहो ॥ ९ ८ अवहेरि करेवए कवणु कालु जिह तुम्हई तिह सो सामिसालु सुमरइ समुद्दविज यप्पियाई ओलग्गिय-धाविय-जंपियाई सुमरइ वसुएवहो तणिय लील सुमरइ णारायण वाल-कील किं रज्जे जण्ण णियंतओय(?) जायव-कुल-द्वय-विट्ठि-भोय कि रज्जे जाह हरि-वल ण वे-वि पइसंति महा भवणु एवि किं रज्जे जहिं रिउ-गंध-हस्थि पज्जुण्णु संवु अणिरुद्ध णत्थि सिणि-णंदणु पभणइ कोव-पुण्णु हरि मुरवि कवणु चक्कवइ अण्णु जसु दिण्ण थत्ति रयणायरेण किउ पुरवरु अमरेहिं आयरेण घत्ता एक्कु चक्कु णारायणहो ... सोहइ जेण जियइं पर-चक्कई । अवरई लोयह सावणइं(?) भग्गव-चक्क-सयई करे थक्कई ॥ [१०] तं हुयवहु जिह पज्जलिउ दूउ चक्कवइ-चक्कु तिहुयणेण दिडु ___ जसु भइयए तुहु सायरे पइट्ट जसु भइयए जायत्र-मिग वराय णिय जम्म-भूमि परिहरेवि आय इत्थु वि णिवसंतहं पलय-कालु . दक्खवइ महारउ सामिसालु मीणउलई भक्खेवि पिएवि मज्जु आरोडहि सुत्तउ सीहु अज्जु णव-कोडिउ जासु तुरंगमाहं मण-पवण-गरुड-जव-जंगमाह सामेक्क-कण्ण-चंदप्पहाहं वावीस-वीस-लक्खई रहाई गय तेत्तिय खत्तिय पुणु अणेय णिव णिय-णिय-सेण्णेहि अप्पमेय ९ ८ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिटणेमिचरिउ धत्ता एयारह-अक्खोहणिहि अज्जु कल्ले कुरुवइ-वि मिलेसइ । णाहु महारउ गरुडु जिह जायव-पण्णय-कुलई गिलेसइ ।। [११] ८ जइ तुम्हहु ण कारणु संगरेण तो एंव वुत्त परमेसरेण पट्टकहो पर पण्णत्ति-विज्ज गय जलयरु रुपिणि णाय-सेज्ज सारंगु सरासणु सहु सरेहि वारवइ लएवी कुरु-णरेहि तो दुग्जय दुद्धर दुण्णिवार हणु हणु भणत उट्ठिय कुमार णं हरि-किसोर गय-गंध-लुद्ध सयमेव संव-मयणाणिरुद्ध अंकूर-विज्जरह-चारजेट्ट गय-दुंदुहि अवर-वि अमर-जेट्ठ उट्ठवणु करत दसारुहेहि कह-कह-व णिवारिय तुरिउ तेहि जिह दूउ ते व वोल्लेवउं जे संकमओ उअरि वरि णिउंजे(?) धत्ता तो वलएवं पट्टविउ जाहि दूय कहि णियय-गरिंदहो। सुह, जीवहिं सामंतु जिह अपेवि चक्क-रयणु गोविंदहो ॥ [१२] गउ दूउ पयाणउं देवि तेथु वर चार-चक्खु चक्कवइ जेत्थु पणवेवि पाय पत्थिवहो वत्त करि वइरिहिं उप्परि विजय-जत्त ण गणेइ तुहार सउरि वयणु । पच्चेलिउ मग्गइ चक्क-रयणु तहिं अत्थ-घराघर-घरण-धीर एकेक-पहाण-महा-पवीर तहि पंडव-दुमय-विराड-राय सत्तक्स्खोहिणि-साहण-सहाय . तहिं मिलिय तुहारा पुत्त वे-वि जय-विजय वलक्खोहिणिय लेवि तहिं कइकय-चेइ-स-चेइयाण वसुएवहो गंदण अप्पमाण तहिं सच्चइ-वल-केसव-सतोय जउ-जायव-अंधकविट्ठि-भोय ९ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पणतीसमो संधि धत्ता देव दुलंघउ वइरि-बलु तिह करि जिह रणउहे आवट्टइ । साम-भेय-दाणई गयई एवहिं खम्गहों अवसरू बइ ।। [१३] मेलावेवि हय-गय-णरवरोह . हक्कारा जंतु अणंत जोह सह सत्तें एंतु सामंत सब सरसक्ख-सरणु व सुरवर व्व कंभीर-कुसीणर-कामरूव खरकेस-तुरंगम-रोमकूव एक्कत्रय-कण्णपावरण-जट्ट खंधार-कीर-खस-टक्क-भोट्ट जालंधर-सिंधव-मद्द-वच्छ मंगाल-गउड-गुज्जर-सकच्छ कोसल-कलिंग-मालव-कुडुक्क तोक्खार-तिउर-ताइय-तुरुक्क गोदंड-पउंड-वियम्भराय . काविट्ठिय-कुरु-कोहल-किराय वग्धाणण-गयमुह-सुप्पकण्ण । उद्धसिय-रोम-थद्ध-कण्ण मरु-माहुर-जाउण-उझिहाण अउद्वर-पल्लव-वच्छमाण भद्दारि-मेय-मद्दव-वसल्ल पंडुक्कल-मेहल-पउम-मल्ल धत्ता आय-वि अवर-वि पवर-भड तुह किंकर-तुहिणाहयउ मेलावेप्पिणु देहि पयाणउं । पर-वल-कमल होउ विदाणउं ॥ ११ ते णिसुणेवि महि-परमेसरेण तुम्ह-वि हक्कारउ कुरुवराय सह-मंडव विरइय गामे गामे संकंदण-संदण-सच्छहाह 13.1b ज. अणेय जोह. मेलाविउ वलु संवच्छरेण ... हउं आयउ अक्खमि वहु-पसाय पक्खण्णई सलिलई थामे थामे सउ सउ सोवण्ण-महारहाहं 2a. सहसत्ति. 9a. महुरणिवासिय. Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ रिट्ठणेमिचरिउ दस-सयई गयहं मय-णिग्गमाह एक्केक्कउं लक्खु तुरगमाई पुजिय चामीयर-कोडि कोडि, इयपर)हु सामण्णहुँ परम-कोडि एक्कु-वि पंडवह समाणु जुज्झु अण्णु-वि चक्कवइ सहाउ तुज्झु विण्णि-वि कारणई महत्तराई वलवंतई होति स-उत्तराई घत्ता तं णिसुणेवि दुज्जोहणेण दिण्ण भेरि पार पयाणउ। परिपूर'तु दियंतरई चालिउ सेण्णु मयरहर-समाणउं ॥ ९ [१५] दुजोहणु मिलिंउ णराहिवासु णं गंगा-वाहु महण्णवासु विज्जाहर-चक्कई चल्लियाई सामंत-वलई मोक्कल्लियाई रह चलिय चक्क-चिक्कार देंत करि-पवर वलाहय-सोह लेत रमाण तुरंग तरंग-लोल उट्ठिय-विचित्त-वाइत्त-रोल उब्भिय पवणुद्धय-धयवडाह गाहियाउह-णिवह पयह जोह कुरुखेत्तहो ढुक्कीहोंति जाम णारायण-केरउ दूउ ताम संपाइउ णामें लोहजंघु गरुडाणुगमणु मण-पवण-रधु कण्णंतरे कण्णहो कहिय वत्त वइसणए थाहि करे विजय जत्त ८ धत्ता कउ कुरुवइ को चक्कवइ सथल पिहिमि तउत्तणिय स-सायर । पंडु जणेरु कुंति जणणि . पंडव तुज्झ सहोयर भायर ॥ विहसेप्पिणु पभणइ अंगराउ किं एम्वहिं एहउ होइ गाउ एत्तिल्लउ णवर करेमि कज्जु सिरु कुरुहुँ देमि पंडवहुं रज्जु जिउ एम भणेप्पिणु दूउ तेत्थु कुरुवइ-मगहाहिव वे-वि जेथु वोल्लाविय तेण-वि कहिय वत्त पडिवालहो जायव जाम पत्त ___ 16.2a. अज्जु. 3. ज. धि पुणु दुत्ति तित्थु. Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पणतीसमो संधि कुरुखेत्ते करेवी जमहो तित्ति जर सिंधु वहेवउ महुमहेण तव - सुरण सल्लु भड-मदणेग घाएवउ गुरु घट्टज्जुगेण तेण वि चंपाहिव रणे गंधारेय त्रिओयरेण गउ एम भणेवि पलट्टि दूउ दाराव णाहो कहिय वत्त जर सिंधु पयाणउं देवि आउ तं णिसुणेवि हय-गय-रह-वरेण्णु रुप्पिणिपइ पूरिय-उ-पंचयण्णु वलएउ वलायावलि - वक्लखु तव-तणउ भीमु णरु णउलु अण्णु अणिरुद्धु संवु सच्चइ अंगु सन्बु सपहरणु सामरिसु स सयंभुव-भूसियउ अम्हारी कउ तुम्हहं परत्ति गंगेउ सिहंडि दुम्मुण भूरीसउ सिणिवइ-णंदणेण भययत्तु जयद्दहु अज्जुणेण घत्ता कुरु-कुमार अहिवण्ण- कुमारें । पु०वे जे (एउ) सज्जिउ सिट्ठारें ॥ [१७] य- विक्कम-वंत - पहाण- भूउ पर केसरि हरि करि विजय जत्त तहो मिलिउ स- साहणु कुरुवराउ सणइ स-रहसु सउरि- सेण्णु घट्टज्जुणु दुमउ सिहंडि अण्णु उत्तरु विराडु मइरासु संखु सहएउ घुडुक्कउ साहिवण्णु विज्जाहर - साहणु पुलइयां गु घत्ता २९ सव्व जणदण-ह- निवद्भउ | स- रहसुस कवउ सव्व सण्णउ ॥ * इय रिट्ठमिचरिए धवलइयासिय सयंमुव कए पणतीसमो परिसग्गो ॥३५॥ ४ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . छत्तीसमो संधि . सरहसु कुरुव-णराहिवइ जं मिलिउ गपि जरसिंघहो । जउ जलु वालुय-वरणु जिह सु-णिवद्रु वि एइ ण वंवहो ॥१॥ [१] अट्ठारह-कुल-कोडिहिं सहिउ अण्णु-वि तित्ययर-परिंग्गहिउ वारवाहि पगुण-गुणग्घविउ कह-कह-वि समुद्दविजउ थविउ संचल्लिउ सरहसु सउरि-वलु णं जगे ण मंतु मयरहर-जलु तो रुप्पिणि-सच्चहाम-सर्हि गंघारि-गोरि-पउमावइहिं सिंवदेवी-देवइ-दोमइहिं रोहिणि-जसोय-पिह रेवइहि आसीस दिण्ण तहो महुमहहो अणिरुद्धहो संवहो वम्महहो वलएकहो णिसढहो सच्चइहे सव्वहो सेण्णहो सेणावइहे तव-तणयहो भीमहो अजुणहो मिच्छहो दुमयहो धट्टज्जुणहो घत्ता केवल-कारणे केवलिहि जं सिद्धहं सिद्धिहे कारणे । तुम्हह सव्वह णरवइहिं तं मंगल होउ महारणे ॥ [२] आसीस-वयणु तं लहेवि गय दूरुज्जिय रण-वण-मरण-भय जो गंदहो गंदणु पढमयरु णंदाणुउ णंदिणि-णंदयरु दारुउ विण्णाणालंकियउ णारायण-णामेहि अंकियउ सो सारहि वइरि-पुरंजयहो गोविदें दिण्णु धणंजयहो माया-मउ घर हणुवंतु थिउ णं दइवे सच्चमउ जे किउ सुपरिट्ठिय हरि-वल वे-वि तहिं परिरक्खण केसव(?) कोडि जहिं दिवसहिं रण-भूमि परावरिय ण इंद-पडिद-सुरावरिय एक्कहिं पएसे आवासु किउ जलु जोइउ खंघावारु थिउ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छत्तीसमो संधि घत्ता तं कुरुखेत्तु णिहालियउ विहि-मि वलहं सद्धालुएणं दारावइ-पुरि-परिपालेण । णं मुहु णीवाइउ कालेण ॥ ९ कुरुखेत्तहो वाहिरे सउरि-वलु दडि-झल्लरि-भंभ-मेरि-मुहलु सरसइहे तीरे आवासियउ णं करणु णियंतें पेसियउ उप्पाय जाय चक्कवइ-बले रवि-गहणु पदीसिउ गयणयले रूहिरामिस-रस-वस-चच्चियउ छाया-कवंधु सु-पणच्चियउ महि कंपिय मेहावलि रडिय धय-छत्तेहिं गिद्ध-पंति चडिय सहुं मंतिहिं पिहिमिपाल चवइ दुणिमित्तई एयई मणु तवइ परिचत्त-जयासा-भरण पच्चारिउ णरवइ डिभएण रूसिओसि आसि सिक्खविउ मई हरि-उप्परि आइउ दिट्ठ पई पत्ता दुज्जय जायव-णाहु रणे सो जोहिउ कवणे' जोहेण । सीसु धुणाविउ देव हउ जिह एंते कत्ता छोहेण ॥ ९ पहु पभणइ विहुणिय-भुय-जुवलु कहे केत्तिउ वइरिहिं तणउ वलु अक्खइ य मंति परवइ वलिय जे दाहिण ते तेत्तहो मिलिय रयणायर-वासिय आडविय आहीर-लाड-किव-मालविय अवरत्तय आसिय मुरल-भत्र महरगृह पंच कुडुक्क-चव वर-केरल-चोल-पंडि-मलय कुस-सिंधल-जवण-लंक-णिलय वसुएव-सेण्ण(?)-सुय-ससुर जहिं विज्जाहर मिलियाणेय तहिं अहवइ किं वलेण चउग्गुणेण एक्केण पहुच्चइ अजुणेण सुर खंडवे कालंजय गयणे गंधव्व कुरुव-चंदि-ग्गहणे गो-गहे दुग्जोहण-पमुह जिय कउरव कह-कह-वि ण खयहो णिय 3.1b ज. भेरिरवमुहुलु. Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ रिट्ठणेमिचरिउ घत्ता जाणभि वर-चमु-चूरणहो पंडव-कुल-भवण-पईवहो । रणउहे लउडि-भयंकरहो को घाउ पडिच्छइ भीमहो ॥ १० पण्णत्ति-पहावे दुम्महहो को मल्लु महाहवे वम्महहो जिउ जेण कालसंवरु पवरु परिहविउ वियब्भ-राउ अवरु णारायणु णर-सुर-पलय-करु गोबद्धण-धरु कंसासु-हरु अवर-वि एक्केक-पहाण भड को सहइ ताहं संगाम-झड ४ मगहाहिउ झत्ति पलित्तु मणे सो गंद-गोउ महु मरइ रणे कलि-कोडिउ कुरुव-राउ कुविउ हउ भीमहो धूमकेउ उइड चंपाहिउ मच्छर-मलिय-करु पभणइ महु हत्थइ मरइ णरु अवर-वि अवहथिय मरण-भय स-पइज्ज पयाणां देवि गय धत्ता दिट्ट असेसेहिं णरवइहिं रिउ-साहणु दुप्परियल्लउँ । वम्म-वियारउ मारणउ जिह कामिणि-पेम्मु णवल्लउ ॥ ९ . [६] अभिट्टई वाहिय-वाहणई पडिकेसव-केसव-साहणई णिप्पसरई पसरिय-कलयलई हय-तूरइं पहरण-करयलाई वहवाविल-वूह-भयंकरइं धय-छत्तत्तरिय-दिवायरई णिव-णिवह-णिरुद्ध-समीरणइं अवरुष्परु ण-किय-विहीरणइं मेलाविय-असुर-सुरच्छरई रण-रसियई वद्धिय-मच्छरई दाविय-पवणुद्धय-धयवडई गय-गंधुद्धाइय-गय-घडई सारहि-सारहिसारिय-रहई खर-खुर-वर-खुण्ण-खोणि-पहई रण-रामालिंगिय-लालसई सामरिसई स-रसई स-रहसई Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छत्तीसमो संधि धत्ता घरणिहे असणि-वियारियहे कह-कह-वि जाइं णिव्वडियई । खंडई उत्तर-दाहिण णं दइवें एकहिं घङियई॥ ९ तहिं ताव तुरय-खर-खुर-दलिउ रह-रहसें रण-रउ उच्छलिउ खम-रहिउ को ण अमरिस-चडिउ मं जुज्झहो णं पाएहिं पडिउ लग्गइ व कडच्छए उरसि करे वजरइ व भडहं कण्ण-विवरे ओसरहो करहो किं चप्पणउ विद्दवहो अकारणे अप्पणउ केत्तिउ अवलंवहो सुहड-किय कहो तणिय पिहिवि कहो तणिय सिय । कहो चिंघई छत्तई चामरई ण सरीरइं जगे अजरामरई म वहहो जीवहं म करहो खउ को जाणइ केत्तहे होइ जउ ज एव-मि सेण्णइ मिलियाई तं वे-वि लेवि णं गिलियाइ. धत्ता महियले कहि-मि ण माइयउं सरहसु गयणंगणे लग्गउं । केण-वि धरेवि ण सक्कियउं दुप्पुत्तु-व सीसे वलग्गउं । [८] तहिं तेहए रण-रए दुन्विसहे भड भिडिय परोप्परु अणिय-वहे । हम्मति हणंति जणंति भउ मारंति मरंति करंति खउ महि मंङिय सिरेहिं स-कुंडलेहि मुहयंदेहिं छण-चंदुज्जलेहि कंठेहिं कंठाहरणंकिएहिं वच्छयलेहि हारालंकिएहिं भुय-सिहरेहिं केऊरासिएहि मणिवंधेहिं कंकण-भूसिएहिं तल-ताणावेढिय-करयलेहि कडिसुत्तालंकिय-कडियलेहि कम-कमलेहिणह-पह-केसरहिं घय-छत्तेहिं चि धेहि चामरेहि . रह-चक्केहिं करि-कुभत्थलेहि रस-बस-वीसढ-सोणिय-जलेहि Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ W रिट्ठणेमिचरिउ धत्ता मयगल-मय-मसि-मइलियउ हय-लाला कद्दम-लित्तउ । रय-रक्खसु राहिं मिलेवि णं सोणिय-वाहिणिहे चित्तउ ॥ ९ रए पसमिए पसरिए रुहिर-जले एक्केण-वि हूयए धरणियले पहरण-णिवाय-अइसंधिएहिं मगहाहिव-अग्गिम-खंधिएहि पडिपेल्लिउ जायव-जोह-बलु णं खय-मारुवेहि समुद्द-जलु गलियाउहु विमुहु भयावरिउ गोविंदहो सरणु पईसरिउ मा भज्जहो मा-मी-कारु किउ जंववइहे गंदणु संवु थिउ णिय-खंधु समोड्डेवि रण-भरहो मुहे खेमविधि-विज्जाहरहो उत्थरिय परोप्पर सरेहि रणे पेक्खंति सुरासुर थिय गयणे हरि-णंदणु जह जह वावरइ तिह तिह रिउ पउ पउ ओसरइ ८ धत्ता छिण्णु महद्धउ भग्गु रहु हय हय वर-सारहि घाइयउ । पाण लएप्पिणु कहि-मि गउ कह-कह-वि ण जम-पहे लाइयउ ॥ ९ [१०] जं खेमविद्धि ओसारियउ सर-जज्जर कह-व मारियउ तं वेगवंतु संवहो भिडिउ णं गयहो गइंदु समावडिउ णं पंचाणणु पंचाणणहोणं घणु उत्थरिउ महा-घणहो तो हरि-सुरण हरि-कुलिस-सम दुव्वार-वइरि-पडिपहर-खम · मणि-रयण-विहूसिय कणयमइ पट्टविय गयासणि वेगवइ धारण जे मासहो पुजु किउ सवडंमुहु ताम्व विविझु थिउ जरसंघहो कि करु दुबिसहु धणु-करयल वाहिय-पवर-रहु एत्तहे-वि कंस-विणिवायणहो अवरेक्कु पुत्त णारायणहो समरगणे चारजे? वलिउ जिाहरु तेण पडिक्खलिउ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छत्तीसमो संधि १० धत्ता विसम महा-सिल दुव्विसह तहो उप्परि वित्त विविंझहो। पडिय तडत्ति तडक्क जिह फोडंति खयालई विझहो । [११] जं रणे विविझु विणिवाइयउ तं सरहसु अवरु पधाइयउ णामेण कालसंवरु स्वयरु जो मुंजए मेहकूड-णयरु जसु कणयमाल णामेण पिय दक्खविय जाए विवरीय किय पण्णत्ति समप्पिय वम्महहो उप्पाइउ कारणु विग्गहहो कंदप्प-कालसंवर भिडिय णं सीह परोप्पर ओवडिय रुप्पिणिहे मणोरह-गारएण विणिवारिय विण्णि-वि णारएण जरसिंघहो सो पाइक्कु थिउ लल्लक्क-महाहउ तेण किउ रणे चारुजे? हक्कारियउ वलु वलु कहिं जाहि अ-मारियउ धत्ता जाम्ब भिडंति भिडंति ण-वि तहि अवसरे जयसिरि-संगेण । जय जय ताय भणंतएण रहु अंतरे दिण्णु अणंगेण ॥ [१२] तुहुं पढमु वप्पु पुणु महुमहणु कहो सीसइ जाणइ सयलु जणु पहिलारी कणयमाल जणणि पुणु पच्छइ रुप्पिणि पिय-भणणि पई होते हउं तियसहं अजउ पई होते सोलह लंभ गउ पई होंते सुरह-मि पुज्जियउ पइं होतें तुहु-मि परज्जियउ . पई होते कुरुवहै मलण किय पई होते. पंडव पंच जिय पई होते. पुणु वारवइ गउ णारायणु कह-वि ण सरेहिं हर पई होंते जणणिहे जणिय दिहि सरु सेज्जहिं मेल्लेवि कोव-सिहि म म पहरु महाहउ परिहरहि अम्हारए साहणे पइसरहि गुणवंतहं सत्तहै महमहहि । ९ ४ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ तो बुच्चइ सुज्झइ तिर्हि विज्जाहरेण पाइकु रणे तो तेण जिणेष्पिणु वावरणे छड छुडु जे सय- संदणे सण्णमिउ अवसरे घाइउ णामेण सल्लु सल्लई महोतउ सहोयरु जेण हउ वहुवार रुट्ठ चिर-वार मई तें अप्पउ णव- रणु दक्खविउ तं णिसुणेवि हरि-णंदणु कुविउ सर समर करेष्पिणु दुव्विसहु गयणगइ सल्ल सल्ल-सय- सल्लियउ जो अंग-सर- जज्जरिउ घत्ता तो चेयण लहेवि विउद्भु पुणु सर - निवहें छाइउ कुसुमसरु अवरेक् उरसि कडं तरिउ विहलंघलु रहे ओणल्लियउ जुत्तारु विणासिय-पूयणहो तहि अवसरे चेयण-भाव- गउ रहु सारहि सारहि सम्मुहउ किं ण वि उ पुत्त जणदणहो सरेवि [१३] लज्जिज्जइ आएहिं वयणेहिं । जय - जीवग्गह- मरणेहि ॥ रिट्टणेमिचरिउ पणत्ति - पहावें घरिउ रणे कियवम्महो पासु समल्लविउ सिसुपालहो भायरु सो हवइ जाहिँ कासरू घरेवि ४ सो नंद-गोउ कहि केत्थु गउ किर मई समाणु रण-पिडु रमइ कहिँ एवहि जाहि अ - सिक्खविउ णं जुय-खए धूमकेउ उ उ साहु वियारिउ छिण्णु रहु घत्ता विहलंघलु पडिउ सवेयणु । सो सवु होइ निच्चे || [१४] वावरिउ चउग्गुणु पंच-गुणु णं जलहर-जाले दिवसयरु अत्थक्कर मुद्धए अंतरिउ णं पायउ पवण-पणोल्लियउ किउ पासु णेइ महुसूयणहो उट्ठिउ कुमारु णं जगहो खउ किं कज्जें करहि परम्मुहउ कि हरि ण वप्पु हउ णंदणहो १० ८ १० Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छत्तीसमो संधि । घत्ता दिज्जइ धणु भग्गंताहं पहरंतहं रणे पहरिज्जइ । विण्णि-वि सलग्घई खत्तियहं विहिं अवरेहि पुणु लज्जिज्जइ ॥ ९ [१५] लज्जिज्जइ देवहं दाणवह विज्जाहर-किण्णर-माणवह लज्जिज्जइ सिंजय-पउरवह लज्जिज्जइ पंडव-कउरवह लज्जिज्जइ वल-णारायणहं लज्जिज्जइ सव्वह सज्जणह लज्जिज्जइ रुप्पिहो रुप्पिणिहे लज्जिज्जइ मागह-वाहिणिहे लज्जिज्जइ पंचहं भूयह-मि मरिएवउ विमुहीभूयह-मि जइ एम्ब-वि एम्ब-वि धुउ मरणु तो वरि चंगारउ वावरणु णासिज्जइ मेल्लेवि सुहड-किय जइ जावज्जीविउ अचल सिय ण गणिज्जइ तो संगाम-गइ माणुसु अजरामरु होइ जइ धत्ता एण सरीरें चचलेण जइ सासय कित्ति विढप्पइ । तो पेक्खंतह सुरवरह किह सारहि रणु ण विढप्पइ ॥ ९ [१६] तं णिसुणेवि सूउ पलज्जियउ रहु वाहिउ भय-परिवज्जियउ णं सरह सरह समावडिय मयरद्धय-सल्ल वे-वि भिडिय विण्णि-वि विज्जाहर गयण-गइ विष्णि-वि जय-सिरि-गहणेक्क-मइ विणि-वि अवहत्थिय-भय-पसरविष्णि-वि स-सरासण स-सर-कर ४ विण्णि-वि सुर-भवणुच्छलिय-जस विहि-वि संगोम-मुहेक्क-रस विष्णि-वि जिण-चरण-कमल-भसल विण्णि-वि वावरण-करण-कुसल जग-सल्ले सल्लहो सल्ल-धरु वभत्थें छिण्णु दइच्च-सरु अवरेहि अवर सर कप्परिय तेण-वि तहो तुरय कडंतरिय Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरित चाव-चक्क-गय-संस्व-धरु सल्लराय-मयरद्धयह घत्ता गरुडद्धउ वाहिय-संदणु । थिउ अब्भंतरे ताव जणदणु ॥ ९ णिय-सुय-कएण अमरिसे चडिउ णारायणु सल्लहो अन्भिडिउ विज्जाहरु विज्जहिं वावरइ हरि चंदहो चरिएहिं अणुहरइ सर-जाले छाइयउ गयणयलु लक्खिज्जइ ण-वि जलु ण-वि थलु ण दिसामुहु ण-वि रवियर-णिवहु ण तुरगु ण सारहि ण-वि य रहु ४ ण सरासणु आयवत्तु ण धउ णउ णावइ केसउ केत्थु गउ उप्पण्णु कोवु दामोयरहो पच्छण्णु विसज्जिउ गोयरहो पहरणइं पहारुद्धआई दिस-चक्कई विमलीहूआई रिउ पहरइ अवरेहिं दारुणेहिं हुआसण-वायव-वारुणेहिं धत्ता तरु-गिरि-सिहरि-सिलायलेहि गरुडत्थ-भुअंगम-पासेहिं । सब्वई छिदेवि धरियई वाणारि वाण-सहासेहिं ॥ ९ [१८] सोहाहिउ मणे आरोसियउ णाराय-लक्खु परिपेसियउ रहु ताडिउ सारहि सल्लियउ णारायणु संसए धल्लियउ तो वण-रुहिरारुण-भुय-सिहरु णं फग्गुणे फुल्लु पलास-तरु मायाविउ वोल्लइ को-वि णरु ओलग्गइ पाणेहि कुसुमसरु ४ वसुएबहो फोडिउ वच्छयलु वलहद्दहो तोडिउ सिर-कमलु जरसंधे जायव सयल जिय कुरु-जोहेहि पंडव खयहो णिय जे अजण-गंदण रयणि गय तहिं णेमि-समुद्दविजय णिहय वारवइ लइय सल्लहो वलेण एवहिं घाएवउ तुहुँ छलेण ८ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छत्तीसमो संधि घत्ता णरु णिभच्छिउ माहवेण दुक्कर जाइ जियंतु रणे महु पासिउ को मायारउ । तई सहियउ सामि तुहारउ ॥ ९ [१९] नारायण-वयण-किंवाण-हउ माया-णरु णासेवि कहि-मि गउ इंदहणु-सम-प्पहु लेवि धणु पारद्ध पडीवउ घोरु रणु तहिं काले पसारिय-भुय-जुयलु विच्छाय-परिट्ठिय-मुह-कमलु परिमोक्कल-केसु किउद्ध-कम सव्वंग-णिवदुद्दहण-समु वसुरवु पडंतु दिगु णहहो परिगलिउ चाउ करे महुमहहो मुच्छा-विहलंघलु सो हुयउ कह-कह-वि चेयण-भावु गउ परियाणिय माया-कवड-किय हय-सल्लहो अणुहव-पाण-पिय खय-सूर-समप्पह-सरवरेहि रिउ वरिसिउ महि सहुँ महिहरेहिं ८ धत्ता दड्ढ महातरु सिहि-सरेहिं गिरि चूरिय कुलिस-पहारेहिं । जय-जय-कारिउ महुमहणु मयरद्धय-पमुह-कुमारेहिं ।। [२०] तहिं अवसरे सारहि विण्णवइ एहु दुज्जउ सोह-पुराहिवइ जावण्ण-वि अत्थई पट्टवइ जावण्णु-वि साहणु णिट्ठवइ जावण्ण-वि चूरइ रह-तुरय जावण्ण-वि हणइ महा-दुरय परमेसर पहरहि ताम तुहुँ उज्जालहि जायव-जणह मुहु हणु चक्के वरि-विणासणेण पडिसत्तु-महा-अरि-दारणेण तं णिसुणेवि झत्ति पलित्तु हरि पलयग्गि-सम-प्पहु मुक्कु अरि भंजंतु असेसहं माण-सिह फुरमाणु-दिवायर-विंदु जिह दोहाविउ तेण विमाणु णहे सहुँ सल्ले णिवडिउ धरणि-वहे Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० जाम गयासणि लेइ करे कुसुम घिवेवि सभुवेहिं घत्ता विद्दविउ ताम गोविंदेण । हय दुदुहि सुरवर - विंदेश || इय रिटुमिचरिए धवलइयासिय सयंभुएव कए छत्तीसमो इमो सग्गो ||३६|| रिट्टणेमिचरिउ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्ततीसमो संधि सल्लें समत्तए रह-तुरय-महागय-वाहणु । तूरई देप्पिणु घाइउ जरसंघहो साहणु ॥१ [१] दुवई दुहम-देह-दारणं विविइ-पहरणं विविह-धय-समूह । चहलुच्छलिय-कलयलं धाइयं वलं रइय-चक्क-बूहं ॥ समुद्दाणुमाणं धुणी-चुम्ममाणं पमाण-प्पहीणं फुरंतासि-मीणं फरोहार-सार अणं(?)-सुसुवार दडी-ददुरोह हयावत्त-सोह विमाणोवसेलं करेणुद्ध-वेलं दिसालिंगियंगं पडाया-तरंग धरद्धारहेणं(?) सियं-छत्त-फेणं सया गज्जमाणं सिरी-संणिहाणं घत्ता वूहु रएप्पिणु तं चाउरंग-वलु घाइउ । जगहो कियंतेण णं काल-चक्कु उप्पाइउ ॥ १० [२] दुवई काल-वलाहं अवरो हल-भयंकरो धय-णिहित्त-तालो । सुर-करि-कर-महा-भुओ रोहिणी-सुओ भणइ कामपालो ॥ अहो अहो अहो दुद्दम दणु-मद्दण चक्क-वूहु दुन्भेउ जणदण आयहो को-वि जियंतु ण छुट्टइ तिहिं आएसु देहि में फिट्टइ अज्जुणु चक्कणेमि सेणावइ आयह तणिय लीह को पावइ ४ २.३ ज. फुट्टइ. Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ तिण्णि-वि अ-हिय सल्ल-रणंगणे तिण्णि-वि ससर - सरासण- हत्था तिण्णि-वि जय - सिरि रामालिंगण तिहिं आएसु दिण्णु गोविंदे सिवसुय - सेणावइ-वीभच्छेहि तिहि भिडते हि रणमहि-देवय रु कुरुणाहेण रुहिरहो पुत्तेण णर - सारिय- कप्यया रंगाविय तुरंगमा विद्ध महा-धय छिण्णइं छत्तई चूरिय रह रहंग रहि सारहि देहि तुरंगु जेण परिसक्कमि -वि को- वि वृत्त कहि गम्मइ जिम कु- सरीरें थिरु जसु लब्भइ वहहिं जाम वोल्ल भड - संगरे पेसिय तिण्णि वइरि - मइ-मोहण तिणि- वि तेहि घरि तिर्हि आएहिं रिट्टणेमिचरिउ तिण्णि-वि सारभूय तउ साहणे तिण्ण-वि तिहुयणु जिणेवि समत्था तिण्णि-वि तोसिय- अमर - वरं गण तिण्णि-वि धाइय एक्के विदे ८ भिण्णु वूहु जिह सायरु मच्छे हि घत्ता णिय रहवर णरवर-सिर - कमलेहिं अंचिय ॥ [३] दुबई दंति दप्पिया किय अयंगमा कहिं - मि ण खंचिय | गिरि-व पज्झरंति । महियले पति ॥ पवर - विमाणई वसुमइ पत्तई केण वि के वित्तणीसारहि पर-सर- धोरण घरेविण सक्कमि ४ जिम्व जय - सिरि जिम्व सुरवहु रम्मइ तो संगामु किण्ण पारब्भइ महि - परमेसरेण तर्हि अवसरे रुप्पि - हिरण्णणाह-दुज्जोहण णं सुरणइ प्रवाह तिहि भाए हिं धत्ता सिव-दणु रुप्पि - णरिंदें । सेणावइ हरि व मइंदें || १० १० Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सतत्तीसमो संघि [४] दुवई भीम-भुवंग-चिंधेणं वण-मयंधेणं णिच्च-णिक्किवेणं । हक्कारिउ धणंजओ पर-पुरजओ कुरु-णराहिवेण ॥ खल-खुद्दहो पिसुणहो दुवियड्ढहो मई विसु दिण्णु विओयर-संढहो मई लक्खाहरे लाइउ हुयवहु मई दाविउ दोमइ-केसग्गहु मई सविसेसु देसु छंडाविय तेरह करिसई दुक्खई पाविय ४ तं संभरेवि पहरु जइ सक्कहि काई अकारणे रणे परिसक्कहि एम भणेत्रि आभिट्टइ जावेहि भायर पुरउ परिट्ठिय तावेहि णरेण वुत्तु एत्तडेण ण मारिय तुम्हई भीमें थुत्थुक्कारिय एव पडुत्तरु देवि सवंतह सरहसु साहणे भिडिय तिगत्तह ८ विधइ वलइ धाइ वि-यत्तइ णर-सिर-कमलई तोडेवि धत्तई धत्ता एक धणंजउ जालंधर-सेफ्णु अणंतउं । णं सहुं कालेण थिउ जोइस-चक्कु भमंतउं ॥ १० दुवई ताव वियब्भ-णाहेणं वल-सणाहेण सव्व-लोय-खेमी । रुप्पिणि-जेट्ठ-भाइणा हरि-अराइणा वुत्तु चक्कणेमी ।। जायव तुम्हेहिं अम्हेहिं खत्तिय विहि-मि कुलह वडुतरु पत्तिय कम्मई जाई णंद-गोवालह ताई ण होंति पिहिवि-परिपालह आसव-पाणई कण्णाहरणई उत्तम-पुरिसह मलिणीकरणई Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ रिट्ठणेमिचरिउ ८ एक्कु विणासु अवरु वय-खंडणु तुम्हह पुणु दुच्चरिउ जे मंडणु अहो सिवदेवि-समुद्दविजय-सुय पंच-जणह मिहे पढमेल्लय दिढरह-सुअ-महरिट्ठ-पयाइहि मिणाह-गहणुत्तर-भाइहिं चक्कणेमि तुडं जे? स-विक्कमु । पहरु पहरु जइ अत्थि परक्कमु णं तो हउं धणुवेउ पदरिसमि जलहरु जिह सर-धोरणि वरिसमि धत्ता एम भणेप्पिणु रणे रुप्पें रुप्पिम-वाणेहिं । विद्ध सिवा-सुउ परमप्पउ जिह परमाणुहिं ।। दुवई वंचिउ चक्कणेमिणा सिग्घ-गामिणा सो सरो विभुक्को । गुरुमिव धम्मवज्जिओ गउ अपुजिओ गुणि व मुक्खेण मुक्को ॥ हसिउ सिवासुउ धणु-वि ण वुज्झहि एण परक्कमेण तुहुँ जुज्झहि हउ खय-चक्कणेमि सो वुच्चमि रसमसकसमसंतु पई रुच्चमि फलु अणुहुजहि म अवराहहो अज्ज-वि पणवहि पंकय-णाहहो ४ णासिउ पाव-वुद्धि अप्पाणउ जायव-जणह मज्झे तुडं राणउ वम्भहु भाइणेउ सस रुप्पिणि भइणिवइड सउरि वहु वाहिणि तो आरुट्ठ सुउ भिप्फहो छण-पावणेहिं किविणु णं विप्पहो को किर णवइ गंद-गोवालहो । मेल्लेवि चरण पिहिवि-परिपालहो ८ एम भणेवि वीसद्धेहिं वाणेहिं विद्ध खयारुण-किरण-समाणेहि धत्ता जायव-वीरेण ते दस-सर दसहिं विह जिय । दसहि-मि धम्मेहि ण दस-वि अघम्म परज्जिय ॥ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्ततीसमो संधि ४५. दुवई कुंडिण-गयर-राएण धणु-सहारण सहि सर विमुक्का । ते समुद्दविजइणा गुण-पराइणा सट्ठिहिं विलुक्का ।। रुप्पिणि-भायरेण सउ भल्लह पेसिउ वइरि-उर-त्थल-सल्लह छिण्ण सिवा-सुएण ते वाणेहि जिहं कसाय महरिसि-सुह-झाणेहिं रुप्पें पंच सयई पट्टवियइं ताइ-मि सिव-सुएण णिढवियई सिल-धुय-पुंख-परिट्ठिय-रुप्पह पेसियाई छ-सयाई खुरुप्पह णेमि-सहोयरेण रणे छिण्णई पवणे मेहउल-व विच्छिण्णई रुप्पें वाण-तर गिणि मुक्की ण मदाइणि थाणहो चुक्की स-वि सिवणदणेण धणु-धरणे पंति णिवारिय सरवर-वरणे धणु सण्णहणु छत्तु धउ चामरु सार हि रहु रहगु हरि कुव्वरु घत्ता सव्वइ छिदेवि ओसारिउ वम्मह-माउलु । विरहावत्थहे भणु को-व ण होइ विसंठुलु ॥ १० [८] दुवई पूरिउ चक्क-णेमिणा विजय-गामिणा जलयरो रउद्दो । णावइ णव-धणागमे गिंभ-निग्गभे गजिओ समुद्दो ॥ भिप्फहो णदणु वि-रहु णिएप्पिणु अण्णु-वि संख-सद्द णिसुणेप्पिणु महि-णिहि-रयणद्ध-मयंधे पेसिय णव गरिंद जरसंधे णं णव गह केत्तहिं वि ण संठिय ण णव णोकसाय विसमुट्ठिय १ पेसिय णवणार Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणेमिचरिउ ण णव रस रस-बुद्धि पराइय वेणुदारि अरिदमणु महि जउ सूरवम्मु महसेणु महोयरु छाइउ अविरल-सरवर-जाले तेण-वि एक्केक्कउ पच्चारिउ हणु हणु हणु भणत उद्धाइय भदाहिउ सुसेणु सत्तुजउ आएहि णेमि-कुमार-सहोयर ण महिहरु णव-पाउस-काले दसहि दसहि सरवरहि णिवारिउ धत्ता णव णरवइ जे पडिलग्गा । जिह मत्त महा-गय भग्गा ॥ १० एक्के होतएण ते पंचमहेण दुवई विमुहिय चक्कणेभिणा णिय-सुसामिणा दोच्छिया णियत्ता । ण उच्छलिय-मलहरा पलय-जलहरा उच्छरत पत्ता ॥ वेणुदारि तिहिं वाणेहिं विधइ सूरवम्मु सत्तासुग संधइ अरिदमणे अट्ठारह पेसिय भद्दाहिवेण वीस परिपेसिय तीस सुसेणु महेसु विसज्जइ पिहिविसेसु(?) पंचास विसज्जइ ४ चउसट्टिहिं वावरइ महोयरु णं खय-किरणेहिं तवइ दिवायरु घत्तइ सर सत्तरि सत्तुंजउ नवइ वाण पट्टवइ अरिंजउ सयल-वि जायवेण ते छिण्णा अहि-व खगेसरेण विक्खिण्णा कोदंडई कवयई सीसक्कई छत्तई चामराई रह-चक्कई ८ सारहि वर-तुरग विणिवाइय णट्ठ णराहिव कह-व ण धाइय घत्ता ताम विरुद्धएण विज्जु व मेहेण सत्तत्तमेण पुवज्जिय । वइरोयणि सत्ति विसज्जिय ॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्ततीसमो संधि ४७ [१०] दुवई ४ सत्तुत्तमेण सत्तिया झत्ति घत्तिया घाइया वलंती । णं लल्लक्क-त्रयणिया पलय-रयणिया णहयलं गसंती ॥ सारहि भणइ भडारा जायव चक्कणेमि कुल-वल्लरि-पायव एह सत्ति वइरोयण-केरी णं जम-जीह जुयंत-जणेरी जाम ण पावइ ताम पयत्तें हणु कुलिसेण पुरंदर-दत्ते तेण समाहय कलयलु घुट्ठउ किउ सत्तु तमु पाराउट्ठउ तावण्णेण रहेण धणुद्धरु घाइउ कुडिण-पुर-परमेसरु सरु पट्टविउ समीरण-वेरं सत्तहिं णवर छिण्णु सइवेएं दस धगुहरइ वियब्भ-गरिंदहो णं सिंगई पाडियई गिरिंदहो घत्ता तेण-वि रणमुहे केउवेरी मुक्क महा-गय । दुक्कुल-वहुय-व पइ-हत्थु वलेप्पिणु णिग्गय ॥ ८ [११] दुवई स-वि अग्गेय-बाणेण जायवाणेणं चडचडंति दड्ढा । णं गुण-धम्म-मुक्केणं लोह-दुक्केणं का-वि दुब्बियड्ढा ॥ तहिं अवसरे जगु जिणेवि समत्थई वइरोयण-माहिंदई अत्थई भोययडाहिवेण रणे मुक्कई वेण्णि णाई जम-करणई दुक्कई छिण्णई जायवेण विहिं वाणेहिं भीम-भुयंगाहोय-समाणेहिं रह-कोवंड-कवय-धणु-छत्तई पंच-वि पंचहिं सरेहि विहत्तई अवरें हउ णिडाले णाराएं करि-व वियारिउ अंकुस-धाएं पडिउ घुलेप्पिणु मुच्छा-धारें णिउ णिय रहवरेण जुत्तारें धाइउ वेणु-दारि पडिवारउ जगहो विरुद्ध णाई अंगारउ ८ तेण समाणु अणेय णरेसर जायव मागह भिडिय समच्छर Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ रिटणेमिचरिउ धत्ता ताम धणंजउ जालंधर-साहणु चूरइ । सिवह विहगह णिसियरह मणोरह पूरइ ।। [१२] दुवई णर-णाराय-पूरिया गिरि-व चूरिया कुंजरा णिवण्णा । णं खय-मायाहया णव-वलाहया महियलं पवण्णा ।। कत्थइ णर-सरेहिं करि कप्पिय मलय-सिहर णं अहिहिं वियप्पिय कत्थइ जीविएण गय मेल्लिय रण-देवयहे णाई वलि धल्लिय कत्थइ हत्थि हत्थ णिय वाणेहि वम्मीयाहि-व खगेहि पहाणेहिं कत्थइ दंति-दंत सर-छिण्णा केयइ-हत्था णाई विखिण्णा कत्थइ रहवर णर-सर-खंडिय दइवें गिरि-व गणेप्पिणु छंडिय कत्थइ कंचण-चक्कई जडियई रण-बहु वहु-कुंडलई-व पडियइं कत्थइ लुय-दंडई सिय-छत्तई णं जम-जेवण-रुप्पिय-पत्तई ४ घत्ता कत्थइ पत्थेण महि मंडिय णर-तरु-जालेहिं । वाहा-साहहिं गह-कुसुमेहिं पाणि-पवालेहिं ।। [१३] दुवई ताम हिरण्णणाहेणं रह-सणाहेणं धवल-धयवडेणं । अण्णाविट्ठि कोक्किओ अहि-व रोक्किओ भुय-वलुब्भडेणं ॥ जायव थाहि थाहि कहिँ गम्मइ अज्जु परोप्पर सरहिं णिहम्मइ हउ-मि तुहु-मि विण्णि-वि सेणावइ विहि-मि गाउ सुर-भवणे णावइ विण्णि-वि सुद्ध-वंस सहवासिय जिंव सुरह जिंव मगह-णिवासिय ४ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्ततीसमो संधि जिम मई पिहिवि दिण्ण जरसिंघहो जिम पई देवइ-सुयहो मयंधहो विष्णि-वि करहो अज्जु एक्कंतर मुए मुए सरवर-बरिसु णिरंतर पभणइ अण्णाविट्ठि अणाउलु तुहुँ रोहिणिहे भाइ वल-माउलु रुहिरहो पुत्तु सालु वसुएवहो समर-सएहि वढिय-अवलेबहो रेवइ-जणणु भणेवि मुहु वंकमि णं तो कवणु जासु आसंकमि धत्ता सउरि मुएप्पिणु पई पेसणु किउ जरसंघहो । जिह तालप्फलु सिरु जासु खुडेवउ खंघहो ।। [१४] १० तो अमरिस-सणाहेणं हेमणाहेणं सत्तवीस वाणा । सेणावइहे पेसिया खर-सिला-सिया सविस-फणि-समाणा ॥ तो तहिं अण्णाविट्ठि कुमारे सीहेण-वि वण-विक्कम-सारें धरणिधरेण धराधर-धीरे मयरहरेण-व अइ-गंभीरें दिवसयरेण-व दूसह-तेएं छिण्णई ते सर सरेहिं सइवेएं ४ रुहिरहो णंदणेण पडिवारा सत्तरि सरह विमुक्क खय-कारा ते-वि तिक्ख-णाराएहिं णिज्जिय मुहिरंगरुहें णवइ विसज्जिय वाण-सएण छिण्ण जउ-वीरें दस सय अवर करे किय धीरें तेहिं असेसु दियंतर छाइउ सलह-वंदु जिह कहि-मि ण माइउ ८ रोहिणि-भायरेण धउ पाडिउ वइरिहे णाई मडप्फरु साडिउ घत्ता जायव-वीरेण हरि रहु सारहि सण्णाहु छत्तु घउ घणुहरु । सत्त-वि कियाई सय-सक्कर ॥ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिटणेमिचरिउ [१५] दुवई तेण-वि तहो महारहो गिरि-सम-पहो खंडिओ सरेहिं । सुअ-सिहि-कंक-पक्खेहिं अणेय-लक्खेहिं अहि-भयंकरहिं ॥ विण्णि-वि वि-रह परिट्ठिय चरणेहिं वावर ति विज्जाहर-करणेहिं गयण-समप्पहेहिं णित्तिसेहि आरणेहिं चल-चामर-मीसेहि विहि-मज्झे ठिय वढिय-मलहर तडि-ससि-अंतराले णं जलहर ४ घाय दिति वहु-विह विण्णासेहि अग्गर पच्छए उप्परि पासेहिं वइरिहे जायव-सेणाधीसें पाडिय वे-वि वाहु सहुं सीसे अण्णेहिं सभुय खग्ग वल्लरि-गय भीम भुअंग-जीह णं णिग्गय अण्णेहिं स-फरु वामु भुउ पडिउ णाई सकमलु णालु णिव्वडियउ ८ अण्णेहिं सिरु उच्छलिउ स-कुंडलु णं सरइंदु महा-धण-मंडलु धत्ता रुडेहिं अण्णेहि महि मंडिय चउहु-मि खंडेहिं । तूरई दिण्णई जायवेहिं सई भुव-दंडेहिं ॥ १० इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए । सत्ततीसमो इमो परिसंधि समत्तो ॥ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अद्वतीसमो संधि जय-जस-विक्कम-सारा जायव-वाहिणि पूरइ । कासु णिवंधमि पटु मागह-णाहु विसरइ ॥१॥ [१] हए रुहिरहो णंदणे हेमणाहे अत्थइरि पराइए दिवस-णाहे णिय-सिमिरहं गयई सवाहणाई चक्काहिव-मागह-साहणाई समरुद्धरियाउह-करयलाई वण-वियणाउर-वच्छत्थलाई आणिय-पिय-पाहुड-मोत्तियाई परिहव-पक्खालण-सोत्तियाई परिपूरिय-रण-वहु-दोहलाई जय-लच्छि-करग्गह-सोहलाई सामिय-पसाय-णिक्खय-कराई वंसावसेस-थिय-असिवराई संभाविय-जय-सिरि-संगमाई णिग्गंत-खलंत-तुरंगमाई लुय-चिंधई खंडिय-रहवराई सर-भरिय-णिरतर-गयवराई धत्ता ताम समुट्ठिउ चंदु जोण्ह करतु ण थक्कइ । तम-करि-जूहहो मज्झे णं केसरि परिसक्कइ ॥ [२] णिय-णिय-अत्याणेहिं थिय गरिंद मगहाहिव-माहव जिह सुरिंद जरसिंधु विसूरइ णिय-मणेण विणु एक्के रुहिरहो णंदणेण अत्थाणु महारउ णउ विहाइ गयणंगणु ससहर-रहिउ णाई रणे दुज्जय जायव-जोह जेत्थु सेणावइ किज्जउ कवणु तेत्थु After Ghatta 3. reads : लक्षशतानि नराणामन्यान्यपि मादृशानि जीवयसि । उपकुरु ममापि किंश्चित् यत्र शत तत्र पचाशत् ।। Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणेमिचरिउ आयामिय-गरुयाओहणेण परमेसर तुम्ह हुं कवण चित अट्ठारह वासर भरु महुँ जे तो वरि सब्बई सेण्णई णियंतु वोल्लिज्जई तो दुज्जोहणेण किं हउ ण भिच्चु साहणु ण कित(?) इयरइ-मि वहरि पहणेवउं जे पर पंडव-कउरव खयहो जंतु ८ घत्ता पच्छए पहरहो वे-वि एम्व भणेविणु सई जे तुहुं हरि-कारणे तेयहो । वद्रु पटु गंगेयहो ॥ णइणंदणु सेणावइ करेवि सुउ सउणिहे सयण-विरोहणेण तो एम भणिज्जहि धम्मपुत्त विसरिज्जइ कालु ण दुम्वियड्ढ जिय जूए कयत्थिय केस-गाहे परिपीयइं णिज्झर-पाणियाई दोमइ परिहविय जयबहेण थिय मच्छहो घरे पच्छण्ण-त्त थिउ कुरुवइ रण-भर-धुर धरेवि पट्ठविउ दूउ दुज्जोहणेण किल संढेण णउ अच्छणह जुत्तु तुम्हई तो लक्खा -भवणे दड्ढ ४ वण-मग्गे महण्णवे जिह अगाहे अवरइ-मि दुहई परियाणियाई जक्खें विद्दविय विस-द्दहेण तं पाविय जंण कयावि पत्त ८ घत्ता तो-वि ण तुहुं अभिट्टहि । परए स-भायर फिट्टहि ॥ ९ सुमरेवि दुक्खइं ताई कहिं महु जाहि जियंतु तव-तणयाणुवहो सहोयरासु किल संढहो अक्खु विओयरासु णउ लज्जहि गज्जहि लउडि लेवि भंजमि दुज्जोहणु ओरु वे-वि दूसासणु मारमि कालु पत्त सो एहु अवसरु तुई सो जे सत्त खल खुद्द पिसुण हय दुब्बियड्ढ ते कहिं गय सुहडालाव संढ ४ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टतीसमो संधि __ ५३ भणु अणु अज्ज-वि करहि खेउ कहिं गउ गंडीव-सरावलेउ भणु जमलहो जमलीहोह वे-वि वावरहु कोंत असिवरइं लेवि गउ दूउ कहिउ तं णिर वसेसु विसु जलणु कय-ग्गहु वण-किलेसु जइ सुमरहो तो किं विसहिएण अमरिस-जस-पउरिस-विरहिएण ८ धत्ता तुम्ह-वि अम्ह-वि होउ रणु अट्ठारह वासर । सहुँ वासवेण णियंतु वासुएव-चक्केसर ॥ पट्टविउ कहेवि जं कउरवेहि गउ सउणिहे णंदणु कहिय वत्त तहिं तेहइ काले अणज्जुणेण अट्ठारह दिवसिउ जुज्झु जाम पच्चक्खु पेक्खु णिय-रहवरत्थु भयदत्त-जयद्दह-अंगराय कउरवहं पहुच्चइ भीमसेणु परिपालिय-सयल-महावलेण पडिवण्णु सव्वु तं पंडवेहिं थिय कुरु सरहस रण-रस-पमत्त विण्णवेवि वुत्त हरि अज्जुणेण महु महुमहु जमलीहोहि ताम हउं काई करमि गंडीव-हत्थु मारमि हरि हरिण व राय-राय णव-णलिण-मुणालहं जिह करेणु सल्लेवउ सल्लु जुहिट्ठिलेण धत्ता भणइ जणद्दणु एम्व भमर-सिलीमुह-अक्कु छुडु आढवहो महाहउ । जहिं फरगुणु तहिं माहउ ॥ ९ हरि-बयण-वयणु हियवइ घरेवि गय णिय-णिय-णिलएहिं पंडु-पुत्त णिसि वियलिय संझा-समउ ढुक्कु रवि उग्गउ पसरिउ कर-णिहाउ 5.3. माहव पभणिज्जइ अज्जुणेण. सोयाहिउ सेणावइ करेवि णं केसरि गिरि-कंदरेहिं सुत्त थिउ तारा-मंडलु पह-विमुक्कु में भिडहो णिवारउ णाई आउ ४ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ रिट्टणेमिचरिउ ण पंडव कुरुबह देइ बुद्धि महि-कारणे णट्ठाणेय राय पहरंतह थाइ ण अंतराले कहो केरा मिलेवि मरति एय ८ हय पडु-पडह-सवाई रविहे धरतहो णाई ९ . अरुणुग्गमे सरहस-सरहसाई रोमंच-पसाहण-साहणाई उक्खय-दप्प-हरण-पहरणाई किय-भड-कडवंदण-वंदणाई ओवाहिय-हयवर-हयवराई तोसाविय-देवंगण-गणाई मयरद्धय-धय-उद्य-धयाई रुंदारुण-दारुण-लोयणाई सुहि वहेवि लहेसहु कवण सुद्धि वलि-रावण-णल-णहुस-हुण-जाय पच्चेलिउ हसइ विणासयाले जसु पुण्णई तसु हउँ वस-विहेय धत्ता किय कलयलई स-खग्गई । वलई वे-वि पिडे लग्गई ॥ [७] पइसरियई रण-रस-रण-रसाई रण-भर-णिब्वाहण-वाहणाई उद्विय-पर-वारण-वारणाई हरि-मुह-णीसंदण-संदणाई संचूरिय-गयवर-गयवराई उच्छलिय-महा-भीसण-सणाई पाविय-जीविय-संसय-सयाई धवलच्छिहे लच्छिहे लोयणाई धत्ता वलई वे-वि छायंतउ । रवि-ससि-विवइ लिंतउ ॥ [८] परि पसमिउ पडिवउ णं णियत्त मुउ पडेवि णाई सोणिय-समुद्दे केण-वि आमेल्लिउ वाण-जालु परिपिहिय-णिरंतर-अंतरिवखु रण-उ उट्ठिउ ताम णावइ गहकल्लोलु सो रण-रउ गउ लोयंतु पत्त मइ को-वि ण मइलिउ रण-रउद्दे थिउ णिभ्मलु सयल दियंतरालु णं अहिउलु दीसइ दुण्णिरिक्खु १ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अद्वतीसमो संघि तोणा- तरु-कोडर-णीसरंतु गयवर-व-मीरहिं पइसरंतु कत्थइ स-खग्ग करि कसण-देह स-सयदह णिवडिय णाई मेह कत्थइ वण-मुह-रुहिरारुण ग णं धाउ धराधर थिय तुरंग कत्थइ भड-असि-रय-लद्ध-सोहणं ताल-खंड तोडिय-फलोह घत्ता णच्चइ कहि-मि कबंधु अज्जु गुरुत्तणु मज्झु परिओसेण महंते । सीसें पएहिं पडतें ॥ तहिं अवसरे रणउहे दुण्णिवारे पहिलए कुरु-पंडव-संपहारे गंगेउ पधाइउ दुज्जयाहं मच्छाहिव-सोमय-संजयाहं परिरक्खिउ पंचहिं पत्थिवेहि किव-दुम्मुह-सल्ल-णराहिवेहि कियवम्म-विविझइ-राणरहि अवरेहि-मि कुरुव-पहाणरहिं अहिमण्णु पिसंगेहिं घोडएहि परिमिउ सामंतेहिं थोडएहि कुद्राणणु कुरु-कुल-कवल-हेउ उब्भिय-कंचण-कणियार-केउ विप्फारिय-धणु संजमिय-तोणु ___अवगणेवि कुरुवइ दोणि दोणु घाइउ किव-सल्ल-पियामहाहं कियवम्म-विविझइ-दुम्मुहाह घत्ता एयारह-सरेहि घउ गंगेयहो पाडिउ। णाई कउरव-णाहहो पढमु मडप्फरु साडिउ ॥ [१०] गंगेएं दसहिं सरेहि विद्ध पुणु विहिं कप्परिउ कुमार-चिंधु सउहद्दे हिम-गिरि-पंडुरंग चउ-सरेहिं वियारिय चउ तुरंग मद्दाहिउ पंचहिं उरसि विद्ध णं सविस-विसम-विसहरहिं खद्ध किउ छाइउ गिरि-व महा-घणेहिं जल-थल-णह-मंडल-लंधणेहिं Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्टगेमिचरिउ एक्के कियवम्मु स-मम्मु भिण्णु कह-कह-वि ण रण-देवयहो दिण्णु अवरेण विविझइ किउ णिरत्थु रिउ संकिय एहु अणेक्कु पत्थु दुम्मुहहो सरासणु किंउ दुखंडु अवरेक्कु लयउ जिह काल-दंडु तं छिण्णु कुमारे कुद्धरण सहु कवएं समउ महद्धरण घत्ता दुम्मुह-सूयहो सीसु छिण्णु रणंगणे वाले। सरवरे र्ण सयवत्तु तोडेवि घित्त मराले ॥ [११] णइ-णंदणेण णर-णंदणासु समरंगणे पेसिउ सर-सहासु तं छिदइ भिदइ हणइ वालु णं खगवइ भीम-भुवंग-जालु तहिं तेहए काले विओयरेण - कुरु-जाउहाण-जमगोयरेण रवि-रहवर-विब्भम-रहवरेण इंदहणु-सम-प्पह-धणुधरेण तिहितिविहेहि तवण-समुज्जलेहि कियवम्महो अट्ठहिं आसुरहि किय एक्के दुम्मुहु वहु-विहेहि वारहहिं विविझइ जम-णिहेहि मद्दाहिउ विद्ध दसहिं सरेहिं तेण-वि ते तेत्तिय-तोमरेहि तहि अवसरे समर-भयंकरेण करि चोइउ सल्लहो उत्तरेण धत्ता जइ-वि जयंधु रउद्द पभणइ गरुवउ सत्तु मणु संतावइ एंतउ । सोहइ दाणई देंतउ ॥ [१२] सो करिवरु सुर-करिवर-समाणु घाइउ मदाहिवे वद्ध-लक्खु णं जलहरु परि उप्पण-देहु सिक्कार-भरिय-भुवर्णतरालु कलहोय-णिवद्ध-महाविसाणु णं अंजण-गिरि उप्पण्ण-पक्खु मय-परिमल-मेलाविय-दुरेहु णक्खत्तोवम-णक्खत्त-मालु Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अतीसमो संधि परिभमिर भमर झंकार - सोहु सारहि तुर गु दूमंतु ढुक्कु करि पूरिउ सरवर सरेहिं एंतु वइराडिहे मुक्क वलंति सत्ति सत्तिए भिण्णु कुमारु पाण विसज्जिय तेण विणिवाइउ उत्तरु रणे पयंडु of धम्म-सुयहो अहिमाण खंभु णं पत्थहा समरुच्छाहु भग्गु तहि अवसरे धाइउ पवण-वेउ य - विक्कम - विणय- सिरी- णिवासु सो वेढि अहं पत्थित्रेर्हि जयसेण- रुप्परह-कोसले हिं अवरेहि-मि पर - महार हे हिं तो विष्फारेवि चाउ सयल-वि सेए' त्रिद्ध तेहि-मि अवाहिय रहवरेडिं सो सत्तेहि सत्तेहि तोमेरेहि' ते सयल-वि मग्गण मग्गियत्थ गिरि-मेरु- समप्पह-संदणेण घता कण्णाणिल - चालिय-चामरोड सल्लाहिउ रणउहे कह - वि चुक्कु किं चुक्कइ अरि दाई-वि देतु उरे णिवडिय र्ण खय-काल-रत्ति खंघोवर जे इंदहो । सुमरण करेवि जिणिदहो || [१३] णं णित्रडिउ मच्छहो वाहु-दंडु णं भीमो भीम - भुयावरंभु णं जमलहुं अयस कलंकु लग्गु मच्छाहिब सुउ णामेण सेउ सेणाव - पट्टु विदु जासु विदाणुविंद - मद्दाहिनेहि कण्हाय रिंद विब्ववेहि दुम्मुह विहवत्त-जयदहेहि ' घत्ता [१४] फुरिय- फर्णिद-समाणेहिं । सत्तेहि सत्तेहिं वाणेहिं ॥ ५७ विस्फारिय-पवर - घणुद्ध रेहि हर भीम - भुयंग भय करेहिं णं किविण- णिहेलणे गय निरत्थ लहु हत्थे मच्छहा णंदणेण ८ ४ ४ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ सयलहं वि विहत्तई धणुवराई सयलहं वि हय रह-कुवराई सयलह तणु-ताणइं ताडियाई सयलह धय-छत्तई पाडियाई सयलाह-मि सत्तिउ पेसियाउ सयला वि सरेहिं णीसेसियाउ सुउ सल्लहा सत्तेहि सरेहि छिक्कु रुप्प-रहुं वि-रहु किउ कहि-मि ल्हिक्कु ८ सेणावइ विलसइ एम जाम धट्टणु बहु-रहु पत्तु ताम घत्ता दुमय-विराडहं पुत्त पवण-हुवासण जेम दप्पुब्भड किलिकिलिया । विण्णि-वि एक्कहिं मिलिया ॥ एत्तहे-वि पियामहु रणे रउडु मज्जाय-विवज्जिउ जिह समुद्दु गय-धड-वेलाउलु वल-जलोहु रंगंत-तुरंग-तरंग-सोहु मंथणहण(?) सक्किउ पत्थिवेहिं सोमय-सिंजय-मच्छाहिवेहि स-सिहंडि-पंडि-धज्जुणेहिं तवतणय-भीम-जमलज्जुणेहिं ण णिवारिउ केहि-मि समुहु एंतु कुंडल-मंडिय-भड-सिरइं लेंतु सीसक्क-कवय-वर-घणु-धराई महियले पाडतु णिरंतराई तहिं अवसरे वाहिय-संदणेण पडिखलिउ विराडहो णंदणेण सामण्ण-अण्ण-आहव-पइद्ध गंगेय थाहि कहिं जाहि विद्ध घत्ता पंडव-कुरुव-पहाण देवासुर-संगामे भिडिय वे-वि सेणावइ । सुक्क-विहाफइ णावइ ॥ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अद्वतीसमो संधि [१६] तिहुवण-वहिरण-रण-पडह देवि गगेय-सेय पडिलांग वे-वि तो परिओसिय-सक्कंदणेण पहिलउ जे विराडहो गंदणेण द्सह-रवि-किरण-भयंकरेहि गंगा-सुउ छाइउ सरवरेहि तहिं अवसरे पुलउब्मिण्ण-गत्तु दुजोहणु लेहु भणंतु पत्तु आइटु विविंझइ अतुल-मल्लु दुम्मुहु कियवम्मु सुसम्मु सल्लु सयलेहि-मि अ-खत्ते लइउ सेउ सयलह-मि स-धणुवर छिण्ण केउ सयल-वि समरंगणे किय णिरत्थ वियलिय-पहरण संसुढिय-गत्त भाईरहि-णंदणु परम-चिंधु पण्णारह-वारह-सरेहिं विद्ध घत्ता तेण-वि थाणु रएवि सर सरवरेहिं परज्जिय । अवसें जंति ण मोक्खु णिग्गुण धम्म-विवज्जिय ॥ [१७] पुणु दूरोवग्गिय-वम्महेण हउ दसहिं सरेहिं पियामहेण सेएण-वि किय-कडवंदणेण जेट्टेण सुजेट्टा-र्णदणेण घउ ताडिउ पाडिउ छत्त-दंडु गंगेय-सरासणु किउ दु-खंड लइ वट्टइ आइउ ताय-ताउ लहु णासहि हाहाकार जाउ तो सरि-सुएण धाय-दंडु छिण्णु विहिं भल्लिहिएक्के सूरु भिण्णु अवरेहि चऊहुं चयारि वाह मण-पवण-ग्वगाहि व-जव-सणाह वि-रहेण धरतें घित्त सत्ति स-वि दसहिं सरेहिं विहत्त झत्ति पुणु मुक्कु कुमारे लउडि-दंडु सो घरेवि ण सक्किउ रणे पयंडु ८ धत्ता स-घउ स-तुरउ स-सूउ रहु गंगेयहे देवेहिं दुंदुहि दिण्णु कउरव-णादु चूरिउ । विसूरिउ ॥ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० रिटणेमिचरिउ [१८] णहे ताव समुठिय दिव्व वाणि अहो सुर-णइ-गंदण कढिण-पाणि ण णिहम्मइ एहु केण-वि परेण मारेवउ पइं-जे महा-सरेण वयणेण तेण थिउ सावहाणु किर कड्ढेवि धिवइ ण घिवइ वाणु तो सेए वर-करवालु लेवि धणु-गुण गंगेयहो छिण्ण वे-वि ४ करे करइ सरासणु अवरु जाम हउ भीमें सठिहिं सरेहिं ताम तहिं णर-णंदणेण वलुत्तणेण विसहिं भल्लेहिं धट्ठज्जुणेण सइणेए आहउ सर-सरण पंचहिँ एक्केक्के कइकएण ते सर णरवर-सरे सावलेव विणिवारिय सीहें हरिण जेम्व ८ धत्ता पलय-करेण सरेण विद्रु तरंगिणि-तोए । पाडिउ महियले सेउ कलयलु किउ कुरु-लोए ॥ ९ [१९] संभरिउ मरते. देव-देउ परिणिमल्लु णिक्कलु णिरुवलेउ गिरवज्जु णिराउहु णिरुवसागु णिरवेक्खु णिरंजणु सुहय-भग्गु पच्चक्खु परोक्खु पमाण-सिद्ध परमट्ठ-महा-गण-समिद्ध सयलामल-केवल-णाण-णयणु णिरुवम-परमागम-वयण-वयणु ४ जसु तिमि सियायव-वारणाई तइलोय-पहुत्तण-कारणाई जसु परमासोउ असोय-दाणि जसु पर-उवयारिणि परम वाणि जसु मणहरु सुरतरु कुसुम-वासु भा-वलय-वलय-आवयवु जासु घत्ता तं देवाह-मि देउ तिहुयण-मंगल-गारउ । सग्गु वलग्गु कुमारु सरेवि स्इंभु-भडारउ ॥ इय रिटुणेमिचरिए धवलइयासिय-समुएव-कए अद्वतीसमो संधि-परिछेओ समतो । Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उनतालीसमो संधि बहु पहु घट्टज्जुणहो वइत्रस-वयगुच्चरियई छ । पंडत्रकुरुव-वलई अब्भिट्टई ॥ ? दिवसए दुइज्जए सरहसई पुच्छिउ सेणिएण परमेसरु वीर ale दिवसे अक्खु जं होस उत्तर- सेय वे वि विणिवाइय गय जरसंघहो पासु स- संदण अरुणु पयट्टु ताम अत्थवणहो वइयरु सुविस- दुक्खउ रोवइ लिणि-व हिम- दवेण संताविय अहो णारायण पंडव - पक्खिय भणइ जणद्दणु माए सुणि अमरेहि-भि परिरक्खियहो [?] एवं देव गउ पहिलउ वासरु तं णिसुणेवि महा-रिसि घोसइ कुरु रण-रहसे कहि-मि ण माइय पहु णिट्ठविय सुजेट्टा-णंदण पंडव दुम्मण गय णिय-भवणहो घरिणि विराडहो अप्पर सोयइ हा हय विहि महु पुत्त ण दाविय पइ - मि कुमार मरंत ण रक्खिय घत्ता एम-वि कलणु रुवंति ण थक्कइ अहो तव तणय पइ-मिण गवेसिय अहो अहो भीमसेण अहो अज्जुण अहो विराड अहो दुमय-णराहिव अहो जमलहो कउरव-कुल- कालहो सोहि मिलिय ण रक्खिउ उत्तरु पणइ धम्म-पुत्तु तर्हि अवसरे जइ मई यत्ति ण किय जम- सासणे [२] ८ जाव जीवहो ढुक्कइ मरणउं । तावेहि को विगाहि तहो सरणउं ॥ ९ अणुपरिवाडिए णरवइ तक्कइ पुत्त महारा केत्त हे पेसिय अहो सच्चइ सिहंडि घट्टज्जुण अहो अहो कासिराय अहो चेइव ४ अहो अहिवण्णु घुडुक्कय-वाल्हो केण वि काइ-मि दिष्णु ण उत्तरु सल्लहो सत्तारहमए वासरे तो पइसरमि णिरुत्तु हुवासणे ८ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्टणेमिचरिड भणइ सिहंडि पियामयहो णवमए दिवसे णिसा-गमणे घत्ता जइ ण ठवमि सरीरु सर-संथरे । तो हउ झप देमि वइसाणरे ।। ९ ।। करेवि पइज्ज परिट्ठिउ राणउ कहि सहएव केम महिं जिज्जइ तेण णवेप्पिणु कहिउ गरिंदहो पटु णिवंधु देव घट्ट जुणे किउ अहिंसेउ समप्पिउ रण-भरु कुरुवेहि अवरु वृहु विरइज्जइ किय-कलयलई समाहय-तूरई जुज्झण-मणई अणिट्ठिय-तिट्टई पुच्छिउ मदि-पुत्तु बहु-जाणउ एवहिं को सेणावइ किज्जइ कउरव-करि-कप्परण-मइंदहो खयहो जंतु कुरु कुद्धए अज्जुणे ४ कोंच-बूहु णिम्मविउ भयंकर रयणिहे विरमि पयाणउ दिज्जइ उब्भिय-धयइ पडिच्छिय-सूरई सामरिसई रण-भूमि परिट्टई ८ घत्ता अविरल-सर-धारा-हरई पाउसे णव-घणउलइजिह हय-पडु-पडह-विजय-रव-भरियइ। पंडव-कुरुव-वलई उत्थरियइ ॥ १ । [४] कार ४ हरि-खुर-खुण्ण-खोणि-रउ उट्ठिउ घरहु तुरंगम रह ओसारहो जइ महु तणिय वसुधर चप्पहो हउ कुलीणु हउं सव्वहं सामिउ वलि-णल-णहुस-दसाणण-राणा ओए-वि अवर-वि जे जे जुज्झिय को तव-सुउ को किर दुज्जोहणु वरि अवहेरि करेवि पल्लटहो णाई णिवारउ मज्झे परिट्ठिउ करि अकुसहो णराहिव धारहो तो अच्छहिं पाणेहिं समप्पहो जइ वट्टिउ तो केणायामिउ सिवि-दिलीव-मंधाय पहाणा ताहं ताहं मई विक्कम वुझिय वसुमइ कासु कवणु आओहणु णंतो महु सयल-वि आवट्टहो ८ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उणतालिसमो संधि घत्ता एम घरेवि ण सक्कियई वलई वे-वि रय-रक्खसेण रण-रस-वसई परोप्परु मिलियई। एक्कु-जे कवलु करेवि णं गिलियई। ९ रउ परिवढिउ लागु णहंगणे णासिउ चक्खु-पसरु-समरं गणे भड पडंति रह-चक्केहि चप्पिय रह फुटति गइंद-झडप्पिय गय वइसरिय किवाणेहिं खंडिय वसुमइ एम सरीरेहिं मंडिय तहि-मि रयंधयारे रहसुन्भड धवघवसंत हणंति महामट. ४ सिरई पडति णडंति कवंधई रुहिरई परियलंति जहिं रंघई थामे थामे ओगल्लई छत्तई पुजीकयई महागय-गत्तई थामे थामे महि कर-चरणंचिय थामे थामे वेयाल णच्चिय थामे थामे भल्लुय-फेक्कारई दुज्जउ अज्जुणु णाई णिवारइ ८ धत्ता थामे थामे भीसावणिय दुत्तर रत्त-रंगिणि धावइ । विण्णि-वि वलई गिलंतरण काले जीह ललाविय णावइ ॥ ९ [६] तहिं अनसरे पर-पवर-पुरंजउ स-सरु स-रहवर स-धणु घणंजउ दिट्ठि-मुट्ठि-संधाणु ण दावइ कुरुवह पलय-कालु णं आवइ रणे फेडतु असेसई वूहई णं पंचाणणु वारण-जूहई केण-वि घरेवि ण सक्किउ एंतउ खय-दिणणाहु डाहु णं दितउ ४ काह-मि खुडइ खुरुप्पेहिं सीसई मउड-पट्ट-मणि-कुंडल-मीसई काह-मि वच्छ दंत सर पेसइ काह-मि हय-गय-रह णीसेसई काह-मि करइ काय सय-खंडइ काह-मि हणइ छत्त-धय-दंडई काह-मि हणइ सरासण-जाणइं काह-मि सीसक्कई तणु-ताण ८ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिटमिचरिउ घत्ता विसमु धणंजउ विसमु रहु विसम सरासणि विसमु सरासणु दिठ्ठ असेसेहिं कउरवेहि णं चउ आहिरण्णु जम-सासणु ।। ९ [] तो खय-सूर-समप्पह-तेएं एंतु पडिच्छिउ णरु गंगेएं विसहर-विसम-विसोवम-वाणेहिं सत्तत्तर सत्तरि परिमाणेहिं णवहिं जयद्दहेण वावल्लेहि मदाहिवेण-वि णवेहिं जे भल्लेहिं पंचहि विसिहेहि सउणिय मामें दसहि विगणे णिग्गय-णामें किवेण विद्ध पंचासहिं वाणेहिं दोणे पंचवीस परिमाणेहिं दोणायणेण समाहेउ सट्टिहिं कुरु-परमेसरेण चउसट्टिहिं आएहि अवरोहि-भि सामंतेहिं छाइउ सरवर-सएहि अणंतेहि छिण्ण भिण्ण विणिवारिय पत्थे णाई कसाय महारिसि-सत्थे धत्ता सउणि-सल्ल-किव-कुरुव-पहु कुरु-गुरु-सुय-गंगेव-जयदह । चालिय अज्जुण-षाउसेण रिउ-अगाह-गंभीर-महादह ॥ [८] एक्क-रहेण सरासण-हत्थे अमरिस-कुद्भरण रणे पत्थे लाइय थरहरंत तर्हि अवसरे पंच सिलीमुह कुरु-परमेसरे पंचवीस णाराय पियामहे छह दूसासणे अट्ठ जयद्दहे णव किवे णव विकण्णे दस सउवले वारह सल्ले चउद्दह विहवले दो दोमुहे चयारि अत्तायणे सट्ठि दोणे सत्तरि दोणायणे सोण को-वि जो लयउ ण वाणेहिं परिह-मुसल-जम-दंड-पमाणेहि छिण्णई रह-तुडई रह-चक्कई कवय-धयायवत्त-सीसक्कई उर-सिर-कर-चरणोरु-पएसई तोणा-धणु-वाहणई असेसई Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उणतालीसमो संधि धत्ता सरवर-णहर-वियारियई भय-विहलई कंठ-ट्टिय- जीयई । हरिणई हरिणाहिवहो जिम णट्टइं पत्थहो कुरवाणीयई ॥ भग्गए णिय-वले कउरव-णाहे गरहिउ गंगा-सुउ असगाहे अच्छहि ताय काई वीसत्थउ णिरवसेसु जगु जिणेवि समत्थउ किं पंडवेहि समाणु णहु जुज्झहि अम्हई वचेत्रि कहिं तुई सुज्झहि पहु-दुव्वयणेहि वलिउ पियामहु णं विझइरिहे अहिंमुहु हुयवहु भिडिय वे-वि गंगेय-धणं जय विण्णि-वि जय-सिरि-गहण-समुज्जय विण्णि-त्रि संतण-पंडु-सुहकर विण्णि-वि तत्रसुय-कुरुवइ-किंकर विण्णि-वि णं गिब्वाण-महागय विण्णि-वि ताल-पवंग-महाधय . विण्णि-वि जायरूवमय-सदण विणि-वि जण्हवि-जायवि-णंदण धत्ता पिहिय-दिसामुह तडि-चवल हय-पडु-पडह-पवड्डि-मलहर । सर-धाराहर-गुण-गहिर णहे उत्थरिय णाई णव जलहर ॥ ९ [१०] विक्कम-विणय-णयागम-जुत्ते जय-जयकारिउ पंडुहे पुत्ते थाहि ताय रणु होउ सउण्णउं अज्जुणु अज्जु करइ पाहुण्णउ तो संतणवें संतणु-जाएं लइय-सिलासिय-सर-संधाएं दसहिं दसहिं पुणु दसहिं स-तीसहि पुणु पडिवारउ णवहिं स-वीसहिं ४ तिहिं महु-मग्गणेहिं विचित्तेहिं णं पर दंसण-णाण-चरित्तेहिं तो फग्गुणेण गुंज-पुजक्खें विद्ध दहुत्तरेण सर-लक्खें विहि-मि परोप्परु छाइड वाणेहिं विण्णि-वि पोमाइय गिव्वाणेहिं २.५ ज. फुट्टइ. Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्टणेमिचरिउ विहि-मि परोप्परु वणियई अंगई विहि-मि परोप्परु हयई रहंगई विहि-मि परोप्परु छिण्णई चिंघई विहि-मि अणेयई कवयई विदई घत्ता विहि-मि कोंति-गंगासुयहं दिट्ठि-मुट्ठि-संधाणु ण थक्कइ । एक-वि पउ-वि ण ओसरइ एक्कु-वि एक्कु जिणेवि ण सक्कइ ॥ १० [११] विण्णि-वि हय-तुरंग हय-संदण संतण-पंडु-णराहिव-गंदण एवं करंति महाहउ जावेहि भिडिय दोण-धद्वजण ताहिं धय-धुरि आसत्थामहो वप्पे पाडिय एक्कक्केण खुरुप्पे वाह चयारि-वि वाण-चउक्के धट्ठज्जुणेण जमेण व दुक्के णव-वि विसिह किवि-कंतहो पेसिय तेण-वि गिरवसेस णीसेसिय मारणत्थु पुणु मुक्कु अणंतर दुमय-सुएण करेवि सय-सक्करु चित्त सत्ति पुणु घणे णं विज्जुल तइल(?) घोय-कलधोय-समुज्जल स-वि दोहाइय छिण्णु सरासणु साहि पाडिउ चूरिउ संदणु धत्ता लइय लउडि धट्ठज्जुणेण धत्तिय दोणायरियहो उप्परि । तेण-वि वंचिय असइ जिह णिवउिय दो-दलिकरेवि वसुंधरि ॥ ९ [१२] जमल-णिवाणिट्ठिय-तोणे वंचिउ लउडि-दंड जं ढोणे दुमय-सुएण लयउ वसुणंदउ चल-चामरु चामीयर-दंडउ खग्ग-लट्ठि किय दाहिण-करयले स-ससि स-विज्जु मेहु णं णहयले धाइउ थाहि थाहि पमणतउ असिवरेण सरवर वारंतउ तहिं अवसरे हिडिव-जमगोयर - अंतरे थिउ धणु-हत्थु विओयरु णिय-रहे णिमिउ धणंजय(?)-सालउ सत्तिहिं सरेहिं विद्ध किवि-पालट Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उनतालीसमो संधि तेत्थु काले कुरुणाहें जोइउ वेटिड एक अणेय -गईदेहि मल्हण - सीलिय मय - विहल रणमुहे भीमहो संमुहिय धाइय दस सहास मायंगहं गरुय-महागिरिवर-संकासहं रक्खस- चरियह जलणिहि गायह काय - कंति - कसणीकिय-गयणह सिहरि - सिहर - सणिह - कुंभयरह तहि - मि मत्त मायंगेहि भइ पुणु-वि कलिंग-गाहु हक्कारिउ आएहिं महु उ हासउ दिज्जइ एक्कमेवक कोक्कंत रणे स धणुस - संदणु सामरिसु तेण भिड़ंतें सरेहि वियारिय छिण्णु महा-घउ पाडिउ घणुधरु घाइउ झंप देवि अत्रणीयले स उ स सारहि चूरिउ संदणु तो सयमेत्र णराहिउ सर पण्णारह मुक्क कुद्धउ पयंत् स गयवंरेहिं कलिगु पचोइउ णं दिवसयरु महा-घण-विदेहि घत्ता दुरुदुल्लिय णं किंचि विहावइ । गय-घड ढुक्क विलासिणि णावइ ।। ९ [१३] आसीविस-विसहर त्रिसमंगहं पवल-वलाहय - लील- पगासहं दंत-दित्ति-घवलिय-दिव्मोयह क्रूर - गहाणण-दारुण-त्रयणह मय- सरि-सोत्त- सित्त-गंडयलह सो-वि मइंदु जेम पत्रियभइ थाहि थाहि कहिँ जाहि अमारिउ कुविउ भीमु किं गएहिं घरिज्जइ ६७ घत्ता वे वि भिड़ंत भिडंणि ण जावेहि । सक्कदेउ थिउ अंतरे तावेहि || [१४] भीमहो तणा तुरंगम मारिय तो सहसत्ति पलित्त विओयरु भामेत्रि भीम गयासणि करयले णिउ जम- पहेण कलिंगहो णंदणु णं केसरि गय-गंध- पलुद्धउ छिण्ण विओयरेण असि पत्ते મે ४ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ ८ ४ अवर चउद्दह तोमर पेसिय ते-वि खणंतरेण णीसेसिय भग्गु कलिंगु महा-गय-साहणु भाणुवंतु पर थक्कु स-वाहणु धत्ता तेण पचोइउ मत्त-गउ भमरि-भमर-झंकार-सुहावहु । घाइड भीमहो संमुहउ सरक-करे-रिउ(?) णं अइरावउ ।। ९ [१५] तो थिर-थोर-पलंव-भुयग्गलु चम्म-रयण-परिपिहिय-उरत्थलु मंडलग्ग-मंडिय-दाहिण-कर घाइउ भीमसेणु जहि गयवरु तहो अणवरय-पल्लोट्ट-मयंधहो चडेवि विसाण-जुयले गउ खंघहो विण्णि-वि विविहाहरण-समुज्जल विण्णि-वि परिभमंत-तडि-चंचल विण्णि-वि एक्कहो हत्थहो उप्परि विण्णि-वि कमु मुवंति जिह केसरि विण्णि-वि धाय धिवति परोप्परु विहि-मि णिणाए वहिरिउ अंबरु वे-वि सियारुण-फरेहि अलंकिय उअयत्थइरि व ससि-सूरंकिय लद्धावसरे वग-संहरणे दिण्णु घाउ णह-लंधण-करणे धत्ता छिण्णु खधु खघेण सहुँ णिवडिउ सिरु सिर-वहणिहिं छूढउं । भिडिउ विओयरु गय-घडहं पडिउ कवंधु कवंधारूढउ ।। [१६] दुज्जय-जाउहाण-जम-गोयरु हत्थि-हडह ओवडिउ विओयरु चलइ वलइ उल्ललइ णिसुभइ धावइ भमइ भमाडेवि रुंभइ सो ण गइंदु जो ण दोहाइउ सो गारोहु जो ण विणिवाइड तं ण विसाणु जं ण महि पाविउ तं ण कुभु जं दलेवि ण दाविउ सो ण हत्थु जो समरे ण खंडिउ सो ण पाउ जं लुणेवि ण छंडिङ सो ण तुरंगमु जो ण वियारिउ सो ण णरिंदु जो ण वइसारउ ४ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उणतालीसमो संधि सारहि-रहिय-महारह-चक्कई धणु-गुण-कवय-सीस-सीसक्कई चामर-चिंध-महाधय-छत्तई महियले पुजीकियई समत्तई घत्ता भीम-जमहो जेवंताहो अच्छउ गय-घड-सालणउ कवण धरिणि विण्णाणु पउंजइ । सेण्णु-वि एक्कु-वि कवलु ण पुज्जइ ।। २ [१७] तो-वि कलिंगाहिवेण सुधीमहो लाइय थरहर त सर भीमहो तेहिं ण पीडिउ पंडुहे णंदणु ताव विसोए पाविउ संदणु तहि वलग्गु. तब-तणय-सहोयरु पुणु-वि कलिंगे विगु विओयरु णवहिं सिलीमुहेहिं कलधोएहिं आयस-फलेहिं महासिल-धोएहिं कोति-सुएण सत्त सर पेसिय तेहिं रहंग-अक्स्व णीसेसिय सच्च-सुसव्वएत्र विहिं पवरेहिं पाडिउ केउमंतु विहिं अवरेहिं विहिं कलिंगु कह-कह व ण धाइउ किंकर-णियरु अवरु उद्धाइउ तेहिं महावलु लयउ अखत्ते तेण-वि ते हय समरासत्तें ४ धत्ता भीमें भीम-परक्कमेण रहियहं सत्त-सयईणिट्ठवियइ । मत्त-गय दहं दस-सयई पेयाहिव-पट्टणु पट्टवियई॥ [१८] जाम भीमु रणु रुडेहिं अचइ ताम पत्त घट्टणु सच्चई तिण्णि-वि ते अग्गि-सम-देहा तिण्णि-वि कलि-कयंत-जम-जेहा तिण्णि-वि भिडिय गंपि गंगेयहो पलय-दिवायर-दूसह-तेयहो तिण्णि तिणि सर तिहि-मि विसज्जिय तेण-वि तिहि तिहिं णव-वि परज्जिय ४ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिटणेमिचरिउ भीमहो हय हय संतणु-तोए घोसिउ कलयलु कउरव-लोएं सत्ति विओयरेण परिपेसिय स-वि सुर-सरि-सुरण णीसेसिय लइय लउडि हरि-पीउसि-सेए सारहि णिहउ ताम सइणेए घत्ता भीमु-वि भिडिउ कलिंग-वले धट्ठज्जुणहो महारहे थाएवि । अइ-भुक्खालुउ काल जिह करि खायणहं लग्गु जगु खाएवि ॥ ८ [१९] पस्वल खति जाम दप्पु त्तण सच्चइ-भीगसेण-घट्टज्जुण तहि अवसरे रण-रहसे ण माइय आसत्था म-सल्ल-किव धाइय तिष्णि-वि तिहि-मि पडिच्छिय एंता अविरलु सरवर-साइड देता तावेत्तहे-वि अणिहिय-तोणहो घाइउ दोवइ-गंदणु दोणहो ४ तो सुर-समहं अमाणुस-जोणिहिँ जाउ जुझु धट्ठज्जुण-दोणिहिं वहि-मि परोप्परु छाइउ वाणहि विण्णि-वि पोमाइय णिवाणेहि तहिं अवसरे अहिवण्णु पराइउ विज्जउ णाई धणजउ आइड तिण्णि-वि लक्ष्य तेग णारारहिं रुप्पिय गुंखेहि कंचण-काएहिं ८ धत्ता सिणि-सुय पिहि-सुय-दुमय-सुय तिाण-वि रणउहे रक्खिय वाले । किव-मद्दाहिव-गुरु-तणय तिण्णि-वि कवल-कलिय णं कालें ॥ ९, [२०) लाइय पंचतीस सर सल्लहो किंवहो दुवारहो अणिहय-मल्लहो दस वच्छत्थले आसत्थामहो धाइउ ताम पुत्त महि कामहो भिडिय वे-वि परिवाहिय-संदण णर-णंदण-दुजोहण-गंदण लक्खणेण णव वाण विसज्जिय पंचासेहिं गर-सुरण परज्जिय ४ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उणतालीसमो संधि लक्खेणेण वाणासणु पाडिउ अवरु सरासणु लेवि कुमारें वेटिड र सुउ णरवर- विदेहिं तहि अवसरे गंडीव - विहत्थें ताम दिवायरु अत्यमिउ गलिय- सयं भूसण-सय ई कह-त्रि कहवि तणु-ताणु ण ताडिउ रिउ ओसारिउ विक्कम सारे सीह-पोउ णं मत्त-गईदेहि णिय-सुउ उब्वेदाविउ पत्थें ॥ ८ धता णाई वे-वि चिरहो परियत्तई । णवर मिहुणइं णिसुढिय-गत्तई ॥ ९ * इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय सयंमूव कए उनतालीसमो इमो सग्गो ॥ ७१ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चालीसमो संधि पसरिय-कलयलई हय-तूरई उक्खय-खग्गई । तइयए दिवस-मुहे कुरु-पंडुव-वलई आलग्गई ॥ १ १] मगहाहिउ पुच्छइ परम-रिसि गउ दिवसु दुइज्जउ गलिय णिसि कहि तइयए वासरे काई किउ विहिं सेण्णह कवणु कवणु विजिउ परमेसर अक्खइ सेणियहो विढविय-सम्मत्तहो खोणियहो सुणु तइयए दिवसे भयावहेण किउ गारुड-बूहु पियामहेण ४ सई वयणे परिट्टिउ दुविसहु गले सिंघउ पुट्ठिहे कुरुव-पहु विदाणुविंद दाहिण-दिसए कालोर-कुणीर वाम-विसए पंडवेहि-मि अद्धई दुहइउं हय-गय-रह-णरवर-अभइउ भीमज्जुण कोडिहिं विहि-भि थिय अवसेस णराहिव गम्भु किय ८ धत्ता बृहुँ रएविणु णिय-वलेहिं कुरु-पंडण भिडिय रणंगणे । विविहेहिं विमाणेहिं (?) वंदारय थिय गयणंगणे ॥ २. । [२] थिउ णहे स-पुरंदरु अमरयणु णत्र-पाउसु जिह आलग्गु रणु गज्जत-मत्त-मायंग-घणु मंडलिय-सरासण-इंदहणु विफ्फुरिय-खग्ग-विजुक्करिसु सर-धारा-थोर-त्थेभ-वरिसु वरिसंत-धूलि-कद्दमिय-णदु णीसरिय-णिरंतर-णइ-णिवहु ४ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . चालीसमो संधि अरुणद्धय-इंदगोव-छइउ गोलसुय-पहिं णीलइड धूय-धवल-कलावी-पंडुरिउ रणु पाउस-कालहो अणुहरिउ . तहि अवसरे एक्क-सहास-रहु सइणेयहो धाइउ कुरुव-पहु ते भिडिय परोप्यरु वे-वि जण णं केसरि अमरिस-कुइय-मण धत्ता ताम वलुद्धरेण रण-रामा-लिंगण-कामें । अंतरे कुरुवइहो रहु दिज्जइ सउणिय-मामें ॥ गण-काम तिलसेण-कणिढे सउवलेण तेण-वि रहु दिण्णु महा-वलेण आभिट्ट वे-वि सिणि-णंदणहो पडिभग्गु पसरु रिउ-संदणहो हय हयवर सारहि णिद्दलिउ गयणंगणे सच्चइ उल्ललिउ णर-णंदण-संदण-वीढे थिउ पडिवारउ समरारंभु किउ पेक्स्वतहो तहो दुज्जोहणहो छड्डविय तत्ति आओहणहो एत्तहे-वि भिडिउ रणे दुक्काहं कुरुवाहिव-भीम-घुडुक्काह भेसाविउ पढमणिसायरेण हउ णवहिं सरेहिं विओयरेण मुच्छाविउ कह-व ण मारियउ सूएण कह-व ओसारियउ धत्ता तेत्तहे णवर णिउ अगणिय-सुरिंद-जम-धणयहो । विण्णि-वि भिडिय जहिं गंगेय-दोण-तव-तणयहो ॥ णासंधिय-भीमाओहणेण अहो पंडव-पक्खवाय-भरिय सावेण सरेण वि जो दहहि ण सिंहडि ण धट्ठज्जुणु णिहउ विण्णि-वि गरहिय दुजोहणेण दुवियड्ढ दुट्ठ दोणायरिय सो मदि-सुयह-मि सक वहहि ण घुडुक्कउ णाहि अण्णु अजउ ४ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ रिडणेमिचरिउ णइ-गंदण एक्कु विण किउ पइं पर वार-बार वेहवहि मई हउ सोसमि पंडव-जल-उवहि हउ देमि स-सायर सयल महि ण जुहिटिलु ण विओयरु वहिउ ण - त्रि णरु णारायणेण सहिउ अवरई विण एक्कु-वि आहणहि सच्छंद-मरणु अप्पउ भणहि ८. धत्ता हसिउ पियामहेण दाणव-पलय-कर रणे जोहिउ केण धणंजउ । महुसूयणु जासु सहेज्जउ ॥ ९ दुज्जोहण तो-वि ताह भिडमि गिरि-मत्थए असणि जेम पडमि सर-सीरिउ करमि अराइ-वलु . जिह अहि-विहिण्णु पायालयलु कप्परमि कुंभि-कुंभ-स्थलई कंड्ढमि स-रुहिर-मुत्ताहलई तच्छमि रह-रहिय-रहंग-सय पाडमि चल चामर छत्त धय . ४ .. स-तुरंग णराहिव णिवमि रहिर-णइ-सहासइं उट्ठवमि रण-बहु-सब्भाव-भाव-गयइं. णच्चावमि भड-कवंध-सयई महि रुड-णिरंतर दक्खवमि णर-भोयणु भूयह चक्खवमि . पइसारमि सरवर वइरि-गणे जिह विसहर कोडर-पउर-वणे ८ घत्ता एम भणेवि गउ पेक्खंतहो कुरुव-णरिंदहो । दुक्कु जुहिट्टिलहो जिह मित्त-गइंदु गइंदहो पइसरिउ पियामहु पंडु-वले णं केसरि मत्त-गइंद-थडे णं खगवइ भीम-भुयंग-गणे पविय भइ रु भइ हत्थि-हड णं मदर खीर-समुद्द-जले णं सरहु मइंद-विद-विसढे णं वण-दवगि जर-वंस-वणे कापरइ खुरप्पेहिं स-फर भंड Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चालीसमो संधि ७५ जिद्दलइ रहंगई रहिय-रह विद्दवइ महा-तुरंग-णिवह . . . . . . छिंदइ धय-चिंधइ चामरई सीसक्कई कवयई धणुहरई लहु करयलु खणु-विण वीसमइ णं पर-वले मइयवट्ठ भमइ एक्कु जे एक्कउहु एक्क-रहु परिसक्कइ णं कयंत-णिवहु धत्ता संकिय णिएवि रिउ तं पलय-भूय-अणुरूवउ । कहिं गइ कहो सरणु जगु सव्वु पियामहिभूयउ ॥ ९ [७] तो दुद्दम दणु-तणु-घायणेण वोल्लाविउ णरु णारायणेण अहो अज्जुण अज्जुण संदणहो आभिटु महा-णइ-णंदणहो एहु केण धरिज्जइ पलय-रवि पई मेल्लेवि अवरु समत्थु ण-वि तो विप्फारिय-गंडीव-धणु उत्थरिउ णाई णहे पलय-घणु . ४ गंगेय-धणंजय अभिडिय णं इंद-पडिंद समावडिय णं गोविय अमरिस-भोव-गय णं सुर-दुग्धोड पलोट्ट-मय णं सीह ललाविय-जीह-मुह णं सरहसु उद्बुसियंगरुह कइ-ताल-महा-धय वे-वि जण णिय-सामिहे वसुमइ देण-मण घत्ता पत्थे तिहिं सरेहि पलयग्गि-समप्पह-तेयहो। कुरुवइ-हियउ जिह धणु पाडिउ तहो गंगेयहो ॥ ९ [८] . घणु.खंडणे मुअण-भयावहेण : पोमाइउ पुत्तु पिघामहेण पई मुरवि चित्ते कहो आरहडि विण्णाणु विढत्तणु चारहडि ........... घणु अवरु लेवि सर पट्टविय । जउहिट्ठिल-वले वहु णिविय ........ हय गय णर णरवइ पवर-रह धय-छत्त-दंड-चामर-णिवह Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिङ ८ गयणंगणु छाइउ जाय णिसि दीसइ ण दिवायरु ण-विय दिसि ण धणंजउ ण धणु ण सर-णियरु ण जणद्दणु सिग्गिरि-चक्क-धरु तो लइउ चक्कु गरुडासणेण जं खंडवे दिण्णु हुवासणेण घत्ता तं करयले धरेवि दारावइ-पुर-परिपाले । जोइस-चक्कु जिह परिभमइ भमाडिउ काले ॥ ९ किउ करयले चक्कु जणद्दणेण गय भीमें धणु सिणि-णंदणेण अवरेहि-मि अवरई पहरणाई दुव्वार-महारिउ-वारणाई केसवेण दुत्तु गंडीव-धरु जइ धरेवि ण सक्कहि समरु-भरु तो ओसरु ओसरु संदणहो हउं भिडमि महा-णइ-गंदणहो असिवरेण वियारमि वच्छयलु। दस-दिसहि विहजमि कुरुव-वलु विण्णासमि विक्कमु अप्पणउं फेडमि जम्मही जगे जंपणउं गंगेय-दिवायरु अत्थमउ णारायण-चक्क-तिमिरु भमउ विण्णवइ विओयरु पणय-सिरु आएसु भडारा अस्थि चिरु घत्ता हम्मइ देव रणे एहु अट्ठमए दिणे गउ पई णउ मई. णउ पत्थे । सई मरइ सिहंडिहे हत्थें ॥ [१०] गंगेएं पभणिउ महुमहणु जरसंघहो कुरुवइ आणकर वड्डारउ अंतरु सुर-गरह जइ तुहुँ जिउ तो मई लदु जउ पडि-किंकरेण सहूं कवणु रणु . . हडं तासु पियामहु भिच्चयरु समसीसी का महु किंकरहं .. जइ हउं जिउ तो वहु अयसु तउ ४ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चालीसमो संधि एवड्डु कोउ जइ लइउ पई तो दोमइ-देहाणज्जुणेण जइयहुं जे महाहउ आढविउ अट्ठारह दिवस णिराउहेण तो पहरु पहरु मुए चक्कु सई णारायणु पभणिउ अज्जुणेण तइयतुं जे देव तुहुं विण्णविउ जोएवउ रण-मुहे अणुरुहेण धत्ता एस चवंतएण करे धरेवि सउरि परिवत्तियउ । धीरउ होहि छुडु कहिं जाइ देव महु खत्तियउ ॥ ९ ४ तो एम भणेवि वद्धामरिसु रण-भर-धुर-धोरिउ दुद्धरिसु . उत्थरिउ सरेहिं गंडीव-धर णं धारासारेहि अवुहरु घणु वहइ अलाय-रहग-छवि संघाणु ण दीसइ मोक्खु ण-वि णिसुणिज्जइ जलयर-घोसु पर जले थले णहै दिसि-वहे भरिय सर सारोहे अणारोहे वि दुरए सुण्णासणे सासवारे तुरए रहे रहिए रहौंग-धुरग्गे धए सिरे उरे करे चरणे वम्मे कवए गंगेउ ण दीसइ ण-वि य रहु । ण दिवायरुण-वि महि ण-वि य णहु णर-सर-वियणाउरु भग्ग-मणु _अप्पंपरिहुवइ वइरि-गणु धत्ता कहिं संतण-तणउ कहिं कुरुवइ कहिं कुरु-साहणु । कुद्ध उ जाहं रणे णरु सेय-तुर गम-वाहणु ॥ [१२] पप्फुल्लिय-जंपण-कंजरण परिपूरिउ संखु धपंजएण उप्पण्णु कोहु दुज्जोहणहो रक्स्वहो गंगेउ पत्थु हणहो 'धाइउ दूसासणु सल्लु वलु सउवलु विहवल्लु अपमेय-वलु भूरीसउ गुरु-सुउ दोणु किउ एक्कल्लउ अज्जुणु वहु-वरिउ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ वेढिज्जइ उव्वेढिज्जइ- विण उ भज्जइ पर-वलु भंजइ-वि : चउ-पासिउ विंझइ विधइ-वि धणु भमइ सरासणि संघइ-वि . पउरंदरि-वाणेहि सव्व. जिय · हरिण व सीहेण णिरत्थ किय । णिप्पहरण स-व्वण भग्ग भड - णउ गाय कहिं गय हस्थि-हड धत्ता भग्गई णिय वलई अस्थमिउ दिवायरु णहयले । णर-णारायणह जसु भमइ सई भू-मंडले ॥ ९. * इय रिट्टणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए चालीसभी सग्गो ।। Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कचालीसमो संधि रण-रामालिंगण-मण दिवसे चउत्थए सरहसइ दणु-दप्पहरण-पहरण-वीयई । भिडियई पंडव-कुरुवाणीयई ॥ १ पुच्छिउ सेणिरण सो मुणिवरु एम देव गउ तइयउ वासरु कहि जं दिवसे चउत्थए होसइ तं णिसुणेवि महारिसि घोसइ णिसि पडिवण्ण णियत्तई सेण्णई अरुणुग्गमे कुरुखेत्तु पवण्णई भिडियइं समरिसई समर गणे रउ णिव्वडिउ चडिउ गयणंगणे जायव-जरसांधायाणीय रय-रक्वसेण धसेवि णं पीयई रवि-मंडल-अब्भतरे छुद्धउ गहण-काले णं गहेण णिरुद्धउ कवणु पएसु तेण णउ ढक्किउलोयावहि लंघणह' ण सकिउ पडिणियत्त पडिाविय-रिट्टउ तेण णाई रुहिर-णइ पइट्ठउ धत्ता : तहिं तेहए संगाम-मुहे दुण्णिवार-वर-वइरि-पुरंजय । स-सरई लेवि सरासणइं भिडिय वे-वि गंगेय-धणंजय ॥ [२] तहिं अवसरे भाणुवहे कंते. संतण-तणयहो रक्ख करते ताडि पंडु-पुत्त छहि वाणेहि... रुप्पिय-पुखेहिं णाय-पवाणेहिं छिण्णु वलुद्रेण .. सेयासे णउ जाणिय गय कवेणं पासे भूरीसवेण सत्त सर पेसिय ते-वि धणंजएण णीसेसिय ९ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० महाहिवेण महा-गय मुक्की कोंति-सुरण छिण्ण स-वि एंती सत्ति पियामहेण आम्मेल्लिय छिण्ण्णई सव्वाउहहूं णरिंदहं एक्कु घणंजउ रिउ वहुय हरिणई हरिणाहिवहो जिह एम जाम पत्रियंभइ अज्जुणु वेटिङ एक्कु दसहि सामंतेहि दस - वि महा-रह दस-वि घणुदूर दसह - मि दस सोवणई छत्तई - दसह - मि दस रसति वाइतई दसह - मि दस - वि महा-धय ताडिय -दसह - मि दस सारहि-वि णिवाइय दसह - मि खंडियाई रह चक्कई दसह-भि दस छिण्णई सिरई माणस सरवरे पइसरेवि हि ताम धणुद्धरेण मण-गमणें मरु कयंत दंतंतरे दुमयहो णंदणु वलिउ स-मच्छरु भिडिय वे विणं जिण-मयरद्धय रिट्टणेमिचरिउ णं सोदामणि ठाणहो चुक्की णं खल - दुम्मइ दुक्खई दिती खंडव - डामरेण णित्तेल्लिय नाई विसाणई गयई गइंदह धत्ता करव-संढतो व रणे रु भइ । दूरवरेण वि ढोउ ण लब्भइ ॥ ९ [३] ताम तिगत्तएहि घट्टज्जुणु चउ- दिसु हण-हण-कार करते ह दस-वि देव दाणवह-त्रि दुद्धर दसह मिं दस चामरई महतई - दसह - मि दस चिधाई विचित दसह - मि दस स-जीव धणु पाडिय दसह - मि पवर तुरंरंगम घाइय दसह - मि हयई कवय - सीसक्कइं घन्ता कुंडल-मउड- पट्ट- पजलंतई । हंसे हवई ( 2 ) णाई सयवत्तई || [ 8 ] थाहि थाहि हक्कारिउ दमणे कहिँ जालंधर हणेवि पयहहि णं अवलोयण-स - समए सणिच्छरु गंधवाह-धुय-धवल-महा-घय ४ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - एक्क चालीसमो संधि - दोमइ-भायरेण तुरमाणें अवरें किंकर मारिय थोडा अवरें स-सरु सरासणु ताडिउ सुहड-कबंधु गिरारिउ भंडइ रुंड रांगणे चितव छुड वे-वाहर होंतु महु विसम रहेण रूप्परहहो हुएण कुमारें 'विणिवाइय एयारह राणा दसहि सरेहि विद्धु घट्ठज्जुणु भीम भुवंगमोत्रम - कार हिं पाडिउ आयबत्तु धउ घणुहरु 'घाइड सल्ल-सूणु असि करयलु लइय लउडि घट्टज्जुण-वीरें विसम-रह जुत्तें मत्थर पहउ चूरिंउ. सिरु स- सिरावरणु 3. गयासणिए ताम महाहवे अणिहय-मल्लें - सुउ मदु तणउ हणेवि कहिं गम्मइ एम भणेवि तिहि सरेहिं समाहउ चेयण लहेवि सरासणु ताडिउ छिण्णु महा-घउ एक्के वाणें अवरें सारहि अवरें घोडा अवरें सिरु महि-मंडले पाडिउ मुट्ठि - मोक्खु संघाणु ण छंडइ [4] हक्कारिउ महाहिव पुत्ते केसरि-पोय-परक्कम सारें थाहि थाहि कहि जाहि अयाणा तेण-वि सज्जीकरेवि धणुग्गुणु पंचाहिय-सत्तरि- गाराएहि सारहि रहु रहंगु हय चामरु चम्म- रयण- छाइय-वच्छत्थलु अविरल - पुल उम्भिण्ण- सरीरें धत्ता धत्ता जाउ सीसु असमाणिय- कज्जउ । अणु-वि तइयउ हियउ सहेज्जउ ।। ९ ८१ दुमय- सुरण सिह डिहे भाएं | गिरिवर-सिहरु णाई णिग्धाएं ॥ ९ [६] जण सेणि हक्कारिउ सल्लें विहिं समरंगणे एक्कु णिहम्मइ घट्टज्जुणु मुच्छाणुस गर र्ण मद्दाहिव-हियवउ पाडिउ ८ ४ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ रिट्ठणेमिचरिउ तहिं वग्गं ते दारुणे संगरे लहु अहिवण्णु परिहिउ अंतरे तिहिं मग्गणेहिं विद्ध मद्दाहिउ ताव पधाइउ कुरुव-णराहिउ दूसासण-समाण दस राणा सल्लहो रक्ख करेवि पहाणा अंतरे पइसारिय दस मलहर सर-धारेहि वरिसंत-व जलहर ८ ताम विओयरेण ते रुद्धा सीहे हरिण-व संसए छुद्धा घत्ता णर-णंदणु पुठिहिं करेवि भिडिउ भीमु दसह-मि सामंतह । णावइ मज्झे परिभमइ मंदर स्वीर-समुदावत्तह ।। १० [] तिहिं दूसासणेण तहिं अवसरे दुज्जोहणेण चउहिं थणंतरे हउ दुमुहेण णवहिं णाराएहि पलय-जलण-जाला-राच्छाएहि ताण-वि तेण वाण णीसेसिय पंचवीस एक्केक्कहो पेसिय जमलेहिं ताम सल्लु आढत्तउ णं विहिं करेहिं महाकरि मत्तउ ४ लउडि-करहं एत्तहे-वि सुधीमहं रणु पारंभिउ कुरुवइ-भीमहं तो जरसंधे कोव-पलित्ते दुज्जोहण-परिरक्ख-णिमित्तें मागहु णाम णराहिउ चोइउ जमेण पयंडु दंडु णं ढोइड धत्ता सत्तहिं सरहिं णराहिवेहिं मत्त-गइंदेहि, दसहि सहासेहिं । धाइउ पाउसु कालु जिह भीमहो उत्थरंतु चउ-पासेहिं ॥ ८ [८] वलिउ विओयरु मत्त-गइंदहं णं खय-मारुउ जलहर-विंदहं णं संकंदणु गिरि-संधायहं खगवइ आसीविस-णायहं के-वि गयासणि घाएहिं घाइय के-वि अण्णण्ण-पहेण पघाइय . .. के-वि कयंत-महापुरे पाविय के-वि विहंगम जिह उडडाविय Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कचालीसमो संधि x के-वि स-कुंत-तोमर.णाराएहिं पलय-जलण-जाला-सच्छाएहिं फेडिय गिरि-व सुराउह-धाएहिं x के-वि गइंद गइंदेहिं आहय ण णिवडिय उप्पाय-वलाहय के-वि अराइ-णिवारण-भीमहो। सिरु धुणति ढुक्कंति ण भीमहो ८ दस-वि सहास एम विद्वंसिय तासिय पीसिय घसिय विणासिय धत्ता ताम सुहद्दा-णदणेण मागहु पिहिउ महा-सर-जालें । तिक्ख-खुरुप्पें खुडिउ सिरु आरणालु सरे णाई मराले ॥१० दुज्जोहणेण अवरु वलु चोइड तमिस-कसाएं जमेण-व जोइउ जो जो ढुक्कइ तहो तहो पावइ कुछउ मयहं मयाहिउ णावइ लउडि-पहारें णरवर-चक्कई तिमि जिह मीण महण्णवे भक्खइ जमल-जुहिट्ठिल-दोम-णदण सिहि-सिहंडि-अहिमण्णु-ससंदण । भीमहो दस पय-रक्ख परिट्ठिय कुरु-कुल-पलय-णिमित्तु समुट्ठिय ४ जउ जउ भीमसेणु परिसक्कइ तउ तउ पर-वले को-वि ण थक्कइ ताम पियामहेण हक्कारिउ वलु वलु तुहुं कहिं जाहि अ-मारिउ विण्णि-वि भिडिय महारउ उद्विउ सच्चइ अंतरे ताम परिट्ठिउ पत्ता दसहिं सरेहिं पियामहेण ...णवहिं अलंबुसेण उरे ताडिउ । णवहिं विद्ध भूरीसवेण तो-वि ण तासु मडप्फरु साडिउ ॥ ९ .. [१०] सच्चइ पंडवेहि परिवारिउ भीमें कुरुव-राउ हक्कारिउ... वलु खल खुद पिसुण कहिं गम्मइ पिडु ण होइ जं कवडे रम्मइ विसु ण होइ ज भीमहो दिज्जइ घरु ण होइ जं सिहि लाइज्जइ णउ पंचालि वाल कड्ढेवा एवहिं पाण परोप्परु लेवा ४ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .८४ रिटुणेमिचरिउ कुरुव-णराहिउ वलिउ स-मच्छरु मीणे परिट्ठिउ णाई सणिच्छरु । विण्णि-वि स-सर-सरासण-हत्था विण्णि-वि रण भव धरे वि समत्था विण्णि-वि दिहि-कर णियय-कुडुवहं विष्णि-वि पिय भाणुवइ-हिडिंबह विण्णि-वि पुत्त कोंति-गंधारिहि वे-वि पसंसिय सुरवर-णारिहिं ८ घत्ता वे-वि पंडु.धयरट्ठ-सुय वे-वि घुडुक्कय-लक्खण-पाला । सर-धारायर-दुब्बिसह णं थिय पाउस कालुण्हाला ॥ [११] तो धयरट्ठ-जेट्ठ-दायाएं णवहिं सरेहिं विद्ध कुरु-राएं दसहि विओयरेण दुजोहणु एम महंतु जाउ आओहणु छिण्णु सरासणु कउरव-णाहहो आजाणुव-पलंव-वर-वाहहो फणि-लंछणेण अवरु घणु लेप्पिणु विद्ध धणंजय-जेठु धरेप्पिणु ४ तणु तणु-ताणु वाणु गउ भिंदेवि महिहे पइठ्ठ सुठ्ठ अहि छिदेवि तेण भीमु घुम्माविर घाएं णं पायव-फलोहु दुव्वाएं लइ लद्धो सि मित्त कहिं गम्मइ एउ अवसरु जहिं वइरि णिहम्मइ एम भणंतु सत्तु-वल्लु धावइ णर-सुउ ताम ढुक्कु जमु णावइ ८ धत्ता तेण सरेहिं अराइ-वलु - लीहा-बद्ध धरिज्जइ दूरे । दूसह-किरण-भयंकरेण तिमिरु णाई ओसारिउ सूरे ॥ ९ [१२] चेयण-भाउ लहेवि सु-धीमें ओसारिय किव-कुरव-जयद्दह धाइय कुंति-सुयहो रणे धोरहो सयल.वि हेम-सरासग-धारा , पंचवीस सर पेसिय भीमें .. गंधारी-सुय ताम चउद्दह मत्त करि-व केसारेहे किसोरहो सयल-वि पणइ-मणोरह-गारा ४ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९क्कचालीसमो संधि सयल-वि रूवें वम्मह-जेहा सयल-वि मणिमएहिं सीसक्केहि सयल-वि चिंघेहि वहु-विह-वण्णेहिं सयल-वि णं खय-काले चोइय सयल.वि कवयालंकिय-देहा सयल-वि कणयमरहिं रह-चक्केहि आयव-वारणेहिं सोवण्णेहिं सयल-वि भीम-कयंतहो ढोइय ८ धत्ता ९. सयल-वि पंडुहे गंदणेण तिक्ख-खुरुप्पेहिं घाइय । पेक्खतहो तहो दुज्जोहणहो पेयाहिव-पुर-पंथे लाइय ॥ [१३] चोइउ ताम दंति भयदत्ते णं णव-जलहरु वासारत्ते णं गिरि मंदरु सव्व-सुरेसे णं तम-पुजु ढुक्कु गय-वेसे गुलुगुलंतु गज्जंतु पधाइउ धम्मु सुआणुएण सर-छाइउ पज्जोइसेण थणंतरे साडिउ मुच्छा-विहलु विओयरु पाडिउ छुडु छुडु चेयण-भावहो ढुक्कउ अंतराले थिउ ताम घुडुक्कउ विहि-वसेण रणे मरणहो चुक्कउ + + + माया-गयवर ताम विणिम्मिय जे मय-वाहिणि-तोएं तिम्मिय अणु पुंडरीउ अइरावणु संख-कुंद-पउमप्पह-वाहणु भइमसेणि सई तेहिं गइंदेहि दिटु कयंतु व णरवर-विदेहि धत्ता अहिमुहु माया-गयवरहो पेल्लिउ वारणिंदु भययत्ते । दोण-पियामह-सल्ल-सल अंतराले थिय ताम पयत्ते ॥ ८ १० एम जाम जुझंत रणंगणे रवि अत्थमिउ ताम गयणंगणे पसरु पवड्ढिउ जामिणि-तिमिरहो वलई पयट्टई णिय-णिय-सिमिरहो गउ अत्याणे परिट्ठिउ राणउणिय-भायर-विओय-विदाणउ भणइ भडारा पेक्खु पियामह देव-देव देविंद समप्पह Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमि चरिउ कोउहल्लु कि अत्थि ण तुम्हहं वइरिहिं विजउ पराजउ अम्हहं संतण-तणुरुहेण बोल्लिज्जइ आएहि वयणेहि हासउ दिज्जइ माया-भायर-णंदणे माहवे पंडव सयइं जिणंति महाहवे जणणि-सहोयर-सुए तित्थंकरे दुजय पंडु-पुत्त सइ संगरे ८ सच्चइ कामपालु जहिं पज्जुणु मच्छु सिहं डि दुमउ धज्जुणु धत्ता आए महाहवे दुबिसह होंति पयंड-कंड-कोयंडेहिौं । उत्थरंति णव जलय जिह जिणिय केण सयं भुव-दंडेहिं ॥ १० इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए इकतालीसमो सग्गो ॥ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बायालीसमो संधि वाइयइं विचित्त-वाइत्तई गहियाउहई स-कलयलई । पंचमए दिवसे आभिट्टई विणि-वि पंडव-कुरु-वलई [१] परमेसरु णिम्मल-गुण-विहूइ सेणिएण पुच्छिउ इंदभूइ . गउ दिवसु चउत्थउ एवं देव पंचमए भिडेसइ कवणु केवं तं णिसुणेवि मुणि-जण-मणहरेण सेणियहो कहि जइ गणहरेण मेलवेवि चउव्विहु वल-समूह विरइज्जइ दोणे मयर-वूहु जमकरण-भयंकर दुण्णिरिक्खु धय-छत्त-पडंत-दियंतरिक्खु एत्तहे-वि दिण्ण मइ अजुणेण किउ सेण-वूहु धट्ठज्जुणेण हय-पडह-मेरि-दडि-काहलाई पडिलग्गई पंडव कुरु-वलाई गंधव-पुरोवम-रहवराई णव-जलहर-विभम-गयवराई धत्ता वलग्ग-तुरंग-तरंगई गह णक्खत्त-समाउहई। णं जगु सयरायरु खंतेण काले कियई विग्णि मुहई ॥ ९ . [२] रउ उग्गउ हरि-खुर-भिज्जमाणु चलणाहउ को व ण मुवइ थाणु धुय-अधुय-धुयाधुय-अवयवीसे. अ.कुलीणउ को व ण चडइ सीसे पुणु करिवर-कुंभत्थलेहि थाइ लक्खिज्जइ सीह-किसोरु णाई ... धय-चामर-उत्तें चडिउ रेणु . रह-वसहहो णं रोमंथ-फेणु ४ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ रिट्ठणेमिचरिउ तहिं तेहए रण-रए अइ-रउद्दे भड संचरंति मीण-व समुद्दे पहरंति परोप्परु बद्ध-कोह जा उट्ठिय सोणिय-पाणि-ओह णिवडियइ सिरई सुह डहं हयाइं णं कमलिणि-णालहं पंकयाई अण्णेत्तहे णिवडिय वाहु-दंड णं भीम भुवंगम किय दु-खंड ८ घत्ता णचइ कबंधु परितुट्ठ जाउ दुवोल्लउँ कहि-मि सिरु । वाहउ पहरंति रणंगणे छुडु छुडु हियवउ होउ थिरु ॥ ९ (३) रण-भूमिहि रुहिर-जलई ण मंति कर-कम-कवंध कुणई व तरंति रह-चक्कई ईसउ जुय-सराई धय-चि धइ छत्तई चामराई तणु-ताणई जाणई वारणाई सीसई सीसक्कई पहरणाई रउ पसमिउ पसरिउ सोणिओहु उप्पण्णु महण्णउ दिण्ण-सोहु धय-छत्त-सिहर-संठिय-विहंग रुहिरई पियंति परिओसियंग तहिं काले मइंदु व हरिण-जूहु पइसरइ विओयर मयर-वूहु चूरतु वलाई अणिट्ठियाइ सिर-पक्ख-पुट्ठ-कंठट्टियाई वाहिय-सवडम्मह-संदणेण हक्कारिउ गंगा-णंदणेण घत्ता कहिं जाहि भीम लइ पहरणु वलु विष्णासहि एक्कु खणु । पेक्खंतु देव कुरु-पंडव पोत्त-पियामह होउ रणु ॥ ८ ९ गंगेय-विओयर भिडिय वे-वि दडि-काहल-संख-मुइंग देवि पट्टविय परोप्परु णवर वाण विज्जुक्क-जलण-जाला-समाण संवट्टोरु उक्काया सलाय(१) आसीविस-विसहर-विसम-काय वावल्ल भल्ल ससि-खंड रूव कण्णय खुरुप्प णाराय सूव . Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बायालीसमो संधि सूई-वियाढ दुईसणीय वइहत्यिय णालिय अंजणीय वर तीरिय तोमर वरच्छदंत अवर-वि परिपेसिय थरहरंत तेहर पडिवण्णए समर-काले थिउ स-धणु धणंजउ अंतराले सर-सएण समाहउ गंग-पुत्त गुरु कुरुव-परिंदें एम वुत्त रिउ वूह-वारु विद्दलेवि आय तुहु काई ण पहरहि अक्खु ताय घत्ता तो वुच्चइ दोगायरिएण हउं इंदहो बिमाणु मिलमि । पर अज्जुणु धरेवि ण सक्कमि भीमु खणंतर पडिखलमि ।। १० गउ एम भणेवि णिवद्ध-तोगु किर भीमहो भिडइण भिडइ दोणु तहिं काले अणुत्तम-संदणेण हक्कारिउ माहवि-णंदणेण वलु वलु अवहेरि करेवि कीसु तुहु गुरु-गुरु हउं तउ सीस-सीसु णउ पई लग्जावमि कहिउ तुझु कुरु पंडव सुर पेक्खंतु जुझु सो एम चवंतु महत्तरेण वाहुवह मज्झे ताडिउ सरेण मुच्छा -विहलंघलिहूउ जाम मदाहिब-गुरु-गंगेय ताम तें भीमें धरिय समच्छरेण णं तिण्णि काल संवच्छरेण तेहि-मि समकंडिउ पंडु-पुत्त आरोडिउ करिहिं व सीहु सुत्त पत्ता पंचाली-सुहद्दा-तणएहि छहि-मि णिरुद्धा तिणि जण । मध-रोहिणि-उत्तरा-रिक्खहुँ णं गयउरिणितट्ठ(?) घण ॥ अण्णेत्तहे पाडेवि वलहो खंडि अवहेरि करेवि गउ सरिय-सूणु हक्कारिउ दोणे दुमय-पुत्त तो कालकेय-तव-तालु-मारि गंगेयहो अहिमुहु थिउ सिहडि णं केसरि-दंसणे ल्हसिउ थूणु वलु वलु गुरु जइ रण-वसण-भुत्तु थिउ अंतरेण गंडीव-धारि ४ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९० ग्?िणेमिचरिउ ७ ८ गंगेउ वलिउ धणु स-सरु लेवि पंडव-संतण आभिट्ट वे-वि रणु जाउ भयंकर दुण्णिरिक्खु सर-मंडव-मंडिय-अंतरिक्खु सोडीरह सिरई समुच्छलंति णं फलई ताल-वितह पडंति धत्ता कुरु-पंडव-बलई विभिण्णई वांणेहिं पत्थ-पियामहेहिं । रण-भूमि मुएवि पणट्टइं दिस-विदिसिहं पह-उप्पहेहिं ॥ [७] रणु धोरु जाउ पुब्बण्ह-काले थिउ विहि-मि विओयह अंतराले आभिट्ट पियामह-भीमसेण पोमाइय सकें स-रहसेण स-कलिंगु स-साहणु कुरुव-राउ गंगेयहो रक्खणे मित्तु आउ अणवरय-रइय-सर-मंडवेहि भीमु-वि परिवारिउ पडवेहि तहिं काले किरीडि कइंद-केउ पडिवारउ पङि-संगाम हेउ विप्फारिय-धणु उद्धसिय-गत्त मुह-पवणाऊरिय-देवयत्त णिय-सीह-णाय-वहिरिय-णहद्ध तोणीरालंकिय-पच्छिमद्ध आवीलिय-गोहंगुलिय-ताणु सय-सहसक्खोहणि-णिसिय वाणु धत्ता सीमंतेवि सयलु-त्रि साहणु तहो कोमार-महा-वयहो । गंगेयहो भिडिउ. धणंजउ जेम गइंदु महागयहो ॥ . .. [८] रणु जाउ पियाभह-अज्जुणाह एत्तहे-वि दोण-धज्जुणाह एत्तहे-वि विओयर-सिंधवाह सहएव-विसल्लह जय-मणाह एत्तहे-वि सच्च-भूरीवाह एत्तहे-वि दुमय-दोणायणाह एत्तहे-वि पचोइय-संदणाहं भाणुमइ-सुहद्दा-णंदणाह' 6. 7 b-J, मयगल मुत्ताहल विक्खरंति ८ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायालीसमो संधि एत्तहे-वि विहि-मि किंव-चेइवाह एत्तहे-वि पधाइय अमरिसेण एत्तहे-वि अलंदुस-भीमसेणि आए-वि अवर-वि अभिट्ट एम एत्तहे-वि तव-सुय-मद्दाहिवाह पंचालि-सहोयर-चित्तसेण जो सूरपुरारोहण-णिसेणि मुक्कंकुस मत्त गइंद जेम ८ धत्ता रण-बहु-परिणयण-णिमित्तण णं सिद्धि-समागम-मोहेण जायइं जुज्झई भीसण । लग्गाई सव्वई सासणई ॥ ९ तहिं काले वलु रु जुज्झ-कामु चउदसेहिं सहासेहिं सउणि माभु पंडव-सेणामुहे भिडिउ गंपि जं आइउ घाइउ तेण तं पि लल्लक्क-महाहउ जाउ जाम मज्झण्णहो दिणमणि दुक्कु ताम स-तुरंगम एहविय महा-गईद वीसमिय खणंतरु णर-वरिंद ४ पारध्दु पडीवउ संपहारु रउ उट्ठिउ जाव तमंधयारु अहिमण्णु-घुडुक्कय-चेइयाण सइणेएं सहुं धल्लंति वाण गय-साहण भिडिय महा-रउद्द णं मच्छवयारि-वि वर-समुद्द सरि-सुयहो सिहंडि-विराड वे-वि अवरह-मि अवर पडिलग्ग के-वि ८ पत्ता थिउ अग्गए मच्छु सिहंडिहिं धाइउ भीमु पियामहहो । तिहिं सरेहिं विद्ध गंगेएण कह वि ण पडिउ महारहहो ॥ ९ [१०] वण-वियंण-विरोहिउ भीमसेणु णं पडिगया-गंधे वर-करेणु परिपेसिय सुरसरि-सुयहो सत्ति णं जगहो पधाइय काल-रत्ति तिल-तिल्ल-धोय-कलधोय-दंड ... सु तरंगिणि-तणएं किय-दुखंड अवरेण सरेण सुवण्ण-पट्ठि दोहाइय पंडव चाव-लट्ठि Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२ रिट्ठणेमिचरिउ. तहिं उभय-भीभ-संगाम-काले सच्चइ सुपरिष्ट्रिउ अंतराले सर-धोरणि मुक्क पियामहेण हय घाइय सारहि णिहय तेण दस-सरेहिं समाहउ गंग-पुत्तु सिणिणंदणु मच्छाहिवेण वुत्त । तेण-वि तिहिं ताडिउ सायएहिं जमदंड-परिह-सप्पाहरहि धत्ता किउ विरहु विराडु रणंगणे अज्जुणु ताम समावडिउ । पणवेप्पिणु गुरु गंगेयह आसत्थामहो अब्मिडिउ ॥ ९ - [११] वीभत्थु पलंव-महा-भुएण छहिं सरेहिं समाहउ गुरु-सुएण घणु तहो-वि छिण्णु कइ-केयणेण लहु अवरु लेवि दोणायणेण णाराय णउइ-वि पेसिय णरासु सत्तरि णारायण-रहवरासु सेयासें तासु-वि कवउ छिण्णु परिरक्खिउ कह-वि ण हियउ भिण्णु ४ गुरु-णंदणु वंभणु भणेवि चत्तु दुज्जोहणु भीमहो ताम पत्त दस-दसहिं णिसिद्ध सिला-सिएहिं । वर-रुप्पिय-पुंस्व-विहूसिएहिं अवरुप्परु विद्ध सरेहिं तेहिं सामरिसेहि पंडव-कउरवेहि कुरु-कवय-मह-मणि-तेयवंतु उरे सर परिवेढिउ विप्फुरंतु ८ रेहइ रयणुज्जल-विग्गहेहि णं दिणमणि समउ महागहेहिं धत्ता दुज्जोहण-भीम.पहारेहि वलई वे-वि कंपावियई । णउ जाणहूं कवणु जिणेसइ संसय-भावे चडावियई ॥ १० [१२] एत्तहे-वि स-संदण सावलेव स-सरासण स-सरय ण किय-खेव अहिमण्णुहो घाइय अमरिसेण पुरुमित्त-पियामह-चित्तसेण णर-सुरण लेवि धणु कणय-पिठ्ठ दस सरेहिं समाहउ धायरटु सत्तहिं पुरुमित्त सिलीमुहेहिं सत्तरिहिं पियामहु अहिमुहेहिं ५ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बायालीसमो संधि ते तिष्णि-वि ताडिय जेत्तिरहिं पडिरुद्ध तिहि-मि सो तेत्तिरहिं तणु-ताणु करेप्पिणु पढम-रेणु कह-कह-वि ण मारिउ चित्तसेणु आढत्तु खयत्ते तेहिं बालु परिभमइ तो-वि णं पलय-कालु णं वण-दवग्गि रुक्खइं डहंतु लक्खणेण पडिच्छिउ वावरंतु ८ धत्ता दुज्जोहण-अज्जुण-पुत्रहुं ___ जाउ महाहउ दुव्विसहु । भीयई कुरु-पंडव-सेण्णई णहे तोसविउ सुर-णवहु ॥ ९ [१३] णर-सुरण भुयंग-भयंकरेहिं कुरुणंदणु ताडिउ छहिं सरेहिं हय हय चउहि-मि अवरेण सूउ अवरेण कुमारु णिरत्थु हुउ सहस-त्ति सत्ति पट्टविय तेण स तिहाइय फग्गुण-णंदणेण तहिं कालेकिवेण दियत्तणेण ओसारिउ कहि-मि हियत्तणेण एत्तहे-वि तरंगिणि-सिणि-सुयाई अभिटु जुज्झु पहरण-भुयाडं विण्णि-वि दिवत्थई वावरंति णं पलय-पओहर उत्थरंति सच्चइहे ण लब्भइ अंतरालु धणु भमइ ण दीसइ वाण जाल |उ दिहि-मुट्टि-संघाणु थाणु थिउ सरि-सुउ णवरि अ-जुज्झमाणु ८ घत्ता तहिं अवसरे कुरुव-गरिदेण पेसिय दस सहास रहहुं । किउ छाया-भंगु असेसहु सच्चइ-सूरे रिउ-गहहु ॥ [१४] जं भाग महा-रह जायवेण हक्कारित तो भूरीसत्रेण आवडिय परोप्पर जिह गईद जिह आमिस-लुद्ध महा-मइंद सिणि सूर आणिय-मगणेहि विदु णं मलय-महागिरि अहि-समिद्ध झड सहे वे ग सक्किउ भिच्च-वग्गु विहडप्फडु णटु समग्गु लग्गु Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिटुणेमिचरिउ ८ ९ तहिं अवसरे दसहिं स.संदणेहिं हक्कारिउ सच्चइ-णंदणेहि वलु वलु कहिं गम्मइ सोमयत्ति लइ पहरु पहरु जइ अस्थि सत्ति तो एम भणेवि दंकिउ सरेहिं णं मेरु-महागिरि जलहरेहि आयामेवि जूव-महा-गएण सर-जालु छिण्णु णिविसद्धएण घत्ता दसह-मि दस चावई छिण्णई दसह-मि चिंधइ ताडियइं । पेक्खतहो पंडव-लोयहो दसह-मि सीसई पाडियई ॥ [१५] जं सिरई कुमारह' पाडियाई तल-तरुवर-फलई व साडियाई ता कणय-महाहिव केयणेण अगणिय-मग्गण-वण-वेयणेण जायवेण जणदण-भायरेण भूरीसउ विगु अणायरेण . घउ घणुहरु छिण्णउ आयवत्त स.तुरंगमु सारहि धरणि पत्त सच्चइ-वि महा-सर-जज्जरंगु णीसंदणु णिद्धणु णित्तुरंगु असि-चम्माउहु धाइउ पसत्थु भूरीसवो वि फर-खग्ग-हत्थु दप्पुब्भड सुहड भिडंति जाम दुज्जोहण-भीमेहिं धरिय ताम णिय-रहेहिं चडाविय पहर-विहुर वण-रुहिरुग्गारारुणिय-चिहुर धत्ता एत्तहे-वि पियामह-वाणेहि पंडव-साहणु जज्जरिउ । जहिं विण्णि-वि णरणारायण तहिं वियणाउरु पइसरिउ ॥ ४ ९ कुरु-कलयले विरसिए समर तूरे गंडीव-सरासण-पहरणेण विमलुज्जल-मुह-मयलंछणेण गय-तुरयाणीयई परिहरंतु अत्थइरि-सिहरे ढुक्कंते सूरे + + रहु वाहिउ वारण-लंछणेण रह-साहणे णिवडिउ जिह कयंतु ४ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बायालीसमो संधि दोहाइय कुवर णिहय सूय सोवण्ण-रहंगई कप्पियाई केवि रहिय.रहिय णिय-किंकरहिं घडियंतरे संझागमण-काले छत्तइ धयई दुःखंड इय कुंडल व धरहे समप्पियाई के-वि हय के-वि गय सहुँ रहवरे हिं पइसरेवि महंतए भड-वमाले ८ धत्ता अज्जुणेण सई भुव-दंडेहिं पेक्खतहु हयई रणगेण पंचवीस सहसइं रहहुँ । कुरुवइ-दोण-पियामह हुँ ॥ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव.कए । पंचम-दिवस-णिउज्झे बायालीसमओ इमो सग्गो ॥ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेतालीसमो संधि काहल-कुल-कोलाहलई लग्गई छट्ठम-दिवस-मुहे गय-तुरय-वरेण्णई । कुरु-पंडव-सेप्णइं ॥ ? दुबई ४ अह सोऊण सिय-वाहण- चरियं कय-कोऊहल्लयं । तह सव्वायरेण णमिऊण जिणं मयणेक्क-मल्लयं ॥ पुच्छिउ सेणिएण परमेसरु जो तव-णाण-झाण-जोएसरु छट्टए दिवसे अक्खु जे होसइ गउतमु इंदभूइ-रिसि घोसइ रहवर-णरवर-गय-तुरयायरु धज्जुणेण वूहु किउ मायरु तहो सिरे अरिवर-पवर-पुरंजय स-वल परिट्टिय दुमय-धणंजय घट्ठज्जुण-मच्छाहिब पुट्ठिहे मदि-पुत्त थिय विण्णि-वि दिट्ठिहे गले अहिमण्णु घुडुक्कउ सच्चइ भीमसेणु वयणत्थु पवच्चइ चेइवि-चेइयाण विहिं पक्खेहिं कइकय-दोमय-तणय पय-रक्खेहि राउ स-साहणु पच्छिम-भाएं विरइउ एम दुमय-दायाएं धत्ता तं कुरु-खेत्तहो संमुहउं सरहसु संचल्लियउ । जुय-खय-काले समुद्दजलु वलु णावइ उत्थल्लियउ ॥ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेतालीसमो संघि [२] ताम मुयंग भेरि दडि झल्लरि कवुय पडह वज्जिया । रण-णव-पाउसागमे कुरुव.णराहिव-मेह गजिया ॥ णिग्गय अगणिय-गरुयाओहण दुम्मुह-दोण-दोणि-दुज्जोहण णिक्किन-किव कियवम्म धणुद्धर सल्ल-महल्ल-बल्ल-जालंधर चित्तसेण-विससेण रणुज्जय दुम्मरिसण-दूसासण दुज्जय कण्ण-विगण्ण-सुसेण-जयद्दह सोमयत्त-पुरुयत्त महारह वल्हिय-कारिससिरि-महावल भूरीसव-कलिंग-सउवल (2) उब्भिय गंधवहुद्धय-धयवड महि मल्हंति पचोइय गय-धड उहय करेवि य वियरिय हयवर वाहिय रह जिह जंगम गिरिवर घता · कुरुव-राउ कुरुखेत्त गउ सहु णिय-सामंतेहिं । . , अवलोइउ भीमज्जुणेहिं णं काल-कियंतेहिं ॥ [३] दुवई रहवर-रहवराई णर-णरवइ तुरयाओह-वरेणई । वूहइ णेवि देवि रण-तूरइ भिडियई वे-वि सेण्णइ ॥ भिडियई विण्णि-वि समर-महाहवे रणवहु-गाढालिंगण-आहवे हड्ड-रुंड-विच्छड्ड-णिरंतरे रुहिर-तरंगिणि-कद्दम-दुत्तरे गय-मय-णइ-णिरुद्ध-रहवर-गणे सोणिय-धारारुणिय-णहंगणे रह-रहंग-भर-भारिब-विसहरे करि-कण्णाणिल-चालिय महिहरे छत्त-संड-परिपिहिय-रवि-प्पह पहरण-जलण-झुक्किय-णव-गह सिव-कबंध-णच्चण-पेक्खणहरु . धीर-धुरंधरु कच्छि (?) रणभरु । १ ४ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९८ रिट्ठणेमिचरिउ ८ अहिणव-सोणिय-पाणिय-जजले(?) जंवुअ-लूहि-सिवासिव-संकुले सरवर-णियर-भरिय-भुवणोयरे अगणिय-एक्कमेक्क-एक्कोयरे ॥ घत्ता ताम्ब स-पहरणु पवर-रहु हय-तूरु स-कलयलु । लग्गु विओयरु कुरु-बवले णं विझे दावाणलु ॥ दुवई भिंदेवि वूह-वारु पइसरइ विओयरु जाम चप्पेण । ताम विरुद्धएण हक्कारिउ आसत्थाम-वप्पेणं ॥ वलु वलु पंडु-पुत्त हउ एत्तहे ___ काले चोइउ पइसहि केत्तहे एवं भणेवि णवहिं णाराएहिं ताडिउ वज्ज-दंडु सच्छाएहिं तेण-वि सारहि दोणहो केरउ णिहउ तुरंग-चउद्धय-पेरउ किव-गंगेय ताम्ब थिय अंतरे भीमहो मिलिउ पत्थु तहिं अंतरे विहि-मि तेहिं ते वे-वि परज्जिय गय हेट्ठामुह माण-विवज्जिय भिडिउ धणजउ णरवर-विंदहु वलिउ विओयरु मत्त-ग इंदडे ताम कुमार पधाइय अहिमुह दूसासण-दुम्मुह-मरिसण-दुह घत्ता विजय-विगण्ण-विविस्सइहिं पेसिय सर-जालेहि । वेढिउ आएहिं अवरेहि-मि . जिह सीहु सियालेहि ॥ ४ ८ दुवई रवि व महा धणेहिं केसरि-व करिहिं दणुहिं व पुरंदहो । वेढिउ कुरु-कुमारु वीरेहिं रणंगणे तिह विओयरो ॥ १ वंघहो धरहो लेहो लहु धावहो । वलि बोक्कउउ जेम्ब सुधावहो (१) एक्कु भीभु रिउ-लक्खइं. जोएवि.. पभणइ करि कारे-वल ढोएवि .. Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेतालीसमो संधि सारहि एत्थु ताम तुहुं थक्कहि जाम्व करेमि कुमार कडवंदणु एव भणेवि आयामिय-धर- वलु णं जमु दंड-हत्थु आहिंड रहवर गयवरोह मुसुमूरिय जउ जउ पंडु पुत्त परिसक्कइ भीमें भीम भुयंगमेण गय-विस-घाणिय-घाइयउ ताम्ब सपिहिय- लोयणो सारहि अक्खु अक्खु सम्भावें सक्कायरिय समेण सुधीमें अहिणव- पष्फुल्लिय- वर-वयणहुं जइ मुउ तो घायमि अप्पाणउं उत्तर कवणु देमि किर कोंतिहे कंड-संड-गंडीव - वित्थहो उत्तर कऋणु देमि गोविंदहो भाइ विसोउ होहि वीसत्थउ इहु कुमार-वल चूरइ लग्गउ चूरिय रहंग घय तुरय घट्टज्जुण पइसरहि तुहु अरिवर-नियर ण वाहेवि सक्कहि ताम्व म चालहि एत्थहो संदणु घाइउ मरअ गयासणि-करयलु कुरव कुमार-सहासई पिंडइ वायस सिहं मणोरह पूरिय तउ तर वलु मुहु णिएवि ण सक्कइ धत्ता जो तर्हि संदट्ठउ | सो को वि ण दिट्ठउ || [६] दुबई पभणइ दुमय - सहोय । कहि वट्टइ विओयरो ॥ हउ जीवमि जीवंते भीमें उत्तर कवणु देमि किं जमलहु पेक्खमि केम जुहिट्ठिल राणउ । पंचालिहे विहलंघल होंतिहे उत्तर कवणु देमि किर पत्थहो उत्तर कवणु देमि सुहि-विंदहो जीवइ भीमु गयासणि- हत्थ उ जिद्द वंस-त्रणे पड्डु महग्गउ धत्ता भड रण जेण परसें । तेण परसें ( ? ) ॥ ९९ ४ ८ ४ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिद्वमिचरिउ [] दुवई धाइउ जण्णसेणि कारे वल-पहर-पयार-साडणं रहवर-गयवरासणं रण-कवय-पाडिय-पत्त-वाडणं ॥१ दिट्ठ भीम भड-सयई वहंतउ णं वण-दउ वण-तिणई डहंतउ तम-पडलई हणंतु णं णिसि-गिलु णं णिय-कुलई गिलंतु तिमिगिलु 'णं भंजंतु पहंजणु रुक्खइ णं खगवइ गसंतु फणि-लक्खइ एक्कहि मिलिय स-गय स-सरासण णं विण्णि-वि दुप्पवण-हुवासण णिय-रहे दुमय-सुरण चडाविउ णं अणिलेण अणलु वद्धाविउ घट्टजुणेण लक्ष्य रिउ वाणेहिं पगुणा सेस सेय-परिमाणेहिं कुरुव-णराहिवेण वलु पेसिउ दोमइ-भायरेण णीसेसिउ ४ घत्ता मोहिउ मोहणत्थु मुएवि सुर-विक्कम-सारें । णं आलिहेवि परिट्ठियउ णिप्पुरउ सिट्ठारें ॥ [८] दुबई ताम्व महा रहाह विष्फारिय-चावह वद्ध-तोणह जायं दारुणं रणं विहि-मि परोप्परु दुमय-दोणह पलय-जलग-जालोलि-समाणेहिं आयस-वयण-वेहि-वर-वाणेहिं 'सिल-सिद्धोरहिं रुपिय-पुंखेहिं कंक-गिद्ध-सुय-वरहिण-पंखेहि सायकुंभ-विदुविय-सरीरेहिं पउणेहिं दीहरेहिं पर-सीरेहि दोमइ-ताउ बेहिं तिहिं ताडि उ कह-व कह-व रहवरहो ण पाडिउ विहलंधलिकरेवि गउ तेत्तहे भीमसेण-धट्ठज्जुण जेत्तहे जेत्तहे कुरुप सेण्णु वामोहिउ उम्मोहण-सरेण उम्मोहिउ ४ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेतालीसमो संधि १०१ ताम जुहिट्ठिलेण भय वज्जिय वारह णिय सामत विसब्जिय कइकय पंच पंच दोमइ-सुय धज्जुण-सउभद्द महाभुय घत्ता वूहु रएप्पिणु दुव्विसहु केत्तहे-वि ण माइय सायर भिंदेवि मच्छु जिह वारह वि पधाइय ।। ९ दुवई वारह ते चउद्दहुद्धाइय सूइ-मुहेण वूहेणं ।। घरेवि ण सक्किय ते समत्थेण-वि कउरव-क्ल-समुहेणं ॥ १ ताव विसोएं पाविउ रहवर लउडि-हत्थु तहिं चडिउ विओयरु णं संहार-कालु कुरु-लोयहोणं दिणयर-कर-णियरु सरोयहो घाइउ जण्णसेणि सोणासहोणिरुवम-धणु-विण्णाण-णिवासहो भिडिय परोप्पर विप्फुरियाणण आमिस-लुद्ध णाई पचाणण ४ किवि-कंतेण ताम तिहिं ताडिउ घट्ठज्जुणहो सरासणु पाडिउ पच्छए पच्छाइउ सर-जाले विझु णाई णव-पाउस-काले दुमय-सुरण अवरु धणु सज्जेवि सरहस सर विमुक्क गलगजेवि मग्गण-गणु अ-गणेवि स-तोणे गमि-वाणास्णु पाडिउ दोणे ८ धत्ता ९ चउहिं सरेहिं तुरंगम सारहि अवरेक्के । थिउ अहिमण्णुहे तणए रहे णं ससि सहु अक्के ॥ [१०] दुवई सोण-तुरंगभेण दोणायरि एण सरेहिं सीरियं । णिएवि वलं चलं णिएऊण हिडिव-सुवेण धीरियं ॥ १ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ रिट्ठणेमिचरित ४ भीमें कुरुव-राउ हक्कारिउ घायरट्ट कहिं जाहि अ-मारिउ लग्गउ हउँ अप्पणए पराहवे पूरमि अज्जु पइज्ज महाहवे विस-जउहर-केसग्गह-जूयई तुम्हह दुष्परिणामीहूयई दुण्णय-दुमहो फलई अणुहुंजहो बंधु-कवंध-सयई परिपुंजहो एम भणेवि जमकरण-समाणेहिं आहय हय चउ-संखा-वाणेहिं विहिं सारहि समर गणे घइउ छहिं णाराएहि धउ दोहाइउ पाडिउ फणि चामीयर-घडियउ णाणाविह-मणि-रयणेहिं जडिउ विहिं सग्णाहु णाहु वीसद्धेहिं आमिस-वस-रस-रुहिर-पइहे हिं ८ घत्ता 0. कुरुव-राउ मुच्छावियउ कह-कह-वि ण मारिउ । किवेण चडावेवि णियय-रहे केथु-वि ओसारिउ ।। [११] दुवई ताव जयद्दहेण रहु वाहिउ जहिं णिवसइ विओयरो । कीयय-वगहिडिव-किम्मीर- जडासुर-काल-गोयरो ॥ १ जाउ महाहउ हेइ-समिद्बहु कंचण-केसरि-सूयर-चिंघहुं तहि अवसरे पसरिय-अहिमण्णहो अट्ठ कुमार भिडिय अहिमण्णहो पंचहि पंचहि सरेहि पडिच्छिय तेहि-मि मग्गण मुक्क जहिच्छिय तो णर-सुएण णियंतहो सेण्णहो चउद्दह इसु पट्ठविय विगण्णहो ४ हय हयवर सारहि विणिवाइड छिण्णु सरासणु धउ दोहाइउ अवरेहि वर-सरेहि घुम्माविउ कह व कह-व जम-णयरु ण पाविउ सत्त कुमार ताम तहो धाइय . णं दुव्वार वार संपाइय दोमइ-णंदणेण सुयधम्म दुम्मुहु वरिउ अमाणुस-गम्में ८ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेतालीसमो स घि ५० धत्ता सत्तहिं सरेहिं तुरय हय सो-वि सत्तिए भिण्णउ । दिण्ण वसुंधर देवयहो णावइ उच्छिण्णउ दुवई सुअसोमेण ताम ओसारिउ आजाणुय-वाहेहिं । दिणयर-रह-तुरंग-खगराय- पहजण-जव-सगाहेहिं ॥ दोमइ-सुयहो ताम सुय कुंतिहे पलय-पयंग-सम-प्पह-दित्तिहे आमिस-लुद्धएण जिह सेणे पाडिय चाव-लट्ठि जयसेणे सो-वि रणंगणे समर.सणीएं दुमय-सुया-सुएण धणु-वीएं दसहिं सरेहि विद्ध वच्छत्थले मुच्छा-विहलु पडिउ महि-मंडले जहिं पयंडु पंचालिहे गंदणु तहिं दुक्कण्णे वाहिउ संदणु पिहिउ सिलीमुहेहि अ-पमाणेहि अण्णाणंध णाई अण्णाणेहिं वाण-जाल त हणेवि सु-भीसणु जिण्णु दुकण्णहो तणउं सरासणु रहु जोत्तारु तुरंगम चिंघउ सीस-ताणु तणु-ताणु-वि विद्ध पत्ता थरहरंतु अवरेक्कु सरु रेवा वाहे जिह विझु वच्छत्थले लाइउ । दुकण्ण-कण्णु दोहाइउ ॥ .. [१३] ___ दुवई उडिर-कंड-मंडिय- पयंड कोयंड-वीयहो । भायर अवर अवर पडिधाइय पंच-वि तिय अणीयहो ।। १ दुम्महु सहुं दुम्मरिसणु दुज्जउ उत्तमु सत्तु सत्तु सत्तुजउ पंच-वि एक्कहो भिडिय महाहवे अमर-वर गण-जय-सिरि-लाहवे संदणएण संदाणिय-संदणे तहिं पडिवण्णए भड-कडवंदणे कइकय पंच परिट्ठिअ अंतरे णं पंचेदिय देहभंतरे Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ रिट्ठणेमिचरिउ ताम पियामहेण पहु घाइय तव-सुय-किंकर जम-प हे लाइय तोमर-सएहिं तुरंगम ताडिय चूरिय रहवर गयवर पाडिय ताम पहायरु गठ अथवणहे पंडव कउरव णिय-णिय भवणेहो के-वि देंति णिय.कतहिं चिंधई सायकुंभ-मणि रयण-सभिद्धई धत्ता के-वि छुडु जे छुड्डु कढियइं गय-मय-मल.लित्तई । दइयहि देंति सयं भुवेहि मोत्तियई विचित्तई ।। इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए तेतालीसमो इमो. सग्गो ॥ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउतालीसमो संधि पडु-पडह-रवाई किय-कलयलई स-वाहणइं । आभिट्टइं वे-वि तव-सुय-कुरुवइ-साहणई ॥ १ सेणिएण पपुच्छिउ परम-गुरु जे दड्दु जम्म-जर-मरण-पुरु गउ एम देव छठ्ठउ दिवसु अत्यइरिहे मत्थए थिउ विवसु सत्तमए दिवसे कहे केम कहिं को कासु भिडेसइ समर-मुहि अक्खइ गणहरु जं जेम थिउ गंगेएं मंडल-बूहु किउ . एत्तहे पवलेण वल्लुत्तण किउ कञ्अ-वूहु धज्जुणेण अरुणुगमे रहसुद्धाइयई णिविसे कुरुखेत्त पराइयइ हय वज्जई वढिय-कलयलई आभिट्टई विण्णि-वि कुरु-वला रउ उहिउ सेण्णई अक्कमइ पुणु पहरणग्गि पुणु रुहिर-णइ ८ धत्ता मइलियई रएण दट्टई हेइ-दवाणलेण । हविउ व्हाइयई पच्छए रुहिर-महाजलेण ॥ [२] तहिं काले परोप्परु कर-कमई विधइ विराडु तिहिं सायएहिं आभिट्ट दोण-मच्छाहिवइ दीहर-फर्णिद-दीहायरहिं Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ रिट्ठणेमि चरिउ अवरेण सरासणु ताडियउ अवरेक्के चिंधउ पाडियउ मच्छेण-वि दाविउ अवरु घणु । णव-जलहरेण णं इंदहणु तिहिं गुरु-गुरु चउ-सरेहिं हरि घउ एक्के पंचहिं पवर-धुरि अवरेकके चाव-लट्टि पहय वे-खंडई होएवि धरणि गय धणु अबरु लेवि दोणायरिउ णं पलय महा-धणु उत्थरिउ अट्टहिं सरेहि चउ तुरय हय अवरेहिं विहिं पाडिय सूय-धय ८ धत्ता पायत्थु विराडु संदणे संखहो तणए थिउ । कुरुवेहिं महियले देवेहिं कलयलु गयणे किउ ॥ ९ [३] तो संख-विराडेहि कुद्धरहिं सामरिसेहिं जय-सिरि-लुद्धरहिं एक्कहिं रहे विहि-मि परिट्टिएहिं गुरु घाइउ सरेहिं अणिट्ठिएहिं दोणायरिएण-वि संखु हउ उरु भिदेवि वसुमइ वाणु गउ वण-विणयणाउर सर-जज्जरिय णं हरिहिं विणि करि ओसरिय ४ तहिं काले वइरि-विणिवायणहो धाइउ सिहंडि दोणायणहो गुरु-सुउ तिहिं सरेहिं णिडाले हउ पगलिउ ति-गंडु णं मत्त-गउ णं मेरु ति-सिंगेहिं मंडियउ तेण-वि तहो रहवरु खंडियउ स-तुरंगमु चिंधउ पाडियउ हउ सारहि घणुहरु ताडियउ पत्ता असिवर-फर-हत्थु दुमयहो गंदणु उप्पइउ । तडि-चंदहं मज्झे णाई लहु-घणु उत्थरिउ ॥ गुरु-तणएं अमरिस-कुद्धएण सर-जाले छाइउ दुमष-सुउ केसरि-लंगूल-महा-धरण असि-घाएं छिंदइ पवर-मुउ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतालीसमो संधि १०७ खगवइ-व भुयंग-कुलई गसइ राहु-व दिणयर-किरणई असइ रवि-संदण-सण्णिह-संदणेण हय खग्ग-लट्ठि गुरु-णंदणेण अण्णेत्तहे चम्म-रयणु तडिउ णं चंद-विंदु महियले पडिउ पासाय-सम-प्पहे सु-प्पवहे सिणि-सुरण चडाविउ णियय-रहे तहिं तेहए काले समावडिउ सच्चइहे अलंवुसु अभिडिउ मायत्थई मेल्लेवि जायवहो णिसियरेण सरासणु छिण्णु तहो ८ घत्ता रयणीयर-माय हुत्थि (?) हय पउरंदरेण । उपयंते णाई णिसि णिविय दिवायरेण ।। जं सच्चइ जिणेवि ण सक्कियउ तं जाउहाणु आसंकियउ णिय-पाण लएविणु कहि-मि गउ णं केसरि णहर-पहर-हयउ तहिं काले मणोरम-रेह चडिय दुज्जोहण-धद्वज्जुण भिडिय ते सटि-पिसक्केहिं दुमय-सुउ । उरे ताडिउ कह-व ण कह-व मुउ ४ परिचेयण लहेवि कमल-करहो धणु पाडिउ कुरु-परमेसरहो घउ छिण्णु फणिंद-अलंकरिउ मणि-मोर-पडाया-परियरिउ हय हयवर सारहि विद्दविउ पहु सत्तहिं सरेहिं अहिद्दविउ असिवर-फर-करयलु घाइयउ तहिं अवसरे सउणि पराइयउ ८ धत्ता __ रहु ढोइउ तेण ते-वि चडेप्पिणु कहि-मि गय । णं चंदाइच्च गह-मुह-मेल्लिय गीढ-भय ॥ ९ दुज्जोहणे गए अमरिसे चडिउ कियवम्मु विओयरे अभिडिउ णं मत्त महा-गए मत्त गउ अवरोप्परु विहि-मि सरेहिं हउ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ रिट्ठणेमिचरिउ हदिक्कु विरुद्धे पंडवेण परिपिहिउ सिलीमुह-मंडवेण रहु खंडिउ पाडिय वर तुरय हय कवय सरासण सुय-धय ४ उप्पएवि परिटिउ विसम-रहे पहे लग्गु पलायण पउण-पहे भीमेण-वि जगडिउ कुरुव-वलु णं सीहे गयउलु मय-विहलु विंदाणुविंद मच्छर-भरिय इरमंत-कुमारहो उत्थरिय किय तेण-वि हय रह हय तुरय धण वण-वियणाउर कहि-म गय ८ धत्ता तहिं तेहए काले कुरुव-वरूहिणि-खय-करणे । जिहि रावण-राम भिडिय भइमि-भयवत्त रणे ।। मण-गमणोवाहिय-संदणेण कुरु-किंकर भीमहो गंदणेण परिपिहिउ पिसक्केहि वहु-विहेहिं पउणायय-पण्णय-सत्तिहेहि ते सव्व करेप्पिणु णिप्पसर भयवत्ते चउदह मुक्क सर सत्तरिहिं णिवारिउ णिसियरेण पुणु कुरव-णराहिव-किंकरेण ४ सो भइमसेणि हेलए जे जिउ वि-तुरंगु वि-सारहि वि-रहु किउ. पट्टविय सत्ति रयणीयरेण णं सरिय समुद्दहो महिहरेण स-वि एंति विहाविय तेण णहे. वड्ढतए तेहए समर-वहे णं काल-कयंत समावडिय . मद्दी-सुय मद्देसहो भिडिय धत्ता सारहि स-तुरंगु पाडेवि णउलु णिरत्थु किउ । जिह उड्डेवि सेणु रहे सहएवहो तणए थिउ ॥ ९ [८] स. वें सल्लिउ सल्लु. रणे णं दुमु दुव्वाएं भग्गु वणे . आसारेवि सारहि कहि-मि गउ मज्झण्णहो दिणमणि दुक्कु तउ .. Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०९ चउतालीसमो संधि कड्ढिय-कोवंड-महाउहहो तव-णंदणु भिडिउ सुआउहहो णव सर विमुक्क पिहिवीसरेण सत्तासुग कुरुवइ-किंकरेण तणु-ताणु णरिंदहो कप्परिउ सोवण्ण-महामणि-विप्फुरिउ स-कसाएं राएं तव-सुरण ताडिउ वराह-कण्णासुएण पंडवेण विसंज्जिउ वाण-गणु वण्णासा-तणयहो छिण्णु धणु घत्ता णिढविय तुरंग पाडिउ सारहि छिण्णु धणु । अबरें उरु भिण्णु गउ तहिं जेत्तहिं कुरुव-पहु ॥ [] 'एत्तहे किव-चेइयाण भिडिय अवरोप्पर सरेहि समावडिय अवरोप्पर चिंधई ताडियई अवरोप्पर छत्तइं पाडियइं अवरोप्पर छिण्णइं धणुवरइं अवरोप्वरु-वि लयई चामरई अवरोप्परु रह-जोत्तार हय अवरोप्पर पाडिय वर तुरय ४ अवरोप्परु पाडिय कणय रह अवरोप्परु पाविय सर-णिवह 'पउरुसई विहि मि परिवढियई फर लइय किवाणई कड्ढियई परिभवणुप्पवणोरग्गणेहिं अप्फोडण-खेलण-लग्गणेहिं केसारे-वर-रउरव-णी लणेहि परिभमियई करणेहिं भीसगेहिं घत्ता सम-घाएं वे-वि मुच्छ-विहलीहोवि थिय । णिय-रहेहिं थवेवि सउवल-पत्थेहिं कहि-मि णिय ॥ . ९ [१०] तो रण-रस-रहस-समोवडिय भूरीसव-घटकेउ भिडिय . सर णउ-वि विसज्जिय चेइवेण . णं भुवणहो किरण दिवायरेण Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० रिट्ठणेमिचरिउ तेण-वि सोराएं जुज्झु जिउ कह-कह-वि ण घाइउ वि-रहु किउ अहिमण्णुहे ताम विरुद्ध-मण घाइय कुमार-वर तिणि जण ४ दुम्मरिसणु चित्तसेणु पवरु अवगण्णिय रिउ-वेयण अवरु ते तिण्णि-वि तणु-ताणावरिय तिण्णि-वि कुंडलेहिं अलंकरिय तिण्णि-वि सोवण्णेहिं रहवरेहिं विज्जिज्जमाण-वर-चामरेहि तिण्णि-वि तहिं छत्तेहि पंडुरेहिं तिण्णि-वि तुरएहिं दप्पुद्धरेहि ८ धत्ता ते पत्थ-सुरण कुरुवइ-भायर वि-रह किय । णं कुसुमसरेण तिण्णि-वि लोयालोय जिय ॥ [११] किर भीमहो खंभ महा-पिसुणे ण समाहय तेण तेण सिसुणे गंगेएं ताम पडिक्स्खलिउ सरहद्द स-रोसु ताम बलिउ रणु जाउ महंत-महारहहुं दोण्ह-वि पुत्तरूय-पियामह हुं कणियार-तालवर-केयणहु दुवियत्तणु-ताणुब्भेयण तो समर-सहासेहिं दुज्जएण णिय-सारहि वुत्तु धणंजएण रहु वाहि वाहि जहिं गंग-सुउ णग्गोह-पवर-पारोह-भुउ दुज्जोहण-पेसिय-राणएहिं परिगरिउ तिगत-पहाणरहिं णिसुणेवि तं संदणु दिण्णु तहिं सउहद्द-पियामह भिडिय जहिं ८ पत्ता मण-गमण-रहेहिं उब्भिय-धएहि धणुधरेहि । सवडम्मुहु पत्थु घरिउ एंतु जालंधरेहि ॥ [१२] सारवेहि दिण्ण-वाइत्तएहि वेढिउ वीभच्छु तिगत्तरहि णं वण-दउ वणह समावडिउ णं गरुडु भुयंगह अभिडिउ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउतालीसमो संधि केसरि वर-करिहि वियंभियउ आहउ रउह पारंभियउ छिंदइ धय छत्तई चामरई सीसक्कइ कवयई घणुवरई आहरणई वन्थई सेहरई रह-रहिय-रहंगई-जुय-सरई धर-कुवर सारहि वर-तुरय कर-चरण-सिरई भुय-दंड हय कप्पियई कुंभि-कुमत्थलई सावक्खर-पक्स्वर-कंबलई णक्खत्तमाल घंटा-जुयई कर-कण्ण-दंत-गत्तइ अयई घत्ता उवयरणेहिं एहिं सव्वेहि समरु अलंकरिउ । लक्खिज्जइ णाई जमहो सुअंतहो पत्थरिउ ॥ _ [१३] तो तहि वत्तीसहि रहवरेहि गंधव्व-णयर-सुमणोहरेहि चामीयर-मंडण-मंडिरहि सुरगिरि-सिहरेहि-व हिंडिएहि णरु वेढिउ कोव-चलग्गएहि णं केसरि मत्त-महा-गएहि वत्तीस वि-सट्ठिहि सर-विहय विहुणंत-सरीरई कहि-मि गय परिवारिउ अज्जुणु राणएहि जायव-जण-पमुह-पहाणएहि. परिहरेवि जयबह-कुरुव-पहु गंगेयहो भिडिउ सिहंङि-रहु घणु पाडिउ दोमइ-भायरहो गिर जिग्गय पंडु-सुएसरहो किर पई मारेवउ गंग-सुउ समरंगणे णवर णिरत्थु हुउ ४ ८ घत्ता त णिसुणेवि सिहंडि घाइउ गंगा-गंदणहो । थिउ अग्गए सल्लु मग्गु णिरुंधेवि संदणहो ।। J. after 8 b, reads मय इंद णाणा गयघडई. Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ परिखलिउ महा-रहु णिक्किवेण तो दुमय- सुरण वि दारुणेण कुरु-वंस-नित्रद्ध-फलट्ठिलेण कीया - कुल-काल- कयंतरण थिउ चित्तसेणु सवडम्मुहउ मद्दाहिउ जिणेवि स-संदणेण णाराउ खुरेण णिवारियउ उले हिउ कडूढियउ तहिं काले सिडि अवहेरि करेवि घट्टज्जुण- सच्चइ वे-वि जण विणि विहणंति कुरु- साहणई विंदाणु-विंद तहि ताव थिय उच्छल्लिय चित्त दुज्जोहणहो त णिसुणेवि वाहिय-वाहण पडवण्णु महाहउ दुव्विसहु एत व दिवायर अत्थमिउ पइसरेवि मज्झे अनिवारियई [१४] अभ्गेउ मुकु मदाहिंवेण जलणत्थु णिवारिउ वारुणेण आयामिउ सल्लु जुहिट्ठिलेण किउ सिंघउ विरहु विओयरेण रिट्टणेमिचरिउ हय- रहवरु भग्गु परम्मुहउ संतणउ विद्धु तव णंदणेण रहु खंडिउ कह व ण मारियउ कुरुवहु - परिओसु पवडूढियउ धत्ता थिउ गंगेयहो सम्मुहउ | उरणे सो-वि परम्मुहउ || [१५] णं जलण-पत्रण वण- डहण-मण रह- तुरय- जोह-गय-वाहण अवरोप्पर आहव- केलि किय विणिवारहो मारहो आह हो आभिट्ट पडवा साहणई हय - खुरहिं समुट्ठिउ रय - निवहु तम-नियरु निरंतरु परिभमिंउ रय- रयणेहिं णं ओसारियइ ४ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चवालीसमो संधि घत्ता सुरवर - नियरें संसियई । सुहड-सभा सई भूसियई || इरिट्टणेमिचरिए धवलइयासिय सयंभुएव कए चउतालीसमो सग्गो ॥ णिय - सिमिल गयाइ विक्कम - विज्जरहि 15. 4. j चित्तवाय ११३ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचचालीसमो संधि महण-मणोरहइं अवहस्थिय-रण-भय-जीवई । अट्ठमे दिवसए भिडियई कुरु-पंडवाणीयई ॥ १ [१] अवियल-जिणवर-मत्ति-साहे. पुच्छिउ मह-रिसि मागहणाहे गउ परमेसर सत्तमु वासरु अट्ठमे को कहो भिडइ गरेसरु अक्खइ इंदभूइ-विणिओएं विरइउ पवर-वूहु कुरु-लोएं अग्गए थिउ भाईरहि-गंदणु पुणु गुरु सोण-तुरंमम-संदणु पुणु भययत्तु गइंदारोहणु पुणु सयमेव राउ दुजोहणु पुणु किव-पमुहेक्केक्क-पहाणा गय कुरुखेत्त पराइय राणा एत्तहे कुरुव-मडप्फरु-साडउ किवु धट्ठज्जुणेण संघाडउ सच्चइ-भीम परिट्ठिय सिंगेहि अवर णराहिव अवरेहि अगेहि धत्ता भिडियई साहणइ रोमंचुब्भिण्ण-सरीरई । एक्कहि लग्गाई णं जण्हवि-जउणा-णीरई ॥ । [२] भिडियई वलई वेवि वहु-भंगेहि जंगम-गिरि-समेहिं रह.विदेहि जम-दूओवमेहिं पायालेहि दिणयर-चक्क-समप्पह-चक्केहिं पहा पवण-जवण-मण-गमण-तुरंगेहि घण-संकासेहि मत्त-गइंदेहि णहयल-सण्णिहेहिं करवालेहि विसहर-विसम-मुहेहिं पिसक्केईि ४: Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचचालीसमो संधि ११५. सक्क-सरासण-सम-कोयंडेहि फर-रयणेहिं ससि-विव-समाणेहिं आएहि अवरेहि-मि उवयरणेहिं तुरय-खुरहिं उच्छलिउ महा-रउ जम-दंडोवमेहिं गय-दंडेहि कंस-लोह-रुप्पिय-तणु-ताणेहिं विण्णि-वि वावरंति वावरणेहि गउ सुरवरह णाई हक्कारउ ८. घत्ता रण-रउ मइलणउं किं अकुलीणहो रुहिर-णइ मलिणि परिहीणी । अणुहरइ कया-वि कुलीणी ॥ [३] तहिं समरंगणे दूसह-तेएं पंडव-वलु जगडिउ गंगेएं काहि-मि सीसई खुडइ स-गीवई हंसु स-णालइ जिह राजीवई काह-मि का-वि लील दरिसाबई सिरई लेइ रुंडई णच्चावइ काह-मि पाण लेवि तणु वज्जइ सव्वस-हरणु ण कासु-वि छज्जइ ४. काह-मि वाहु सहंगुलि तक्खइ खगवइ पंच-फणाहित्र भक्खइ काह-मि पहु पायवह पहावइ पाण-विहंगम-सयई उड्डावइ काह-मि हणइ पडाया-छत्तई णं स-वलायावलिय सयवत्तई काह-मि पहरण-लक्खई छिदइ काह-मि देहावरणई भिंदइ ८ धत्ता रहु पहु गउ तुरउ जो जो सवडम्मुहु ढुक्कइ । सो सो सरि-सुयहो रण-मुहे जीवंतु ण चुक्कइ ॥ ९. [४] ताम विओयरेण रहु चोइउ सारहि गाई कियंतहो ढोइउ विण्णि-वि भिडिय पियामह-पोत्ता विण्णि-वि णिय-णिय साहण-गोत्ता Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ रिट्ठणेमिचरिउ विण्णि-वि वसह-खंध करि कर-भुय विण्णि-वि रण-रस-रहस-वसंगय विण्णि-वि कंचण-सीह-तलद्धय विष्णि-वि वावरंति दप्पुद्धय - ४ विहि-मि परोप्पर पिहिउ पिसक्केहिं विण्णि-वि पोमाइय सक्कक्केहि कह-व कह-व संतण-दायाएं भीमहो सारहिं हउ णाराएं णट्ठ तुरंगम रहवर लेप्पिणु सूयत्तणु सयमेव करेप्पिणु विद्ध सुयासु सीसु तहो पाडिउ णं ताल-तरु-महा-फल साडिउ ८ धत्ता कुरुवइ सिरिण हउ पेक्खंतहो णरवर-चक्कहो । लइ तं एउ फल विस-जलण-जूय-किंपक्कहो ॥ ४ हए कुमारे दुज्जोहण-भायरे हाहा-सर्दु जाउ कुरु-सायरे ताम पधाइय सत्त सहोयर थाहि थाहि कहिं जाहि विओयर भीमसेणु आरोडिउ सव्वेहि' णं वण-करि सवरेहि स-गव्वेहि पढमु विसालचक्खु विणिवाइउ पुणु पंडिउ पुणु हउ अवरइउ एक्केकेण सरेण वियारिय तिण्णि-वि जम.पट्टणे पइसारिय इयर कुमार चयारि-वि रोसिय वाण महोयरेण णव पेसिय सत्तरि वहवासिएण पउंजिय णउ-वि णउ-वि अवरेहिं विसज्जिय तहिं अवसरे परिकुविउ विओयरु तिहिं वाणेहिं विद्दविउ महोयरु घत्ता कुंडधारु दसहिं आइच्चकेउ वहवासिय ।। विण्णि-वि समर-मुहे एक्केक्क-सरेण विणासिय ।। ‘णिएवि अवत्थ सुहड-संघायहो गउ दुजोहणु परम-विसांयहो मई पावेण सयण माराविय . गुरु-गंगेय-विउर लज्जाविय ... Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचचालीसमो संधि दुण्णय-दुमहो फलई परिपक्कई होंति णियाण-काले लल्लक्कई गंगा-गंदणेण साहारिउ वहुवेहिं वहुय-बार विणिवारिउ ४ ण किउ क्यणु जिह कासु-वि केरउ तिहिं वलु चोयहि धरहि म सेरउ पंडव दुण्णिवार मई अक्खिउ . पई अण्णाणे कन्जु ण लक्खिउ एवहिं धीरु होहि वरि जुज्झहि दीणालावेहिं कह-मि ण सुज्झहि रण-धुर-धरेहि परिट्ठिउ जावेहि रिउ तिहिं मुहेहि पराइउ तावेहि ८ धत्ता तुरय-महा-रहेहिं णर-णरवइ-पवर-गई देहि । वेढिउ गंग-सुउ जिह दुमणि महा-घण-विदेहिं ॥ ९ [७] जं तिहिं मुहेहिं पधाइउ पर वलु धरिउ पियामहेण तं णिच्चलु दोणु पधाइउ रणे दुप्पेच्छह सोमय-सिंजय-कइकय-मच्छह जउ जउ थरहरंतु रहु पावइ तउ तउ रत्त-तरंगिणि-धावइ कुंडल-मउड-महामणि-विमलई खुडइ खुरुप्पेहिं णर-सिर-कमलई ४ सर-किरणेहिं किरंतु परिसक्किउ . दोण-दिवायरु धरेवि ण सक्किउ तहिं अवसरे आरोसिय पंडव घाइय उद्ध-सुड वेयंड व ढुक्कु विओयरु मत्त-गइंदहं भिडिय णउल-सहएव तुरंगहं णर णरवइ गरेण विणिवारिय आहवे छिण्ण भिण्ण लय भारिय ८ घत्ता णासइ कुरुव-बलु कुंजर-जू हु जिह गर-सर-समूह संताविउ । हरि-णहर-पहर-कडुयाविउ ॥ [८] सात चार व गा संरण किरद्वकालमत्सुविसुतांदण थक्क चयारि-वि णरवर-संदण : किव-किववाम-सउणि-गुरु-गंदण .. तेहि-मि धीरिउ वलु णासंतउ .. भार-दुवारे. सरणु पइसंतउ.. ... Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ रिट्ठणेमिचरिउ ‘भिडिय चयारि-वि पंडव-साहणे रह-गय-जोह-तुरंगम-वाहणे जे णर-णाराएहिं भग्गा क्लेवि असेस ते-वि पडिलग्गा तहिं अवसरे इरवंतु पराइउ जो परेण फणिणिहे उप्पाइड पवर तुरंगमेहिं मण-णमणेहि गमणोहामिय-खगवइ-पवणेहि जावण-आजाणेय-महीजेहि तित्तिरि-णइ-जवणज-कंवोजेहिं आएहिं तुरएहिं भिडिउ कुमारह सउणि सहोयराह गंधारह घत्ता सुवलहो णंदणेहिं वेढिउ इरवंतु पयंडेहिं । अमरिस-कुइय-मणु पंचाणणु जिह वेयंडेहिं ॥ ४ गय-गवक्ख पिसुणुज्जण-णामेहिं सुय-सारी-समेहि छहिँ कामेहिं वेढि उ एक्कु धणंजय-णंदणु जाउ महंतु सुहड-कडवंदणु अग्गए पच्छर उवहो-पासेहिं पिहिउ विविह णाराय-सहासेहि तणु तणु-ताणु सरासणु ताडिउ छिण्णु छत्त धउ चामरु पाडिउ णिहय वाह जुत्तारु वियारिउ अज्जुण-गंदणु रणे अ-णिवारिउ घाइउ फर-पिहिओरु स-असिवरु सउणि-सहोयरु णिउ जम-पुरवरु पणय-सीसु तिण-दंतु णमंसेवि णवर एक्कु गउ पिसुणु पणासेवि तो कुरु-णाहे वइरि-गयंकुसु पेसिउ आरिससिगि अलंसु घत्ता रक्खसु रक्खस-घउ रक्खस-परिवार धणुद्धरु । इरवंतहो भिडिडे मघवंतहो जिह दसकंधरु ॥ [१०] पवर-तुरंगेहि समरुद्धरिसेहि वीसहि सहि महत्तम-वरिसेहि जहिं इरवंतु महारहे चडियउ आरिससिंगि तेत्थु ओवडियउ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचचालीसमो संधि वीस-सयई उप्पाएवि वाहह णिरुवम-हेमाहरण-सणाहहं जुझिय जाम जाय समसुत्ती रत्त-तरंगिणि तहिं जि णिउत्ती सिक्किणि परि लिहति अवरोप्पर भिडिय वे-वि रणु जाउ भयंकर णाइणि-णंदणेण धणु ताडिउ वइवस-महिस-सिंगु णं पाडिउ जाउहाणु उप्पइउ णहगणे मायत्थई मेल्लंतु रणंगणे छिण्णई णर-सुरण लहु लक्खें वहुरूविणि परिचिंतिय रक्खें घत्ता रावण-विक्कमेण वहुरूविणि-विज्जावंतें । वहु-रूवइं कियई णं णडेण रंगे पइसंतें ॥ [११] दस सउ सहसु लक्खु उप्पज्जइ रिउ-रूवह परिमाणु ण णज्जइ तहो पडिमाय रइय इरवं ते णाग-पासि णिम्मविय तुरते पेसिय सव्व-लोय-पलयंकर फुरिय-फणा-फुक्कार-भयंकर कालिय-कालदट्ठ-वइरोडय तस्वय-संखचूड-कक्कोडय संखपाल-धयरट्ठ-धणंजय आसीविस-दिट्ठीविस-दुज्जय तेहिं णिसायर-घणु खज्जंतउ तमु णडु भयवे-विर-गत्तउ झत्ति अलंबुसेण उप्पाइय भीसण गारुड-विज्ज पचाइय अहि खायणह लग सव्वत्तेहिं गाय ण णाय आय गय केत्तहिं पत्ता ताम णिसायरेण सिरु पाडिउ इरवंतहो । णिवह णियंताहं पेसिउ पाहुणउ कयंतहो ॥ [१२] तं भीसावणे भड-कडवंदणे हए इरवंते घणंजय-गंदणे भेल्लिउ पंडव-सेण्णु अजेयहं आरिससिगि-दोण-गंगेयह ८ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० ग्टुिणेमिचरिउ एत्थु-वि कुरुव-लोउ तिहिं भारहिं सच्चइ-भीम-दुमय-दायाएहिं स-सर-सरासण करि-परिहच्छेहि णं मयरहरु भिष्णु तिहिं मच्छेहिं ४ तहि अवसरे तव-तणय-विमुक्कर घाइउ गलगज्जंतु घुडुक्कर णं भुक्खालु कालु जग-भोयणु चंदाइच समप्पह-लोयणु रस-वस-सोणिय-मास समीहउ विज्जुल-लोल-ललाविय-जीहउ धूमकेउ-धूमप्पह-पुग्गलु दीहर-परिह-व लंव.भुयग्गलु धत्ता चालिउ सिरेण णहु चलणेहि वसुंधर चालिय । कउरव कवलु जिह भुक्खिएण जमेण णिहालिय ॥ ९ [१३] दिटु हिडिव-पुत्तु कुरु-लोएं मंदरु पत्तु गाई खीरोएं णं खगवइ उरगिंद-समूहे णं पंचाणणु कुंजर-जूहें णं अ-हिमयरु महा-तिमिरोहे णं खय-पवणु मेह-संदोहे णं दावाणलु जर-तरु-तवें णं वज्जाउहु गिरि-णिउरुवें विसम-सीलु मज्जाय-विमुक्कउ पर-बलु गलणह लग्गु घुडुक्कर मासइ वण्ण-विचित्तई चक्खइ णव दस वीस तीस भड भक्स्वइ एक्क-वि कवलु ण पुज्जइ घोडउ कल्लेवउ व गइंदु-वि थोडउ दूरवरेण जि कुरुवइ-केरउ वलु णासणह' लग्गु विवरेरउ धत्ता जले थले दिसहिं णहे असिवरे फरे उरे दुक्कउ । - रह-धुरे तुरए धए कायर पेक्खंति घुडुक्कउ |॥ ९ [१४] तं तेहउ णिएवि आओहणुः भिडइ ण भिडइ ताम दुज्जोहणु तहिं अवसरे रहसूसलियंगें . उप्परि चोइय घडउ कलिंगे Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचचालीसमो संधि १२१ दस सहास मय-मत्त गइंदह हय-ढक्कह पक्खर-पिहियंगह सिक्किणि परि लिहंतु णह-सीयरु गय-साहणे पइट रयणीयरु. ४ के-वि करेहिं धरेवि भमाडिय केहि-मि के-वि पडतेहिं पाडिय क्ण्णेहिं के-वि लेवि जुज्झाविय काह-मि सम-सुत्ती दरिसाविय के-वि पडंति भिण्ण-कुंभत्थल दूरुच्छलिय-धवल-मुत्ताहल के-वि अ-वाइय घाइय भक्खिय चप्पिय चूरिय चूसिय चक्खिय ८ पत्ता गय-घड धुणइ सिरु ओसरइ ण अप्पउं धीरइ । विमुहिय वेस जिह दाणेण-वि धरेवि ण तीरइ ।। [१५] गय-घड त? णट्ठ विवरेरी णं णव-वहुय वियड्ढहो केरी तो कुरु-णाहे वाहिउ संदणु तिण-समु मण्णेवि भीमहो गंदणु घाइय अंग-रक्ख तहो केरा जे दुग्धोट-थट्ट भंजेरा विजुलजीहु पमाहि महंतउ अवरु महंतउ दुज्जववंतउ एक्केकेण लोह-णाराएं णिहय चयारि-वि कउरव-राएं धाइउ भीमसेणि स-सरासणु णाई कयंतु करंतु गवेसणु छाइड कुरुव-णराहिउ वाणेहिं आयस-वइणवेहि अपमाणेहि पाय पडिच्छओ य मइ-गम्मिय कवड दुरोयर-सरयण-णामिय धत्ता तो दुज्जोहणेण सर पंचवीस णिम्मोइय । काले कुद्धएण णं स-विस भुयंगम चोइय ॥ [१६] कुरु-णाराय-धाय-कडुआविउ जाउहाणु संदेहि चडाविउ उच्छलंत-वण-सोणिय-सीहरु णं संचारिम-धाउ महीहरु ८ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ रिट्ठणेमिचरिउ तेल्ल.धोय गिरि-सिहर-वियारणि मुक्क वलंति सत्ति रिउ-मारणि उरसा एति पडिच्छिय वंगें गउ जमसासणु सहुं मायंगे विद्ध घुडुक्कउ कउरव-राएं वंचिउ वाणु भीम-दायाए ताम खयक्क-समप्पह-तेएं पेसिय सव्व राय गंगेएं रक्खहु कुरुव-णरिंदु शिरुत्ते णं तो णिहउ विओयर-पुत्ते तो सहसत्ति पराइय राणा किवि-कुरु-पमुहेक्केक-पहाणा वत्ता वेदिउ रण-मुहे रयणीयरु वहु सामंतेहिं । केसरि एक जणु णं हरिण-गणेहिं अणतेहिं ।। [१७] एक्कहिं मिलेवि गरिंद-सहासेहिं बद्धामरिसेहिं चउहु-मि पासेहिं हम्मइ धण-पहरणेहिं घुडुक्कउ गोंदले झिंदुउ जिह पम्मुक्कर तेण-वि सोलह परिसंखाणेहिं रुप्प-पुंख-सिल-धोएहिं वाणेहिं भूरीसवहो सरासणु ताडिउ देहावरणु सरीरहो पाडिउ भीम-भुवंगोवमेण पिसक्के वारिय किक-विगण्ण एक्केक्के दोण वि वीसहिं सारहि धाइय पेयाहिव पुरवर-पहे लाइय तिहिं वल्हिक्कु थणंतरे ताडिउ सल्लिउ सल्लु विहंघलु पाडिउ किउ रणे वि-धणु विविधु जयद्दहु अवरु-वि जो जो को-वि महा-रहु सो सो सब्बु घुडुक्कर लग्गउ एक्कु अणंतहि तो-वि ण भरगउ ८ धत्ता णिसियरु णिय-रहहो उप्परवि णहंगणे मेसइ । को मइं खडु ण-वि अहिउलइं-व गरुडु गवेसइ ॥ १० Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचचालीसमो संधि १२३ [१८] भेल्लिउ सीह-णाउ णहे थारवि पभणइ धम्म-पुत्तु उण्णाएविं मई परमोव एसु अखेउ भीम घुडुक्कउ पई रक्खेवउ णरु णारायणे ग पारेशलिउ भलउ रणंगणे केण णिहालिउ महु सिहांडे धट्ठजुणु सच्चइ तिण्णि-वि रक्खणु किं ण पहुच्चइ ४ कुरु-परमेसरेण मोक्कलिउ सरहसु भीमसेणु संचलिउ णं फणि-भक्खणे गरुडु विअउ महणहो मंदरु णाई पयट्टउ अच्छउ ताम गयए पहरेवउ . स-सरु सरासणु अवरु घरेवउ कह-वि कह-वि जं एकहि मिलियउ पर-वलु दिट्ठिए जि णं गिलियउ ८ धत्ता ताम घुडुक्कएण णिय-जणणु दिट्ठ समुहाणणु । मत्त-गइंद-थडे णं पइसंरतु पंचाणणु ॥ खत्तदेउ अहिमण्णु स-णीलउ तिह सउदित्ति मयाहिव-लीलउ ते पय-रक्ख देवि चउ-पासेहिं छहि पभिण्णु मायंग-सहासेहि अ-गणिय-रहेहि तुरंगेहि दुक्कउ तेत्थु जेत्थु हइडिवु घुडुक्कर जीउ महाहउ पेल्लिउ कुरु-वलु पंडव सेण्णे समुट्ठिउ कलयलु ४ पेक्खेवि हीयमाणु आओहणु छाइउ रहवरेण दुज्जोहणु भीमहो भिडिउ रगंगणे घोरहो मत्त-गइंदु व सीह-किसोरहो ताव णिसायरेण रहु वाहिउ विहि-मि णराहिउ कह-व ण साहिउ छब्बीसेहि सरेहि झड देंतउ दोणे विद्ध विओयरु एतउ ८ १९ एतउ घत्ता तेण-वि दसहि हउ णिवडिउ णियय-रहे कुरु-गुरु मुच्छ-विहलंघलु । इंद-महै णाई आखंडलु ॥ For Private & Persorral Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ रिट्ठणेमिचरिड [२०] छाइय कुरुव-राय-गुरु-गंदण मंदर-मेरु-समप्पह-सौंदण भिडिय वे-वि तहि मज्झिम-पत्थहो भीमहो भीम-गयासणि-हत्यहो रहु परिहरिउ हिडिवा-कंते गुरु-सुएण उरे विद्ध तुरते तहि अवसरे चंदंकिय-णामहो णीलु पधाइउ आसत्थामहो ४ रहु दोणायणेण तहो खंडिउ कहि-भि ण छाइउ मोहेवि छंडिउ. तं पेच्छेवि मज्जाय-विमुक्कउ पलय-कालु जिह आउ घुडुक्कर माया-वलेण तेण वलु मोहिउ सीहें हरिण-जूहु णं रोहिउ . विविहाहरणे अणेय-पसाहणे दिण्णइ तूरइं पंडव-साहणे दिणमणि अत्थमिउ कुरु-पंडव-वलई णियत्तई । विण्णि-वि साहणइं रण-भूमि सई भूसतइ ॥ इय रिट्टणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए पंचतालीसमो इमो सग्गो । Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छयालीस संधि गय अट्ठ दिई जुज्झतह रणे पंडव करव- केराई महाहिउ पुच्छर अक्खु देव उप्पर पुणु होसइ कवणु जुज्झु सुणु अट्टमर दिवसे महा-रहेण तु कुरु धरहि किरीडमालि पर एक्कु मुएप्पिणु रणे सिहंडि सोमयसंजय पंचाल -मच्छ पति खत्तिय खयहो णेमि 'परमेसरु णरवर - पुज्जणिज्जु कुरु- पंडव - पणय-पयारविंदु णीसरिउ स- साहणु दिण्ण- तूरु दुणिमित्तई ताम समुट्ठिय जंवर पसरइ मज्झे हो तो वि ण समियई वाहणई । भिडियई विणि-वि साहणई ॥ १ [१] अट्टमउ दिवसु अइकंतु केव परभेसरु पभणइ कहमि तुज्झु दुज्जोह व पियामहेण उ करमि कियंतोत्रम दुयालि ण गणमि जायव - पंडव स- पंडि चेइय-सक्खड़ कय (?) कालि- कच्छ सायर - पेरत धरित्ति देमि उग्गमिय- महाउहु किय-पइज्जु णं सग्गहो णिवडिउ सुरवरिंदु दुब्बिसहु णाई थिउ पलय- सूरु धत्ता सव्वई असुहई सित्र रडइ । छतेहिं गिद्ध-पंति चडइ ॥ ४ ११ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ रिट्ठणेमिचरिउ [२] गिसुणेविणु तूरहं तणउ सदु पंडवेहिं वूहु किउ सव्व-भद्द रण-भूमि पइट्ठई वलई वे-वि पडिलग्गई अणियहो अणिउ देवि पवणद्धय-चिंधई फरहरंति णं कायर चित्तइ थरहर ति हरिचंद-पुराई व रह भमंति अभाई व चक्कइ थरहरति दप्पुद्धर सिंधुर सीयरति ण घग संचारिम संचरति तुरमाण तुरंगम महि छिति णं णिरवसेसु महि यलु पियंति विज्जुलउ व असि-लट्ठिउ फुरति कोवा इव चावई कर यति मिहुणाई व उहय-उलई भिडंति अहिउलई व सर-जालई पडंति धत्ता हरि-खुर-खउरण-रउ उच्छलिउ णं वलई गिलंतहो उद्धसिउ आमिस-वस-रस-लालसहो । केस-भारु रण-रक्स्वसहो ॥ ९ वठंतर तेहए रण-रउद्दे रुहिर-णइ-सहासुट्टिय-समुद्दे अहिमण्णु पिसंग-तुरंगमेहि गंगा-तरंग-र गिर-गमेहिं पइसइ एक्केण महा-रहेण सेण्णई डहंतु सर-हुयवहेण फेडंतु कियंतहो तणिय भुक्ख । छिदंतु णराहिव-पवर-रुक्ख गुरु-गंधवहृद्धय-धय-विहंग जर-पंडुर-सिर-परिणय-फलोह थिर-थोर-पलंव-भुवोह-डाल उड्डाविय-रह-गय-तुरय-सेण तोणा-कोडर-सरवर-भुवंग लोयण-फुल्लंधुय-दिण्ण-सोह णह-णियर-कुसुम-करयल-पवाल णं तूल-रासि हय मारुएण Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छायालीसमो संधि १२७ घत्ता रणे एक्कहो अज्जुण-गंदणहो समुहु ण थक्कइ कुरुव-बलु । उत्थरइ बलई पासेहिं भमइ णं मंदरहो समुद्द-जलु ॥ ९ [४] तहिं काले कुरुव-परमेसरेण पट्टविउ अलंबुसु मन्छरेण तुहुं करहि कुमारहो माण-भंगु विद्धंसहि साहणु चाउरंगु दप्पुद्धरु धाइउ जाउहाणु णं लग्गु वणंतरे चित्तभाणु सेणा-मुहु जगडिउ णिरवसेसु समुहिंतु पडिच्छिउ रक्खसेसु पंचहिं पंचालिहे णंदणेहिं विच्चाले पचोइय-संदणेहि समकंडिउ खंडिउ छत्त-दडु घउ विदउ खुडिउ पडाय-संडु पडिविझें देहावरणु डिण्णु तणु भिदेवि पुणु महिवटु भिण्णु मुच्छ-विहलंघल रहे णिसण्णु कह-कह-वि समुट्ठिउ लद्ध-सण्णु हय हयवर सारहि स-धणु विद्ध एक्केकउ तिहिं तिहिं सरहिं विद्ध ८ घत्ता किय पंच-वि वि-रह णिसायरेण साहेज्जउ दितउ पंडवह धाइउ ताव सुहद्द-सुउ । णाई पुरंदरु सग्ग-चुउ ॥ १० मायामउ रक्खु वलपमेउ विण्णि-वि पहरंति महाणुभाव सउहदें देवइ-सुय-सुएण तेण वाहिणि वारिय स-रहसेण दिव्वत्थ-कुसलु हरि-भाइणेउ आयस-णाराय सुवण्ण-चाव सर पेसिय अट्ठ महा-भुएण पुणु लक्खु विसज्जिउ रक्खसेण ४ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . १२८ अवहे जे भड-कडवंदणेण पुणु विहिं तो तणु-ताणु छिण्णु गउ मोहहो तो वि ण जाउहाणु जग - मोह पेसिउ ताम सत्थु ओसारिउ आरिससिंगि रणे जिह मत्त - इंद मयाहित्रेण दुज्जोहणु पभणइ थाहि थाह ऋणु हणु अपसत्थु अपत्थु वालु मं भज्जहि मंजहि वइरि - विंदु अप्पाइय-मायउ जाउ जाउ हय चउ तुरंग विद्दविउ सूउ गउ कहि-भि अलंवुसु पाण लेवि हक्कारिउ ताम पियामहेण तवणीय-ताल-तरु-केयणेण नणंद-संत-णंदणेहि णं पट्टु णित्र जुहिट्टिलहो घत्ता किय णर-णंदणेण सय-खंड वायरणु व वुहेहि सरीरु भिण्णु पडिवारउ विरइउ परम - थाणु तिमि अहि-मयरत्थे किउ णिरत्थु रिट्ठणे मिचरिउ किव-दोणायण-दोन जिय । पाराउट्ठा सव किय ॥ [६] लुलु कहिँ आरिससिंग जाहि आयो आसण्णीहूड कालु तं णिसुणेत्रि वलिउ णिसायरिंदु अहिवण्णु णिवारइ ताउ ताउ घउ पाडिउ विरहु णिरत्थु हूउ कुरु- सेण्णु-त्रि रणउहे पुट्टि देवि सेयासे से - महा-रहेण दुग्वार-महा-रिङ-भेयणेण घत्ता सरेहिं परोपरु छाइउ | अज्जुणु ताम पराइउ ।। Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छायालीसमो स घि १२९ [७] पंचहि णाराएहि गंग-पुत्त विणिवारेवि रणे अहिमण्णु पत्तु एत्तहिं किवेण जय-सिरि-समिद्ध सिणि-णंदणु णहि सरेहि विद्ध णव-णवहिं हणेविणु णराउ मुक्कु सो आसत्थामें णहे विलुक्कु जं दिट्ट वाणु वाणेण खलिउ किउ मेल्लेवि दोणायणहो चलिउ जुजुहाण-दोणि आभिट्ट वे-वि सवडम्मुहु रहु रहवरहो देवि सइणेयहो पाडिय चाव-लट्टि धणु अवरु लेवि सर घिविय सट्ठि मुच्छा-विहलंघलु दोण-पुत्तु धय-दंडु घरेप्पिणु थिउ मुहुत्तु चेयणे लहेवि सिणि-सूणु विद्ध उरु भिदेवि सरु घरणिहि णिसिद्ध ८ घत्ता तो दोणायरिएं सु-कुद्धए सच्चइ वीसहि सरेहिं हउ । णिकंपु परिट्ठिउ मेरु जिह पडिवउ भिडिउण मुच्छ गउ ॥ ९ [८] पडिवण्णए तहिं संगाम-काले गुरु-सीस परोप्पर भिडिय वे-वि सेयासे परिह-सम-प्पहेहि कम्मार-कम्म-परिमज्जिएहि वीभत्थु परिट्टिउ अंतराले गंडीव-पवर-घणुधरई लेवि दिणयर-कढोर-कर-दूसहेहि गिट्ठर-भुय-अंत-विसज्जिएहिं गुरु विद्धु णाई दुमु अलि-गणेहिं णर-सर विणिवारिय ण किउ खेउ पेसिउ सुसम्मु दुज्जोहणेण आलाण-खंभु णं विहिं गयाहं सत्तारह-वारह-मग्गणेहिं आरुटूठु सुठु मणे भूमि-देउ तहिं अवसरे पर-मइ-मोहणेण थिउ अंतरे दोण-धणंजयाहं ८ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ घत्ता जे सर पट्टविय तिगत्तेहिं ते विणिवारेवि अज्जुणेण । णं दुक्ख-विद्वत्ता अंत-गुण णासिय एक्के अवगुणेण ॥ [९] तो पत्थे णिय-कुल-पायवेण अरि-तरु उड्डाविय वायवेण दोणेण-वि पेसिउ महिहरत्थु कंपावणु पावणु किउ णिरत्थु णर-कर-सर-सीरिउ थाण-भट्ठ । जालंधर-साहणु कहि-मि गठ्ठ एत्तहे वि जुहिट्ठिलु राणा हिं वेटिउ एक्केक्क-पहाणएहि विंदाणुविंद-किव-सउबलेहि भूरीसव-सल्ल-विहव्वलेहि भययत्त-सोमयत्ताहि वेहि आएहि' अवरेहि-मि पत्थिवेहिं एतहे-वि विओयरु वारणेहिं णं छाइउ विझु महा-घणेहिं रहु छंडेवि धाइड भीमसेणु ण केसरि विणिवारिय-करेणु घत्ता किउ गयउलु गय-वलु गय-वलेण भीमें रहसाइट्टिएण । उड्डाविउ जलहर-विंदु जिह पवणे मज्झे परिट्टिएण ॥ ९ [१०] तहिं तेहए काले पियामहेण ओवाहिय-पवर-महारहेण पंडव-सामंत महंत जोह मायंग तुरंगभ रहवरोह धय कवय-छत्त-चामर-समिद्ध तिहिं तिहिं णाराएहिं सव्व विद्ध तेहि-मि समरंमणे दुज्जएहिं मच्छाहिव-सोमय-सिंजएहिं कइकय-पंचालेहिं पंडवेहि अवरेहिं रइय-सर-मंडहिं संतणउ विद्ध बहु-मच्छरेहि धट्ठज्जुणेण तिहि तोमरेहि Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छयालीस संधि मच्छेहिं दसहि कय-विग्गण वीसहिं सिहंडिणाम- गहेण सरि सुए वितं सर-जालु भग्गु गुणु हिष्णु दुमय- धणु-कोडि- लग्गु घन्ता णिग्गुणु जे होवि वरि अच्छियउं वाणासणु दुमयहो तणए करे घणु अवर लेत्रि जुत्तार विद्धु परिसक्किउ सयलेहि कउरवेहि पहु पहुहे स-मच्छर समुहु आउ छिज्जेति सिरई भिज्जंति देह हय कण्ण चमर कर दसण सारि अण्णत्त हे हयवर छिण्ण-गत्त अण्णई रह-विंदई ताडियाई घत्ता अण्णत्त हे णिवडिउ सुहङ- सिर लक्खिज्जइ णत्र कंदोटु जिह महि मंडिय सफरे तणु-ताणाहरणे पहरणेि रुहिर गइ समुट्ठिय पिहुल- दीह जणु जंपइ सुठु विरत - भाउ असिवरेद्दि [११] विउ विरहु पियामहु रणे णिसिद्धु पारद्धु महाहउ तंवेरम वर - वेरभासु संगर अच्चंतु महंतु जाउ णिवडंति दंति णं पलय- मेह णं पडिय महा-गिरि पायवारि णं धाउ - घराधर धरणि पत्त गंधव-पुर णं पाडियाई १३१ णउ गुणेण कुडडं किउ । एवं णाई वोलंतु थिउ ॥ ९. कंठाहरणहो मज्झे थिउ । विसहर - वेढावेदि - किउ || [१२] घय-छत्त- पडाया-चामरेहिं रह जोह - तुरगम वाहणेहिं णं ललइ कयंतहो तणिय जीह एउ एत्तिउ दुज्जोहणहो पाउ ८ ४. Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिटणेमिचरिउ १३२ माराविय बंधव मित्त जेण पडवहुं विजठ महिमहु महासु तो परिपालिय-कुरु-जंगलेण 'परिवेढिउ तेण किरीड-मालि णउ जाणडं जासइ पहेण केणजरसंध-कुरुहुं केवलु विणासु पट्ठविउ तिगत्तउ सडं वलेण सलहावलि जिह पेसिय सरालि पक्ष घत्ता णरु णवहिं सारहि हरि सत्तरिहिं रणउहे विद्ध तिगत्तएण । आरोडिय केसरि विणि जण णाई गईदें मत्तएण ॥ ९ [१३] जालंधरि वहुय किरीडि एक्कु पहरतु परिहिउ जिह अणेक्कु गंडीउ भमइ णमलाय-चक्कु कोसावहिं परि दीसइ पिसक्कु हय-गय-णर रण-रस-सीरियाग विवलाय रणंगणे दिण्ण भंग को-वि णासइ पवर-तुरंगमेण को-वि रहेण को वि तंवेरमेण ४ को-वि तेत्तहो होतउ झंप देइ अप्पाणउ अप्पाणेण णेइ उप्पण्णु कहो-वि जंघोर भंगु ण चलंति चलण थरहरइ अंगु संतणउ ताम सहुं वलेण पत्तु मं भजहो रणे रक्खहो तिगत्त एत्तहे-त्रि धणंजउ पंडवेहि परिवारिउ किय-सर-मंडबेहिं ८ धत्ता गउ गयहो तुरंगु तुरंगमहो रहु रहवरहो समावडिउ । णरु णरहो णरिंदु णरिंदहो सयलु स. मच्छरु अब्भिडिउ ॥ ९ [१४] सिणि-सुएण ताम भड-भीयरेहि कियवम्मु विद्ध पंचहि सरेहि दुमएण दोणु तिहिं मग्गणेहि सत्तहि जोत्तारु सु-लक्खणेहि Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छायालीसमो संघि १३३ वल्हउ सत्तरिहि विओयरेण सारहि स-तुरंगमु णिहउ तेण तिहि चित्तसेणु फग्गुणेण विद्ध सउहदे दुम्मुहु रणे णिसिद्ध ४ कलसद्धएण सर-दाणु दिण्णु दोमइ-जणेर-जोतारु भिण्णु सच्चइहे ताम गंगा-सुएण आमेल्लिय सत्ति महा-भुएण वंचेप्पिणु जिह खय-काल-रत्ति सिणि-सुएण विसज्जिय अवर सत्ति विणिवारिय णवहिं पियामहेण थिउ तव-सुउ मज्झे महा-रहेण धत्ता कुरु-पंडु-वलहं जुझंताहं आहउ खणु-वि ण णिट्ठिगउ । मज्झत्थु होवि णं गयणयले पेखिउ अरुणु परिट्ठियउ ॥ दूसासणु ताम मणोगमाहं धाइउ लक्खेण तुरंगमाहं दस सहस अवर दुज्जोहणेण पेसिय परिरक्खण-कारणेण हरि-खुरहिं समुट्ठिउ रय-णिहाउ संगामु परोप्पर घोरु जाउ हय-साहणु जमल-जुहिट्ठिलेहि विद्ध सिउ तिहि-मि महा-वलेहिं ४ आसंकिउ कुरुवइ णिय-मणेण पट्ठिविउ सल्लु सहुँ साहेणण पडिलग्गु स-मच्छरु तिहि-मि ताहं मद्देय-मुयंगे-महा-घयाहं . पंचहि जमलेहिं वाणेहिं विद्ध. तव-सुरण दसहि वाणेहि णिसिद्ध तेण-वि ते रवि-किरणायवेहि हय तिण्णि-वि तिहि तिहिं सायरहिं ८ घत्ता गंगेए ताम विरुद्धएण धणु विप्फारेवि धुणेवि कर । . घउजुण-भीम-जुहिट्ठिलाह वारह बारह मुक्क सर ॥ ९ Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ रिट्टणेमिचरिउ [१६] तो तिण्णि-वि ताडिय जेत्तिएहिं पडिविद्ध तिहि-मि सो तेत्तिएहि सहएउ समरे सत्तहिं णिसिद्ध तेण-वि पडिवउ सत्तरिहिं विद्ध तिहिं णउले तेण वारहहिं छित्त तहि अवसरे दोणायरिउ पत्तु सिणि-णंदण-भीम भयंकरेहि विणिहय पंचहि पंचहिं सरेहिं ४ तेत्तिहिं सो तिहिं तिहिं सायएहि तो तहिं भाईरहि-णंदणेण विहिं वाहेहि एक्क-धणुद्धरेण पेक्खतह भीम-धणंजयाहं जम-दंड-परिह-फणि-आयएहिं चउ-वाहोवाहिय-संदणेण जम-काल-कयंत-भयंकरेण जायव-सिणि-सोमय-सिंजयाह धत्ता पंचालह मच्छई कइक्रयह तुरय-दुरय-णर-पत्थिवह उप्परे पाडिय वाण-सय । सवहं चउद्दह सहस हय ॥ . ९ जं वलु णिट्ठविउ पियामहेण तं णरु वोल्लाविउ महुमहेण ... कि सेरउ अच्छहि सव्वसाइ हणु साहणु जाम ण खयहो जाइ पणवेप्पिणु अज्जुणु भणइ एवं सुहि-पियर-पियामह हणेवि देव जं होसइ तेण ण किंचि कज्जु तुहुं तव-सुउ करिसहु वे-वि रज्जु ४ महु णरउ ण सक्कइ घरेवि को-वि तुम्हहं उवरोहें भिडमि तो-वि. अलसंतें पवर-पुरंजएण पाडिउ कोवंडु धणंजएण पुणु वीयउ लइउ पियामहेण तमि छिण्णु खुरुप्पें दूसहेण पुणु तइउ लइउ महा-गुणइदु तमि हयउ कलत्तु-व दुन्त्रियदु ८ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छायालीसमो संधि घत्ता जं जं गइ-णंदणु करे धरइ तं तं अज्जुगु हणइ धणु । लग्गेप्पिणु फग्गुण माहवहं कवणु ण पलयहो जाइ वणु ॥ ९ [१८] णिम्मज्जइ धणु-गुण-सर-सयाहं ण-वि सरि-सुय सूयह ण-वि हयाह पेक्खेप्पिणु अज्जुणु मंद-इच्छु सयमेव पधाइउ लच्छि-वच्छु लइ हणेवि ण सक्कहि तुहुं णिरुत्तु हउं अप्पुणु मारमि गंग-पुत्तु भुयदंड करेप्पिणु पहरणाई कररह-मुह-धारा-धारणाई गइ-णदणु पभणइ एहि एहि लइ लइ णारायण घाय देहि हेवाइउ अवरेहिं दाणवेहिं को करइ केलि सहुँ माणवेहिं जिह तुहुं तिह घाइउ परसुरामु परियाणिउ मई तहो तणउ थामु करे धरेवि धणंजउ भणइ एम मज्झत्थें भावे अच्छु देव धत्ता अट्ठारह दिवसई महुमहण पई होएवउ पेक्वएण । मारिज्जहि पुणु जरसंधु रणे पंडव-कुरुव-कुल-क्खएण ॥ कह-कह-व णियत्तिउ हरि णरेण लंवाविउ विवु दिवायरेण गंगेउ परिट्ठिउ दुण्णिरिक्खु णं खय-रवि-तवियंतरिउ रिक्खु रण-रंगे इय सर-मंडवेहि जोयणह-मि जाइ ण पंडवेहि तहिं काले वियंभिउ तिमिर-णियरु जोयारहं फेडिउ चक्खु-पसरु पल्लट्टइ विण्णि.वि साहणाई रुहिरोल्लिय-सल्लिय-वाहणाई ओहावण पत्थ-विओयराह तव-तणय-जमल-दामोयराह ४ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ रिट्ठणेमिचरिउ ८ उच्छउ परिवड्ढिउ कउरवाहं गंगेउ पसंसिउ विजउ घुछु कुरु-णाहु सढत्तीभूउ (?) सुट्ठ धत्ता लइ एवहि अम्हह सिद्ध महि चितिउ रण-रहसुद्धएहि । कुरुवइ.धरे तुरई तूरिएहि अप्फालियई सई भुएहिं ॥ ९. इय रिडणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए छायालीसमो संधि-परिच्छेओ समत्तो।। Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तचालीसमो संधि जो पलय-हेउ उप्पण्णउ सो पेक्खंतहो महुमहहो । जिह केसरि मत्त गइंदहो भिडिउ सिहंडि पियामहो ॥ १ [१] तो पंडवेहि मंतु मंतिज्जइ सरि-सुउ केम देव जोहिज्जइ णव वासर सम्भावे जुझिउ जिह सायरहो पमाणु ण वुझिउ वे-वि मच्छ-पंचाल-वरेण्णई भग्गई सोमय-सिंजय-सेण्णइं भणइ जणद्दणु अक्सर सारमि दइ आएसु महाहवे पहरमि ४ अच्छउ भीम पत्थु सहुँ जमलेहि अचमि रण-महि गर-सिर-कमलेहि सहुँ गंगेएं सहु जरसंधे मारमि कुरुव सव णिविसद्धे अह जुज्जणहं ण देहि णराहिव तो करि वयणु महारउ पत्थिव गम्मउ तासु पासु सरि-पुत्तहो भइ तर्हि जे सव्वु जं चिंतहो ८ धत्ता केवलिहि आसि जं. भासियउं तं सो हियए समुन्वहइ । छुडु पुच्छहो चरण णवेप्पिणु . . तुम्हहं गिरवसेसु कहइ ॥ ९ । [२] हरिउवएसें दूसह-तेयहो पंडव मंदिर गय गंगेयहो चरणु णवेप्पिणु पझणइ-राणउ सप्पु व दंडाहउ बिदाणउ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ रिट्ठणेमिचरिउ अहो कोमार-महावय-धारा विस-ज ठहर-केसग्गह-जूवई तेरह वरिसइ समए वद्धा पई अ-पसण्णएण परमेसर जो तुहु दिवे दिवे जय-कारेश्वर भणइ पियामहु णीसंदेहे अम्हण किय परत्ति भडारा सवइ विहिवसेण अणुहूबई मग्गिय पंच गाम णउ लद्धा अम्हहुं वणु पडिवउ ण वसुधर सो समर गणे किह पहरेव्वउ कल्लए करमि चयारि सणेहे ८ घत्ता णिय-हियउं परम-जिणिदहो णिरुवम-गुण-गण-मंडियहो । कुरुवहं सीसु महि तुम्हहुँ जीविउ देमि सिहंडियहो ॥ ९ [३] एवं भणेवि पेसिय गंगेएं गय पंडव उवलढें भेए ताम सिहंडि तेन्थु गलगज्जइ णं जम-पडहु भयंकर वज्जइ अच्छउ धम्म-पुत्तु स-विओयरु अच्छउ सव्वसाइ दामोयरु अच्छउ मच्छु दुमउ घट्टज्जुणु अच्छउ हलहरु सच्चइ पज्जुणु ४ हउं जि पहुच्चमि तहो गंगेयहो गह-कल्लोलु जेम रवि-तेयहो .. सीह-किसोरु जेम मयंगहो जेम स्वगाहिउ पवर-भुयंगहो पइसइ जइ-वि सरणु वंभाणहो जइ-वि सुरिंदहो अमर-समाणहो मरइ तो-वि महु परइ पियामहु जइ ण सिद्ध तो पइसमि हुयवहु ८ . घत्ता तहिं अवसरे भणइ धणंजउ , पहु ण देंति जे संदणहो । ते मारमि हउँ एक्कलउ छुडु भिडु तुहुं णइ-णंदणहो ॥९ लइ लइ दिव्व वाण महु केरा राहा-वेहु जेहि परियारिउ जे संगाम-काले पर-पेरा खंडवे जेहिं हुवासणु वारिउ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तचालीसमो संधि तालय - वम्म जेहिं विणिवारिय जेहिं णियत्तिउ कुरुम-वंदिग्गहु रिउ णत्र दिवस जेहिं विणिभिण्णा तेण - विलय पत्थु जय कारेवि कह वि कह - विणिसि गमिय पयतें गय कुरुखेत्त रणंगणु मंडिउ पहरण-सिहि-जाला - मालउ दी संति महा-वण-डंबरेहिं गय-मय-तुरय-ग. पासेरहि अवर चडत्थे णर- रुहिरोहें ताम भीम - जम- सच्चइ-वाणेहि णिय वलु भज्जमाणु अवलोएवि पंडव - वूहु भिण्णु पइसारिउ सोमय - सिंजय-मच्छ-पहाणा तो गंभीस देवि पंडव-वले पत्थर थाहि याहि पच्चारिउ पहरु पहरु जइ गंगा- जायउ आउच्छहि कउरव-साहणु मई तुज्झु कर्णत कर्णताहों काल- कंज- दणु जेहिं वियारिय जेहिं वियंभिउ उत्तर- गोग्गहु ते परेण तहों सयल-विदिण्णा जिह कयंतु थिउ घणु विष्फारेवि वासवि आस पसाहिय मित्तें उट्टिय धूलि सन्वु उम्मंडिउ घत्ता धत्ता १३९ रयहो मज्झे पतियउ | of विजुलउ फुरतियउ || [५] - गिहि समय तिहि - मि रणे एएहिं अरुण समुह समप्पह-सोहे' आसुरु वूहु भिण्णु सु-प्रमाणेहिं सुरसरि-णंदणेण रहु चोएवि पाण लेवि दस-दसहिँ पधाइउ सयल - विराय जाम विद्दाणा दुमय-सुएण विद्धु वच्छ-स्थले दुक्कर रण- मुहे जाहि अ-मारिउ तुह सोहउ सिहंडि जमु आयउ कंजई करहि करेवाई | अंगई सरेहिं भरवाई ॥ ४ ८ १० Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० रिट्ठणेमिचरिउ माणा एम भणेवि महा-धणु-धारउ पंचहिं सरेहिं विद्ध पडिवारउ गय णिरत्थ अद्धवहे परज्जिय णं कुरुवइ-सम्माण-विवज्जिय मई पच्चारिय सयल-वि राणा अहो किव कण्ण कलिंग जयद्दह चित्तसेण सल्लह सल दुम्मह दोण दोणि मंदाहिव सउवल सोमयत्त भयवत्त विहव्वल जो सक्कइ महु कंडा-कंडिहे सो रहवरु पडिखलउ सिहंडिहे एहु से जण्णसेणि परिसक्का । रक्खउ गंग-पुत्त जो सक्कइ एम भणेवि अणिज्जिय-वाहणु। धरिउ धणंजएण कुरु-साहणु घत्ता रेल्लंतु छत्त-धय-चिंघई धाइय णर-णारायण-धुणि । रिउ णासेवि गय गंडीवहो जहिं ण सुणिज्जइ कहि-मि झुणि ।। ९. णिएवि भयंकर भड-कडवंदणु दुज्जोहणेण वुत्त णइ-णंदणु अहो परमेसर गो-विस-कंघर समर-महा-भड-दुधर-धुरंधर णर-णारायण-णियर-मिज्जंतउ पेक्खु महारउ वल्लु भज्जतउ भणइ पियामहु किं आदण्णउ अच्छहि महु भुय-दंड-णिसण्णउ ४ जुज्झमि रणे रण-रामासत्तउ विजउ पराजउ दइवायत्तउ दिवे दिवे दस-दस-सहस गरिंदहुं मारमि पेक्खंतहं अमरिंदहुं हणमि ण जइ तो आण तुम्हारी पुत्तेत्तडिय पइज्ज महारी एम भणेवि भिडिउ पंचालहणं दुप्पवणु महा-धण-जालहं ८ धत्ता तो पट्टविय महाशाइ-तोएण थरहरंत. गाराय-सय । एक्केक-णरिद-पहाणा दुमय-सेषण.दस. सहस हय ॥ ९ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तचालीसमो संधि हय दस सहस मत्त मायंगह दस तुरयह दस स-रहहं विसालह तो वारह सामंत पघाइय विडिउ चेइयाणु रणे तेत्तहे किम्मो विरुद्ध घट्टज्जुणु भूरीसत्रहो भीमु उवढुक्कउ चरिउ सुदरिस उत्तर-कंतें दुमय विराड दोण-दायाएं "एवं दलई जुझाई परिलग्गई - केहि-मि काह-मि चावई छिण्णई केहि - मि काह - मि वणियई गत्तई केहि -मि काह-मि रहवर ताडिय केहि मि काह मिहिय तुरंगम sa - तर्हि अवसरे धाइउ दूसासणु विद्ध सिलीमुहेहिं तिर्हि अज्जुणु पंड वर गंडीव - विहत्थे घाउ सिहंडि गंगेयहो रहु रहा देवि सिणि-गंदणु [2] मय- परिमल - मेलाविय- भिंगह चूरिय विणि लक्ख पायालहं णं स्वय- रवि आयासहो आइय चित्तसेण यानंतर जेत्तहे ईसासणहो महाहवे अज्जुगु दुम्मुह-साहणे भिडिउ घुडुक्कउ किउ सहवें विक्कमवते दोणायरिउ पडिच्छिउ राएं घत्ता जयराएं णरहो णिडायले णिच्चलु णिवकंपु घणंजउ १४१ उलु विगणहो ओवडिउ । आरिससिंगिहे अभिडिउ || [९] केहि मि काह-मि चिचई भग्गई केहि-मि काह - मि कवयई भिण्णई केहि - मि काह - म खुडियई छत्तइं केहि-मि काह-मि सारहि पाडिय छिण्ण-ढक गय धरणि अयंगम करे विफारेवि स सरु सरासणु जाणा पहउ वीसह पुणु सर-सएण पच्छाइउ पत्थें धत्ता ४ ሪ ४ णिक्खय सर पंचग्गि- णिह | पंच- सिंगु थिउ मेरु जिह ॥ ९ Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ रिहणेमिचरिउ [१०] तो कोवग्गि पवड्ढिउ पत्थही पाडिउ धणु दूसारण-हत्थहो अवरु सरासणु लेवि तुरतें पंचवीस इसु मुक्क फुरते तेण-वि तहो सर-जालु विसज्जिउ दुजोहण-अणुएण परज्जिउ अज्जुणेण विणिभिण्णु थणंतरे णिउ गंगेयहो पासु खणंतरे वड्ढइ तावेत्तहे-वि भयंकर सच्चइ-आरिससिगिहिं संगरु नवहिं नवहिं णाराएहिं ताडिउ एक्कमेक्कु कह-कह-वि ण पाडिट थिउ भययत्त मज्झे तहिं अवसरे वि-धणु वि-सत्ति जाउ णिविसंतरे पेसिय कउरव कउरव-राएं ते-वि परज्जिय माहवि-जाएं घत्ता भूरीसउ णव-णव वाणेहिं ताडिउ ताव विओयरेण । थिर-थेरेहिं धार मुवंतेहिं णाई महीहरु जलहरेण ॥ [११] भूरीसवेण समाहउ एकें जरढाइच्च-समेण पिसकें वंचेवि भीमें सो-जि विसज्जिउ सोमयत्ति सहसत्ति एरजिउ ताम पत्त एयारह राणा णिय-णिय जुज्झई मुएवि पहाणा चित्तसेण-भययत्त-विगण्णेहिं दसहिं दसहि हउ थूणा-कण्णेहिं किव-दुम्मरिसण-सिंधव-राएहिं विद्व तिहिं जि तेत्तेहिं पाराएहिं सल्ले णवहिं तिहिं जे कियवम्मे वीसहिं दुम्मुहेण दढ-बम्में विहिं विंदाणुविंद-णामाणेहिं विज्झइ पंचहि पंचहि वाणेहिं तेण-वि तिहिं तिहिं हणेवि महारह भग्ग गरिंदउत्त एयारह ४ घत्ता साहारिय आसात्यामेण लए लेहु लेहु जइ इच्छहु मं भज्जहो एक्कहा जणहो महि देणहु दुजोहणहो । Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्त चालीसमो संधि १४३ [१२] गुरु-सुय-वयणेहिं वलिय पहाणा भीमें सव्व पडिच्छिय राणा किव-कियवम्म-सल्ल हक्कारिय पंचहिं पंचहिं सरेहिं णिवारिय अट्टहिं उरसि विद्ध कियवम्मउ णवहिं जयदहु किउ णिद्धम्मउ हउ विंदाणुविंदु छहिं थारहिं दुम्मरिसणु वीसाहिं णाराएहिं सम्वेहि तिणि तिण्णि सर पेरिसराय तिहिं तिहिं तोमरेहिं णीसेसिय झत्ति सत्ति भययत्तें मेलिय सएण णउत्तरेण स-वि भेल्लिय तोमरु सिंघवेण गुणे लाइउ लेवि खुरुप्पु सो-वि दोहाइउ जो जो जं जं पहरणु धत्तइ तहो तहो तं तं भीमु विहत्तइ धत्ता तहिं अवसरे धय-धूमाउलु सर-जालोलि-विराइउ । कुरु-साहण-वणई उहतउ अज्जुण-हुयवहु आइउ ।। ९ एक्कहिं मिलिय किरीडि-विओयर ण क पवण पवण-वइसाणर चक्क-रक्ख थिय विणि सिहंडिहे ढुक्क महाहवे कंडाकंडिहे जो जो को-वि भिडइ आरुढउ तहिं अवसरे रण-रामासत्तउ पेसिउ दुज्जोहणेण तिगत्तउ x x जाहि जाहि परिरक्खु पियामहु भेवि धरहि धणंजय-आउहु तेण-वि किउ आएसु णरिंदहो भिडिउ गंपि गंडीव.मइंदहो किव-सुसम्म-मद्दाहिव दूसह दुम्मरिस. भययत्त.जयद्दह सत्त-वि तिहि तिहिं सरेहिं वियारिय अवर-वि फग्गुणेण हक्कारिय ८ घत्ता . लइ ढुक्कहो सत्र मिलेप्पिणु महु कल्लेवडउ. करतहो पत्थु धरिज्जइ जेत्तिएहिं । कवलु ण पुज्जइ एत्तिएहि ॥ ९ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ रिट्ठणेमिचरिउ [१४] तो सयलेहि-मि गरिदेहि थक्केहिं पंचहिं पंचहिं विद्ध पिसक्केहि हसमाणे णव-पवर-रहत्थे भिदेवि भिंदेवि घत्तिय पत्थें मद्दाहिवेण णिहउ पुणु सत्तहिं तव-सुउ तिहिं णारायणु पंचहिं णव णाराय विओयरे लाइय | तिण्णि ताव सामंत पराइय कलसद्धय-जयसेण-जयद्दह णाई धणागमे खुहिय मह-दह पर वल-पाण-महाधण-थेणे अट्टहिं सरेहिं विद्ध जयसेणे पंचाणण-चिंधेण सुधीमें पंचासेहिं णिवारिय भीमें खंडिउ रहु जुत्तारु वियारिउ हय हयवर कह-कह-वि ण मारिउ पत्ता तहिं अवसरे दोणापरिएण पंचसट्टि सर पट्टविय । ते भीमें णवहिं स-सट्ठियहिं अहि-व खगिदें णिट्टविय ।। ८ ताव गरें णबहिं जाराएहिं विद्ध तिगत्त-गत्त तिहिं थाएहिं जायइं जुञ्झई भडहं विचित्तई सरि-सुय-रक्खण-हणण-णिमित्तई सल्ल-जुहिट्टिल-कोसल-पंडिहिं दुमय-दोण-गंगेय-सिहंडिहिं सव्वसाइ-भययत्त णरिंदह भीमु पधाइउ मत्त-गइंदहं आसत्थामु वरिउ जुजुहाणे पउरउ धट्टकेउ-गामाणे दुज्जोहणु अहिमण्णु-कुमारे सिंघउ मच्छे विक्कम सारें अवरेहि अवर तुरंग वुर गेहिं रह रहवरेहिं मयंग मयं गेहिं धत्ता चल-वहल-धूलि.अंधारए वलई परोप्परु ढुक्कियई। छत्त-धय-चामर-चिंधई पहरण-जलण-झुलुक्कियई॥ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तचालीसमो संधि १४५ सल्ल-जुहिट्ठिल भिडिय परोप्परु संपहारु पडिवण्णु भयंकर कोसल-पंडिहिं तिह रणु किज्जइ जिह विहिं एक-वि जिणइ ण जिज्जइ दुमय-दोण पहर ति पिसककेहिं साहुक्कारिय णरवर-चक्केहि जण्णसेण गंगेय समच्छर वावर ति परिओसिय-अच्छर रणु भययत्त-किरीडिहे जेहउँ दुक्कर रावण-रामहुँ तेहउ गय-घड भीमहो भएण णिलुक्कइ जिह णव-वहु णव-वरहो ण ढुक्कइ सच्चइ-आसत्त्यामहं संगरु जाउ घोरु परिओसिय सुरवरु पउरव-धट्ठकेउ समरंगणे खगा-फरावसेस थिय तकखणे धत्ता असि-धाएहिं हगेवि परोप्पर मुच्छ पराइय वे-वि जण । णं जुय स्वय-काल-पहावेण णिवडिय महि यले विज्जु-धण ॥९ । [१७] घट्टकेउ जमलेहिं परिवारिउ पउरवु कउरवेहिं ओसारिउ कुरु-णरिंद-अहिमण्णु-कुमारह जाउ महाहउ विक्कम-सारहं सुइरु करेवि घोरु कडवंदणु छहिं छहिं सरेहिं विद्ध णर-णंदणु छित्त सत्ति देवइ-सुय-जाएं छिण्ण खुरुप्पे कउरव-राएं स-सर-सरासग कर-परिहच्छह रणु एत्तहे-वि जयदह-मच्छह एत्तहे सुट्ठ रु? धज्जुणु कढिय सर विप्फारिउ धणु गुणु अंतराले थिउ णिरुवम-चरियह दुमय-णराहिव-दोणायरियह एत्तहे सरि-तुरण पहर ते पंडव-साहणे पलउ करतें धत्ता सामंत-सत्थु विणिवाएवि जिणेवि अणज्जुण वइरि.सय । दह दह रह-तुरय-गइंदहं भडह चउद्दह सहस हय ॥ ९ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ रिट्ठणेमिचरिउ [१८] पंडव-लोउ सव्वु आदण्णउ वट्टइ धम्म पुत्त उच्छण्णउ संतणु पलउ करतु ण थक्कइ अ-वलु सिह डि जिणेवि ण सक्कइ तो धज्जुणेण णि भच्छिउ भणु एत्तडिय वार कहिं अच्छिउ अज्ज-वि सरेहिं ण छिज्जइ संदणु अज्ज-वि जीवइ गंगा-णंदणु अज्ज-वि कउरव-बलु मंभीसइ अज्ज-वि फरहरंतु धउ दीसइ अज-वि तणु-तणुताणु ण फेडइ अज्ज-वि धुरिउ तुरगम खेडइ अज्ज-वि सामिउ हियइ विसूरइ अज्ज-वि परम जयास ण पूरइ तं णिसुणेवि सिह डि आरुट्टउ मत्त-महा-गइंदु णं दुट्टउ पत्ता सर पेसिय दुमयहो पुत्तण णं मलयह सोसण-सीलेण रिउ-वह-कम्म-कियायरेण । दूसह किरण दिवायरेण ॥ ९. जे पट्टविय दुमय-दायाएं ते सर छिण्ण सब जुयराए. रहवर छत्त दंड धय तोडिय य गय णर णरिंद वहु पाडिय सो-वि धणजएण विणिवारिउ कउरव-लोउ सव्वु पच्चारिउ जाणिय-णिरवसेस-धणुवेयहो सिहि व सिहडि ढुक्कु गंगेयहो ४ संतण-तणुरुहेण दुल्लक्खें दसहिं सएहिं सहासें लक्खें धण-जालेण व मग्गण-जाले छाइउ जण्णसेणि असराले पर-क्लु णिरवसेसु ओवग्गइ एक्कु-वि सरु ण सिहडिहे लग्गइ धम्म-पुत्त जहिं तहिं जउ धम्महो णाहि विण सु पुराइय-कम्महो ८ । धत्ता अ.पमाणई वज्ज-समाण महिहर-सिहर-वियारणइ । जसु मणुसहो दइउ सहेजउ कि कर ति तहो पहरणइं ॥ ९ Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तचालीसमो संधि [२०] तिहिं सिलीमुहेहि रिउ छाइय रहियह पंच सहस विणिवाइय भणइ जुहिट्ठिलु अहो वय-धारा वरि मारहि अम्हई जि भडारा पय-पूरणेहिं काई जीयतेहिं दुक्खहं भायणेहिं सुह-चत्तेहिं वारह वरिसई वसिय वणंतरे वरिसु विराडहो केरए पुरवरे मग्गिय पंच गाम णउ दिण्णा सुहिय भाव-कारणे णिविण्णा धम्म-पुत्तु करुणामय-सिंचिउ अण्णु-त्रि कुरुव-णराहिउ किंचिउ सेवा-धम्म-सुहह णिविण्णउ थिउ जीवेवए णिहाखिण्णउ सिरु सामिहे महि पंडन-रायहो पाण सिहडि-वाण-संवायहो धत्ता मणु सासय-पुर-परिपालहो एम चयारि-वि देवाई। आराहण-गंगा-संगमे गई मई चित्तेवाई॥ ९ [२१] जं केवलिहिं आसि आइट्ठउ तं गंगेयहो हियए पइट्ठइ अवसु सिहडिहे सरेहिं मरेवउ एवमि एवमि वरि पहरेवउ मं वोल्लेसइ को-वि अ-विणीयउ जिह णइ-णंदणु पाणह भीयउ एम भणेवि ओवडिउ पडीवउ कुरु-कुल-भवणुज्जोयण-दीवउ मनोरण-दीवउ ४ जे सर घिवइ तर गिणि-णंदणु ते लग्गंति परहो णं चंदणु जे पट्टवइ सिह डि सिलीमुह ते णिवडंति णाई वज्जाउह दसहिं पियामहु दसहि सरासणु सारहि दसहिं दसहि तल-लंछणु वीयउं तीयउं एम चउत्थउ पुणु पौंचम छिण्णु पुणु छट्टउं ८ धत्ता धणु जं जं लेइ पियामहु तं तं छिंदइ दुमय-सुउ । । मग्गणहं असेसु वि दितउ महियले णिद्धणु कोण हुउ ।। ९ ।। Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ रिट्ठणेमिचरिंउ [२२] थिउ णिद्धम्मु धामु चितंतु-वि देहावरणु भिष्णु सहुं देहे धित्त सत्ति सहसत्ति पजिय सत्तिउ विण्णि अणेय चावई वे-वारउ तुरंग सर-ताडिय थिउ रेहउ कड्ढंतु महीयले आउ आउ रणु मुएवि महारह पइं कोमार-वंभ-वउ चिण्ण ४ विरहावत्थु पत्त वयवंतु-वि णं महिहरु णउ पाउस-मेहें स-वि पंचहिं सरेहिं पविह जिय दुमय-सुरण कियई अ-पयावई सारहि विण्णि विण्णि रह पाडिय हक्कार ति देव-रिसि णयले वंभुत्तर पइसरहि पियामह णिय-धणु दीणाणाहह दिण्णउ ८ घत्ता तहिं काले सिहडिहे वाणेहिं णइ-गंदणु भिण्णु णिरतरु अहिणव-वण्ण-स.धाउएहिं । सद-धम्मु जिह वाउएहिं ।। ९ [२३] तो-वि ण कंपिउ गंगा-णंदणु .. अ-घउ अ-सारहि अ-धणु अ-संदणु करे करवालु करेप्पिणु णिम्मलु ___चम्म-रयणु उरे धरेवि समुज्जलु घाइउ पलयाइच्च-समप्पहु सर-किरणेहिं णिवारिउ दूसहु दुमय-सुरण ताम सय-चंदउ छिण्णु स-मंडलग्गु वसुणंदउ भिण्णु णउत्तरेण संय-धाएं पुणु-वि खुरुप्प-सरण स-माएं तो पंडवेहि मिलिउ अखत्त सोमय-सिंजय-वलेण समत्ते णं अंवुहरुण माइउ धारेहिं . पाडिउ दिणमणि णाई पहारेहि पेच्छावहि सर उर पडिलग्गा अलि जिह कुसुम-पायव-वलग्गा ८ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तचालीसमो संधि १४९ घत्ता कुरु-साहणु भग्गु असेसु धवलंतु सयं भुवणंतर पुणु गयणे दिवायरु अत्यमिउ । जसु पंडवह परिब्भमिउ ॥ ९ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभूएव-कए सत्तचालीसमा इमो सग्गो ॥ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टचालीसमो संधि सरेहिं णिरंतरु पूरियउ गंगा-गंदणु धरणि ण पावइ झत्ति पडतउ णहयलहो किरणेहिं धरिउ दिवायरु णावइ ॥१ [१] जं पडिउ पियामहु कुरुव-त्रीरु सायर-गंभीर गिरिंद-धीरु पलयग्गि-पयंग-समुग्ग-तेउ तं रहवर वाहेवि पवण-वेउ दूसासणु भीम-भएण ण? णं तक्खणे तक्खय-णाय-तट्ठ णं हरिणु-व हरिणाहिवहो चुक्कु णं गहवइ गह-मुह-गाह-मुक्कु कुरु-गुरुहे णिवेइय तेण वत्त लइ ताय पियामह-कह समत्त तं वयणु सुणेविणु भग्ग-घोणु ओणल्लु महारह सिहरे दोणु स-सरासण हत्थहो पडिय वाण परिरक्खिय मुच्छए कह-वि पाण किउ कम्मु सिहडिए रणे रउद्दउ रवि पाडिउ सोसहो णिउ समुद्दउ पल्लटिउ जगु मारिउ कयंतु लइ एवहिं चुक्कइ को जियतु ८ घत्ता वज-खंभे जहिं होंति घुण जहिं अमर-वि मारिय मति । वइरु करेवि सहुं पंडवेहि तहिं अम्हारिस काई कति ॥ ९ [२] पंडव-कुरु संगरु पय? तेत्थु संतणु सर-सयणे णिवण्णु जेत्थु जल-धारा-घोरणि-धरिय-देहु वरिसंतु णिहालिउ णाई मेहु Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अचाटीसमो संधि वेदेवि निगूढ-पय-जंगमेह अरहट्ट-तुं णं अर-वरेहिं सव्वंगिय- पसरिय-वेयणेण कुरु पंडव वयण-विमद्दणेण जइ ढुक्कई विणि-त्रि साहणाई मुवि परोप्प करहो णेहु जो मुउ सो मुउ किर कणु दोसु घट्टज्जुण-दोण म कलि करंतु तं णिसुणेवि सव्वेहिं पत्थि हिं कुरु-जायव-सोमय - सिंजएहिं पडवण्णु वयणु इ-णंदणासु एक तहे जायव णिरवसेस एक्कत हे पंड मिलिय सव्व णं चंदणु रुद्र भुयंगमेहिं तं सो-जि निरंतरु सरवरेहिं कह-कह-वि समागय- चेयणेण वोल्लात्रिय गंगा-णंदणेण तो छंडहो पहरण - वाहणाई घोसहो अ-मारि परमत्थु हु धत्ता जुज्झतह दस-वि दिवस गय तो-वि महाहउ णाहि समत्तु । हत्रण - पुज्ज-महिमई करहो को जाणइ किर जीविउक्त ॥ ९ णिएवि पियामदु सर-सयणे कुरु-कुल- लग्गण-खंभु गउ [३] दुज्जोहण भीम मुअतु रो... कण्णज्जुण मच्छरु परिहरंतु पंचाल पंडु-मच्छाहिवेहिं अवरेहि-मि पवर- पुरं जएहि ओहत्थाणु (?) ढुक्कु पासु अण्णेत्त मांगह थिय असेस अण्णेत्त हे कउरव गलिय - गव घत्ता १५१ ४ ४ वाह भर तणायण विद्दाणा । धाह मुवाविय सयल- विराणा ॥ ९ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ रिट्ठणेमिचरउ कुरु-पंडव-जायव-मागहेस सम्माणिय गरवइ गिरवसेस के-वि पिय-हिय-वयणासीस देवि कर-कमल-परिमरिसेण के-वि के-वि सिरेण के-वि महि-मंडलेण के-वि दाण-पवरिसेण विरलेण जं आयउ पुव्व-कमेण दव्वु तं दीणाणाहह दिण्णु सव्वु परिपूरिय पणइहिं परम तित्ति आहार-सरीरह किय गिवित्ति विहिं थूण-कण्णेहिं मग्गणेण उवहाणउ किजइ फरगुणेण तहिं अवसरे आय विसुद्ध-वंस वे हंस महा-रिसि परम-हंस अइ-घोर-वीर-तव-तत्त-देह परमेट्ठि-पाय-पंकय-दुरेह घत्ता जीव-दया-वर गयण-गइ वागीसर जर-मरण-वियारा । पज्जण्ण-विणिम्मियहि फलिह-सिलहे उवविट्ठ भडारा ॥ ९ पोमाइउ सरि-सुउ जइवरेहिं अच्चंत-मउय-महुरक्खरेहि पई मुएवि पियामह कवणु वीरु जगे अण्णहो कहो एवड्डु धीरु को सुएवि समत्थु (१) सर-सयणे को अच्छइ महिण छिवंतु गयणे तं वयणु सुणेविणु सच्च-संधु दुद्धर-वय-भर-धुर-दिण्ण-संधु णइ-णंदणु पभणइ सर-विदिण्णु मई एण सरीरें तउ ण चिण्णु गुरु-पंच-महावय-भरु ण वूदु अच्छिउ वामोहण-णियले छुटु इह-लोइउ एक्कु विसउ ण लडु कक्कडउ वणिय-णंदणिहि खद्ध लइ एवहिं तुम्ह पइटु सरणु संपज्जइ जेण समाहि-मरणु घत्ता पुशु वि पियामहु विण्णवइ मयरकेउ-सर-णियर-णिवास । चउ-विह-फल-संपत्तिकरि लइ आराहण कहहि. महारा. ॥२ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठचालीसमो संधि [६] तो कहइ महारिसि णवेवि सिद्ध चउरंगाराहण फल-समिद्ध आराहण रयण-त्तय-विसुद्धि आराहउ अण्णु ण का-वि बुद्धि तव-दंसण-णाण-चरित्त-वग्गु सो आराहेवउ एक्कु लग्गु आराहण-लयहे समुज्जलाई सग्गापवग्ग-सोक्खइ फलाई सम्मत्त-चरित्ताराहणेण चउ-विह आराहण दु-विह तेण उवसमियइ खाइउ उहय-सिद्ध सम्मत्तु ति-विहु आगमेण सिट्ट जो तिण्णि-वि आराहेवि समत्थ सम्मत्ताराहण सा पसत्थ चारित्तु पाव-किरियहे णिवित्ति तव-दंसण-णाण-पहाण-वित्ति धत्ता णाणु वि आराहिय वोहयरु तउ मलहरु णयण-णियत्ति चरणे पुणु आराहिएण आराहियई असेसई होति ।। [७] चारित्तु णिरुज्जउ किं करेइ ससिवि'वु व णिप्पहु दिहि ण देह संतउ वि ण सक्कइ हणेवि कम्मु । णिदालस-भावें खवइ जम्मु आराहण-विहिं पावइ ण जेट्ट चारित्ते करेवी तेण चिट्ठ सोहइ चरित्तु जिह उज्जमेण तव-चरणु तेम सहुं संजमेण ४ संजम-परिहीणहो तउ णिरत्थु उण्हालए महिहर-मत्थुयत्थु तरु-मूले घणागमे जोगु लेउ सीयालए वाहिर-सयणु देउ भक्खउ रवि-किरणई पियउ वाउ उभिय-भुय एकंगुढे थाउ पंचरिंग णिसेबउ खबउ देहु अण्णाण-किलेसु असेसु एहु ८ घत्ता संजम-विरहिउ तव-चरणु साह ण देह जइ-वि बहु-माणउं । करि जिह पहाएवि विमल-जले धूलिए पडिलिपइ अप्पाणउं ॥ २ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ रिटणेमिचरिउ [८] सत्तारह मरणइं भासियाई संखेवेण पंच पयासियाई पहिला उं पंडिय-पंडियक्खु जो मरइ तेण तहो परम-मोक्खु वीय महरिसिहि तवेण चिण्णु तं पंडिय-मरणु ति-भय-भिण्णु पाओय-मरणु इंगिणिय-मरणु चउ-विह आहार-णिवित्ति-करणु ४ मुउ तेण पमत्तई करेवि आउ चउ-ठाणिणि उवसम-सेटि जाउ तइयां सिसु-पंडिउ णामधेउ पंचम-गुण-थाणु गिहत्थ-हेउ गुण-थाणु चउत्थु चउत्थएण मरणेण वाल-णामुत्थरण पंचम बाल-बालाहिहाणु जो मरइ तेण तहो पढमु थाणु ८ धत्ता पंचह मज्झे पसंसियई तिण्णि तिलोय-दुक्ख-परिहरणइं । पढम-दुइज्ज-तइज्जाइं केवलि-साहु-गिहत्थहं मरणई ॥ ९ [९] जो लेप्पणु दुक्कर दुरुवरसु परिहरइ जिणागमु जिरवसेसु गणहर-विचिण्णु दस-पुव्व-सुत्त पत्तेक-वुद्ध केवलि-पवुत्त अत्तागम-परम-पयत्थ-चत्तु आसंक-कंख-विदिगिच्छ-वंतु जपइ पर-दिट्टि पसंस लेवि अणु-दियहु पराय-अणोबसेहि मायावि अणुज्जउ पयइ-खुदु सो मिच्छा-दिट्टि महा-रउद्द छद्दव्व पंच गुरु णव पयत्थ सदिय जे ते दंसणत्थ उत्समियां खाइउ उहय-सुद्ध सम्मत्त ति-विहु दिदु जेहि लद्ध ते सम्माइट्रि ण का-वि भंति पुवक्खिय-गुण-ठाणेहि ठंति धत्ता जं तइलोय-महग्धयर दिणयर-कोडि-समुज्जलगत्तउं । तं सभ्मत्त-महा-रयणु जसु घरे तेण ए काई विढत्त ॥ ९ Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टचालीसमो संधि [१०] आयण्णउ पोत्था-वायणाई मलु धरउ चरउ चंदायणाई सेवउ तरु-मूलई पिउ-वणाई वाहिर-सयणई अत्तावणाई विसहउ बावीस परीसहाई इंदियई परज्जउ दूसहाई सम्मत्त-विहणई दिहि ण दिति णवखराइं किं तमु खयहो णिति तउ संजमु णियमु चरित्तु णाणु दय-धम्मु सच्चु सज्ज्ञाउ झाणु गुत्ति-त्तउ पंच महावयाई अणुवय-गुणवय सिकवावयाई आयई अवरइ-भि अशुट्टियाई सब्बई सम्मत्ते परिट्टियाई जिह सायरे सव्वई सरि-मुहाई जिह सासय-पुरे सासय-मुहाई धत्ता सत्रहो पुरहो पउलि जिह जिह पायवहो मूलु अहिटाणउं । जिह चूडामणि मणि-गणहं तिह सबह सम्मत्तु पहाणउं ।।.. सम्मत्ताराहण हाइ एम चारित्ताराहण कहमि जेम तहि भत्त-पइण्णउ दुइ-पयारु स-वियारउ चालीसाहियारु अ-वियारउ तेत्थु णिरुद्ध पवरू तवबंतु परम-सद्धाइ अवरु स-वियारहो तहि पढमाहियारि परिचाउ करेवउ देह-हारि कर-चरण-सवण-लोयण-विणासे दुक्कालागमणे वण-प्पवासे वय-भंग-पयारए वंधु-वग्गे वुदृत्तणे घोरे महोवसग्गे दुन्त्रिसह-वाहि-अभंतराले अवरे-वि अणिढे अरिट्ठ-काले अवहत्यिय देह-महाभरेण सण्णासु करेवउ जइवरेण ঘর। लोउ अ-चेलिम पडिलिहणु तणु-वियार-बोसिरणु करे उं । बंभचेरु चिंधउं धरेवि अवरु चउठिवह-चरणु चरेवउ ॥ ९ Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ रिट्ठणेमिचरिउ दुक्कणिया-पमुह-दयावरेण सिरे लोउ करेवउ जइवरेण परिहाणु चएवउ तवसिएण णिगंथ-मोक्ख-मग्गासिएण पढिलिहणु करेवउ कमल-मत्त कर-चरण-अट्ठ-कत्तरि-णिमित्त परिचाउ करेवउ मज्जणाहं उबट्टण-मलणभंजणाह पहाण जण-धूव-विलेवणाहं गह-छेय-दियावलि धोवणाह तो पावेवि दइयं वरिय दिक्ख सिक्खेवी पुणु णिरवज्ज सिक्ख सुय-केवलि-गणहरएव-दिट्ठ पत्तक्क-बुद्ध-दस-पुन्वि-सिट्ठ ण पडिज्जइ णयर-समुद्दिजाए थाइज्जइ थाइए परम-याए धत्ता सिक्खेवी सिक्ख महा तवेण विणउ करेवउ जो जिण-भासिंउ । काइउ वाइउ माणसिउ दसण-णाण-चरित्त-तवासिउ ॥ [१३] जसु विणउ तासु दंसणु पहाणु जसु विणउ तासु वित्थरइ णाणु जसु त्रिणउ तासु चारित्तु थाइ जसु विणउ तासु तवचरणु. भाइ विणएण विढप्पइ परम धम्मु विणएण सुमाणुसु देह-रम्मु विणरण रिद्धि विणएण सोक्खु विणएण सम्गु विणएण मोक्खु लभइ विणएण समाहि-मरणु ण समाहि मुएवि पर परम-सरणु मणु तुरउ धरेवउ दमेवि तेम वय-दावणु मुएवि ण जाइ जेम मण-मत्त-महा-गउ विसम सीलु सुर-णर-फणिंद विदवण-लील्लु कड्ढेवउ णाणंकुसेण तेम ण मुयइ सझायालाणु जेम धत्ता सलिलहो मज्झे मय कु जिह णिय-मणु घरोंव ण सक्कइ कोइ । जेण समाहि-मरणु लइउ सो पर मोक्खहो भायणु होइ ॥ ९ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्टचालीसमो संधि ण समाहि अभवहु णरवरासु सो जइवरु जो अणियय-विहारि तरु-वाहिर-रयणत्तावणेहि थंडिलेहिं मसाणेहि गिरि गुहेहिं परभागम-लोयणु भमइ भिक्खु वसुम- पत्थर भुवोवहाण इह जम्मणु इह णिक्खमणु णाणु सद्दिट्टि दिटत्तण-भावणाउ आयई पंच महाफलई ज-विमणेण विभावियई हिरेपणु सव-दयावरेण दुप्पालाई परिपालियई वयइ सिद्धंत समुद्दहो दिट्ठ पारु मुह - कुहरे जाम उ खलड् वाय द कटिण जाम भुत्र-दंड बे-वि जावण्णग- वि भज्जइ जरए पुट्टि जावण्ण-वि गीवा - अंगु होइ दुभिक्ख- डमर-दुत्थई ण जाम पक्कई पंथ-महा- दुम-डालें । लहर महारिस विहरण- कालें || [१५] परिणाउ करेवर जइवरेण णिप्पण्णई सीस-पसीस-सयई वरि एवंहि मुयमि सरीर भारु थिर जाम जाणु - जंचोरु-पाय कर-मुइहो दितिजा कवलु लेवि पण लग्गइ मत्थए जाम दिट्ठि जावण्ण-वि विहडइ संधि को वि वरि भत पण करमि ताम धत्ता सुद्ध परिणाम करेउ । दु-बिहु परिगहु परिहरिएवउ || सल्लेहण-भावंतरण मुएवि कमंडलु पडिलिहणु [१४] सावयह होइ जिम जइवरासु अणुगामिउ (?) केवल - चरण-चारि पुर-यर- खेड - पट्टण-वणेहि कन्नड-मडंव-दोणामुहे हिं कउहंत्ररु पावरिअंतरिक्खु तिण-कणय- कोडि अरि- सुहि- समाणु णिव्वाण णिवाणइ वंदमाणु अच्छण्णु खेत्तु परिमग्गणाउ घत्ता • १५७ ८ ९ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ दस सुद्धि व पविवेअ जासु रयण-तय-विणयावास सुद्धि वइणइय सपाणाहार-सुद्धि देहें दिय उवहि- कसाय- चाउ दवासिय भावासिय वित्रेय चडिएवी गुण-सोवाण-पंति जा सासय-पुरहो णिसेणिभूय जा गुण-संपत्ति परम-हेउ भाव - णिसेणि समारुहेवि जिह सङ्घ केण- विपत्थवेण भावणउ पंच भावेवि आउ गुणियाउहु राय - कुमारु जेम तव भावण भाविउ जसु सरीरु सुय भावण भाविउ देहु जासु जो सत्त भावणा- भावियंगु एकत्त-भावणा- भावियंगु दिहि भाव - भावियावयव जासु इय पंच भावणा भावियंगु तर अणसणु अवमोयरिउ काय - किलेस - समाण [१६] सल्लेहण काले समाहितासु संथारालोयण - उबहि-सुद्धि जसु जायठ तासु समाहि सिद्धि संथारासण-मोयण-विराउ सु करेत्रा मरण-मणे एय जहि उत्तम सत्त समारुहंति गय जाए महारिसि सुप्पय पर सिद्धेहि जाणिउ जाहे छेउ रिट्टणेमिचरिउ घत्ता संघाहित्रेण समउ वोलेवर | पढम थाणे जणे मोणु लएवउ || [१७] संकिट्टर पंच मुवि ताउ कज्ज-खमु महा-रिसि होइ तेम सण्णास-काले सो परम-धीरु तर दंसणु णाणु चरित्तु तासु उवसगे-त्रि तहो ण कयावि भंगु सो केण - इ सहुंण करेइ संगु स धराधर - धीरिम होइ तासु सल्लेहण - कालहो कोण जोग्गु धत्ता रस-परिचाउ वित्ति - परिमाणु । छवि हि सण्णास - विहाणु || ४ ८ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अडचालीसमो धि अणसगु दु पयारु तव पहाणु अवमोरित वत्तीस-गासु अह पुरिसहो साहिय जाम तीस रस-चाउ करेवर जवरेण भुजेवर भत्त दिक्क - कालु वित्तइ वि-सप्पि वि-लवणु-विसुद्ध उ सक्कर गुलु तत्र-राउ खंडु सवणच्छि-फरिस - वाणिदिया ई पसंतें चरिया - गोयरेण भुजेव पत्ते एरिसेण विहरे एम अवग्गहेहिं गय-पडियागय-गोमुत्तरहि परिवज्जिय-गोउर-तोरणेडि भिक्ख परिगणणाणुक्क मेहि इय एक्क - वित्ति परिसंख जासु पुणु कालु गमेवर जइवरेण एण जिणागम-भासिएण हत्य-गेज्नु तहो मोक्ख-फलु अणुसूरिय-पडिसूरिएि पडिमा जोय-चउम्मुहे हिं [१८] कालावहि आमरणात्रसाणु ऊणूणु सिन्धु जावेक्क-गासु महिल-वि कवल जा अट्ठावीस जसु कारणु सासय- पुरवरेण स- वसाणु स पाणिउ सारणालु अ- चि·ि डिल्लि अ-महिउ अ-दुदु स- सरीरे करेवड एम दंडु जीर्हदिए जिए सवई जियाई धत्ता जो संचरई महा-रिसि - मग्गे । कारण कवणु वराएं सम् ॥ [१९] परिसंख करेवी जइवरेण जइरण धरिज सुपुरिसेग णिय जीहाणाई (?) णिग्गहे है भामरि संवुक्कावत्ति मासिक-सित्थ-कय-पारणेहिं पुप्फोवहार-परिहोवमेहि कर- गेञ्झई सव्वई सुहई तासु णिथ- काय-किलेसें दुक्करेण धत्ता उद्ध- तिरिय-सूरिएहिं भमेव । इंदिय सब णिरोहु करेवउ || १५९ ४ ८ ९ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० रिट्टणेमिचरिउ [२०] सम-चरण-एक्क-चरणाइएहिं वीरासणद्भ-वीरासणेहि गिद्धोयलीण-गय-सोडिएहि गो-सयणु-त्ताणुग्गुडिएहिं अज्झोक्यास-णिसि-जगणेहिं पलिय कण-पलियंकणेहि गोदोहण-कुक्कुड-विभभेहिं उदंड-बायमडओवमहिं छट्ठट्ठम-दसम-दुवारसेहि आहार-विसेसेहिं शीरसेहि किउ दुक्कर काय-किलेसु जेण संसार-महण्णउ तिण्णु तेण णिवसेवउ अवरु विचित्त-थामे तरु-कोडरे गिज्जणे सुण्ण-गामे उज्जाणे मसाणे गुहतराले गिरि-सिहरे सिलायले वोल्ल-जाले ८ धत्ता वाहिर-तवे आराहिएण होइ णरिंद सई भुवेहिं अन्त र-तवो-वि आराहिउ । सव्वु कसाय-राय-गणु साहिउ ॥ २ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सय भुएव-कए अट्टचालीसमो इमो सग्गो ।। Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उणपणासमो संधि गंगेयहो हंस-महा-रिसि इंदभूइ मगसरहो | आराहण कहइ पयतेण गंगेयह चारण- रिसिणा मल - हरणइ मोक्खहो कारणइ सारहु लिंगु सिक्ख विष्णासिय सहुं अणियय-विहारु परिणामें भाव - णिसेणि पंच - विह भावण वार पगरणाई महि सिउइ raan - दिस पगरणु तेरहमउ सुद्धायारु महा-गुणवंतउ एलाइरिउ परिट्ठत्रिएव देह - भारु हउं बहेवि ण सक्कमि जगु भक्खिर सायरु सोसिउ कंचुवर जेम अहि मेल्लइ सल्लेहण - विहाणु मणे भावेवि संधाहिवेण महा-गुणवंते रि- ११ जिह समाहि भव्वो णरहो || १ वार सुन्तई अक्खियइ' । ते जि णिय-मणे लक्खियइ ||२ [१] सहं विणण समाहि पयासिय उबहि- परिग्गह- इ-धज जण-गामें अभितर वाहिर सल्लेहण जाइ पंच परमेट्ठिहि दिइ णिरवसेसु सीसा - परियामिउ अविसम - सीलु दया- दम-वंतउ संघाहिवेण संधु पत्थेव उ निवडइ जेत्थु तेत्थु परिसक्कमि ८ घन्ता तो-वि ण पात्रहो जाय दिहि | मुर्यामि ते दुक्ख - णिहि ॥ ९ [२] गोखमेव गणु सयलु खमावेवि अणु - सिक्aत्रण करेवी जंते' Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ रिटणेमिचरिउ संजम-णीसारेहि अवहत्थेहि संगु ण किज्जइ सहुं पासत्थेहि केण वि महुं विवाउ ण करेवउ मण-करि णाणंकुसेण धरेवउ ४ णिय गणु चक्खु जेम रक्खेवउ परु अप्पाणु समाणु करेवउ परिहरिएवउ लोयह सावणु ___णह-छेयणु दसणाल-धोवणु अंजणु पाय-रक्खु तणु-ताणउं धुप्पि-समलणुव्वत्तएण-हाणउं दसणु णाणु रित्तु धरेवउ संजमत्थु तव-चरणु चरेवउ ८ घत्ता पालेका पंच महा-वय पंचेदियइ दमेवाइ । जीहोयर-कर-कम-गुज्झइ आयइं अंकुसिएवाई। [३] ४ देव-भत्ति गुरु-भत्ति करेवी चेइ-भत्ति सुय-भत्ति करेवी अभय-दाणु छज्जोवह देवउं विसय-कसाय-सेण्णु भंजेवउ महिला-संगु सुठु विरुवारउ दुक्किय-कम्म-णिवंधण-गारउ सो सप्पुरिसु जुवइ जो छंडइ । जाहे पहावे जोगिहिं हिंडइ जइ ण णारि णारितणु सारइ तो सव्वहो विमोक्खु को वारइ सो णरु तित्थयरत्तणु पावई सोलह कारणाई जो भावइ मूल-गुणवोस पालेवा स-परीसह उवसग सहेवा साहम्मिय-वच्छल्ल करेवी एव एह अणुसठि लएवी घता मंघाहिउ एलायरियहो अपरिग्गहु मोह-विवज्जिउ सम्व समापेवि णीसरइ । पर-गण-चरिए पइसरई ।। Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उणपण्णासमो संधि १६३ [४] तहि मि खेत्ते परिमाण किज्जइ मंधाहिव हो पासु दुक्किजइ आयाराइ-अट्ठ गुण गणिया आचेलक्क-पमुह दह भणिया बारह तब छावास-विसुद्धा गुण छत्तीस ओए अविरुद्धा जसु सो परमायरिउ पगासिउ तं विण्णवइ णवेवि सण्णासिउ ४ के तउ कु कलेवरु परिवड्ढमि तुम्हहौं पाय-मूले परिछड्डमि भणइ महा-रसि तुहुं जगे धण्णउ जसु वइरग्ग-भाउ उप्पण्णउ मरण-मणोरहु दूरुवराइय लइ आराहण वीर-वडाइय धीरउ होहिं जाम जत्तारेहिं आलोयमि सहुँ णिय-परिवारहिं ८ धत्ता परिचितेवि सीसायरिएहि णिउणत्तणेण णिरिक्खियउं । कस-ताव-छेय तिहिं भंगिहि जहिं दीणारु परिक्खियउं ॥ ९ [५] ४ दिवस-वार-णक्खत्त-मुहुत्तेहि होरा-कड्ढण-दिव्व-णिमित्तेहि देस-रिंद-साहु -गण-सत्थेहि आएहि अवरेहि-मि सुह-उत्थेहि संघाहिवेण संघु पुच्छेवउ तेण-वि खबग-भारु इच्छेवउ एक्कु णिविठु दव्बु सत्थारए थिउ भावंतु अवरु तहि वारए आगमे तइयउ खवगु णिसिद्धउ धूमारहि थाणु सुपसिद्धर भणइ म -रिसि आगम-लोयणु दिक्खहे लग्गेवि करि आलोयणु कंटउ डहइ पाए जिह भग्गउ तिह कलंकु जो हियवए लग्गउ सो कड्ढणह तीरइ हत्थे परिफिट्टइ आलोयण-सत्थे Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ रिटुणेमिचरिउ घत्ता जइ ण गयई कह-३ पमाएण सल्लई हियवए लग्गाइ। तो भव-चउरासी-लखेहिं दुहइ देति आवग्गाइ ॥ ९ [६] माया-मिच्छा-भाव-णियाणइ तिण्णि-वि सल्लइ सल्ल-समाण जेण ण फेडियाइ अवलोएवि तहो दुहु दिति अचस्थए ढोएवि अहि जिह् णी सारिजइ गेहहो । दुपरिअल्लु सल्लु तिह देहहो सयल काल दुच्चरिएं भरियां तदिवसावहि सो पवइयउ तही सामण्णालोयण जुज्जई अवरहो पाइ विहाइउ वज्जइ तहि पर सक्खि पुत्व-छम्मन्थहो अप्प सक्खि केवलि कियत्थहोहि स-वि सुपसत्थ-पएसे करेवी संधाहिवेण मणेण धरेवो उत्तर-मुहेण अहव पुव्वासे अह जिणविवहा समुहब्भासे ४ ८ घत्ता दस-दोस-विवज्जिाउ खवगेण तहो पायच्छित्तु-वि देवउ आलोएवउ जिय-चरिउ ! आयरिएण जिणायरिउ ॥ ९ दसबिहु दोसु जिणागमे सिट्ठउं आयण्णिउ अणुमण्णिउ दिदठउं वायरु सुहुमु छण्णु सहत्थिउ वहु-गुरु-वालवुद्धि-पासस्थिउ इय दस दोस जेण णालोइय अप्पाणहो भवित्ति ते ढोइय णइरवणालिभंगोधावण (?) मंदुल-हत्थिसाल-करणावण Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एउणपण्णासमो संधि १६५ णडणच्चण वणि-गायण-वायण अण्ण-वि अण्ण-भाव-उप्पावण जहिं वसंति तहिं वसहि ण किज्जइ सवि अणेय दढ वियड लइज्जइ इल-सिल-फलिह-तिणहिं संथारउ होइ चउ-बिहु णिव्वुइ-गारउ पुव्वुत्तर-सिरु सेस-दिसा-मुहु अजरामर-पुर-परम-सुहारुहु ८ घत्ता णिज्जावउ एक्कु विरुद्धउ उत्तम-सण्णासे णिउंजहो जइ ण काई तो दुइ सवण । अट्ठाहिय चालीस जण ॥ [८] चर परिचर चर धम्म-कहुज्जय चउ आहार पाणि चउ संजय तं रक्खंति बंधु चउ सवणय अ-विदिगिछ बउ काई वाणय चउ जग्गिर चउ खवग णिहाला चउ दउवारिय च उ सह-पाला अवर चयारि चेइय-परिवारा अवर चयारि विवाइ-णिवारा ४ एवं चयारि चयार णिउंजहो जेम विद्धि तिम पाणि पउंजहो दव्य-पयासण खमण-खमावग पच्चक्खाणउं अणु सिक्खावण खरगहो संघाहिवेण करीवो मिच्छा भावण परिहरिएवी वरि विसु वरि विसहरु वार हुयवहु वरि उव सग्गु सहिउ अइ-दृसहु ८ णउ पच्छाइउ मिच्छा-भावे भव-कोडिहि-मि ण मुच्चहिं पावे* * Extra in j.: पढम दुइज्ज जंति कम्मक्खए केवल-णाणु होइ तिहि पक्खए जो भागाविय जोगि चडप्पइ मोक्खु अपाइ-विओय ! Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ मिच्छत्त-महा-विस - पायउ पंचेदिय-चोर जिणेपिणु जम्माडइ-भय-परिहीणेण जइ सक्कहि तो जाइज्जइ घत्ता कहमि मोक्खु जड जाएवि सक्कहि पणारह पमाय विहाडावहि णिच्च धम्म झाणु सुविणिग्गमे कम्मबंध - छत्तीस - विणा सें वायर - मोह-पगइ विहडावहि जइ णिम्मूल मोह - तरु हम्मइ मोक्खु अघाई - विओए विढप्पइ [९] एक्कई एक्केकई सु-गवेसहि एकइं विष्णि विष्ण उद्धारहि एक तिणि तिणि अणुमण्णहि एकहिं चहुं चहुँ दिदु होज्जहि एक्कई पंच पंच परिपालहि अवरहं छहं छहं जाउं म लेज्जहि अवरई सन्त सत णि उभच्छहि अवरइं अट्ठ अट्ठ पडिवज्जहि हणु सम्मन्त कुढारपण । पण जाहि सुह-गारएण ॥ १० घत्ता - अद्ध-बहे जे जाहिं ण-वि थक्कहि अप्पमत्त-गुण-ठाण विहावहि चडहि अपुव्व - करणु सुक्कुग्गमे चडु अणेवि तिथाणु (१) परिओसें ४ सहुम- संपरायन्त्तणु पावहि खीण- कसाय - थाणु तो गम्मइ X रिट्टणेमिचरि X विसय- चोर - विणिवारएण । तेण पहेण वड्डारएण || X [१०] अवरई एक्केकई परिसेसहि अवर विणि विणि विणिवाहि अवरई तिष्णि तिष्णि अवगण्णहि अवरहं चउहुं चउहुं णासेज्जहि ४ एक छह छह रक्ख करिज्जहि एक्कई सत्त सत परियच्छहि एक्कई अट्ठ अट्ठ पडिच्छहि X x x ९. ८ Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एउणपण्णासमो मंधि एकहि णव णव लइ सुपसिद्धई एक्कई दस दस अणु दणु झायहि अवरई णव णव मुए अ-पसिद्ध अवरई दस दस दूरि पमायहि घत्ता एयारह वारह तेरह एयारह वारह तेरह चउदह एक्कई आयरहि । चउदह अवरइ परिहरहि ॥ १० [११] एम लेवि अणुसिट्ठि पयत्त तिविहु करेवउ पच्चक्खाणउं तमिमु मणोहरु पच्छ-सुयंधउ अमिय-रसोवमु मुह हो सुहावउ एव-मि जइ ण होइ आसासण लेउ विमद्दण सेउ करेवउ जइ एम-वि ण होइ सुह-सेवउ लहइ समाहि जेण तं किज्जइ संथारत्थे उत्तम-सत्तें पर-वाहिरउ करेपि अपाणउं विविह-महाघण-दव्व-समिद्धउ दोह-णिवारणु चित्तें ण्हावउ ४ तो उवणेहु णितूह उववासण पवण-पित्त-कफ-दोसु हरेवउ संघाहिवेण तो-वि ण मुएबउ अह मंतेवि तणु-ताणउं दिज्जइ ८ घत्ता उवसग्ग-परीसह-साहणु संथारणेण मरंतेण - किज्जइ जेण परम्मुहउँ । कवउ लहेवउ साउह ॥ ९ [१२] एम तेण तणु-ताणु लएवउ संधाहिवेण खबउ धीरेवउ सुंदरु पवा गोनु णिय-णामउं परिहरि कम्मु कुमाणुसियामा जिह रिमि-गणहो मञ्झे गलगज्जिउ तिह करि महसु मलण-विवज्जिउ मोक्ख-महादुम-फलई विवित्तइ लइ परिपक्कई पुणु पविहत्तई ४ Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ रिट्ठणेमिचरित देवेहि सग्ग-मग्ग सोहालिय उग्घाडिय पओलि जा तालिय वहई तोरणाई छड दिण्णई मोत्तिय-रंगावलिउ पइण्णउं गरुव -महोच्छउ सुरवर-विदहो वद्धावणउं धणंगणे इंदहो भाव-णिसेणि चडेप्पिणु जोयहो मं अप्पाणउं घंघले ढोयहो घत्ता चउ-गइ संसारे भमंतहो दुक्खई कह-मि तुहाराई । जइ एकई विहि मेल्लावेवि ते मेरुहे गरुयाराई :: [१३] तिहुयणु खद्ध तो-वि अ-सइत्तर पीयइं सायर-सयई ण तित्तउ कामिउ जगु असेसु कामंते मयिलो (?) कोडि दद्ध दम्भंते जइयहो इंदु होइ उप्पणउ पच्छए चवण-काले आदण्णउ कहिं कप्पदम कहिं दीसेसहि अइरावणु दूरीहोएसइ हा अंतेउर णयण-मणोहर मत्त -महागय-कुंभ-पओहर पडिवउ गब्भवासे वासएवउ पडिवउ जणणिहे थण्णु पिएबउ एवं रुवतु थंतु विच्छायउ मणुय-गइहे उप्पणु वरायउ तहि-मि अणेयई दुक्खइं पत्तउ रस-वस-वीसढ-घोणिए-मत्तउ ८ घत्ता दप मास वसिउ उवरंतरे कह-व किले से गोरिउ । अच्छिउ णिज्जासु पियंतउ तं किं एवहिं वीसरिउ ॥ ९ [१४] इह वि अणेय वार उप्पण्णउ जाइ-जरा-मरणेहिं आदण्णउ इट्ट-विओय-सोय-संतत्तउ दुक्ख-किलेस असेसई पत्तर चोर-वइर-महि-महिला-भंडणु वाहाकर-चरणंगुल खंडणु जीहा-छेउ णयण-उप्पाडणु णासा-णासणु वयण-विहोडणु ४ Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एउणपण्णासमो संधि १६९ सिर-विच्छेउ कुढाराफाडणु देह वियारणु गोवा-मोडणु कण्ण-कोल-णह-सूइ-पवेसणु णासा-लुणणु भुवंगम-भेसणु स-सिहि-सरीर-वाहि गय-पेलणु विस-विसमासणु मंडल-मेल्लणु वेढावेढणु भूमि-णिहम्मणु एउ-वि अव:- वि धोरु णिहम्मणु ८ मडाव घत्ता दुक्कम्म-वसेण भवंतएण पई अणुहूयइं जेत्तियई । अ-पमाणई मेरु-समाणइं दुक्खई अक्खमि केत्तियई ॥ ९ ।१५] जइयहुं हत्थ होवि मय-मत्तउ वारि-णिवंधणे दुक्खइ पत्तउं जइयहुं हरिणु होवि उप्पण्णउ णछु णियामिसेण आदण्णउ वाहेहिं वागुर-पास उ मंडेवि विद्दविओसि खुरुप्पेहिं खंडेवि जइयहु भमरु होवि अच्छतउं कमलभंतरि आवइ पत्तउ जइयतुं मच्छु हो व गले लगाउ पउलिउ तलियउ मरण-वसंगउ जइयतुं सलहु होवि आसत्तर पडेवि पईवए जीविअ-चत्तउ जइयहुँ रोसहु होवि निवद्धउ दिसउ नितु विहंगेहिं खद्धउ जइयतुं सारमे उ किमि-कांप्पउ जइयहुं करहु महा-भर-चप्पिउ ८ जइयतुं दटठु-पहेडा मूसउ डिडीघोरगु पंजर-पूसउ घत्ता ओयई अवरइ-मि अणेयाइं तिरिय-गइहे सवडम्मु हेण ! अणुहूयई दुक्ख-सहासई पइ जिणवयण-परम्मुहेण ॥ ९ __ [१६] जइयर्ल्ड गरय-मज्झे उप्प गउ णारइयाउहु धाएहि छिन उ ताहिउ पांडिउ छिण्णउ भिगउ चूरिउ हुणिउ दिसा-वलि दिण्णउ हूलिउ दलिउ मलिउ कंदतउ पउलिउ तलिउ गिलिउ वेवंतउ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० रिट्टणेमिचरिउ जेत्तहे णासइ तेतहे हम्इ असि-पत्त-वणु पत्तु पामिकाउ पुणु वइतरण पइट्छ तिपाइउ सामरि-तरुवा अवरुंडाबिउ जगु जे पलित्तउ केत्तहे गम्मइ ४ तहि-मि पडतेहि पत्तेहिं छिण्णन तित्थु-वि तंवा-कलयलु पाविउ एम महंती आवइ पाविउ घत्तो तं तेत्तिउ दुक्खु सहे टिपणु एवहिं कायरु काई तुहुँ । णिय-कर-पल्लवे लग्गउ लेवि | सक्कहि परम-सुहु ॥ ९ [१७] गुरु-वयणेहिं साहु उवसंतर थिउ मज्झत्थु होवि दमवंतर जीविय-मरणाउह-सिरिखंड अरि-सुहि-धूलि-धण्ण-विस-खंडई तिण-कंचणइ कच्च-माणिक्का ओयई अबरई सम्बई एक्का सव्व खमंतु जीव महु भायहो मई मि मिउ छज्जोव-निकायहो ४ विसय णिवारिय इंदिय-गामहो इदिय ढोइय सासय-थामहो एक्कोभावु करेप्पिणु सव्वहं दिन्नु चित्त आलंबण-दहं आलंवणइ-भि होंति अणेयई तिहुयणु भरेवि थियई अ-पमेयई घत्ता जं वलु सो भाउ हणेत्रउ णिक्कंपु झाणु झाएवढं माणुपेक्खु जिव-चिंतणउं । सासणु एहु जिणहो तण ॥ ९ _[१८] जिणु एक्कग्ग-चित्त झायंतहो सोवकरणु सावय-वउ लेतहो लेसउ तिणि होति परिणामें तेइय-पउमिय सुक्किल णामें भावण-वितर-जोइस-धामेहि होइ अणि?-तेय तिहिं थामेहिं मज्झिम सउहम्मी साणिं देहि उत्तम सणकुमार-माहिं देहिं Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एष्णपण्णासमो संधि १७१ तेत्थु जे सत्ताह पच्छडबग्गेहि पउम कणि?-मज्ज्ञ-छहिं सग्गेहि उत्तम -विहि-सयार सहसारेहि सुकाहम तेहिं जे सुह-सारेहि तेरह-चउदहेहि मज्झुनम होति अ-लेस सिद्ध लोगुत्तम पाण मुअइ जो जेहिं सिलेसेहि' सो उपज्जइ तेहि जि देसेहि ८ घत्ता चउविह-आराहण-रुक्खहो लग्गइ गंगाणंदण एयई त्रिविह-रसई सुह-परिमलइ । सग्ग-मोक्ख-सोक्ख फलइ ॥९ [१९] तेरह पगरणाइं पढमुत्तइ आयइ सत्तवीस एणु सुत्ताई कहियइ अमर-तरंगिणि-गंदण संघ-खमावण अणु सिक्खावण पर-गण-चरिय-खेत्त-परिमग्गण। सुत्थिय-परमायरिओलग्गण उव संपय-परिक्ख-पडिलेहण आउच्छा-पडिपुच्छालोयण दोसक्खावणु सई संथारउ णिज्जावउ भव-भय-खय-गारउ हाणि-पगासण पचक्खोवण खमण खमावण पडिसिक्खोवण सरणु कवउ सम्मत्तण झाणउं लेस महाफलु सव्वु पहाणउं घत्ता आयई चालीस-वि सुत्ताइ पढइ सुणइ जो सद्दह्इ । सो दुक्सहं मुहु ण णिहालइ धुउ अजरामर-पउ लहइ ॥ ८ [२०] भणइ पियामहु अहो वय-धारा तुम्हह कहि उप्पत्ति भडारा हूंस-महारिसि कह्इ अणंतरु चारु चिराणउणियय-भवंतरु अम्हई वे-वि हंस चिरु गंगहि घाइय केण-वि कारणे अंगहि तहि गय जहिं महिसि तरु-कोडरे णिवडिय घुम्ममाण चलणंतरे ४ Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ पंच णमोक्कारेहिं रिउ मद्दण विजय- महाएविहिं उप्पण्णा घोर-वीर-तव- - रिद्धि-पहूावें तो पंडवेहि परम-कारुण्णेहि वाणारिसिहि णराहिव - णंदण जाईसर पावन्ज पवण्णा घन्ता पणिवेष्पिणु णर्वाह्न - मि वुच्चइ एह पइज्ज महंतरिय । जइ संगामहो उव्वरिय || तव - लच्छि सई भुंजेसइ इयरिमिचरिऐ धवलइयासिय सयंभुएव - कए । सरि सुय सण्णास-1 आइय कहउ धम्मु सब्भावें संव-वलाहणिरुद्ध - पज्जुण्णेहिं रिमिचरि - ८ - विद्दिए मरणं वम्होत्तर- सग्ग-गमणं एउणपण्णासमो सग्गो ॥ गंगेय - पव्वं समत्तं ॥ ९ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णासमो संधि विणिवाइए णइ-गंदणे भड-कवंदणे गुरुहो अणिठिय-तोणहो । दुज्जोहणेण सहत्थे विक्कम-पत्थे वर्ल्ड पटु रणे दोणहो ॥१ [१] गय णिसि विाणु रवि उग्गमिउ घोसिय अमारि पडहउ भमिउ णिरवज्जय जय-परिपुज्जणिय वहुलट्ठमि मग्गसिरहो तणिय कलहंतहं एत्तिय दिवस गय एवहिं अवलंबहो जीव दय अज्जोणउ वासरु परिहरहो गंगेयहो परिरक्खणु करहो ४ पायारु परिह लहु जिम्मवहो साहणई चयारि-वि कम्मवहो उम्भहो पड-मंडव तोरणइ परिसेसहो पहरण-पहरणइ ज जेम वुत्तु तं तेवं किउ णिज्झाणु णिराउहु सिमिरु थिउ कुरु पंडव जायव मिलिय तहि सर-सयणे तरंगिणि-तणउ जहिं ८ घत्ता अहो अहो रज्ज-मयंधहो जदु-जरसंधही पंडव-कुरुव-णरिंदहो । मं दुकहो संगामहो भणइ पियामहु सरणु जाहु गोविंदहो । [२] णिय-वंधव-सयणहो खउ करेवि गइ कवण लहेसहो रणे मरेवि णिम्मंसहो कारणे गोक्खुरहो मा सारमेय जिह विप्फुरहो वोलावेवि णरवर सहस सय णउ काह-मि पच्छए पिहिवि गय णउ पडिसुइ-पमुहहं कुलहरई णउ रुद्द-जिणिंद-चक्केसरह ४ णउ णव-वल-णव-णारायण गउ णल-हुमहं वलि-रावणहं Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ लकुवर थेर सक्कंदणह दुज्जोहण किज्जइ संधि लहु जिहिं णिज्जिउ हउ म सिहंडिएण एवं भणेवि विउ विरह-व संगय-वत्तउ भोईरहिणंदणु मुच्छ गर दुरुज्झिय - विक्कम चारहडि कुरु पंडव जायत्र मागहिय तो संतणु लद्ध-सण्णु चत्रइ जं चंदाइच्चेहि छित्त वि सुंदरु सुगंधु सीयलु विमलु गंडी चडाविउ लइउ सरु वारुणेण विणिम्मिर विमलु जलु दिणयर-कर-पश्चिड्डिउ मोक्ख-पुरिहे जं पिज्जइ घन्त्ता सुट्टु बिसण्णउ महिला सत्त जग्गोह-रोह - पारोह - भुउ महि-महिहर-महिरुह - दारणई इयत्रायर इं वम्हत्थ - सउम सामुद्द- पउम - वइशेयणई वसुद्धु देहि पहि-गंदणहं सो कवणु मणुसु जो भिडइ महु तं कि संगामें मंडिएण रिहणेमिचरिउ मुच्छ - विहलु स-वेयणु । सog होइ णिच्चे ॥ ९ [३] णं लक्खणु रावण-सत्ति-हउ हा ताय भगत मुक्त - रडि धाइय- भिंगार-वारि- सहिय जलु पियभि दिव्वु जइ संभवइ ४ जहि भिडिय ण पत्रण - विहंगम वि तो पत्थो वियसि मुह-कमल णं थिउ सिंदाउहु अंबुहरु गंगेएं वंकिउ मुह- कमलु ८ [४] सरि सुएण पसंसिउ पंडु-सुर कहो अण्णहो दिव्वई पहरणई कउवेरग- सुर-पउरंदरई नारायणत्थ - तइलोयणइ धत्ता ए मईच्छिउ णिरुवमु अवरु णिएवउ । कहोर्नव ण दिज्जइ तं सुहु सलिलु पिएवउ || ८ ४ Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णासमो संधि १७५ हउ आसण-वायव-वारणई दुज्जोहण दुज्जउ णरु समरे पंडवेहि सम उ कज्जेण विणु स-कलत्तु सपुत्तु स-बंधु-जणु आयई अवरइ-मि सु-दारुण वसुहद्ध देवि वरि संधि करे केत्तिउ कलहिज्जइ रत्ति-दिणु में खयहो जाहि आढवेवि रणु ८ घत्सा बुच्चइ कररव-णाहे कोव-सणाहे अज्जु संधि ण पयट्टइ । परए पहप्परु हम्मइ रण-पिडु रम्मइ समहो कालु को वट्टइ ॥ ९ [५] जयकोरू करेपिणु संतणहो गउ कुरुबइ णियय-णिहेलणहो तो भणइ जुहिट्ठिलु ताय सुणे दुज्जोहण-वुद्धि-पमाणु मुणे विसु ढोइउ जउहरे दिण्णु सिहि कवडक्खेहिं दरिसिय जूय-विहि पुणु किउ दोवइ-केस-ग्गहुणु वण-वसणु अणंतरु गो-ग्गहणु ४ ण धरद्रु द्ध पारद्भु लहु दस दिवस कलहु किउ दुविसहु भणु अज्ज-वि वुत्तउं जइ करइ तो तब-सुउ मच्छरु परिहरइ रणु भट्ठ जाउ दुक्खागरउं जइ महइ संधि तो सागरउं जयकार करेप्पिणु णीसरिउ भीमज्जुण-जमलालंकरिउ घत्ता तहि अवसरे गउ थामहो पुणु-वि पियामहु वलिय दिट्टि विवरेरी । विरह-विसंठुल -चित्ती जोवणइत्ती ऊढ व वुड्ढहो केरी ॥९ तईि काले पराइउ सूर-सुउ सो चरणु णवेप्पिणु विण्णवइ कोमार-वंभ-वय-धाराएं णइ-णंदणु पभणइ कोंति-सुय केऊरंगय-गारविय-भुउ हउं अंगराउ अंगाहिवइ उम्माहिउ पयहं तुहाराह तउ भायर पंडु-पुत्त लहुय * मावर पडु पुत्त लहुय ४ Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ सहुँ कवग तेहिं संगाम किय तउ आयवत्तु तउ वइसणउं तउ पंडव कउरव आण-कर मं करहो परोप्परु गोत्त-खउ रिहमिचरित तउ तणिय पिहिवि तउ तणिय सिय तउ वेज्जउ चामर वइसणउं परिपालहि अप्पणु स-धर धर रवि -णंदणु पभणइ कहमि तउ ८ धत्ता तेत्तियहो पसायहो पहु-अणुरायहो एहु काई महु जुज्जइ । सामिसाल-अणुहुत्ती जिह कुलउत्तो केम ताय महि भुज्जइ ।। ९ [७] जाणमि जिह कुंतिहे जेट्ठ-सुउ जाणमि जिह धम्मपुत्तु लहुउ जाणमि जिह मेरउ वइसणउं जाणमि जिह रज्जु महत्तणउं चामोयर-चामर-वासणउं सेयायवत्त जिह अत्तणउं जाणमि कुरु पंडव आण-कर जाणमि असेस महु तणिय धर ४ जाणमि सुहु सुर-गिरि-जेत्तडउं महु ताहं वि विहडइ एत्तडउं जं किउ मय-वार माण-मलणु जं जउहरे देवाविउ जलणु जं कवड-जूवि महि अवहरिय जं जण्णसेणि वालेहि धरिय जं वसणु णिहोलिउ लइउ धणु ___एककु-वि ण दिण्णु जं गामहणु ८ पत्ता पुणु पुणु गंगेयहो दूसह-तेयहो चरण णवेप्पिणु घोसइ । सधि समउ दुःवेयड्ढेहिं पंडव-संढेहि हुय ण होइ ण होसइ ।। ९ ८) एत्यंतरे पभणइ गंग-सुउ मई एण णियों कहिउ तउ अच्छउ कुरु-पंडव-चिंतण उं पणवेप्पिणु गउ रवि-तणउ तहिं णाराय-णियर-कापरिय-भुउ किर बंधु-जणहो मा होउ खउ महु वट्टइ कारणु अप्पणउं णिय-मंदिरे कुरुव-णरिंदु जहिं ४ Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णासमो संधि सेणावइ लभइ जाम णहु कइकेउहो वइरि-पुरज यहो सहएवहो गउलहो तत्र-सु यहो पंचह-मि पंच रह णिवमि १७७ ता णाह णिवज्झउ पट्टु महु हउ रण-मुहे भिडेवि धणजयहो भीमहो भुबंग-विघ्भम-भुयहो पंच-वि जम-लोयहो पट्ठवमि घत्ता जइ मई कहव ण इच्छहि कालु पडिच्छहि तो रण-भर-धुर-धारा । जिम्ब दोणहो जिम्ब सल्लहो अ-णिहय-मल्लहो करि अहिसेउ भडारा ||९ विहसेप्पिणु कुरुव-राउ भणइ गंगेयहो पच्छए जो हणइ जिम्ब गुरु जिम्व तुहु जिम मद्दवइ सेणावइ अवरु ण संभवइ वोल्लाविउ दोणु अहिट्ठविउ अउदुवरे पीढे परिदृविउ कंचण-कलसेहिं अहिसेउ किउ रण-धुरहो धुरंधरु होवि थिउ ४ दुज्जोहणु पभणइ कोव-मरे जिह सक्कहि तिह तव-तणउ धरे रह सुब्भड्ड हास-तोस-रिउ पुणु-पणु पभणइ दोणायरिउ कहि कह-व भडारा कज्ज-गइ जें हणमि ण देहि णराद्दिवई मछुहु समरगणे सो अखउ णीसरिय वाय मुहे तेण तउ ८ घत्ता वुच्चइ कउरव-राएं कह व पमाएं तहो विणासु जइ किज्जइ । तो गडीव-धणुद्ररु सुरह-मि दुद्धरु अजुणु केण धरिज्जइ ।।९ जइ खुडिउ गरिंदहो सिर-कमलु तो ण-वि हउ ण-वि तुझुण-वि पवलु कज्जेण तेण त परिहरहि जइ सक्कहि जीव-गाहु धरहि किवि-कंतु णवर मच्छर-भरिउ जइ कह-व ण पत्थे अंतरिउ तो धरमि जुहिठिल भंति ण-वि रक्खंति जह-वि अमरासुर-वि ४ Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ रिडणेमिचरिउ वंभाणु भाणु सम्भाणु जमु सहसक्खु तियक्खु-वि णिरु विसमु एय-वि अवर-हि रक्खंतु फुडु कइ-केयणु एक्कु म होउ छुडु चर-पुरिसेहि वइरि-विमद्दणहो णिय एह वत्त तव-णदणहो तेण-वि हक्कारेवि वुत्त णरु पई परए धरेवउ समर-भरु. ८ धत्ता वट्टइ गुरु सेणावइ जमु जिह पावइ सव्वहं पलउ करेसइ । . अज्जुण पई दूरत्थे समर-समत्थें जीव-गाहु मई लेसइ ॥ ९ [११] तो रएवि करंजलि पणय-सिरु कइ-केयणु पभणइ गहिर-गिरु जइ अंबरे दिणमणि उग्गमइ जइ जोइस-चक्कु ण परिभमइ जइ चलइ मेरु ण चलइ पवणु, रवि णिप्पहु णिद्धणु वइसवणु जइ सीयलु सिहि पज्जलइ जलु जइ एकहि महियल गयणयलु ४ जइ गिट्ठइ काल दइउ मरइ तो मई जियते गुरु पई धरइ जहिं जमल-विओयर पवर-भुय जहिं दोमइ-णंदण दुमय-सुय जहिं सच्चइ रण-भर-उज्वहणु सयमेव पासे जहिं महुमहणु सोमय-सिंजय-पंचाल जहिं आसंकहि णरवइ काई तहि ८ घत्ता सच्चु दोणु चउ-पत्थउ मवेवि समत्थउ जहिं रासिउ तहिं जुज्जइ । एहु तिहिं पत्थेहिं ऊणउ गण्ण-विहणउं तुम्हडं तेण ण पुज्जइ ॥९ [१२] सा केम-वि केम-वि गमिय गिसि ता अरुणालंकिय पुव्व-दिसि संजमियई विविहई वाहणई सण्णद्धई विण्णि-वि साहणई णिक्खोह भरिय रहे पहरण भुव-सोह-चडाविय वारण वाइत्तई चित्तई वज्जियइ णं जलहर-विदई गजियइ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७९ पण्णासमो संधि रण-रहसें कहि-मि ण माइयई जल-थलई णाई उद्धाइयई दोणे तो सयड-बूहु कियउ सुरवरह-मि दुप्परियल्लु थिउ त णिएवि जाउ भउ अज्जुणहो आएसु दिण्णु घट्ठज्जुणहो तो तेण-वि कंबु-वूहु रइड धय-दंड-संड-मडव-छइड घत्ता किय वूहई हय-तूर पगइए कूरई गंधवहुद्धय-चिंधई । जलहि-जलई णिमज्जायई xx भिडियई अग्गिम-खंधई ॥९. [१३] कण्णज्जुण्ण वूहाणणिहिथिय कुरु-पंडवे पक्खय पक्ख किय एक्कत्तहे एयारह गणित अणेत्तहे सत्तक्खोहणिउ एक्कत्तहे कउरव वहु-सयण अण्णेत्तहे पंडव पंच जण एक्कत्तहो चक्कर यणु पहणु 'अण्णेत्तहे अप्पुणु महुमहणु एक्कर्हि णिय-पुण्णई णिट्टियई अवरहिं सुणिमित्तई उट्टियई एक्कहिं वलंति सच्छाउहाई अवरहिं पुण्णई सव दुम्मुहाई एक्काहिं सिव असिवई आयरइ अवरहि जयसिरि पेसणु करई एक्कहि वयणई विच्छायाई अवरहि सुच्छायई जायाई ८ पत्ता जइ ण पडतु पियामहु सुरह-मि दुम्महु दारुणु करेवि महा-रणु । तो पंडव-कुरुरायह हरिस-विसायहं होतु ण एक्कु-वि कारणु ॥९ [१४] तो दुक्क महागय गयवरह णं सजल जलय णव-जलहरह तोरविय तुरंग तुरंगमहं णं पवर विहंग विहंगमह भड भडहं परोप्परु आवडिय णं गहेहिं महा-गह अभिडिय एक्वत्तहे वहुएहिं एक्क जणु वेढिज्जइ मेहेहिं जिह तवणु ४ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिडणेमिचरिउ अण्णेत्तहे एक्के वहुय जिय पवणेण व जलहर स्वयहो णिय अण्णेत्तहे खंघहो सिरु पडइ अण्णेत्तहे भड-कवंधु नडइ अण्णेत्तहे रण-रउ उच्छलइ अण्णेत्त है सोणिय-णइ चलइ घत्ता गुदल-तउमुल-दंदई पविरल-मंदई (?) विसम-दुसज्झइ जुज्झइं । पंडव-कुरुवह जायई धत्तिय-धायइ सुर-गणियह-मि दुगेज्झई ।। ८ तो हरिणह हरि व समावडिउ पंचालह कलस-केउ भिडिउ णाराएहिं सीरिउ वइरि-वलु णं दिणयर-किरणेहिं तम-पडलु णं महियलु रुद्ध भुयंगवेहि णं णहयलु सलह-विह गमेहिं गुरु जिणेवि ण सक्किउ पत्थिवेहि सोमय-सिंजय-मच्छाहिवेहि तो जमल-विओयर-णरवइहिं धट्ठज्जुण-अज्जुण-सच्चइहिं अवरेहि-मि भडेहिं अहिद्दविउ कह कह-वि ण सव्वेहि विद्दविउ तो सरहसु धाइउ कुरुव-बलु किउ कलयलु भेरी-रव-मुहलु रणु जाउ परोप्परु दुविसहु ओवाहिय-हय-गय-रह-णिवहु धत्ता पेक्खेवि पडव-कउरव रण-मुहे रउरव वल-नारायल-सच्चइ । भिसिय-कमंडल-धारउ सरहनु णारउ धुणेवि सई भुव णच्चइ ॥ ९ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंमुएव-कए पण्णासमो संघि-परिच्छेओ समत्तो ॥ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकपण्णासमो संधि अहिसिंचिए कलस-द्धए पट्टे णिवद्धए णिसि-णिग्गमें आलग्गइ उग्गय-खग्गई रण-रसियइ किय-कलयलई। पडव-कुरुवराय-वलई ॥१।। रवि-उगमे कुरु-खेत्त पयट्ट हय-तूरई वड्ढिय-उच्छाहइं गिरिवर-मरुय-महारह-विदई सिंधु-नर ग-तुरंग-तरं गइ विसहर-विसम-सिलीमुह-जाल कुलगिरि-सिंग-गरुय-गय दंडई पलय-समुद्द-रउद्द-णिणायई मउड-पहोहामिय-रवि-किरणई पंडल-कुरुव-वलई अभिट्टई गहियाउह-परिहिय-सण्णाहई खय-जलहर-रव-रडिय-गइदई दूसह-दिणयर-फुरिय-रहंगइ विज्जु-विलासुज्जल करवाल ई जम-भउहा-भंगुर-कोवंडई पय-भय-भग भुयंगम रायई पहरण-जलण-तिडिक्किय-गयणई ८ धत्ता रह-गय-घडहिं भिडतेहिं दस-दिसि-वहेहिं पधाइउ भडहिं भिडंतेहि रउ र गंतु रणंगणहे कहि-मि ण माइउ अयसु णाई दुजोहणहो ॥९ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ रितुणेमिचरिउ [२] पहिलउ पाय-लग्गु रउ घावइ पंडव-कुरुव-णिवारउ णावइ अहो तव-सुय-दुज्जोहण-रायहो वुत्तउ किण्ण करहो महु आयहो काई अकारणे कलहु पउंजहो अद्धे' अदु वसुधर भुजहो म पहरहोणं घरइ कडच्छए सीस-बलग्गु होइ पुणु पच्छए. ४ ण गणइ वलइ रणंगणु छायइ रुट्ठउ जमहो णाई थाहावइ जो जो ढुक्कइ त त खाएत्रि ___हसइ व छत्त-धयम्गेहिं थाएवि भमइ व गयण-मग्गे णिव्वडियउ कासु ण उत्तमगे हउ चडिउ तहिं उग्गउ रयणियरु णिरतरु दंति-दत-णिहसग्गि अणतरु ८ घत्ता वहल-फुलिंगम्भ इयउ सहसुद्धइयउ जालालिउ भय-गारियउ । णहु बहु-भाएहि ठतिहिं कुरु-वलु खतिहिं जीहउ जमेण पसारियउ ॥९ [३] एम समुच्छलियउ सिहि-जालउ पुणु सोणिय-धारउ सुसरालउ तेहिं असेसु दिसा-मुहु सित्तउ. थिउ णहु णाई कुसुभए चित्त अवरउ परियत्तउ गयणग्गहो ण घुसिणोलिउ णह-सिरि-अंगहो जाय महारण-भूमि भयंकर सोणिय-पाणिय-पवह-णिरतर पसमिउ रउ उल्हविय-हुयासई उट्टयई रुहिर.णइ-सहासई रहवर-गयवरोह ण पहाविय तुरय तरंत तरंत वहाविय मिलियउ ताउ जाउ अइ-दुत्तरु पारावारु अपारु भयंकर हय-गय-णेर-णरिंद-कंकालिहिं णिविड-णिवद्ध-पालि-जवालहि घत्ता तहि तेहए रण सायरे चडेवि महागय-गत्तेहि णरवर-जलयरे रह-धय-छत्तेहिं सोणिय-हाण-कियायरई । झंपउ देंति णं सायरई॥९ Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कपण्णासमो संधि तहिं रण. मुहे रुहिरोह-णिरंतरे पहुसमीवे(१) कुरुखेत्तभतरे हेसिय गय-गज्जिय-वर-वाहणे भिडिउ पत्थु संसत्तग-साहणे हम्मइ एक्कु अणतेहिं जोहेहि सो-वि पधाइउ सर-धागेहेहिं सारहि रहु वाह'तु ण थक्कइ मदरु महणे णाई परिसक्कइ ४ रहवरु गयवरु तुरउ ण चुक्कइ वइरिहिं पलय-कालु ण दुक्कइ णर-कर-पारिहस्थि अणियता महुमह-सुह-दंसणु अलहता णहे जूरति असेसवि•सुरवर । वरुण-पवण-वइसवण-पुरंदर अण्णेत्तहे सुर-कामिणि सत्थहो कलहु पवड्डिउ कारणे पत्थहो ८ घत्ता हले हले ओसरु ओसरु तुज्झ ण अवसरु पेल्लहि गहेण णाई गहिय । सुरगणियह-मि ण लुब्भइ एहु कहिं लब्भइ जसु रण-वहुय जे वल्लहिय ।।९ जाम बोल्ल सुर-सुंदरि-सत्थहो ताव तिगत्त भिडिउ रणे पत्थहो दोणे दुमउ विद्ध वीसद्धेहि वाणेहिं कंक-पक्खिउणद्धेहि किव-कुरुवइ-तव-सुय-पय-सेवह रणु पडिलग्गु सउणि-सहएवह वे-वि वि-हय-घय वि-रह णिरत्था वे-वि पधाइय लउडि-विहत्था विहि-मि परोप्पर चूरिय घाएहिं विण्णि-वि ओसारिय साहाएहिं भीमें भीम-भुवंग-समाणेहि विद्ध विविझइ वीसहि वाणेहिं तेण-वि घउ स-सरासणु पाडिउ पुणु लउडेहि परोप्पर ताडिउ भीमें गयए गयासणि चूरिय ण कुरुवइहे विजयास ण पूप्रिय ८ घत्ता तो घयरट्ठहो गंदणु छ'डेवि संदणु खग्ग-फराउह वावरइ । फणिवइ-कुम्म-भयकरु ण गिरि मदरु मज्झे समुद्दहो संचरइ ॥९ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ रितुणेमिचरिउ मद्दाहिवेण णउल हक्कारिउ वि-कवउ वि-धणु वि-रहु विणिवारिउ गउतमु घट्टकेउ दप्पुदुर विणि.वि भिडिय णाई सुर-सिंधुर किउ सत्तरिहि विद्ध वच्छत्थले पाडिउ छत्तु सरेहिं तिहिं मत्थले अण्णेत्तहे विप्फारिय-धम्मह जाउ जुज्झु सच्चइ-कियवम्मह ४ अण्णेत्तहे सिहंडि-भूरीसत्र मिडिय णाई दसकंधर-वासव चेयणाइ-अणुविंदण्णेत्तहे अण्णेत्तहे विराड-चंपावइ अण्णेत्त है हइडिं वालंवुस उद्ध-सुड दिक्करि व गिरं कुस अण्णेत्तहे सुसम्म-सुसहावई लक्खण-वत्तएव अण्णेत्तहि ८ घत्ता एम परोप्परु जुज्झई कियई अउज्झई छिम-छत्त-धय-चामरई। हय-सारहि-रह-तुर यई कप्पिय-कवयई तोसाविय-सवामरइं ॥९ तो सक्कंदण-णंदण-णदणु पवर-तुरंगोवाहिय-संदणु भिडिउ समच्छरु पउरव रायहो ण दवग्गि तिण-वेणु-णिहायहो जाउ जुज्झु परिवड्डिय-मण्णुहु विहिं तेणहिं ?) मण्णु-अहिमण्णुहुं विग्णि-वि वावर ति रणे वाणेहिं विणिवि छाइय अमर विमणेहिं ४ विण्णि-वि पडव-कउरव-पक्स्वि विण्णि-वि सुर-सुदरिहिं कडस्विय विणि-वि अच्छरच्छि-विच्छोहेहि सुललिय-धवलिय-धवल-जसोहेहि विहि-भि पयंड-रवेहिं जगु वहिरिउ विहि-मि स-साहुक्कारउ पहरिउ विहिमि- सरेहिं सण्णाहु जज्जरियउ थणई वसुधर-तणु ण वरियउ ८ घत्ता णर-सुय-पउरव-राएहिं जलु थलु विवरु दिय तरु वर-णाराएहिं छाइउ गहु अंतरिउ रवि । जाउ दुसंचरु दिवसु ण णावइ रयणि णवि ॥९ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्पण्णासमो संधि तो सयमण्णु-सुयहो धणु पाडिउ तेण वि सारहि सत्तर्हि वाणेहिं पर-सुरण णाराउ विसज्जिउ केस - सस - सुरण धणु छौं डिउ भोयहो समरे मडप्फरु भंजेवि सारहि सरह पोट्टिउ घाएं रहवरे पडिउ पुत्तु सयमण्णुहो तेण पडते पडिउ अपारउ पंडव-पहु परिओसिउ परवराय - विओएं [८] छिण्णु छत्तु घर चिंधु विहाडिउ विदु णिसिद्ध फणिंद समाणेहिं सो कियवम्मै वलि व विह जिउ लइउ किवाणु महाकरु मंडिउ सीह किसोरु पत्त ओरु जेवि पउरउ पहउ कंठे असिघाएं सिरे सुर - कुसुम - वरि अहि मण्णुहो वघव जणहो दुक्खु वड्डारउ धत्ता कळयलु घोसिउ कउरव-लोए [९] पउरउ जं समरणे घाइउ घरिउ सीg णं सीह-किसोरें होउ अमंगल विहुणिय- हत्थ हो मुक्कल - केस पहय-वच्छत्थल पई जिएण जिउ वच्छाओहणु वुच्चइ सव्वसाइ-दायाएं राहावेहे सय वर-मंडवे तुम्हई सव काई ण परज्जियं किण्ण नियत्तिय सुर- बंदिग्गहे घत्ता तुहु-मि जयद्दह गज्जहि संढ ण लज्जहि दोमइ-हरेण सुधी में संभरु भीमें १८५ ४ ८ तूरई वले देवावियई । मुह-कमलई मउलावियई ||९ करेवि जयास जयद्दहु घाइउ लु अहिमण्णु देहि रहु ओरें अज्जु विद्धि खत्तहो जिव पत्थहो उत्तर रुवइ अज्जु जिव दूसल ४ मई जिएण णिज्जिउ दुज्जोहणु कुरु - खेत्त हे ण भग्ग महु ताए दोमइ - करे लग्गंतर पडवे थिय विच्छाय मडप्फर - वज्जिय किं णोहामिय उत्तर- गोग्गहे ८ कउरव-राएं भावियउ । कवण अवत्थ ण पावियउ ॥ १० Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ तं णिसुणेवि पखुहिउ जयद्द हु घाइउ रहु मुरवि समुहाणणु विण्णि-वि वावरांति फर-खग्गेहि तो गर.णदणेण णिप्पसरें भग्गु खग्गु तहो सिंधव-राय हो ताम दिण्णु रहु अतरे सल्ले लेवि सुहद्दा-सुरण महंतिए सल्लु-वि सल्लिउ मुच्छ पयाणि उ रितुणेमिचरिउ [१०] णं णव-मेहागमणे मयबहु सीह-किसोरहो णं पंचाणणु विविहभंतर-बाहिर मग्गेहि कह-त्र कह-व रणे लद्धावसरे ४ छप्पयाई ओसारिय-धायहो सत्ति विसज्जिय अणिहय-मल्लें घाइउ सारहि ताए जे सत्तिए संदगु कह मि तुरगेहिं ताणिउ ८ घत्ता ताम वइरि-जम-गोयरु भणइ विओयरु वाहि वाहि रहु तेत्तहे गर-सुउ जेत्तहे सारहि अंतरे पइसरमि । सल्लु सु-सुल्लु जेम करमि ।। ९ तो सहसत्ति सइत्ती-भूए वाहिउ रहवर रण-मुहे सूएं आहय हय वाणालि-पहारें धर थरहरइ विओयरु-भारें रहु कडयङइ रहंगु ण चल्लइ स-घर धरित्ति णिरारिउ हल्लइ तडयडत तुट्टतेहिं उरएहिं कह-व कह-व रहु कड्ढिउ तुरएहिं ४ घाइउ झंप देवि महि.मंडले सारहि रहु आणेज्जहि पच्छले जिह भुक्खिउ कयतु ण चिरावइ कुरु-कुल-कवलहो जीह ललावइ जो जो दुक्कइ त त धाएवि अज्जुण-तणयहो अग्गए थारवि भीमु भयकरु लउडि भमाडइ असणि णाई रिउ-मत्थए पाडइ घत्ता तहि अवसरे मद्देसर लउडि-भय करु धाइउ भीमहो संमुहउ । उब्भिय-करहो करिंदहो सभमर-विंदहो उद्ध-सोंडु णं मत्त-गउ ।। ९ ८ १९ पाडइ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कपण्णासमों संधि [१२] विष्णि-वि लउडि-दंड-दारुण-कर वे-वि जुहिट्ठिल-कुरुवइ-किंकर विष्णि-वि भिडिय भीम-मद्दाहिव विण्णि-वि सणक्ख हरिणाहिव णं विक्षिण-वि स-संग कुल-पायव __णं विण्णि-वि स-दाढ अट्ठावय णं विण्णि-वि स-खभ वर-वारण ण वण-महिस सिरोरुह-पहरण ४ विण्णि-वि वावर ति सम-धाएहि वे-वि पडति थंति णिय-वाएहि विहि-मि भमंतेहिं भमइ वसुंधर तिहि थाइ स-सयल स-सायर विष्णि-वि चित्तमाणु-सरिस-प्पह विष्णि-वि घोर-घाय-घट्टिय-णह स-मि हुण पेक्ख ति पसत्थई जुज्झइ पंडव-कुरुवेहि पत्तइ ८ घत्ता मदाहिवइ-विओयर वे-वि समच्छर लउडिहिं कणय-समुज्जलेहि । विप्फुरति समरंगणे णाई णहंगणे पल्य-मेह ण विज्जुलेहि ॥ ९ [१३] गय अट्ट पयई पडिवाइयण जम-दूय परोप्परु धाइय दिण्ण धाय सिर-उर-कर-चरणेहिं विविहन्भंतर-वाहिय-करणेहि तुट्टेवि गयउ गयउ गय-सारउ लइयउ विहि-मि वेणि पुणु अवरउ भार-सयहो कालायस-घडियउ उप्परि जायरूव-संजडियउ ४ सव-महग्धर-पण-संपुण्णउ विप्पुर ति ण विसहर-कण्णउ किकिणि-घंटा-जाल-बमालिउ चंदण-लित्तउ कुसुमोमालिउ गंध-धूव-अहिवासण-पत्तउ मत्ताहत्थि-मय-मइलिय-गत्तउ सयल-काल णच्चियउ कवघउ रुहिरामिस-वस-वीसढ-गंधउ पत्ता उहय-णराहिव-मल्लेहिं पडव-सल्लेहिं लइउ ताउ महा-गयउ । मोहण-मण-लीलउ मारण-सीलउ णाई रउद्दउ देवयउ ॥ ९ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ रिट्ठणेमिचरिउ तेहिं गएहिं परुष्परु घाइड धाए घाए थरहरइ वसुधर घाए घाए उट्ठति फुलिंगइ घाए घाए वहु-मरगय-टिक्कई घाए घाए कल-किंकिणि-जालउ . घाए घाए तुट्टइ सीसक्का घाए धाए दलियई तणु-ताणई घाए धाए घुम्मति सरीरई घाए घाए सुरवरह णिय तह संसउ विहि-मि वलह उप्पाइड घाए घाए डोल्लंति महीहर होंति दिसा-मुहाई सिहि-पिंडइ उच्छलंति मोत्तिय-माणिक्कइं उच्छलति उच्छलिय-वमालउ धाए घाए भूवइ-लल्लक्कई घार घाए रुहिरई अ-पमाणई धाए घाए चित्तई गिरि-धीरइ. णिट्ठियाइ कुसमाई-धिवंतह ८ घत्ता गरुय-धाय-विहलंघल वे-वि महावल पडिय महीयले मुच्छ गय । दिट्ठा सुर-विदेहिं कुरुव-गरिदेहिं गिरि व पुर दर-कुलिस-हय ॥१० ४ महाहिवइ-अमाणुस-गम्में णिय-वलु पइसारिउ कियवम्में एत्तहे वइरि हणतु विओयरु ऊदिउ जाउहाणु जम-गोयरु तो कामिणि जण-मण-थण-थेणहं जाउ जुझु णाउलि-विससेणह रवि-सुय-तणएं दस सर पेसिय णउलहो णदणेण णीसेसिय अवरेहि दसहि थणंतरे ताडिउ । धणुवरु छिण्णु महा-धउ पाडिउ आसत्थामु ताम थिउ अंतरे धाइय पंडु-पुत्त तहिं अवसरे सोमय-सिंजय-कइकय-राणा अवर-वि पहु एक्केक्क-पहाणा एत्तहे रहवर-तुरय-वरेण्ण धाइयाई दुजोहण-सेण्णई नाडिस . ८ धत्ता पंडव-कुरुवाणीयह णहयले अणक्कारिउ विक्कम-वीयह सुर-परिवारिउ जाउ महाहउ दुब्बिसहु ।। आउ णिहालउ अमर-पहु ।। ९ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कपण्णासमो संधि [१६] तहिं अवसरे अणिवाइय तोणे कुरुत-राउ वोल्लाविउ दोणे अज्जु जुहिहिलु धरमि सहत्थे जइ कयाइ अतरिउ ण पत्थे । एम भणेवि ते णयणाणंदणु पंडु-वलहो ओवाहिउ संदणु पवरुत्तंग-सिहरु सय-कंदर ण मयरहरहो ढोइउ मदरु कर-पहराहय-हय उद्धाइय अग्गिम-भाय णहंगणे लाइय। रहु परिसक्कइ जेत्तहे जेत्तेहे रुड-णिरं तर तेत्तहे तेत्तहे अग्गए गुरु कयं तु जिह पावद पच्छए रुहिर-पवाहिणि धावइ । ४ घत्ता दोण-दिवायरु पत्तउ अज्जुण-तरु-परिचत्त सरवर-तत्तउ पाणक्कतउ पंडव-साहणु परिभवइ । कवण छाहि जहिं वीससइ ।। ८ तो तव-सुरण चउम्विह-वाहणु भग्गु असेसु-वि कउरव-साहणु वलि म भीस देवि कलसद्धउ लग्गु महीहरे ण धूमद्धउ पहु वारहेहिं सरेहिं समाहउ छिण्णु जीउ धणु-लट्ठि-सणाहउ ताम कुमार जुर्वधर धाइय विण्णि-वि विहि भल्लेहि विणिवाइय ४ दसहि सिह डि णउलु तिहिं ताडिउ पंचहिं सच्चइ कह-वि ण पाडिउ सत्तहि मदि-पुत्र लहुयारउ सो ण को-वि जो ण हउ ति-वारउ वग्धंदतु वर-वग्ध-परक्कमु सीहसेणु सीहोवम-विक्कमु विणि-वि चक्क-रक्स्व तव-तेयहो खुडिय-सीस पेसिय जमलोयहो ८ घत्ता तोणा-जुयल-अणिट्ठिउ चाउ-सइट्ठिउ अतुल-परकम्मु पवर-कर । पक्कल-हय-रह-दुजउ साउ-सहिज्जउ सो जिण तु रणे दोण-सर ॥९ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९० रिडणेमिचरित [१८] तो णिवद्ध-जमलक्खय-तोणे पंडव-धइणि परज्जिय दोणे पर एक्कलउ थिउ तव-ण दणु कुरु-गुरु जउ तउ वाहिय-संदणु जाउ महाहउ णिरुवम-चरियह विहि मि जुहिठिल-दोणा यरिह पं रामण-रामहुँ रण-लोलहु णं गयवर हुं गिल्ल-गल्लोलहु ४ णं सद्दलह आमिस-लुद्धह णं केसरिहि परोप्परु कुह णं विसहरह विसम-फुक्कारह ण गोविसह मुक्क-ढेक्कारह छुडु छुड हय हय भार-दुवाए छुड्डु छुडु सूउ पलोट्टिउ पाएं छुडु छुड तब-सुउ णिप्पहु सारिउ छुडु छुड्डु चिहुरह हत्थु पसारिउ ८ घत्ता लेइ ण लेइ झडप्पेवि दोणायरिय-कय तहो x x x णं जेमतहो अज्जुणु ताम समावडिउ । पढमु कवलु हत्थहो पडिउ !! ९. अंतरे रहु वाहेहि असराले भरेवि दिसामुहु सरवर-जाले पूरिउ देवयत्त सेयासे पंचयण्णु रउ लच्छि-णिवासे एक्कीभूउ णिणाउ भयंकर गउ वंभंड णाई सय-सक्कर णर-करे परियं भिउ गंडीवें खय-जलहरेण व गउिजउ जीवें ४ फुरइ रहद्धए कंचण-वाणरु णं गिरि-सिहरे लग्गु वइसागर एक्कु-वि णर-सर-णियरु भयंकर अण्णु.वि रण-रउ रयणि-भयंकर काइ-मि तेहिं ण णिहालिउ दोणें रहु परियत्तिउ पच्छिम-घोणे णिय-णिय-सिमिरह वलई पयट्टई ण खय-जलणिहि-जलई विसट्टई ८ पत्ता गरहिउ गुरु कुर-णाहे भग्गुच्छाहें तुहुं मई ताय वियक्कियउ । अच्छउ वसुह जिणेवी महु सिय देवी राउ-वि घरेवि ण सक्कियउ॥९ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्कपण्णासमो संधि १९१ पभाणइ कलसकेउ अहो राणा कुरु-परमेसर पुह इ-पहाणा । गरहहि तुहं मई ताय वियक्किउ अज्जुणु केण-वि धरेवि ण सिक्कउ ॥ ण वे-भाय करेवि अप्पाणउ रिउ पहरइ परिरक्खइ राण मइ-मि महाहवे सरेहि णिरुभइ एउ सव्वु गोविंदु विय भई ४ धरउ कोवि छुडु अज्जु-वि अज्जुणु धम्मपुत्त महु जाइ कहिं पुणु गुरु वयणावसाणे रणे दुद्धर गह-अणुरूव भूव जालंधर णं उम्मेठ्ठ दुट्ठ वर कुंजर णं पंचाणण णहर-भयंकर णं जलणिहि मज्जाय-विवज्जियणं खय-काले मेह गलगजिय ८ धत्ता जिव महुमहण-धण जय वइरि-पुरंजय परए सय मुव-वलेण हय । जिव सतुरंग-सगयवर स-धय स-रहवर अम्हहिं पउरव-पहेण गय ||९ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सय भुत्व कए एक्कवण्णासमो इमो सगो ॥ Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बावण्णासमो सौंधि पडिवालिय-सूरई आह य-तूरई वाहेवि रह वर-वाहणई । भिडियई महि-कारणे वे-वि महारणे पंडव-कउरव-साहणई॥ १ [१] तब-णंदणु परिरक्खिउ गरेण गुरु गरहिउ कुरु-परमेसरेण तहिं अवसरे दप्पुप्पेहडेहिं जयलच्छि-सुरंगण-लेहडेहि सहुँ गरेण समिच्छिय-विगहे हिं सामिय-सम्माण-परिग्गहेहि हरिणाइ-समुत्तर-संगिएहिं । अणुदिणु रण-रामालिंगिएहि धिप्पंतेहिं कुसवसणकिएहिं कंसिय-तणु-ताणालंकिएहिं मालव-हिरण-पुरवासिएहिं गोवेहिं णारायण-पेसिएहि सिवि-तुंडिए रण-रस-पच्छलेहिं दरएहिं कुणीरेहि मेहुलेहि जालंधर-मच्छ-तिगत्तएहिं वोल्लाविउ पहु संसत्तरहिं घत्ता कुरु-खेत्तहो वाहिरे तो कुरुवइ कल्लए घोर-रणाइरे दुप्परियल्लए जइ त अज्जुणु णउ धरहुं । अम्हई हुयवहे पइसरहुं ॥ ९ Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बावण्णासमो संधि [२] तो करेवि पइज्ज णराहिवेहिं रण-रहस-सललिएहिं पत्थिवेहि हक्कारिउ अज्जुणु अद्ध-रत्ति जइ कह व परिद्विउ णियय-खेत्ति तो अम्हहिं सव्वेहिं कहिउ तुज्झु कुरु-खेत्तहो वाहिरे देहि झुझु जौं णरवर-विदेहिं एम वुत्त वोल्लाविउ पत्थें धम्मपुत्त ४ कि णिहुयउ अच्छमि स टु जेम भड-वोक्क ण सक्कमि सहैवि देव तव-ण दणु पभणइ अखय-तोणु तिह करि जिह मई पावइ ण दोणु तो भुवणुच्छलिय-महा-गुणेण विण्णविउ जुहिट्ठिलु अज्जुणेण धट्ठज्जुणु सच्चइ भीमु जाम को पहु पई हत्थे छिवइ ताम ८ घत्ता हउ भिडमि तिगत्तह' एम चवंतह गय णिसि दिणमणि वित्थरिउ । णह-सिरिए णहत्थह तवसुय-पत्थहं णं अहिसेय-कलसु धरिउ ॥ ९ णिसि-णिग्गमे वड्डिय-कलयलाई ___आलग्गई पडव-कुरु-वलाई गय-मयणइ णिग्गम-दुग्गमाइ हय-फेणोवड्ढिय-कद्दमाई रह-भारत-वसुधराई जय-सिरि-वहु-लइय-सयवराई पहरण-रण-पहरण-पेसियाई दुज्जय-जयलच्छि-गवेसियाई पर-वारण-वारण-वारणाइ दप्पुब्भड भड-संधारणाइ घय-छत्त-छित्त-रवि-मडलाई असि-किरणोहामिय-विज्जुलाई घणु-सोहा-जिय-इंदाउहाई रय-रक्खस-गिलिय-दिसा-मुहाई रुहिर-णइ-रउद्द-महारणा करि-दसण-कसुग्गय-हुयवहाई ८ । घत्ता तहिं तेहए दारुणे रण-रुहिरारुणे वाहिय-रहई धणुद्धरई । गंडीव-भयंकर खंडव-डामरु भिडिउ पत्थु जालंधरहं ॥ ९ । Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ रिडणेमिचरिउ [४] तहिं अवसरे वुच्चइ महुमहेण लज्जिज्जइ पत्थ पराहवेण जाणहि जि महारहे थवेवि आउ कह-कहव ण दोणे धरिउ राउ पई विणु भुवदंड-भय कराह को अंकुसु मोडइ गुरु-सराह पयरक्खु विओयर जइ-वि थाइ गय-घडह विरुज्झइ सीहु णाई ४ पयरक्स्व गरिंदहो जमल जे-वि मद्दाहिव-सउणिहि धरिय ते-वि अहिमण्णु मईद-किसोरु णाई जेत्तहिं जे कुमार तेत्तहिं जि थाइ सोमय-सिंजय-पंचाल जे.वि कुरु-गुरु सक्कति ण धरेवि ते-त्रि ८ घत्ता रइयजलि-हत्थें वुच्चइ पत्थे वित्थारिय.जस-मडवह । हरि तुहुँ जहिं जमलउ णय-पय-कमलउ कवणु दुक्खु तहिं पंडवह ॥९ ४ संसिऊण वसुएव-णदण करमि जाण(१) सस्सीरिय वल हय-हय वियारिय-महागयं भग्ग-संदण णोल्ल-णरवर वाहिओ धुराहिवेण रहवरो रय-णिहाय-कय-मेह-डवरो पंचयण्ण-णिग्योस-भीसणो कोत-तोय-तणु-तेय-तेइओ धुरि अणुट्ठिओ वाहि संदण खर-खुरुप्प-कप्पिय-उरत्थल मोडियायवत्तं वलुद्धय हिर-मंस-वस-तित्त-णिसियर चडुल-चक्क-चिक्कार-दुद्धरो देवयत्त-रव-वहिरियंवरो पलय-मेह-मयरहर-णीसणो गरुड-पवण-मण-वेय-वेइओ धत्ता धए कंचण-वाणरु पासे महीहरु रहवरे गरु करे स-सरु धणु । रण-रामासत्तेहिं दिट्ट तिगत्तेहिं णाईणवल्लउ जमकरणु ।। ९ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बावण्णासमो संधि तो जाल'धर स-सर-घणुद्धर रहसुद्धाइय . काहि मि ण माइय भरिय-दिय तर दलिय-वसुंधर हय-हडि-काहल पसरिय-कलयल उक्खय-पहरण चोइय-वारण किय-कडवंदण वाहिय-संदण जय-सिरि-सगम मुक्क-तुरंगम अतुल-परक्कम केसरि-विक्कम तेहिं चलंतेहिं खोणि खणतेहि रउ उद्धाइउ जगे जि ण माइउ घत्ता जल-थल-आगासइं अमर-सहासई सव्वइ धूलिए मइलियइ । पर अतुल-पयावई विमल-सहावइ' चित्तई भडहण मइलियई॥११ तो णरु णिरुद्ध जाल धरेहिं ' दुद्दिणे दिणमणि जलहरेहि ण केसरि मत्त-महा-गएहिण चंदण-पायउ पण्णएहिं एक्कलउ अज्जुणु वलु अणतु वावरइ तो-वि तिण-समु गणंतु विप्फुरइ विज्जु जिह चाव-लट्ठि दस वीस तीस पचास सट्टि ४ सउ सहसु लक्खु अप्परिपमाण .. पसरति चउद्दिसु णवर वाण सव्वेहिं अखत्त लइउ पत्थु सव्वेहि-मि विसज्जिउ सव्वु अत्थु धड सव्व-जत-पाहाणविट्टि लक्खिज्जइ जउ जउ रमइ दिष्ट्रि सो पहरण-णिवहु कइद्धएण विणिवारिउ वेहाविद्धरण पत्ता गडीव-विहत्थे खंडिय पत्थे सोलह सहस महासरह' । पडियई खुडियद्धइ खम्वई खद्धई णाई सरीरई विसहरह॥ ९ Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिडणेमिचरिउ [८] संसत्त-सेण्णु अणज्जुणेण किउ पाराउट्ठउ अज्जुणेण तहिं अवसरे भायर पंच थक्क ण सग्गहो णिवडिय पंच सक्क णं पंच परिट्ठिय लोयवाल ण जम-कलि-पल य-कयत-काल पंचहि-मि पूरिय पंच संख पंचहि-मि विसज्जिय सर असंग्व ४ पंचहि मि महारह समुह दिण पचहि-मि धणंजय वाण छिपण दस दसहि सरेहिं पंचहि-मि विद्ध कह-कह-वि ण पाडिउ पवय-चिंधु इसु गरेण सुवाहुहे तीस छिण्ण पुणु चाव-लट्ठि दस दिसिहि दिण्ण रहु सुरहहो किउ सय-खंड-खंडु विद्धलिउ(?) सुसम्महो छत्त-दंडु ८ तणु-ताणु सुवम्महो तणउ भिण्णु सु-धणुधर-सिरु भल्लेण छिण्णु घता भडु पडेवि ण इच्छइ सीसु पडिच्छइ जइ पडिबारउ थाइ थिरु । तो णिय-वले भग्गए सामिहे अग्गए धत्तमि वइरिहे तणउ सिरु ॥९ तहो रणभर-पवर-धुर धरासु ज' लइयउ सीसु धणुद्धरासु त णिय-वलु परिलविय-किवाणु धीरविउ सुसम्में भज्जमाणु संभरहो सु ताई गलगज्जियाई संभरहो कुलइ मल-वज्जियाई संभरहो भडत्तणु साहिमाणु संभरहो सामि-संमाण-दाणु संभरहो पइज्जउ दुक्कराउ गय काइ भणेसहो कुरुव-राउ वहुएहिं हणेवउ एक्कु जेत्थु को पाण-भयहो अवगासु तेत्थु त' णिसुणेवि वलिय परिंद के-वि णिय-णामइ पवरई संभरेवि णारायण-वलई पधाइयाई जल-थल-आयासई छाइयाई - घत्ता पहरण-पब्भारें रय-अंधारें रहु ण दिट्ठ ण तुरंग ह्य । मरणु चितिउ सव्वेहिं भडेहि स-गव्वेहिं णर-णारायण कहि-मि गय ॥९ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बावण्ण:समो संधि १९७ [१०] किउ कलयलु तुरई हयई तेहिं रण-रसिरहिं कुरुवइ-किंकरेहि मुउ मछुडु महुसूयगु स-पत्थु संसए वलग्गु गिवाण-सत्थु तो दुद्दम-दणु-तणु-धायणेण वोल्लाविउ णरु णारायणेण अहो अज्जुण सुर-गिरि-गरुअ-धीर। खंडव-डामर एककल्ल-बीर कि छिण्णु महारहु खुडिय चक्क किं पहर-विहुर-रह-तुरय थक्क किं निट्ठिय तोणहो कंड-संड किं पडिय तुहारा वाहु-दौंड किं चंडु चंडु गडीउ भग्गु कज्जेण जेण संसय-वलग्गु हरि गरेण वुत्तु थिरु थाहि देव रिउ मारमि सीहु सियाल जेम ८ घत्ता तो एम भणेप्पिणु णर-णियरु णिवारिउ सर-सय लेप्पिणु तालुय-बम्म-विमद्दणेण । णं ओसारिउ कोंकण-उवहि जणदणेण ॥ ९ [११] सर घिवइ चउदिसु सव्वसाइ थिउ किरणहुँ मज्झे पंयगु णाई णाराय ण विणु दुज्जोहणेण वामोहिय अच्छे मोहणेण जालंधरु रुद्ध णिरुद्धणेण संसत्तग थंभिय थंभणेण उड्डविय तिगत्ता वायवेण जिय सूरसेण सूरायवेण कालेय कुलीर कुणिंद भग्ग पच्छल मेहल उप्पहेहिं लग्ग गंधार मगह मद्दासिया-वि मालव-हिरण पुर-वासिया-वि जायव जोहेया जवण जट्ट आहीर कीर खस टक्क भोट्ट कासेय उसीणर तामलित तोक्खार तिउर अवर-वि विचित्त ८ धत्ता दुद्दम दुलक्खेहि गरवर-लक्खेहिं जे रणमुहे ण परज्जिय । ने एक्के पत्थे किय धणु-हत्थे सयल मडप्फर-वज्जिय ॥ ९ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ रितुणेमिचरिउ ११२] ओसारु देवि थिउ वइरि-वलु ण जंबुद्दीवहो उबहि-जलु णं रवियर-णियरहो तम-पडलु संधाणु वाणु घणु भुय-जमलु लक्विज्जइ णरहो ण वावरणे पर हय गय भड णिवडंति रणे सो ण-वे णरु सोण-वि मत्त-गउ सो ण-वि तुरंगु सो ण-वि धयउ ४ सो ण-वि णरु ण-वि करु ण-वि चरणु तं ण-वि सदेहु देहावरणु तं गाउहु णायवत्त धरिउ ज अजुण-सरेहि ण जज्जरिउ कुरु-कलयलु ताम समुच्छलिउ जिह पंडव भग भीमु वलिउ जिह दोण महा-धणु उत्थरिउ जिह केण-वि धम्म-पुत्त धरिउ ८ घत्ता तं रउ उण्णाएवि पर-बलु खाएवि पत्थें णिय-मज्जायएण । पुणु कउरव जोइय णिय-मुहे ढोइय काले णाइ अ-घाइएण ॥९ [१३] तो तव-सुय वेहाविद्धएण सोणासें कलस-महाधएण अवगणिवि पंडव-भड-समूहु गरुयारउ गारुडु रइड वूहु सई मुहै दुजोहणु उत्तमंगे कि-वि वामए कि-वि पयाहिणंगे कि-वि पुट्टिहिं कि-वि पक्खंतरेहिं कुरु-पत्थिव थिय थाणंतरेहि त बूहु रएप्पिणु अप्पमेउ तव-तणयहो धाइउ कलस केउ एत्तहे-वि पचोइय-अज्जुणेण पडिवूहु रइउ धट्टज्जुणेण धीरविउ जुहिट्ठिलु जिय-वरेण को छिवइ भडारा किकरण मई जीवमाणे पारावयासे कचण-कलसद्धय-कुल-त्रिणासें ८ घत्ता णिय सामिउ धीरेवि तुरय समारेवि दुमय-पुत्तु रहवरे चडिउ । मेहउल-विहजणु पलय-पहजणु ण णहे दोणहो अभिडिउ ॥९ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वावण्णासमो संधि घट्टज्जुणु णिवि समुग्ग-तेउ उत्थवं ण सक्कइ वारे-स्ले किर अच्छइ संसय मात्रे छुड पडिलग्ग परोप्परु समर - सोंड साइ-मि वढिय-मच्छराई खग्गग्ग झुलुक्किय- दिसिहाई पहात्रिय प-चामर-घत्त-धय इसारिय-हयवर-गयवराई' - तहिं तेहर रण- मुहे लइ लइउ जुहिट्ठिल पंडु-द-वल वर्णिय - मायंगय घत्ता फुरिय- महाउहे परिपालिय- उलु (१५) भाग- पाइक्क धित्त-सर-जालय सुढिय-भुय-दंडयं द'ति-द' तुक्ख' [१४] - मुह-रालय दोणि- दोहाइय चत्त-सण्णाहय थिउ उम्मण- दुम्मणु कलसकेउ ण सरासणु संठइ वाम-हत्थे दुम्मुहेण ताम पंचालु रुद्भु णं मत्त गइद समुद्ध-सुंड भिडियई परिओसिय-अच्छराई सोणिय - समुद्द-लौं धिय-हाई' णच्चाविय सुहड - कवंघ-सय पुंजीकय-कंचण रहवराई पवल - हय-दल-वल. धुणिय-सीसक्कयं लग्ग-पारक्कय गलिय-करवालयं पडिय-कोव 'ड' छिण्ण-स-कक्खय लद्ध-मुह - घायय' कह - विण-त्रि घाइय दोण-वाणाह १९९ भिडिउ दोणु तव - णंदणहो । भउ उप्पण्णु जणदणहो ॥ ९ ४ ४ Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रितुणेमिचरिउ २०० सल्ल-सर-सल्लिय कण्ण-कडयावियः भमइ भय-धंधलं सुहड-झड-झप्पियः कुरुव-पहु-पेल्लिय सउणि-संतात्रिय सरण-मण-चंचलं तुरय-गय-चप्पियः घत्ता छुडु छुडु दोणें अक्खय-तोणे पंडव-णाहु णिरत्थु किउ । पय-रक्स्व-वियारिय वाह-पसारिय सच्चइ अतरे ताम थिउ ॥१४ (१६) सो सच्चइ तहिं जो मच्छ-वंसु उत्तम-धणु उत्तम-रायहंसु गुरु पंचहिं वाणेहिं तेण विद्ध इंदियहि महा-रिसि जिह णिसिद्ध जुत्तारु पिसक्केहि दसहि भिण्णु धणु पाडिउ दसहिं धयग्गु छिण्णु वाणासणु गुरु-करे अवरु लग्गु कोद डु-वि परहो दसेहिं भग्गु ४ तेण-वि अवसरेण सरासणेण तिउणेण विद्ध मग्गण-गणेण दियवरेण महाधणु तहो विहत्त कह-कह-वि ण सच्चइ मएणु पत्तु तहिं अवसरे रोस-वसारुणक्ख धरविउइ (1) जुहिट्ठिल-चक्करक्ख पहरिय सर-सएण सएण वे-वि एक्केके भल्ले णिहय ते-वि ८ घत्ता छिण्णई भूमीसई सुहडहं सीसई पडियई सोणिय चच्चियई । णिय-सामिहे ढोएवि णिरिणइ होरवि णाई कवाधई णच्चियई ॥ ९ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घावण्णासमो साधि २०१ परण तहि काले सयाणीयंकणेण परिहिय-रणवहु-णव-कंकणेण संघाणे थाणे किय-आयरेण गुरु-विद्ध विराडहो भायरेण हिं सरेहि भुवंगम-भीसणेहि णव-जलय-वलाहय-णिसणेहि छ-त्रि छिण्ण सिलीमुह दियवरेण पुणु थूणा-कण्णेसर-सएण सिरु खुडिउ मराले कमलु जेवं थिय सोमय-सिंजय णिरुत्रलेव ओहामिय कइकेय-जमल-राय पंचाल मच्छ विच्छाय जाय गुरु-वाणेहिं वूहई फोडियाई धय-चामर छत्तई मोडियाई वइसारिय हय गय वणिय जोह चउदिसिहि वहाबिय सोगिओह ८ पत्ता समसुत्ती पाडेवि णइ णिवाडेवि काल-ललाविय-जोह-णिह । रुहिरामिस-सित्तउ रस वस-लित्तउ हिंडइ दोणु कयतु जिह ।।९ (१८) तहिं काले परिट्ठिउ साहिमाणु जुहमण्णु जयद्धर चेइयागु सच्चइ घटुणु घट्टकेउ पंचालु सिहडि समुग्ग-तेउ वसुदाणु सुदक्खिणु उत्तमोज्जु खणे खत्तधम्मु जगे जणिय-चोज्जु आढत्तु अक्खत्ते तेहिं ताउ । ण सहिज्जइ केण-वि ते.वि धाउ ४ भूमीसह सीसई खुडइ दोणु कमलायर-कमलाई णाई दोणु एक्केक्कउ भीसणु वाणु लेवि वसुदाणि-जयद्धर गिहय वे-वि उरयडे पंचहि पंचालु भिण्णु सिरु खेमिहे णवहिं सरेहिं छिण्णु हउ वीस चउक्के खत्तधम्मु वारहहिं सिहंडिहे तणउ वम्मु ८ धत्ता तीपहिं सिणि-णंदणु किउ णीसंदणु उत्तमोज्जु-वीसहि सरेहिं । जुहमण्णु असक्केहिं पहउ पिसक्केहि णं चउसट्टिहिं विसहरेहिं ॥९ Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ तर्हि अत्रसरे णयणाणंदणेण पउमावइ-दोणाओहणेण गुरु पेक्खु पेक्कु रणे वावरंतु सोमय सिंजय कइकइ कहांतु णं हरि करि जमउरे पङ्कवंतु णं इंदु गिरिदह असणि हिंतु - एक्कल्लउ वट्टई पवशु जाम दुज्जोहण वयण विरामे कण्णु य-कुल- णह-पेंसर णिय एक्aहिं पडिलग्गए किं धरिउ विओयरु वावरं तु अहिमण्णु घुडुक्कउ दुमउ पंडि परिक्खु नियय-गुरु कुरु- वरेण्णु तं णिसुणेवि हय-गय- रहवरेहिं पंडवहि-मि परिमिउ भीमसेणु णं णहयर णाहु विहंगमेहि परिरक्खिउ रहवरु कुवरत्थु वेरुलिय-महाविधय-सणाहु सेो भीमु समच्छरु कहि जाहि जियंतङ (१९) घत्ता महि - परमेसर भीमे अभग्गए गंधर- सम-संदणेण रविपुत्त वुत्तु दुज्जोहणेण ण स-घणु महा-घणु उत्थरंतु ण वणदउ तिण-तरुवर डह तु णं पणु पओहर गिट्ठबंतु णं गरुड्डु भुयंगम खयहो किंतु किं तेण घरिज्जइ समरे ताम पभणइ चामीयर - णियर वण्णु रिमिचरिउ धत्ता तोसिय-अच्छरु एभ भणतउ खद्धउ कउरव सेण्णु गये । दोगे को त्रिण भग्गु रणे ॥ ६ ( २० ) गय- घाएहिं गयबर जज्जरंतु धट्टज्जुणु सिणिणंदणु सिह डिझ पीडिज्जइ जाम ण कुरुव-सेण्णु रक्खिउ कलस-द्रउ कुरु-गरेर्हि ४ णं पवर - गिरिदेहि सुर-करेणु णं सेसु असेस भुवंग मेहि स- जडासुर-ग-जगडण-समत्थु जय - जोत्तिय-रीरी-वण-वा ४ भामिय-गरुय-गयाउहउ | धाइ दाणो समुह || ९ Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वावण्णासमो संधि तव - णंदण-संदण-संगए हिं घट्टज्जुणु घाइउ मणंगमेहि वाहेहिं सिहंडि पउम पहेहि अरुणेहि' जुहमण्णु सेउत्तमाज्जु सच्चइ कलहाय - समुज्जलेहि पडिविझु परिट्ठिउ गंपि पुरउ सत्तहि-मि पराइउ साहिमाणु अवरेर्हि अवर णाणाविहेहि तं पेक्खेवि पर वलु सई भुएहि विओयरु (२१) घवलंग-णील-वालाहए हि पारात्रय-वण्ण- तुरंग मेहिं सुअसम्मउ सिहि गल - सच्छहेहि इंदाउह-वण्णेहिं कांतिहे।ज्जु अहिमण्णु पिसंगेहि चंचलेहि जरजीव-जीव वस- कण्ण तुरउ कउसे य-सवण्णेहिं चेइयाणु मंजिट्ट - कीर चंचुय. णिहेहि - धत्ता पसरिय- कलयल रिउ जम- गोयरु * इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय सयंभुव कए । बाण्णासमो इमो परिसग्गो समत्तो ॥ वंधव - सयंण विरोहणेण । आयामिउ दुज्जोहणेण ॥ ९ २०३ Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिवण्णासमो संधि दुजोहण-भीमह भीयर-भीमह जाउ महाहउ दुबिसहु । अविरल मिणमाणेहि(१) अवर विमाणेहिं ण वाहिउ(?) गगण-बहु ॥१ वसुमइ-कामघेणु-संदोहण दुम्मरिसेण ताव हक्कारिउ कियवम्मेण वरिउ सिणि-णंदणु पेक्खंतहो कउरव-संधायहो तहिं अवसरे ओवाहिय-संदण कह-वि जुजुच्छु कडय-सण्णाहउ तो कर-करिसिय-स-सर-सरासण सल्ल-जुहिट्ठिल भिडिय परोप्पर णिभय भिडिय भीम-दुज्जोहण वलु पंडव कहिं जाहि अमारिउ खत्तधम्मु सेंधवेण स-संदणु धउ घणु छिण्णु जयदह रायहो ४ भिडिय वे-वि धयरट्ठहो णदण स-सिरउ हय सुवाहुहे वाहउ । विण्णि-वि भिडिय णउल-दूसासण जाउ विहि-मि संगामु भयंकरु ८ . घत्ता भुयइंद-पमाणेहि पंचहि वाणेहिं विद्ध राउ मद्दाहिं वेणे । चउसटिहिं ताडिउ कह-वि ण पाडिउ सल्लु-वि पंडव-पत्थिवेण || २ [२] तव-सुय-कुरुवराय-पाइक्कहं . रणु पडिलग्गु दुमय-वल्हिक्कह उन्भड-सुहड-मडप्फर-साडहो भिडिय विद-अणुविद विराडहो खेमवित्ति विमएण घरिज्जइ चेइउ अबढेण वरिज्जइ विद्धखेमु गउतमेण णिवारिउ धट्ठज्जुणेण दोणु हक्कारिउ ४ अंगाहिकहो सिह डि विरुज्झइ गुरु-सुरण पडिविंझु णिरुज्झइ अंगय-उत्तिमोज ओवडिया दुम्मुह-पुरुजि परोप्पर भिडिया .. धाइउ सोमयत्तु मणिवतहो दूसासण-सुउ उत्तर-कंतहो अक्खुइ सुय-कित्तिहे उवदुक्कउ आरिससिगिहे भिडिउ घुडुक्कउ ८ घत्ता विहिं विहिं साम तह उण्णवंतह एम भयंकर जाउ रणु । दीसइ रुहिरोलिउ गं पप्फुल्लिड फग्गुणे रत्तासोय-वणु ॥ २. Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिवण्णासमो संधि २०५ तो रण-रहसे' कह-मि ण माइउ मत्त-गइंदेहिं रिउ जगडाविय णच्चाविय कबघ वहु-भगेहिं गय मयगल रुलं ति मस्थिक्केहि वियलिय-पहरणे चूरिय-वाहणे ममीसंतु सुहड स-मडक्कउ णं मयगलु दुवालि लेवारिउ ण अजलंतु जलणु संधुक्किउ हणु भण तु दुजोहणु घाइड भिण्णइं जूहई धड विह डाविय रंगाविय रह-रहिय रहगेहि हय हय रहिय रहिय पाइक्केहिं ४ तहिं भज्जंतए पंडव-साहणे जमु जिह एक्कु भीम पर थक्कउ म सुत्तउ मइंदु वेयारिउ ण खय-काल-दंडु उबढुक्किउ ८ घत्ता रायजण-मज्झे समरे असञ्झे इह-पर-लोय-विरोहणहो । वोलाविउ सारहि रहवर सारहि छत्तई जहिं दुजोहणहो ॥ १. __रहवर वाहि वाहि लहु तेत्तहे गय-धड णिविड परहिय जेत्तहे त णिसुणेवि सारहि उच्छाहिउ अरिय-विमद्दणु सदणु वाहिउ भीम-महा-भर-वहणासक्कई रहु पक्खलइ चलति ण चक्कई णिय मुहरं गेहि पवर तुरगम सुडिय-पक्व किय गाई विहंगम ४ घाइउ झंप मुएवि धुरग्गले सारहि रहु आणिज्जइ पच्छले हजि महारहु चलण जे चक्कई जाइ वह तई कह-मि ण थक्कई रोसु जि सारहि हियउ जे चिंधउ ज गुरु-गय-धड-गंध-पइद्धउ लउडि जि रह-धुर हत्थ जे घोडा जे दप्पुब्भड-सुहड-णिहोडा धत्ता णिय-देहु जे रहवरु करेवि विओयरु धाइउ स-धणु स-पावरणु। णं हत्थि-हडोहह कउरव-जोहहं दुक्कीह्वउ जमकरणु ।। ९ ।। Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिठ्ठणेभिरि [५] तो दुज्जोहण-णयणाणदणे किय-दप्पुब्भड-भड-कडवंदणे विविहाहरणेहिं विचित्त-पसाहणे वियरइ भीमु महागय-साहणे कालायस-घडिएहिं अपमाणे - के-वि महा-करि चूरिय वाहणे काह-मि णीणिय पच्छिम-भाएहि चूरिय के-वि भुयग्गल-घाएहिं काह-मि वलइ धाइ पडिलग्गई काह-मि करि-सिरि खंधे वलग्गई काह-मि झंप देइ कुभोयरि कडूढइ मोत्तियाइं जिह केररि के-वि गयासणि घाएहिं घाइय के-वि किवाणे जम-पहे लाइय एक्के भीमें गयवर लक्ख कियई रणगणे सूडिय-पक्खई ४ ८ घत्ता लक्ख-वि आवइ महिहे पयइ घार घाए पवणंगयहो । णं करेहिं मलेप्पिणु कवलु करेप्पिणु देइ कयतु महागयहो ॥ ९ ४ तो तहिं विओयरेण आहउ करी-करेण मोडिय रहु कड-त्ति चूरिय सिर तड-त्ति मोत्तिया समुच्छलंति तारया-छवी वहति अंबरे वरंगणाहिं णच्चिय सुरगणाहिं अण्णओ णिलग्गएण भग्गओ गओ गएण आहओ हओ हएण पाडिओ धओ धरण चूरिओ रहो रहेण आउहो वराउहेण लेवि वद्ध-मच्छरेण घाइओ णरो गरेण घत्ता को-वि करि आहयणहो धित्तउ गयणहो एंतु समाहउ गयवरेण । णव पाउस-डंवरे कत्तिय-अंवरे णं णव-जलहरु जलहरेण ॥९ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिवण्णासमो संधि २०७ तो दुजोहण-वाहिणि-वाहणु भीमें भग्गु महागय-साहणु धाइउ कुरुव-राउ तहिं अवसरे कुइयउ कयं तु णाई खय-वासरे विद्ध विओयरु उरे णाराएं वह-वि कह-वि महि पत्तु ण धाएं एक्के भरले कुरुवइ ताडिउ अवरें स-धणु महा-धउ पाडिउ ४ च पाहिवइ चडेप्पिणु कुजरे थिउ दुज्जोहण-भीमहुँ अंतरे कण्ण-विओयर भिडिय महावल कुती-सुव कुरु-पंडव-वच्छल रहबरु पाविउ ताम विसोएं दिट्ट असेसें णरवर-लोएं णं केसरिहिं महीहरु दुज्जउ णं दइवहो ववसाउ साहेजउ ८ घत्ता रहु सारहि पावइ बंधउ आवइ मण-गयणुत्तम-घोडएहिं । जय लच्छि विढप्पइ पर-वलु कंपडू एउ ण पुण्णेहिं थोडएहि ।। ९ 10 ४ ते महि-कारणे रणे पहर तें कण्ण-महाकरि-मत्थउं दारिउ तहो आइच्च-सुयहो पेक्खंतहो लहु जुत्तारें पाविउ संदणु धाइउ पंडु-पुत्त बहु-वाणेहि विहि-मि परोप्पर छिण्णइं चावई भीमें भीम गयासणि भामिय भुक्खिएण जगु कवलु करते अवसरु लहेवि हिडिवा-कते पच्छिम-भाएं सरु णीसारिउ सिरु आरोहहो खुङिउ रसंतहो तहिं आरूदु दिवायर-गंदणु तेण-वि सो अणेय-परिमाणेहिं सरवर-जालई कियई अभावई भडह भवित्ति णाई संकामिय जीह ललाविय णाई कयं ते ८ पत्ता धुर-धरण-महाइउ भीमहो गय-धाए सारहि घाइउ दइव-विहाए हय तुरंग रहु जज्जरिउ । अंगराउ पर उव्वरित ॥ . ९ Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ रितुणेमिचरिउ तो तंडविय-कण्णु उब्भिय-करु मय-परिमल-मेलाविय सडयणु पायवीढ कंपाविय महियलु पुक्खर-छित्त-दिवायर-संदणु चरण-चार चूरिय-अहि-चुभल्लु सो भयक्त्ते चोइउ चंदिर सारहि करणु देवि थिउ रे दाण-महाणइ-उक्खय-वण-तरु सीयर.धारा-सिंचिय-सुरयणु कुंभ-मडलुच्चाइय गह यलु दंत-धाय-घोलिय-संकंदणु पुच्छ-धाय-धाइय-पच्छिम-बलु रहु सतुरंगमु जिउ जम-मंदिरु लइउ भोमु काले ण कूरे ८ घत्ता पयणंगय-गयवर हा(?) चउपयवर भिडिय परोप्पर वे वि जण । गयणंगण छडेवि थिय महि मंडेवि णं संचारिम पलय-धण ॥ ९ [१०] एक्कु विओयरु तिणि रणुज्जय सुरवर-समर-सहासेहिं दुज्जय वजकुस-भयवत्त-महागय णव-णाव-णाग-सहस-वल-संगय तिण्णि-वि एक्कु णाई करि होएवि। अप्पाणेण जि अपउ चोएवि घाइउ मयगलु मच्छर-भरियउ भीम-भुयग्गल-वेढें धरियउ ४ सो-वि महागय लील-विलविउ सुरवहु-णयण-ममर-परिचुंविउ वाहु-विसाणु पयाउ-महाकरु घाय-दाणु पवणंगय-गयवरु वेज्झउ देइ ओसरइ ण छप्पइ(?) खणे पडिमाणे थाइ खणे पच्छए भमइ चउद्दिसु मत्त-गइंदहो विज्जु-पुजु ण जलहर-विंदहो ८ धत्ता चउ-चरणभंतरे जगु उप्परि देप्पिणु छुद्ध खणंतरे आयामेप्पिणु वियरइ भीमु ण वीसमइ । णाबइ कुम्मु परिन्भमइ ॥ ९ Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ तिवाणा ज़मो संधि [११] वेदिउ कंधु करेण करिदे णं गिरि-मंदरू महणे फर्णिदे कह-वि कह-वि ल्हिक्कवियउ अप्पउ कहि-मि ण दिछु जेम परमप्पउ पुणु पइठ्ठ चउ-चरणब्भंतरे पडिउ सरेवि थक्कु दूर तरे गउ गउ भीमसेणु उच्छणउ पंडव-लोउ सन्वु आदण्णउ ताम जुहिट्ठिलेण लेवाविउ मत्त-महागएहिं खेयाविउ रह वर-पवर-तुरय-पाइक्केहि तरु-पाहारू सिलेहि स-सिलिक्केहि जो भयवत्त वइरि मंधारइ अंकुसेण पहरण शिवारइ जो जो दुक्कइ तहो तहो पावइ पाडिय गय णिय गय चूरावइ ८ धत्ता उल्ललइ पयट्टइ चलइ विसट्टइ एक्के भयवत्ते भमइ भमंते खलइ णियत्तई पंडु-बलु । मंदर-हउं गं उवहि-जलु ॥ ९ ताम दमण्णएण करि चोइउ के-वि महागय भिडिय परोपरु दंत-धाय-कर-धाय-विलासेहि सत्तहि तोमरेहि भयवत्ते पुणु-वि जुहिट्ठिलेण वेढाविउ सच्चए भिडिउ भयत्तए मयगले । घुम्ममाणु पडिवारउ चोइउ थिउ ओसरेवि जिणेवि ण सक्किउ जेत्तहे जेत्तहे रणे परिसक्कइ णं णिय-दंडु कयंतें ढोइउ जाउ महाहउ तोसिय-सुरवरु पुच्छ-धाय-कम-धाय-सहासेहि पसिउ जम-सासणु खण-मेत केवल-रहवरेहिं वड्ढाविउ पचहिं सरेहिं विद्ध कुभत्थले धाइउ गाई जमेण अवलोइउ वारणु पहरण-लक्खेहि ढक्किउ तेत्तहे तेत्तहे के-वि ण थक्कइ . ८ घत्ता तहिं काले विओयरु तो सवि विवेरा स-सरु-घणुद्धरु भीमहो केरा घाइउ अण्णे रहवरेण । भग्ग तुरंगम गयवरेण ॥१० Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० रिदृणेमिचरिउ तहिं पमाणे परिवड्डिय-गव्वउ धाइउ हणु भणंतु रुइपव्वउ एक्के तोमरेण भ्यवत्ते जम-पट्टणे पट्टविउ पयत्ते तो स-रहसु भय-पसर-विमुक्कउ चेइयाणु अहिमण्णु चुडुक्कर धकेउ धज्जुणु धाइउ पंडि सिह डि जुजुच्छु-पराइउ पंच पुत्त पंचालिहे केरा ओए-वि अवर-वि वि अहिअ हणेरा ताम जुजुच्छुहे सारहि धाइउ रहे अहिमण्णु-हिंडिवय-धाइड दस-दस सर एक्केक्के पउंजइ चेइयाणु चउसट्टि विसज्जइ जं अवरेहि-मि, लइउ अखते तहिं तहिं सव्वु विद्रु भयवत्ते ८ पत्ता ओसरइ स-वाहणु पंडव-साहणु णिम्मज्जायहो कुजरहो । अवलोयणे थक्कहो णासइ एक्कहो जगु जिह पलय-सणिच्छरहो ।।९ णिमुणेवि रह-गय-तुरय-वरेण्णह कलयलु पंडव-कउरव-सेण्णह रण-रउ अवरु भयंकर पेक्खेवि आउ किरीडि कवघई लखेवि जालंधर-रण-भोयणु भुजेवि जे उत्वरिय ताह' सुर जुजेवि पच्छर लग्गु समुक्खय-पहरण संसत्तग तिगत्त णारायण ४ चउदह दह चालीस पगासइ । तिहि-मि गणहं च उसट्टि सहासई अवरह केण संख पुणु वुझिय जे सहुँ अज्जुणेण रणे जुझिय मरु-मालव-हिरणपुर-वासिय मेहल-तामलित्त-णच्चासिय पच्छल-कामरूव-कंभीरा दलय-चिलाय-कुणिंद-कुणीरा ८ छत्ता एक्केक-पहाणा अवर-वि राणा अणुधाइय एक्कहो जणहो । दीहर-दाढालहो णहर-करालहो हरिण जेम पंचाणणहो ॥ ९ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिघण्णासमो संधि एक्कु पत्थु रिउ-सेण्णु भणंतउ धाइउ हणु-हणु-कार करतउ लइउ धणंजएण अण्णण्णेहिं तीरिय-तोमर-थूणा-कण्णेहि सेल्ल-बराय-कण्ण-णाराएहिं कणि घ-बइहत्थिय-संघाएहिं छिपाई उब्भड-भिउडी-भीसई कंधर-कर-चरणंगुलि-सीसइ तहिं पमाण-अइमाणुस-गम्में हक्कारिउ वीहच्छु सुहम्में पहरु पहरु जइ पंडहे गंदणु पहरु पहरू जइ साल जणगु पहरु पहरु जइ भीमहो भायरु पहरु पहह जइ तव-सुय-किंकरु पहरु पहरु जइ कुल्लू पणियारहि पहरु पहरु जइ जसु वित्थारहि ८ धत्ता तं णिसुणेवि पत्थे समर-समत्थे पाडिउ सत्तहिं सरेहिं धउ । विहि छिण्णु सरासणु छहि सुय-गंदणु भाइ सुसम्महो तणउ हउ ।। ९ ताम सुसा में सत्ति विसज्जिय तहिं वारह कण्णेहि परज्जिय ताडिउ तोमरेहिं णारायणु तासु-वि परथे किउ विणिवारणु कउर-वलोए घरेवि ण सक्किउ तो सारोह महा-करि हक्किउ तवणरिंद पडिलग्ग परोप्परु जाउ रणंगणु सुठु भयंकर विण्णि-वि वावर ति णाराएहि णं जलहर धारा-संघाएहिं मग्गण मग्गणेहिं विणिभिंदइ णरु णाराय-सहासेहिं छिदइ हत्थि व हत्थि-हडउ रणे गज्जइ सव्वहु एक्कु मडप्फरु भंजइ ताम घणजएण सु-विसेसें रहु परियत्तेवि वाम-पएसे घत्ता सहसा सोवणे थूणा-कण्णे लोयण-महुयरु सवण-इ . णर-णियर-गिरोहहो हत्यारोहहो पाडिउ पत्थे सिर Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ रितुणेमिचरिउ [१७] हत्यारों समरो समतें ताडिउ वासुएवु भययत्रों एक्के तोमरेण वच्छत्थले खाएवि फणि पइट्टरसायले तहि अवसरे आरु? कइद्धउ झत्ति पलित्त णाई धूमदउ तिहि कलहोय-विहूसिय-बाणेहि आसीविस-विसहर-परिमाणेहि छिण्णु छत्तु धय-दंडु सरासणु वर-चामीयर-चामर-वासणु कप्पिउ देहावरणु गइंदहो धण-पडलु व ओसरिउ गिरिंदहो तो भययत्तें भुअण-भयंकर पेसिय णरहो चउद्दह तोमर कुइउ विजउ भय-पसर-विमुक्कउ तिहिं तिहिं सरेहि छिण्णु एक्केक्कउ ८ पडिसत्ति विसज्जिय णरेण परज्जिय घंटा-चामर-गारविय । मित्तोत्रम-वाणेहि गुण-संधाणेहि असइ णाई विणिवारिय ॥ ९ [१८] उप्परिहरेहिं सत्ति जा ढुक्की खंडइ तिणि करेवि सा मुक्की दसहिं णरिंदु विद्ध पडिवारउ तोमर घिवइ सो-त्रि सयवार उ वंचइ णरु णारायणु लुक्कउ सुर चव ति विहिं एक्कु ण चुक्कर तो स-कंड-गंडीव-विहत्थे पाडिय चाव-लट्ठि रणे पत्थे ४ पुणु सत्तरिहिं सप्प-लल्लक्केहि सम्बई धम्मई हयई पिसक्केहि तो णारायणस्थु भययत्ते पेसिउ पज्जलमाणु पयत्तें णरए दाणवेण जौं दिण्ण वायरणेण व जे जगु भिण्णउं • अज्जु णु पुट्ठिहे ठवेवि तुरते कुसुम-दामु जिह लइउ अणते ८ एक्क्क . . . " जस-भायण णर-णारायण चडिय वे-वि विहिं रहवरेहिं । मिस-लुद्धा अमरिस-कुद्धा विणि सीह विहिं गिरिवरेहिं ॥९ धत्ता दीहर- दालुद्धा अमा Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिवण्णालमा संधि [१९] घाइउ अरि-करि ताम सगबउ पायचारि ण अंजण-पत्र तविर-णयण-जुवल्लु मुक्कंकुसु धारासार-रिसु ण पाउसु कुछ मयधु वलुद्ध रु धावइ पत्थहो लोय-णाहु जाणावई लइ लइ लय उरहस्थिय वाणेहि (?) गं तो वे-वि चत्त णिय-पाणेहि ४ ज उवएसु दिण्णु सर-वासे किउ वइसाह-थाणु सेयासे पढमगुलिहिं विद्ध पुणु पुक्खरे पुणु गहूसे सोते सोत्ततरे हत्थ-पएसए-वि चउबीस-वि वयण-पएस भिण्ण बत्तीस वि ८ पत्ता सत्रह सविसेसह हस्थि पएसह घायालीसई चउ-सयई । कुसुमौंजलि हत्थे सुरवर-सत्थे दिट्ठई झत्ति समाह यई ॥९ [२०] सव्व पएस भिण्ण मायगहो जलइ व धाउ-महीहर-संगहो रुहिरई णीसर ति चउ-पारिहिं गिरि व विहसिउ फुल्ल-पलासेहि णिवडिउ मुच्छा-विहल्लु विसाणेहिं को जीवइ संतेहि-मि दाणे आयामेप्पिणु सव्व-पयत्तें जंघारुहिं धरिउ भययत्तें ताम धणजएण स-गइंदहो उहय-कर कुस-घरहो परिंदहो छिण्णु णिडाल-बटु सहु सीसें कुंडल-मउड-महामणि-भीसें उत्तमगु उच्छलिउ कवंधहो पडिउ कबंधु महाकरि-खंघहो करिबरु धरह धगुप्परि सीसहो पेक्खंतहो कुरु-णरहो असेसहो ८ पत्ता सरहसेहिं सहासेहिं भुवणुब्भरुहुल्लई अमर-सहासेहि सुरतरु-फुल्लई णर-रण-सरहस व एहि । चित्तई णरहो सई भूएहि ॥९ इय रिडणेमिचरिए धवलइयासिय-सय भूएव-कए तिवण्णासमो सग्गो ॥ Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउवण्णासमो संधि भयवत्तेण समरे समत्थेण ओसारिउजइ कुरुव-बलु । सर-सिह उ मुअंतेण दोमइ-कंतेण णं वडवग्गिए उवहि-जलु ।। [१] हक्कारिउ विहि-मि समच्छरेहि गंधारिहे सउणि-सहोयरेहि जवणासोवाहिय-संदणेहि अइ-सुवलेहि सुवलहो णंदणेहिं सामिय-सम्माण-रणुज्जएहिं . विसयावल-णामेहिं दुज्जएहिं वल कु-पुरिस पंडव संढ-भाव भयवत्तु वहेवि कहिं जाहिं पाव ४ दुव्वयण-सिलीमुह-विद्धएण सेयासे वेहाविद्रएण धवलायव-वारण रह-रहंग धय-धणुवर-सारहि-वर-तुर ग णिण्णासिय एक्कें अजुणेण बहु अवगुण णाई महा-गुणेण भज्जतहो विसउ व विसउ पत्तु रहे अवलहो थाएवि पडिणियत्त ८ घत्ता सइ अगए किय-थाणेण भायरु पच्छए । . ओलि णिवद्ध पधाइय । एक्के वाणेण विण्णि-वि पत्थे धाइय ॥ ९ Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउवण्गासमो संधि जं णिहय सहोयर फागुणेण सुर भुवणुच्छलिय-महा-गुण तं घाइउ सउवलु हणु भणंतु वहु-माया-रूवई दववंतु णइ सायर आसुर आमराई। कापिंजलं गारुड भामराई , घाइउ बारह सई भुअंगमाई कारेणव णव तुरंगमाई आयइ अवरइ-मि विणिम्मियाई णर सरवण-सोणिय-तिम्मियाई णासेप्पिणु कहि-मि गयाइं ताई मग्गण-हस्थि णिरत्थई दिति काई पेक्खंतह किव-चंपाहिवाहं अवरह-मि असेसहं पस्थिवाह गउ पाण लएप्पिणु सउणि-मामु दुजोहण-दोणह तणउ थामु धत्ता चडुलंगेहि जवण-तुरंगेहिं पत्थहो अग्गए वावरइ । णह-छित्तउ लाला-लित्तउ हरिणु मइंदहो णावइ ॥ ९ ८ णरु धरेवि ण सक्किउ दुरेहिं भयवत्त-समप्पह-पत्थिवेहिं भंजंतु असेसेई वलई जाइ णं जलहर-जाल' पलय-त्राउ णं सिहरि-सम्हई कुलिस-दंडुः ण धरिजइ दारुण-वारणेहि ॥ धरिजइ पवर-तुरंगमेहि ण धरिज्जइ कुरुव-णराहिवेहि पारायण गण-जालंधरेहि विसयावल-सउणि-णराहिवेहि तंवेरम-जूहई सीहु णाई णं पण्णय-कुलह बिहंग-राउ णं कमल-वणई गउ गिल्ल-गंडु ण धरिज्जइ रहेहि पुरोवमेहि ण धरिज्जइ अवरहि पस्थिवेहि. ८ स-जणद्दणु स-सणिच्छर पंडुहे गंदणुः सव्व-लोय-भय-गारउ । वढिय-मच्छरु वियरइ जिह अंगारउ ॥ ९ Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिडणेमिचरित [४] कुरुखेत्तहो भाए. दक्षिणेण . महुसूयण-संदणे सक्खिणेण रिर-साहणु जगडिउ अज्जुणेण णं गिरि-तरु-तिण-वणु फरगुणेण तहिं कालि विओयरु धम्म-पुत्त धज्जुणु सच्चइ खेम-पुत्त ते पच-त्रि दोगहो भिडिय जोह ण इंदिय रिसिहि णिकद्ध-कोह ४ परिसक्कइ जउ जउ कालकेउ धट्टज्जणु तउ तउ हरइ तेउ सुमरेप्पिणु लक्खा-सरण-डाहु स-दुरोयरु दोमइ-केस गाहु तो भीमु-भुवंगम-विसम-सील हक्कारिउ गुरु-गंदणेण लीलु तिहि भल्लेहिंघउ घणु छत्त-दंडु रहु अवरेहिं किउ सय-खंड-खंडु ८ धत्ता असि-फर-कर भिडिउ भयंकर धाइउ सव्वायामेण । मउडुनलु सीसु स-कुंडलु पाडिउ आसत्यामेण ॥ ९ तो तवसुय-पत्थ-सहोयरेण सट्टिहि तोमरेहि विओयरेग वाल्हिक्कहो पाडिउ आयवत्त धउ चामर धणुवरु गुणु विहत्त छठवीसहि दोणे भीमु विद्ध अंगाविण हि छहिं णिसिद्ध छहि कुरुवें सत्तहिं कुरु-सुरण भीमेण-वि भीम-महाभुण ४ पंचासहि छाइड कलस-केउ तिहि मलिउ कण्णहो तणउं तेउ वारहहिं णिवारिउ कुरुवराउ गुरु-णंदणु अहिं विहलु जाउ सहं पुत्तेहि हरिसिउ जण्णसेणु परिरक्वहो केम-वि भीमसेणु तो रण-भर-धुर-धारण-सुरण दस किंकर पेसिय तव-सुएण ८ घत्ता जमल दुइ जण णर-सुय छउजण सच्चइ भइमि विणिच्छिय । सर-लक्खेहि । अमुणिय-संखेहिं दोणें दस-वि पडिच्छिय ।। ९ Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउवण्णासमो संधि २१७ [६] तो णरवइ अट्ट महाणुभाव संगाम-सएहिं णिग्गय-पयाव किव कण्ण-जयद्दह-कुरु नरिद कुरु-तणय-सल्ल-विंदाणुविंद पहरण-कर कवयावरिय-गत्त दोगहो परिरक्खणे मित्त पत्र एतहे वि धणंजउ धणुसहाउ जगडेवि जालंधर-वलई आउ ४ सर-किरणेहि सोसेवि कुरु-समुद् लक्विजइ रवि व महा-रउद्दु अप्पंपरिहूया धायरट्ठ णिय-पाण लएप्पिणु रणे पणट्ठ अह कुरुव-णराहिव-परम-मित्त वलु दिणमणि-णंदण करे परित्त णिय-सेण्णहो तो मंभीस देवि वरु स-सरु सरासणु करे करेवि ८ घत्ता घणु-हत्थहो धाइउ पत्थहो कज्जल-सामल-देहहो । अइ चौंचलु कणय-समुज्जलु विज्जु-पुजु जिह मेहहो ॥ ९ [७] कण्णज्जुण रणे पडिवण्ण घोरे कर-चरण-सिरालण-पाण-चोरे सच्चइ-विपास-विओयरेहिं रवि-तणउ विद्ध तिहिं तिहिं सरेहिं तेण-वि वर-वइरि-विणासणाई छिण्णइ तिहिं तिणि सरासणाई सत्तिउ तिहिं तिण्णि विसज्जियाउ कण्णेण-वि णवहिं परज्जियाउ पत्थहो विणिवारिउ वाण-जुयलु ण णिहालिउ केण-वि अंतरालु एत्तहे-वि रणगणे दुज्जएहिं वेविस-विपास सत्तुंजएहिं आढत्त अक्वचे सव्वसाइ णरु एक्कु विय भइ लक्खु णाई तिहिं वेविसु हउं वीसहिं विपासु छहिं खुडिउ सीसु सत्तुजयासु ८ धत्ता वहु-मच्छरु पण्णारह ताम विओयरु हणेवि महारह झंप देवि ओवडियउ । पडिवउ रहवरे चडियउ ॥ १ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ तो कण्णहो भाइ महाणुभाव मारेष्पिणु भीमें परिणिसिद्ध तहि अवसरे पवर- वलुत्तणेण णिय रहहो महीयले झंप देवि ससिधम्मउ णइसहु वहदखत्तु णु लेवि तिसत्ति- सरेहिं कण्णु चउसट्टि सिणिणंदणेण विद्धु परिरक्खिर सोहि कउरवेहि तहि अवसरे विडियए वासरे निसि-धुत्तिए असइ पहुत्तिए अत्थमिए पयंगे स वाहणाई भड - कडवंदण-पिह-मुहाई मिहुणाई व पुट्ठि परम्मुहाई मिहुणाई व वहुरय- रंजियाई मिहुणाई व णिच्चुक्कंघलाई मिहुणाई व पाविय चेयणाई 19 मिहुणाई व पच्छर णीसराई मिहुणाई व पहरण- खेड्याई मिहुणाई व अइ-पासेइयाइ' दिनणिग्गमे तमु धाइउ [ ८ ] धत्ता तडि - रवि-पहु असि फर- रयणु लेखि ४ तिण-वि पट्टविय कयंत - जत्तु चउपासिर सलहेहिं गिरि व छण्णु तिर्हि उर-भुय हय ( ? ) त्रिर्हि णिसिद्ध पशुविसरिंदे पंडवेहि रवि-राहा - सुय णिग्गय-पयात्र चंपाहिउ चउदह- सरेहि वि सेणाहित्रेण धट्टज्जुणेण [९] रयण-समागमे कहिमि ण माइउ रिमिचरिउ ढुक्क भाणु अत्थवणहो । धरिउ पाई णिय-भवणहो || धत्ता विष्णि-वि कुरु- पंडव - साहणाइ पल्लई सिमिरहो संमुहाइ मिहुणाई व चेट्ट-विवज्जियाई मिहुणाई व पसरिय वेयणाई मिहुणाई व पहर-विसंटुलाई मिहुणाई व पसरिय वेयणाई मिहुणाई व जज्जरिओसराई मिहुणाई व लाइय- हयलाई मिहुणाई व मिट्टिय-सर-सयाई उपरि गयणाहोयहो । दुज्जसु णं कुरु-लोयहो | ८ ४ Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउवण्णासमो सधि [१०] चंदुग्गमे सुहि-सउणधिवेण गुरु गरहिउ कुरुव-णराहिवेण केत्तिउ वोल्लिज्जइ ताय तुझु सम्भाव-विहींणउ करहि जुज्झु णउ फिट्टइ पंडव-पक्खवाउ सुविणे-वि ण चितिउ को-वि दाउ जहिं तूसहि तो देव-वि अदेव तव-सुउ ण लइज्जइ अवखु केव तो गुरु-मुह-कुहरुच्छलिय वाय मा दुप्णय-पायउ फलउ राय विस-जउहर-जूय-कयग्ग हेहिं . वण-वसण-मच्छविहि-गोगटेहिं परिपक्क हो गयउ अण्णाय-रुक्खु सो अवसे एवहिं देइ दुक्खु सरि-सुय-पमुहह एयारिसाह एह जे अवत्थ अम्हारिसाह ४ घत्ता णरु जेत्तहे सई हरि तेत्तहे जहिं हरि तहिं महि जिज्जइ । विहिं आएहिं समर-सहाएहिं तव-सुउ केम लइज्जइ ।। [११] णेयारु जाह सई लोयणाहुं पंडव मारतहु कत्रणु गाहु एत्तडउ गराहिव करमि तो-बि जइ सक्कइ अज्जुणु घरेवि को-वि तो परए समुट्ठमि चक्क-बू हु जर्हि खयहो जाइ णरवर-समू हु पई णाहि करेप्पिणु कुरु-णरिंदु पहिलउ जे थवेवा दुह-इंदु वारह वारह गय रक्ख देवि हय तीस तीस रहे रहे धरेवि हए हए पय-रक्वह सट्टि सहि जे समर-सएहिं ण दिति पट्टि फरे फरे धाणुक्कह णव णव-बि पच्छाउ हु जे चलंति पउ-वि थिउ एण पयारे अरउ एक्कु उप्पज्जइ अरय-सरण चक्कु ४ धत्ता तं तेहउ सुर-गिरि जेहउ जिम णर-सुउ अिम भीमहो सुउ चक्क-बू हु पारंभइ । विहि-मि सक्कु जिवं लभइ ।। ९ Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ णीसारु ण जाणइ पत्थ-पुत्त आवट्टइ आहवे सो णिरुत्त तहं पासि विओयरु कह-ब थाइ तियसिहि मि तो-वि धरणहा णजाइ परिकुविउ जयद्दहु णिसुणि ताय हउं घरमि चयारि-वि पंडु-जाय अत्थमइ जाम अ-हिमयर-चक्कु छुडु अज्जुणु पासि ण होइ एक्कु ४ गलगजिउ ताम तिगत्तएहिं णर-सर-सय-सल्लिय गत्तएहिं अहिणव-णिवद्ध-वण-पट्टएहि रण-व-परिगणह पयट्टएहिं अम्हिहि-मि धरेवउ परइ सत्थु तं रण-भर कड्ढेवि को समथु अइकंते दिवसे' जेत्तिय-ज्जे एहि परिवारा तेत्तिय-ज्जे धत्ता पच्चेलिलउ सव्वेहि बोलिउ जाएवि पत्थहो अग्गए । जहि ढुक्कहि तो णउ चुक्कहि रहे धए धणुहे अ-भग्गए ॥ ९ [१३] पडिवालिउ णड उठंतु सूरु देवाविउ वले संगाम-तूर कुरु-खेत्तु पगच्छिउ कुरुव-राउ थिउ रण महि मंडेवि साणुराउ तो दोणे विरइउ चक्कवृहु णियमिउ हय-गय-रह-भड-समृहु एत्तहे-वि जुहिट्ठिलु सहु वलेण हय-तुरे पसरिय-कलयलेण अ-हिमयरुग्गमे कुरु-खेत्त दुक्कु णं जलणिहि णिय-मज्जाय-चुक्कु एत्थु-वि पर-वइरि-पुरंजएण पभणिय सामंत धणंजएण तुम्हई रक्खेज्जहो एक्कमेक्कु किउ दोणे दुप्परियल्लु चक्कु अहो वा-हिडिंब-किम्मीर-सीम तुहुं वालु पयत्ते रखु भीम ८ धत्ता अप्पाहेवि रहवर वाहेवि जय-सिरि-रामासत्तउ । ओरालेवि धणु अप्फालेवि अज्जुणु भिडिउ तिगत्तहु ॥ Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउवण्णासमो संधि २२१ एत्तहे-वि समुट्टिय-कलयलाई भिडियई परिओसिय-अच्छराई अवहत्थिय-मरण-महा-भयाई सोवण्ण-रहंग-महारहाई दिदु णिरवि स-दोणउ चक्क वूड विच्छाय-वयणु थिउ धम्मु-पुत्त तिह करि जिह बंधव जसु लहति दणु-दारण-पहरण करयलाई कुरु-पंडव-वलई स-मच्छराई दुप्पबण पपेल्लिय-धय-सयाई अणुदियहोहामिय-भाग्हाई चिताविउ पंडव-भड-समूहु गर-णंदणु संदणु घरेवि वुत्तु जिह णर-णारायण णउ हसति ४ घत्ता गय मारेवि तुहूं अग्गए. गुरु ओसारेवि पइसरु वृहुहो वारेण । अम्हईपच्छए जुझहुँ एण पयारेण ॥ ८ त बयणु सुणेवि भणइ कुमार हउ भिंदमि वृहहो तण' वारु अज्जुणहो पसाएं गुणिउ चक्कु । णीसारु ण जाणमि णवर एक्कु तो वुत्त हिडिवा-पिययमेण मई भीमें भीम-परक्कमेण सहएवे णउले तव-सुएण सइणेए सुस्-कस्-िकर-भुएण वहु-सोमय-सिंजय-कइकएहि पंचाल-विराड-घुडुक्कुएहि तुहु रणे रक्खेवउ एत्तिरहिं ओपहिं अवरेहि-मि खत्तिएहिं तुम्हह आएसें करमि एउ तो पभणइ भदिय-भाइणेउ आवग्गिय महि तउ ताय देमि ओसारमि गुरु कुरु खयहो णेमि ८ घत्ता णिच्चिंतउ घट्ठज्जुणु होहि सइत्तउ अच्छउ अज्जुणु मंड महा-सिरि आणमि । भारहु हउ जे समाणमि ।। ९ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ रिठ्ठणेमिचरित मोक्कल्लिउ धम्माणंदणेण णं कुलिस-दडु सक्क दणेण पय-रक्ख करेविणु के-वि के-वि अप्पुणु-वि चलिउ आसीस देवि परिवढिउ वलु जसवंतु होहि विद्धंसहि दुद्धर वर विरोहि जय ताय भणेवि पयट्ट वालु णं कउरव-रायहो पलय-कालु ४ ण णिहालिउ जिह तव-णंदणेण उद्धाइउ एक्के संदोण गुरु-गंधवहु य-धयवडेण णाणाविह-पहरण-स'कडेण खर-खुर-खय-खोणि-तुरंगमेण तडयड-तुत-भुयंगमेण डोल्लाविय-समहि-महीहरेण . जव-झाल-झलाविय-सायरेण घत्ता ओधाविय झत्ति चडाविय चाव-लट्ठि णिय-कर यलेण । णं खुद्दहुं कुरुहुँ रउद्दहु वंक भह किय कालेण ॥ ९ गउ पयई वीस किउ संपहारु णं वरिसइ घणु अणवर य-धारु णं पलय-पहायर किरण-घोरु णं धुय-केसर केसरि-वि सोरु दीहर-णाराएहि लइय जोह स-तुरंगम रहवर गयवरोह साहारुण वधइ चक्क-वूहु णं रुद्ध मइंदें हरिण-जूहु त णिएवि जणद्दण-भाइणेउ पहरंतु रणंगणे अप्पमेउ णिय-मणे परिओसिउ कलसइंधु ण णव-चंदुग्गमे लवणसिंधु णिय-गंदणु णिदिउ वलेवि दोणि तुम्हारेसु पइसइ किण्ण खाणि सिविखज्जइ धणु ता एण जेवं तोसाविय रण-मुहे जेण देव २ण ८ घत्ता सरु लेप्पिणु जिमु ओसरु कालापण ताय णवेप्पिणु गुरु पच्चारिउ वालेण । जिम्व रणे उत्थरु सुमरिउ जुय-खय-कालेण ॥ ९ Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउवण्णासमो संधि तं वयणु सुणेविणु कुइउ दोणु एक्कहो सउहदें पंच दिण्ण दस वीसहि वाले कुद्धएण अहिमपणे पुणु अ-परिप्पमाण ओसारिउ मुएवि गुरु बूह-वारु U णि वारेवि सक्किउ गरवरेहिं जोत्तारे गर-सुउ वुत्त एम ण णरिंदु ण भीमु | जमल के-वि सरु मेल्लेवि वोझे जेम सोणु आयारए पंच-वि दसहि छिण्ण वीस-वि तीसहि कलसद्धएण किवि-कतोवरि पट्टविय वाण ४ कुरु खयहे णेंतु पइसइ कुमारु ण तुरंगेहिं रहवर-गयवरेहि लइ वेल्लि वहती थक्क देव ण धुडुक्कर पत्तु ण अवरु को-वि ८ धत्ता ९ रहु वालमि किय पडिवालाम बग-हिडिव-जम-गोयरु । गय-हत्य उ समर-समत्थउ पावइ जाम विओयरु ।। [१९.) तं वय सुणेवि रोसिय-मणेण णिय-सूउ वुत्त णर-गंदणेण थक्कउ थक्कउ सय-वार वेल्लि रहु जाउ तुरंगम मेलिल मेल्लि किर कउरव संढह कवणु गण्णु कि सीहतो कवणु सहाउ अण्णु जइयतुं वर-वइरि-पुरजएण विउ राहावेहु धणंजएण जइयहु जिउ खंडवे अमर-राउ जइयहु विणियत्तिउ कुरुव-राउ जइयहं तव-तालुय-कालकेय स-णिवायकवत्र कप्पिय अणेय जइय हुं जिउ गोग्गहे भड-णिहाउ तइयतुं तर्हि तायहो को सहाउ छुडु होंतु सहेज्जा वाहु-दंड कुरु किं करति सुट्ट-वि पयंड धत्ता रहु चोयहि वालेवि म जोयहि अच्छउ भीमु स-भायरु । छुडु खंड होउ तरंडउ काई करइ रिउ-सायरु ॥ ८ ९ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ रितुणेमिचरिउ ४ (२०) सहुँ णिय जोत्तारें चवइ जाम आढत्त खत्त परिहरेवि ताम चउ-पासिउ वेढिउ कुम्वरेहि वहु-तुरएहिं दुरएहिं रहवरहिं एक्कल्लउ एक्क-रहेण वालु। परिसक्कइ टुक्कइ णाई कालु पवियंभइ रुभइ भड-समू हु गउ फोडाफोडि करंतु बहु संचरइ समच्छरु जेत्थु जेत्थु समसुत्री णिवडइ तेत्थु तेत्थु ण घरिज्जइ मत्त-महा-गएहिं रहवरेहिं ण पवणुद्धय-धएहिं ण तुरंग-सहासेहि चंचलेहि ण गरेहि वलक्खेहि पच्चलंहि ण किवाणेहि वाणेहि हय-फरेहिं ण मुसुदि-कणय-गय-मोग्गरेहिं सव्वई तिण-समई गणंतु जाइ जगडंतु गरुडु अहि-कुलई णाई घत्ता ९ कुरु-साहणु रह-गय-वाहणु वालहो मुहि आवट्ठइ । जेवंतहो णाई कयंतहो कवल-परंपर वट्टइ ॥ (२१) तो सयल-सत्त-संखोहणेण णिय-करि चोइउ दुज्जोहणेण णं पवर महीहरु पज्झरंतु णं काल-मेहु सीयर मुवंतु मरु संढ विहंदल-तणय थाहि सवडम्मुहु संदणु वाहि वाहि आवद्ध जुज्झु फुरियाणणाह। गंधारि-सुहद्दा-णंदणाह तो कुरु-णरिंदें मुक्कु चक्कु णर-सुएण वियारिउ तहिं जे वक्कु आमेल्लइ पहरणु अवरु जाम अइ ढुक्की हूउ कुमार ताम ओवाहिउ करि-सिरि मंडलग्गु वे भाय करेप्पिणु महिहे लग्गु ८ धत्ता मय-कसणेण मोत्तिय-दसणेण णउ वुज्झइ अज्ज-वि जुज्झहि अलि-मुहलिय-धारम्गेण । हसिउ राउ णं खग्गेण ॥ ९ । Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउवण्णासमो सधि २२५ (२२) रणे दुज्जउ णिहउ महा-गइंदु पच्चालिउ वाले कुरु-णरि दु जाजाहि ण वाहमि मंडलग्गु तउ भीमु करेसइ मउड-भंगु तो दोणे दोच्छिय सयल राय परिरक्खहो कुरुव गरिदु छाय ण गिलिज्जइ ससि व गहेण जाम गहियाउह ढुक्कीहोह ताम तो सरहसु धाइउ कुरुव-सेण्णु परिवेटिउ संदणु साहिवष्णु असहाउ तो-वि वावरइ वालु गं माणुस-वेसु करेवि कालु हेलए जि भगा सयल-वि णरिद णं सीहे मत्त महा-गइंद अणुलग्गोवाहिय-संदणेण पच्चारिय अज्जुण-गंदणेण ४ घत्ता में भज्जहो सुरह ण लज्जहो बलहो कुलक्कम रक्ख्हो । लइ जुज्ज्ञहो पुणु कहिं सुज्झहो पुट्टि देवि पडिवक्खहो ॥ ९ (२३) तो खत्तिय रहवर गयवरोह पलह समच्छर सयल जोह दूसहेण गवहि वाणेहि णिसिद्ध दूसासणेण वारहेहि विद्ध कियवम्में सत्तहिं तिहि' किवेण विहिं राए छेहि मदाहिवेण अट्ठहिः णाराएहि विहिवलेण पंचहि गुरु-सुएण महा-वलेण दोणे सत्तारह-मग्गणेहि णं णव-तरु छाइउ अलि-गणेहि दस-दसहि विविझइ-दुग्मुहेहि अवरेहि-ति अवर-सिलीमुहेहिं ते सयल-वि दूसह-संदणेण विहिं तिहिं तच्छिय गर गंदणेण अग्गेसरु धायउ विछ कण्णु उरु भिदेवि सरु महियलि पवण्णु ८ घत्ता मुहु वंकेयि अज्जुण-फलु गउ आसंकेवि पेक्खंतहो कुरुसेज्णहो । दुक्खु जे केवल सव्वहो अपउ ण कण्णहो ॥ ९ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ रिडणेमिचरिउ जं भीम-भुयंगम-दीहरेण विणिभिण्णु कण्णु णर-सुय-सरेण घाइउ सुसेणु तहिं विसम-हेइ सुपईहर-लोयणु कुड-भेइ समकंडिउ तिहि-मि स-मच्छरेहिं रवि-सुरण पंचवीसहिं सरेहि पंचहिं जायवेण स-संदणेण वीसहि आयरियहो णंदणेण वालेण विहिं विहिं सरेहि विद्ध कह-कह-व ण धाइय छहि णिसिद्ध मुच्छाविउ सल्लु विसल्लु थक्कु तासु-वि परिपेसिउ बहु पिसक्कु कलहोय-पुखु पेहुण-समिद्ध मद्दाहिन-भायर कंठे-विद्ध सिरु खुडिउ कुमार कमलु जेम तोसाविय णहयले सयल देव ८ धत्ता पफुल्लइ पमुक्कइ सुरतरु-फुल्लई उप्परे मुक्कइ परिह-पमाण-पयंडेहि। लेवि सई भुय-दंडेहिं ।। १. इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए चउवण्णासमो इमो सग्गो ॥ Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचवण्णासमो संधि णर-गंदणु धुय केसरु वाहिय-संदणु णहर-भयंकर वूहहो मज्झे पइट्ट किह । गय-धड फोडेवि सीहु जिह ॥ १ (१) ४ एक्क-रहहो तब-तणयाइट्ठहो जे सम उत्थरति णरु वाणेहि जे दुक्क ति दंति रणे वालहो जे भिडंति तुरमाण तुरंगम जे लग्गति अखत्त रहवर जे धावंति तेहि पडिधावइ कलयलु जेत्थु तेत्थु पारक्कए वलु आवट्टइ फुट्टइ धावइ चक्क-बृहे णर-सुयहो पइट्ठहो ते दूरहो जि विमुक्का पाणेहि ते णिवडंति थंति मुहे कालहो छिण्ण-टंक ते होहिं अयंगम तेहय होंति पक्ख णं गिरिवर सीह-किसोरु गयह जिह पावइ फुरइ व विज्जु-पुजु अत्थक्कए जलु मंदरहो भमंतउ णावइ ८ घत्ता रहु वालहो रिउ चइ रणे असरालहो कवलु ण पुरइ जय-सिरि-रामालि गियहो । णाई कियंतहो भुक्खियहो ॥ ९ Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ रितुणेमिचरिउ (२) पभणइ दोणु सोण-हय-संदणु कुरुवइ पेक्खु धणंजय-गंदणु जउ जउ दिट्टि देइ वहु-मच्छरु तउ तउ पीडइ णाई सणिच्छरु जउ जउ धिवइ घोरु वाणासणि तउ तउ पडइ गाई वज्जासणि जउ जउ हय-गय-धडह वियट्टइं तउ तउ सोणिव-णिवह णिवइ ४ जउ जउ रह परिसक्क वालहो तउ तउ धव पुज्जइ णं कालहो अउ जउ कर इ कुरुहुँ अबलोयणु तउ तउ भूय-विहगहुँ भोयणु तो दुज्जोहणु अक्खइ अण्णह सल्ल-किवह दूसासण-कण्णह दोणु समत्थु वि समरे ण जुज्झइ गुण-परिरक्ख कुमार ण वुझइ ८ धत्ता जइ सक्कहो तो परिसक्वहो महु वुत्तउ एत्तिउ करही । जिम धायहो जम-पहे लायहो जिम रिउ जीव-गाह धरहो॥ २ (३) तं णिसुणेवि णिय-कुल-णासणहो उप्पण्णु रोसु दूसासणहो अच्छउ मद्दाहिउ कण्णु किउ हां एक्कु रणंगणे धरमि रिउ पेसिय भुअणुब्भड भीम भडा सह तेहि मयालस हन्थि हडा जिह कामिणि तिह स-पसाहणिय जिह कामिणि तिह थोर-त्थणिय ४ जिह कामिणि तिह गंधुक्कडिय जिह कामिणि तिह दप्पुभडिय जिह कामिणि तिह मय-मिभलिय जिह कामिणि तिह मल्हण-चलिय जिह कामिणि तिह वहु-रय-भरिय जिह कामिणि तिह वहु-रय-चरिय जिह कामिणि तिह पच्छइय-णह जिह कामिणि तिह मय-मलिय-रह ८ जिह कामिणि तिह जुज्झण-मणिय जिह कामिणि तिह मुच्छावणिय घत्ता सा गय-घड रण रहसुब्भड सुर-बहु-णयणाणंदणेण । भण-भामिणि जिह वर-कामिणि वणे विमुक्क गर-गंदणेण ॥ १० Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचवण्णासमो संधि २२१ ४ परिभग्ग रणंगणे गरुय-णाय तहिं अवसरे दूसासणु पलित्तु अहो सल्ल-कण्ण-किव-धायरट्ठ उहु राय-बाल कालाहिमण्णु धयरट-रिंदूसासणेण विसमेण सुट्ट दृसासणेण जोत्तारु वुत्त रहु वाहि वाहि तो ९म भणेवि उत्थरिर तासु स-परक्कम विक्कम कह-मि णाय णं परिणय-विस-तरु संपलित्त कल्होय-वण्ण वण-धायरट्ट दृज्जउ णामेण किलाहिकमाणु मई जइ ण भग्गु दूसासणेण तो पहेण जामि दूसासणेण फेडिजइ णरवर-पवर-वाहि जे गारवर-विदह जणिउ तास ८ घत्ता चल-संदणु वर-वंसउ अज्जुण-गंदणु भड-विट्सउ आयामिउ दूसासणेण । जिह विंझइरि हवासणेण ।। ९ ते णरवर-जच्चंध-गंधारि-पुत्तेण कोवाणलुज्जाल-माला-पलित्तेण रयणायरेणेव मज्जाय-मुक्केण कूर-गहेणिव णिय-थाम-चुक्केण पेयाहिवेणेव अच्चंत-कुद्रेण पंचाणणेणेव गय-गंध-लुटेण हर-गंदणेणेव वर-मोर-चिघेण पच्चारिओ पत्थ-पुत्तो विरुद्धेण ४ ओसरु पराहुत्तु किं संपहारेण जज्जाहि मा मरहि महु दिट्टि-पहारेण तो भणइ णर-णंदणो किं पलात्रेण जाणिज्जए तेय-पूरो पयावेण एवं भणंतस्स किर कवण भड-लीह सय-खंड-खंडाइं किं ण गय तउ जीह गोगहेण गांगेय-मरणेण णउ लज्ज तं तुहु-मि पावेसि खल खुद्द णो गज्ज ८ धत्ता मय-मत्तहो तुझु अ-पत्तहो तेण ण फाडमि वच्छयलु । परमत्थेण भोमु सहत्थेण दिसहि धिवेसइ रुहिर जलु ॥ ०. Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० रितुणेमिचरिउ भिडिय वे-वि तो तहिं रणंगणे दिण्ण देव-दुदुहि णहंगणे थरहर त वाहिय-महारहा सुरवहू-कडक्खिय(?)-विग्गहा करयरंत कड्ढिय-सरासणा एक्कमेक्क-पट्टविय-मग्गणा खय-सिहि-व्व जालोलिय-दूसहा पलय-भाणु भा-भासुर-प्पहा दिस-गय.व्व ओरालि-भीसणा केसरि-व्व वत-णीसणा रामरामणोवम-घणुद्धरा जलहर-व्व वरिसिय-णिरतरा वाण-भारि-भूरेण भारिय णहयल तमेगंधयारिय पाडियं धणु मोडिओ धओ पडिभडो कुमारेण विद्धओ घत्ता वावण्णेहिं सरेहिं सुवण्णेहिं दूसासणु थण-बट्टे हउ । मउ साडेविं कउरव पाडेवि पुणु अग्गए अहिमण्णु गउ ॥ १. जं जुयराउ महावइ पाविउ दुजोहणेण कण्णु वोल्लाविउ पेक्खु पेक्खु दूसासणु जंतउ खंधावारु सव्वु भज्जंतउ पहु-पेरिउ चंपाहिउ धाइउ णर-णंदणु णाराएहिं धाइउ तरुण-तरणि णं जलहर-जालें तेहत्तरिहिं विद्ध पुणु वाले ४ जो जो अंतरे तं तं भिदेवि स-सर-सरासण-लट्ठिउ छिदेवि पत्त दिवायर-णंदण-संदणु तहि-मि मह'तु करेवि कडवंदणु सोवकरणु रहु खंडिउ कण्णहो गट्ठ णियंतहो कउरव-सेण्णहो ताम सुकेसे वाहिउ संदणु दसहि सरेहिं विद्ध णर-णंदणु ८ धत्ता सउहद्देण सुहड-विमद्देण कुडल-मडिय-गंडयलु । राहेयहो रवि-सम-तेयहो खुडिउ खुरुप्पे सिर-कमलु ॥ ९ Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचवण्णासमो संधि २३१ [८] णिहउ सुकण्णु कण्णु ओसारिउ कउरव-लोउ सव्वु पच्चारिउ हउ एक्क-रहु सुहद्दा-णंदणु लइ टुक्कहो किजउ कडवंदणु कल्लेवउ व अकाले कर तह! कवलच्छेउ म हवउ कयंतहो ४ एम भणंतु हणंतु पयट्टइ अग्गि व खड-लक्कडह बियइ गय वर-रुहिर-णइउ उद्धावहिं सुह्ड-कध-सयई णच्चावहिं तहिं अवसरे ह्य-गय-रह-वाहणु घाइउ दोणहो पंडव-साहणु दुण्णय-दुज्जस-सलिल-महद चूह-वारे थिउ ताम जयद्दहु दिण्णु तेण पइसारु ण आयहो स-जमल-भीम-जुहिट्ठिल-रायहो ८ घत्ता बलवंतेण दूसल-कतेग सु-रउद्देण पुत्र-समुद्रण पंडव-लोउ समुत्थरिउ । गंगा-वाहु णाई धरिउ ।। पुच्छिउ सेणिएण तहिं अबारे इदभूइ रिसि-विउल-महीहरे चंदुद्दड-सुंड वेयंङ-व दूसल-धत्रेण धरिय किह पंडव कहइ महा-रिसि अखलिय-धीरहो गणहरु वड्ढ माण-जिण-वीरहो सोहाहिवहो धीय रिउ-मदहो। जइयहु गउ परिणयह जयहो । होमइ विणु पंडवेहिं णिहालिय । मंड भवित्ति-वि णाई संचालिय सुणेवि विओयरेण कुढे खेडिउ । सिंघव-हु धारेवि पच्चेडिउ बंधव-सयण-सहास-पलज्जित गउ केत्तहे-वि मडफ्फर-बज्जिउ किर तउ लेइ ण लेई वर्णतरे दइवी वाणि समुट्ठिय अंवरे घत्ता किं दुम्मणु विसहि तवोवणु एत्थु-वि वज्जिय-माण-धण । समराजिरे वूहहो वाहिरे पंडव धरेवि चयारि जण ॥ ९ Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . २३२ रिटुणेमिचरिउ [१०] वासरु एक्कु धरिज्जइ आहउ तहिं पक्खालहि सव्वु पराहउ तेण पहावें सयलु स-वाहणु धरेवि परिट्टिउ पंडव-साहणु सुरगिरि-समेण रहेण पयंडे वाराहेण महा-धय-दंडे सिंधवेहिं तुरएहिं तुरतेहिं सिल-धोएहिं पहरणेहिं फुरतेहिं ४ जेण कुमारु पइगु पएसे तं परिपूरिउ क्लेण असेसें दसहिं विराड्डु विदु ण पहुच्चइ अट्टहिं भीमसेणु तिहिं सच्चइ धट्ठज्जुणु णिरुद्ध तिहिं वीसेहिं पंचहिं दुमउ सिहंडिउ तीसेहिं पंचहिं पंचहिं पंच-वि कइकय तिहिं तिहिं दोमइ-तणय समाहय ८ घत्ता तव-र्णदणु स-धउ स-संदणु सत्तरि सरेहिं समाहयउ । अब्भझ्यहो दूसल-दइयहो देवेहि साहुक्कारु किउ ।। [११] तो तव-सुएण सल्ल-पडिमल्ले छिण्णु सरासणु एक्के भल्ले अवर लेवि धणु-लट्ठि महागुण दसहि दसहिं हय पंडु अणज्जुण तिहिं तिहिं अवर असेस-वि राणा रणउहे किय ओखंडिय-माणा भीमें भीम-परक्कम-सारे छिण्णु सरासणु भल्ल-पहारे अवरे आयवत्तु धउ अबरें दूसल-वल्लहेण लद्ध-वरें अहिणव-धणु-हत्थेण मुधीमहो सोक्करणु रहु खंडित भीमहो करणु देवि तब-तणय-सहोयरु सच्चइ-संदणे चडिउ विओयरु जे णर-सुरण छिण्ण करि-अवयव तेहिं ण मग्गु लद गय पंडव ८ घत्ता एत्यंतरे व्ह-भतरे जहिं पवणा-वि ण पइसरइ । हय-मल्लउ तहि एक्कलउ वालु अलीढए संचरइ ॥ ९ Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३३ हा पंच वण्णासमो संधि [१२] सरहतु ताव विसाइ पधाइउ सहिहिं सरेहिं रणंगणु छाइउ तो रणे अमरिसु वढिउ वालहो एक्के सरेण छुद्ध मुहे कालहो विससेणहो सारहि-वि णिवाइउ । छिण्णु सरासणु धउ दोहाइउ तो सत्तमेण सत्तु हक्कारिउ सोवि कयंत-गयरे पइसारिउ ४ सल्लहो गंदणेण भञ्जहो रुप्प-रहेण महारहु वाहिउ एक्कहो काई रणंगणे अवगाहिउ किं पंचह भूयह-वि ण लज्जहो एप भणेवि तिहिं सरेहिं समाह उ णर-णंदणेण विछिण्णउ वाहउ जम-जीहोवमेण लल्लक्के सिरु तोडिउ तइएण पिसक्के ८ घत्ता जो पहरइ तं पडिपहरइ रणगुहे पउ-वि ण ओसरइ । धणु ण धरइ जो करु पसरइ विहुरे-वि तिणि ण वीसरइ ॥ ९ [१३] जं विणिवाइउ सल्लहो गंदणु मित्त-सरण रुद्ध रिउ-संदणु एक्कु कुमार अणेक्केहिं हम्मइ तो-वि तेहिं अवसाणु ण गम्मइ तं वरु दिण्णए णिरुवम-छायए। वामोहिउ गंधव्वए मायए वलि वोक्कड रणे दुग्गहे दिण्णा पंच-वरिस सहयार-त्र छिण्णा ४ जो जो ढुक्कइ तं तं मारइ णाई कियंतु जे जगु संघारइ सिरेहिं कबंधेहि गरेहिं तुरंगेहिं कर-चरणंगुलिहिं अगोवगेहि खवसेहिं सीसक्केहि तणु-ताणेहिं कुसुमल-वट्टि-वद्ध-पल्लाणेहि चामर-पक्खर-गुड-पावरणेहिं कुडल-कडय-किरीडाहरणेहि घत्ता गय गत्तेहिं सोबतहो रह-धय-छत्तेहिं णाई कयंतहो सव्वेहिं धरणि अल करिय । सेज्ज कुमार पत्थरिय ॥ . Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ रिगेमिचरिउ [१४] जो जो को-वि ढुक्कु पारक्कउ तिहिं तिहिं सरेहिं भिण्णु एक्केक्कउ लक्वण-पमुहह विक्कम-सार हं णिहय चउद्दह सहस कुमारह स-मउड-सिर-पट्टह भालय लह मणि-कुंडल-मंडप-गंडयलह कंत्रालंकिय-कंव-सणाहह कंकण-केऊरुज्जल-वाह मेहल-वलयाणद्ध-णियंवह किकिणि-मुहल-ताल-पालंवहं पंडुर-चामर-पंडर-छत्तह धरिय-फरह कट्ठिय-असि-पत्तह आजाणेय-तुरय-रहवंतह विविह-पडाय-विविह-वायत्तहं ताम-महासिएण कियंतहो णावि जाउ भोयणे वइसतहो ८ धत्ता हय वालेण सरवर-जालेण सहस चउद्दह खत्तियह । गउ आयह गण्णु विसा यह णाह विह जमि केत्तियह ॥ ९ (१५) वासव-सुय-सुरण महि-कारणे जं गिट्टविय कुमार महा-रणे तं विदाणउ थिउ कुरु-साहणु मुक्क-महाउहु फुसिय-पसाहणु णिच्चल-णयणु णिरुज्जम-गत्तउ सव्वाहरण-सोह-परिचत्तउ पुत्त-विओएं रोवइ राणउ सुहड-मडफ्फर-भग्गु चिराणउ ४ हा हा देहि वाय महु लक्खण पई विणु थिय भाणुवइ अ-लक्षण पई विणु कुरुव-लोउ आदण्णउ पई विणु सोम-वंसु उच्छण्णउ पई विणु जय-सिरि अण्णह ढुक्की पई विणु महु जस-वल्लरि सुक्की पई विणु सुहड-ढक्क कसु वज्जइ पई विणु राय-लच्छि कसु छज्जइ ८ घत्ता पहु जूरइ जो मुच्चइ आस ण पूरइ सो ण पहुच्चइ गउ उच्छिण्णउं कुरुव-वलु । हय-विहि मई सहु कवणु छलु ॥ ९ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचवण्णासमो संधि २३ अविरल-वाह वाह-सपाहे कलुणु रुव ते कउरव-याहे पेसिय णव सामंत पधाइय जाह कित्ति जगे कहि-मि | माइय कच्छु कलिंगु णिसाउ महत्वलु दोणु दोणि किउ कण्णु कहव्वलु णवमउ जायव-वसिउ राणउ कि यवम् उ गामेण पहाणउ ४ कुरुवइ-पाय-सरोरुह-मिगे अंतरे गय-धड दिण्ण कलिंगे मत्त मयालस पउ पउ देती धुत्ति-व धरिय कुमारे एती धुत्ति-व दिट्ठि जाम फुड मारइ धुत्ति-व दूरहो हत्थ पसारइ धुत्ति-व दंत-पंति दरिसावद धुत्ति-व लहु ण पसंगहो आवइ ८ धत्ता सुणिहालइ सिरु संचालइ ढुक्कई परिओसरइ किह । करु अप्पइ हि यउ ण अप्पइ वान्हो गय-धड धुत्ति जिह ।। ९ तओ कलिंग-कुजरा किउद्ध-सुंड-भीसणा चलत-कण्ण-चामरा अणेय-घंट-राइया महण्णव-ठव मत्तया फणि-व्व कूर-लीलया णिसायर-व्व दुवया कुमार-मग्गणाहया गएहिं अंचियं रणं पधाइया स-मच्छरा विमुक्क-घोर-णीसणा गळंत-दाण-णिज्झरा तमाल-गेज्ज-राइया गिरि-व्व पज्झरतया खल-व्व वक-सीलया रस-व्व यारि (१) पुट्टया महीयलं गया गया वियंभयावयारणंवर धत्ता अट्ठ सहासई रहहं । कल्लेवउ व णिसायरह।। णव णायहें किउ वालेण दस सय रायह एकें तालेण Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ रिट्ठणेमिचरिउ [१८] भग्गु कलिंगु कच्छु विणिवाइउ गुरु पंचासेहिं वाणेहिं छाइड सट्टिहिं किउ असीहिं कियवम्मउ वर-कणिएण कण्णु किउ णिम्मउ दोणि-विहब्बल तीरहिं तीसहि विद्ध णिसाउ रणंगणे वीसहि किरहो तुरंगम सारहि घाइय दस सर पुणु-वि उरत्थले लाइय ४ सत्तारहेहिं विद्ध विंदारउ कित वइवस-पुरवरे पइसारउ पंचवीस गुरु-सुरण विसज्जिय तेण- नित्तियएहिं परज्जिय टोणायगेण सट्ठि सर मेल्लिय तेहत्तििहं कुमारे भेल्लिय आयरिएण एक्कसर-गणे वत्तीसहि अणु विसइ कण्णे पंचहि विहवलेण दढ-वम्में दस किवण दसहि कियवम्में ते सयल-वि किय कलयल-सदें दसहिं दसहिं णिज्जिय सउहदें घत्ता वहु मावि वहु ओसारेवि वाणे रणु परियचियउ । सुरिंदहं मत्त-गइंदह दसहिं सहासहिं अंचियउ ।। ११ [१९] सव्व भग्ग पर थक्कु विहव्वल णं मयगलहो पधाइड मयगलु उरे कण्णिएण विद् णर-णंदणु तेण-वि तहो विद्ध सउ संदणु णिय तुरंगम सहु जोत्तारें छिण्ण सरासण-लट्टि कुमारे फर-करवाल-भयंकर-कर यलु आहव-कुसलु पधाइउ कोसलु ४ किउ वे-भाय खणंतरे वाले पडिउ महीयले सह करवाले हउ कण्णिएण कण्णु कण्णंतरे पुणु पंचासहिं सरेहिं रणंतरे तेण-वि तेत्तिरहिं णर-णंदणु णर-सुएण चंपाहि व-संदणु पत्ता माहेसहो पत्त-विसेसहो अम्ह केउ णामेण सुउ । सो वालहो जिह सिहि-जालहो उप्परे पडेवि पयंगु मुउ ॥ ८ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचधण्णासमो संधि २३७ [२० तहिं अवसरे दूसासण-पुत्ते अक्खय-णाम-गहण-संजुत्ते दसहिं सरेहिं सुहद्दा-गंदणु हउ स-तुर गु स-सूउ स-संदणु सत्तहिं पडिणिसिद्ध सउहदें हसिउ स-मच्छरु कह-कह-सवें जणणु तुहारउ गउ मह भज्जेवि को तुहु जेण एहि गलगज्जेवि ४ एम भणेवि हउ सव्वायामें सो सम-कंडिउ आसत्था में तहो भुय-डाल-करालहो वालहो केण-त्रि छद्ध गाई मुहे कालहो धाइउ चंदकेउ चंदुग्गउ मोहणु वक्खवेउ सत्तुजउ एक्केक्केण सरेण वियारिय पंच-वि जम-पट्टणे पइसारिय ८ घत्ता तिहिं दूसलु तिहिं सहुतिहिं सलु तिहिं गुरु-सुय-धणु खयहो णिउ । तिहिं सउवलु तिहिं कुरु-वलु पाराउट्टर सव्वु किउ ॥ ९ [२५] तो तवणिज्ज-पुज-सम-वणे दोणायरिउ पपुच्छिउ कण्णे ताय ताय हउ एण कुमार पीडिउ देसु जेम गहयारें दूसासणु गुरु आवइ पाविउ लक्खणु णिहउ राउ रोवाविउ कोसल-पमुहेक केक-पहाणा को जाणइ केत्तिय मुय राणा ४ केण-वि दुद्दम-देहु ण दुम्मइ कहि उवरसु जेण विहि हम्मइ एण मरते मरइ कइद्धउ | पत्थे मरते मरइ गरुडद्धउ तं णिसुणेवि समुण्णय-घोणे चंपाहिवहो कहिज्जइ दोणे जइ गुणु हणइ कोवि तो हम्मइ रण-पिडु अण्णे एउ ण रम्मइ ८ धत्ता पर जुझइ धणु पालइ एक्कु ण वुज्झइ गुणु ण णिहालइ एहु वालु वालत्तणेण । जिह कुसामि किवणत्तणेण ।। . Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ रिडणेमिचरिउ (२२) ४ दिव्वु कवउ अजेउ बहु विक्कमु x x x सव्व-कुसलु सुमर ति वियखणु णव रणु जाणइ गुण परिक्खणु कलयल्लु करहु देहु वायत्तई धिवहो पवर-पहरणई विचित्तई चक्कई चक्क-रक्ख हय ताडहो सारहि सिंधु सरासणु पाडो जिह सिक्खक्वविउ तेम किउ कण्णे धोसिउ कलयलु कउरव-सेण्णे तुरई देवि समुत्तुय-माणहो पेक्खंतहो कुरु-खंधावारहो चक्क-रक्ख हय किवेण कुमारहो दुज्जोहणेण तुरं गम धाइय कणे जीव-लट्टि दोहाइय ८ घत्ता रहु अण्णेण सारहि अण्णेण धउ अण्णेण सय-खंडु किउ । असि फर-करु जिह विज्जाहरु करणु देवि आयासे थिउ ॥ ९ [२३] तउ किरीडि-गंदणेण अराइ-भग्ग-पंदणेण णहंगणाणुलग्गओ खगो व्व खंधे लगओ खयाणिलाणु-वेयओ दिवायरुग्ग-तेयओ विरल्लियच्छि-भीसणे विमुक्क-सीह-णीसणे करम्मि दाहिणिल्लए फणिंद-दीहरिल्लए सिला-सिओ किवाणओ कयारि-रत्त-पाणओ कयत-दंत-सच्छहो खयग्गि-जाल-दूसहो भुयंग-भोय-भीयरो विमुक्क-मुक्क-सीयरो Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचघण्णासमो संधि तमंधयार-णासो रविंद-दित्ति-तासको करिंद-कुंभ-दारुणो तुरंग-भंग-कारणो णरिंद-दप्प-साङको रिवूह-संग. झाडणो फरो करम्मि अण्णए सिहामणि-व्व पण्णए १२ घत्ता चलु वालउ रणे असरालउ उप्परि णिवडिउ कुरु-णरहो । जल-दुग्गमे णव-मेहागमे विज्जु-पुजु जिह महिहरहो ॥ १३ [२४] णिवडतु कुमारु स-खग-वम्मु हउ सव्वेहिं मेल्लेवि खत्त-धम्मु पहरंतु दलंतु महा-गइंद भंजंतु असेस-त्रि परवरिंद मोड'तु दंडु तोडंतु धयई वे-भाय करतु तुरंग-सयई परिसक्कइ थक्कइ वलइ धाइ सो को-वि ण जो तहो समुहु थाइ ४ हय दोणे मुट्ठि-महा-सरेण फरु चंपापुर-परमेसरेण रवि-तणयायरिएहिं मुएवि खत्तु जं समरे स-वारणु असि-विहत्त तं देवेहिं घिधिकार दिण्णु आयहो जीविउ अप्पणउ छिण्णु धट्ठज्जुणे अज्जुणे जीवमाणे गुरु-कण्णहं सुंदरु कउ णियाणे ८ धत्ता भुय-डालहो णिवडिउ वालहो सोह ण देइ किवाणु किह । दो-धारउ जि.प्पडियारउ णट्ठ-वंसु कु-कलत्त जिह ॥ ९ दप्पु भड-भड-कडवंदणहो दुद्दम-णरिंद-दुप्पहरण वलु सयलु तो-वि आयामियउ पहर तहो अज्जुण-णंदणहो णिट्टियई अणेय पहरण अरि-वासणु अरि उग्गामियउ ४ Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० रिडणेमिचरिउ रेहइ रहगु करयले गहिउ णं जोइस-चक्कु मेरु-सहिउ णं घरिउ अणंतें धरणियल्लु परिभमइ भमंतें गयणयलु तो कहइ दोणु दुजोहणहो कलयलु धोसहो तूरई हणहो जे सुरवर-कर-कर-पवर-भुउ णिय-थाणहो चुक्कइ पत्थ-सुउ जइ कइयह विसज्जिउ अरि-पवलु तो सव्वु समप्पइ कुरुव-वलु ८ पत्ता पहु तोसिउ कलयलु घोसिउ खुहिउ थाणु बालहो चलहो । अरि ताडिउ छिदेवि पाडिउ हियउ णाई पंडव-वलहो ॥ ९ (२६] चक्क-खंडु थिउ वालहो करयले अट्ठमि-चंद-विंदु णं णहयले गयउ अद्भु अद्भुव्वरिउज्जलु णं अत्थरि-काले रवि-मंडलु तं णिएवि णर-णंदणु कुद्धउ णं केसरि करि-आमिस-लुद्धउ भुयए भमाडिवि घत्तिउ वाले णं खय-काल-चक्कु खय-काले ४ धाइउ घरहर धोसु करतउ णं जम-मुहु कुरु कवलु करतउ छिंदइ सुहडह सिरई स-णीवइं हसु स-णालई जिह राजीवई करिवर-कुंभ-थलई विहत्त रह-तुरंग णिघटेवि घत्तई जउ जउ भमइ रहंगु भयंकर तउ तउ रणु णर-रुड-णिरतरु ८ घत्ता तो दोणेण वुत्तु स-तोणेण चक्क-खंडु लहु आहणहो । जवतेण एम भमतेण खउ म होउ कुरु-साहणहो ॥ ९ [२७] तोमरेहिं वियारिउ चक्क-खंडु लहु लेवि कुमारें लउडि-दंडु रहे आसत्थामहो दिण्णु धाउ विणिवाइउ सारहि हय-सहाउ गुरु-णंदणु थिउ ओसरेवि दूरे गयणंगणे परिलवंत-सूरे सउवलहो सहोयरु कंवुकेउ तं पमुहु करेप्पिणु कणय-केउ ४ Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचवण्यासयो सधि २४१ णिठ्ठविय सत्त-सत्तरि णरिंद हय सत्त महारह दस गइंद दूसासण-गंदणु ताम एक्कु गय-घाए चूरेवि एक्कमेक्कु विहलंधलु रुहिरालित्त-गत्त दोच्छिउ पत्थंगरहेण सत्तु घता चंपावइ फेणेण भाव तउ चारहडि विचित्त लिय । किं आयए छत्तहो छायए महु मुह-छाय जे अग्गलिय ॥ ९ (२८) रवि-सुएण सयमेव पराउ वर-कप्पूर-कर विउ पाणिउ ससहर-सत्थ हेण भिंगारे तं ण सगिच्छिउ पिएवि कुमार फुट्टउ जीह जाउ सय-सयकर सत्त-सलिलु किं कह-वि सुहंकरु जाहि पाव जइ पावइ अज्जुणु तो एवहिं जि होइ कण्णज्जुणु ४ उत्तम-पुरिसहो एउ ण लक्खणु अज्जु तुहारउ दिठ्ठ भडत्तणु दीणहो काणीणहो अकुलीणहो एउ कम्मु पर होइ णिहीणहो जीउ ण छिण्णु छिण्णु पई णिय-पगुणु विसहिउ केण स-माहउ फग्गुणु जइ मई समरे ण णिहउ सहत्थेतं किर तुहं मारेवउ पत्थे घत्ता ९ ।। पई आणिउ पियमि ण पाणिउ जं जइ-वि सुधर सीयलउ । एउ थोवउ अवरु पिएवउ सग्ग-महासरे मोक्वल्ड ।। __ [२९] सउहदेण एम चवंतएण सो सुमरिउ देउ मरंतरण जो सव्वह देवह अग्गलउ तइलोक्क-सिहरे जसु थावलउ में अट्ठ-वि कमई णिज्जियइं जें पंचेदियइ परज्जियई जं धरेवि महा-रिसि मोक्खु गय जसु तणए धम्मे थिय जीव-दय ४ Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ जे णासिउ जाइ-जरा-मरणु जो वहइ णिरंजण परम छवि जो गइव णउंस णइवउ तिय जो णिक्कलु सतु पराहि पर णारायणु दिणयरु वइसवगु जो होउ सु होउ थुगंतु थिउ रिडणेमिचरिउ जो सव्वहो तिहयणहो जे सरणु जसु सोउ विओउ विणासु ण-वि ण पयट्टइ एक्क-वि जासु किय वंभाणु वुद्ध अरहंतु परु. ८ सिउ वरुणु हवासणु ससि-पवणु एक्क ते करेप्पिणु कालु किउ घत्ता लउ वंधेवि जइ अवस धेवि किय-वंदगु गउ णर-गंदणु सयल-सुरासुर-साराहो । पासु सयंभु-भडाराहो ॥ ११ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंमुव-कए अहिवण्णु-सग्गावरोहणं पंचावण्णासमो इमो सग्गो ।। Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छप्पण्णमो संधि रणउहे उत्तर-कंतेण णिवडियई तिणि णिवडतेण । दारुणु दुक्खु सुहदहे सुक्खु सुमइ(१) मरणु जयबहे ॥१ [१] पिह-णंदण-णंदणु समर-हउ नं दिगमणि दिण-पहराहिहउ णं सायर-सोउ समाडिउ णं सग्गहो सुर-कुमारु पडिउ कुरु-वले उब्भियइं महा-धयई किउ कलयलु तूरइं आहयई दुज्जोहण-दोणहं विजउ हुउ उच्छलिय वत्त अहिमण्णु मुउ ४ जो जहि णिसुगइ सो तहिं रुवइ उक्कंठुलु गरुय धाह मुअइ सउहद महंतहो दुम्मइहे किह सीसु ण फुटु पयावइहे कहिं तणिय सुहहहे अज्जु दिहि उग्वइय चक्खु दक्खवेवि णिहि पिह-सुयहं पलोट्टिय माण-सिह ण जाणहुं होसइ कुरुहुँ किह ८ घत्ता इत्तिउ सउरि सहेज्जउ लग्गइ कुढे णिय तोयहो विक्कम-धणु स-धणु धणंजउ । कर जीविउ कउरव-लोयहो ॥ ९ जं पत्थ-पुत्त गउ धरणियलु सयमेव जुहिट्ठिलु धीर-मइ अम्हेहिं जोणेवउं एउ रणु तहिं काले तमंधयारु भमिउ हरिछ-१ [२] तं कुरुवेहि पेल्लिउ पंडु-बलु भजंति-वि वाहिणि धीरवइ कउरवहं पराइउ धुउ मरणु अहिमण्णु जेवं रवि अत्थमिउ ४ Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ अहिमण्णु जेम अहियह भिडिउ अहिमण्णु जेम पहरेहिं पडिउ णिय-णिय-मंदिरहं स-वाहणई सहसत्ति णियत्तई साहणई सर-णियर-भरेय-वच्छत्थलई अरि-दलिय-कुंभि-कुंभ-स्थलइ कणयइरि-सम-प्पह-संदणही आसंक जाय तव-शंदणहो घत्ता मंछुडु वालु समत्तउ कुरु-कलयल तेण महंतउ । स-सर-सरासण-हत्थहो मुहु केस णिहालिउ पत्थहो ॥ ९ ४ ८ [३] किह लग्गु कुमार पराहवहो किह वयणु णिहालिउ माहवहो वसुदेवहो किह किह देवइहे उत्तरहे सुहहहे दोवइहे तहिं अबसरे सारहि सर-भरिउ कह-कह-वि किलेसे णीसरिउ वित्तंतु असेसु तेण कहिउ परिसक्किउ जिह कुमार-सहिउ जिह कुरु-गुरुवइ राहेउ गउ जिह सल्लेहिं सलिउ सल्लु गउ जिह भग्गु माणु दूसासणहो जिह णिउ सुकण्णु जम-सासणहो जिह स-कुरुब कुरुव-कुमार जिय जिह रह गय कूडागार किय जिह विहबलु विदवलु घाइयउ जिह कण्णे गुणु दोहाइयउ घता कहिउ कहंतर एत्तिउ गरवइ परियाणाभि जेत्तिउ । उपरि जं परिसकिउ तं मई जोवणहं ण सकिउ ॥ [४] पहु पभगइ णिसुणि सुमित्त तुहुँ एक्कसि दक्खवहि कुमार-मुहु गउ सारहि मागें संदणहो रणु दक्खवंतु तव-गंदणहो कत्थ-वि करि-कुंभई खंडियई उवविसणई जेमण-छंडियई कत्थइ छत्तई महि दुक्काई कालेण व थालई मुकाई 2. After 5a extra in J. : तिम सूरतेउ तमु उहडिउ. Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छप्पण्णमो संधि कत्थइ स-भुयई भइ-सा-सयाइ णं थियई सगालइ पंकयाइ कथइ पडियई ध-चिंधाई कथइ णच्चियइ कबंधाई काथ-वि लिव भडहो समावडिय णं दोसइ कामिणि उरे चडिय कत्थइ वेयालहं कलकगउं सिरु तुझु कबंधु महुतणउं घत्ता विठु वालु सर-भरिउ णं जलहर-धारिहिं धरिउ । दीहर-णिद्दए भुत्तउ जगु गिलेवि णाई जमु सुत्तउ ॥ ९ तं गिएकि राहिउ मुच्छ गउ णं णिवडिउ गिरि कुलिसाहिहउ कह-कह-वि गरिंदेहिं उट्ठविउ ____णं मंदरु सुरेहिं परिद्वविउ हा पुत्त सुहदहे देहि दिहि पइणितु ण णि? अणिठु विहि महु एक्कसि दावहि मुह-कमलु धीरवहि रुवंतउ पंडु-वलु तउ अंगई सुठु सु-कोमलइ धर धरेवि किण्ण गय सय-दलइ हय रण-बहु पइ-मि ण जोइयउ सुरवहुहुँ सहत्थे ढोइयउ तुहुं महियले एक्कु पुत्तु णरहो पइबिणु ण धुरंधरु रण-भरहो पई जणिउ दुक्खु सव्वहो जयहो किं जीवइ अन्जु धणंजयहो घत्ता राए रुते स-वाहणे सो को-वि ण पंडव-साहणे । सय-सय बार कुरुक्किय धाडिय जेण णउ मुक्किय ।। [६] गय एम रुवंतहो ताम णिसि तहिं अबसरे णारउ देव-रिसि कत्थहों-वि परायउ सिग्घ-गइ संवोहिउ तेण णराहिवा किं स्वहि जेम सामण्णु णरु कहो परियणु पुत् कलत्तु घरु कहो धणु हिरण्णु कहो तणउ धणु कहो तणिय पिहिवि कहो तणउ रणु ४ Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिटणेमिचरित जज्जरियउ जरए सरीरु खवइ जिउ अहिणव-देहे संचरइ लगभइ अण्णण्ण भवंतरइ' । रवि-उवयस्थवणइ जेत्ति यई विसहरु कंचुवउ जेम मुवइ णडु जिह अण्णण्ण वेस करइ जिह पयहिं पयहिं गामंतरइ जगे जम्मण-मरणइ तेत्तियई ८ जीवहो णिलउ ण णावइ गउ जम्म-सयहो उ आवइ ।। जसु दरिसणु जेण ण जुज्जइ तहो काई जुहिट्ठिल रुज्जइ ॥ ९ अइ-दूसह-दुक्ख-परंपरह चउरासी-लक्ख-भवंतरह भवे भवे एक्केक्क-वार-हुयहूं चउरासी लक्ख तो-वि मुयहं केत्तियहं करेसहि परम-दुहु कोत्तयह रुवेहि राय तुहुं केत्तियइ गणेसहि सज्जण अद्भुवइ असारइ असरण अद्भुवई घण्ण-धण-जोव्वणइ । अद्भुवई रयण-मणि-कंचणई अद्भुवई छत्त-धय-चामरइ ण सरीरइ काहं-वि थावरइ आहंडल-लक्खइ णिवडियइ वंमाण-सहासइ विवडियइ सव्वहो उप्पत्ति जरा मरणु सवहो ण को-वि अब्भुद्धरणु ८ घत्ता सव्वु जीउ एक्कल्लउ रइ बंधइ अण्णहं भल्लउ । स-किय-फलई अणुहुंजइ तहुं काई णराहिव रुज्जइ ।। [८] पंचमिय महा-गइ-गमण-मणु आसव-संवर-णिज्जर-रहिउ तणु-मेत्तउ सुहुमु समुद्ध-गइ पुत्वज्जिय कम्म-बंध लहइ तइलोक-णिवासिउ असुह-तणु वर-धम्म-वोहि-अपरिग्गहिउ धुउ कत्तउ भुत्तउ णाणवइ पुणु गमावत्थ समुव्वहइ Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छप्पण्णमो संधि उप्पज्जइ वाल-कील करइ सोलह संवच्छर परिहरइ दिवसेहिं जुवाण-भावे चडइ जर दुक्कइ णिहणु समावडइ जो जीव-सरीर-विओय-खणु समयंतरालु तं किर मरणु घत्ता जोवेइ जोउ ते वुच्चइ जइ सव्वावत्थेहिं मुच्चइ । तो सिद्धत्त णुपावइ एव-मि णरु एहउ भावइ ।। [९] तं णिसुणेवि धम्म-पुत्त चवइ जइ जीवहो मरणु ण संभवइ तो तिहुवणु को उवसंघरइ हतारु कवणु जोविउ हरइ णउ चुक्कइ को-वि अखंडियउ णउ सु-कइ कु-कइ णउ पंडियउ णउ तबसि ण विप्पु ण वाणियउ गउ खत्तिउ जो जगि जाणियउ ४ ण थणद्धउ ण-वि जुवाणु हडउ सव्वह-मि एक्कु सो दियहडउ तो भिसिय-कमंडल-धारएण आढत्तु कहतरु णारएण जइयर्ल्ड सिट्ठारे सिज्जि पय णिकखोभ-करेवि जगे विद्धि सय उपाइय तइयहु तेण तिय | णामेण मिच्चु खय-काल-किय ८ कसणंगिणि तंविर-लोयणिय रत्तंवर-धर फुरियाणिय दंडाउह-पाणि समुट्ठविय लहु दाहिण दिसए परिट्ठषिय तहे पडिबलु दुद्दमु देह-दमु स-कसाउ स-वाहि कियंतु जमु घत्तो तेहि-मि णि म्मउ मरणउ तिहुवण-उवसंघरणउं । एकहो विहिं तिहिं दुक्कइ संधाए को-वि ण चुक्कइ ॥ १२ [१०] अवरेकह सासण-पावण-वि कालेण पडंति सुरासुर-वि कालेण विणासु पुरंदरहो कालेण सोसु रयणायरहो Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ कालेण पियामह-लक्ख गय कालेण चविय गह वसु रिसय कालेण सम-त्थलु होइ गिरि कालेण विणासइ काल-सिरि कालेण गिलिय वलि-णहुस-णल दसकंधर-कुंभयण्ण पवल कालेण भरह-दसरह-पलय लवणंकुस-लक्खण-राम गय कालेण जुयक्खउ संभवइ तित्थंकर कुलयर चक्कवइ णव बासुएव वलएव णव पाविय कालेण अणेय भव ८ घत्ता मरण महा-विस-डंसेण किय-तिहुयण-भवण-णिवासेण । वित्थारिय-सठवंगेण को खद्ध ण काल-भुय गेण ॥ ९ ४ कालेण सुवण्ण-दीत्रि-पहउ पासेट वि जासु सुमन कालेण सु होतु वि खयहो णिउ कंचणमउ जणउ जेण जिउ जसु णाणा-वण्ण-समुज्जलइ धण-दिति सुबण्णमय इं जलई जहिं दद्दुर कच्छब कस्कडय झस मयरोहार सुबण्णमय कालेण अंगु अंगाहिबइ उ णावइ पाविउ कवण गइ जो देइ गिरिंद सम पहहं दस लक्ख सुवण्ण महारहह मणि-भरियहं गयवर-जोत्तियह वहु-दीणाणाहहं सोत्तियह कालेण खद्ध णामेण सिवि परिणालिय जेण सा पिहिवि घत्ता भोयणे जेण पवाहिय धिय-सिसिर-खीर-बालाहिय । पियणहं को-वि ण इच्छइ धणु देइ ण दाणु पडिच्छइ ॥ [१२] मंधाउ सो -वि कालेण मुउ जुअणासहो जो सयमेव हुउ . पारद्धि गयहो तिसिपहो गहणे दहि-चच्चिउ पल्लव-छण्णु खणे ८ ९ Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छप्पण्णमो संधि जल-भरिउ कलसु वासवेण किउ जुअणासहो अग्गए सण्णिमिउ तासु-वि तं तोउ पियंताहो उप्पण्णु गब्भु कंदताहो ४ फोडाविउ जढरु पुरंदरेण पुकारिउ वाले सुंदरेण जणु भासइ वासइ काई किर मं धासइ णिग्गय सक्क-गिर मंधाउ णामु तहो तेण किउ सुरवइ-अंगुट्टए अमिउ थिउ तं पावेवि पावेवि वडूढविउ बारहमए दिवसे रज्जे ठविउ घत्ता जसु सामण्णु विढत्तउ चोरार-मारि-पश्चित्तउ । पालिउ जो सुर-पालेण कंदंतु सो-त्रि गिउ कालेग ।। [१३] कालेण दिलीवि गवेसियउ आहेडलु जेण विसेसियउ सुर-गायण जसु गायति सरे पेक्खणयहं तेरह सहस घरे कालेण भईरहि खयहो जिउ जण्हविहे जणणु जो जणेण किउ कालेण जयाइ-वि कड् ढेयउ सहसक्खहो जो समवढयउ ४ दस-वरिस-सयई णिय-णंदणहो जर देवि पुरुहे 'पुर-मद्दणहो किउ रज्जु जुवाणे होतएण इंदहो अद्धामणे ठंत एण कालेण मिलिउ गिवाण-णिहु बइणहो गंदणु णामेण (पहु जो सुरहिए-वि अन्मत्थियउ जिह बत्तहो तिय करि पत्थियउ ८ घत्ता लइउ तेण वाणासणु दइ वसुमइ करि पेमणु । ताए-वि सिरेण पडिच्छिउ दुहियत्तणु अवरु समिच्छिउ ॥ ९ तिह अंबरीसु ससिविंदु णउ तिह भरहु तेम अवर वि बहुय तहिं काले जुट्ठिलु उपसमिउ [१४] तिह परिमरामु हरि रामु गउ के कज्जे शेयहि धम्म-सुय आवासहो कह-वि कह-वि गमिउ . Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्टणेमिचरिउ ४ गउ णारउ केथु-वि सिन्ध-गइ थिउ दुम्मणु सिमिरे णराहिवइ मेल्लइ पल्लाणु को-वि हयहो को-वि मुहवडु देइ महा-गयहो णिवइ को-वि पहरण-णिबहु रह-सालहिं केण-वि मुक्कु रहु केण-वि सण्णाहु समोवरिउ सप्पेण व कंचुउ परिहरिउ कढिज्जइ सरु कासु-वि उरहो को-वि देइ पयाणउ जमपुरहो घत्ता को-वि धवलु मुत्ताहलु रुहिरारुणु गय-मय-सामलु । देइ सयंभुव-दंडेग दइयहे अणुराएं बड्डेण ॥ ८ इय रिटणेमि चरिए धवलइयासिय-सयंमुएव-कए छप्पण्णमो इमो सग्गो । Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तावण्णमो संधि तहिं काले किरोडि जिणेवि सेण्ण जालंधरहं । गउ सरह पासु तव-सुय-जमल-विओयरहं ॥ १ __[१] अस्थइरि-सिहरू दिवसयरे गए पडिवण्णए णव-संझा-समए कइ-केउ चंड-गंडीव-धरु संमत्तग जिणेवि पय? णरु सिय-वाहोवाहिय-पवर-रहु जमलीकिय-जायव-पिय-पणहु संजमियातुल-तोणा-जुयलु कल-कोइल-किंकिणि-रव-मुहलु दुणिमित्तई ताम समुद्वियइ गिद्धई धय-दंडे परिठियई सिव असिव-सहासई आयरइ जर-पायवे वायसु करयरइ कालाहि कुहिणि छिदंतु गउ खरु वामउ हरिणु वि दाहिणउ थद्धइं णस-जालई जायाई अंगई फुरति वि-च्छायाई ४ घत्ता अहिमण्णु समत्तु सउण-सहासेहिं रात्रियउ । साहुद्धउ करेवि दुमेहि णाई धाहावियउ ॥ [२] णिय-सिमिरु दिठु अ-सुहावणउ उक्कंठुलु उम्माहावणउं पवहंति परिठिय-सेण्ण-धुणि ण सुणिज्जइ वीणा-वेणु-झुणि णउ गायग-बायण-लउ वि हउ अहिमण्णु ण ढुक्कइ सम्मुह उ जणु णासइ सव्वु परम्मुहउ उ कलयलु ण-वि जय पडह रउ ४ Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० रिट्ठणेमिचरिउ वेयालिय मागह सूय णवि अट्ठोत्तरु णउ वावण्ण कवि मुहु जोइउ पत्थे माहबहो परमेसर णिग्गमे आहवहो दु-णिमित्तई जाइं णियच्छियई। मई तहिं जे लाइं परियच्छियई जिम धरिट उंगणे धम्म-सुउ जिम चक्क-बूहे अहिमण्णु मुउ ८ पत्ता वलु दीसइ सव्वु-इ इय दासति सहोयर-वि । पर आयहं मज्झे दीस इ एक्कु कुमारु जवि ।। [३] ४ चाणूर-कंस-विणिवायणहो घरु दवखवंतु णारायणहो गउ पासु पत्थु तव-णदण हो ओइण्णु णिर उहु संदणहो वोल्लाविउ धम्म-पुत्तु णरेण कठ-क्खल-महुरक्खर-सरेण दीसंति असेस वि सुहि-पवर महु तु ण दीसइ एक्कु पर किय-समरे परम्मुहु कहिनि हुउ किय चक्क-चूहु पइसरे व मुउ तो कहइ जुहिठिलु अज्जुणहो अलि-लिहि-गल गालाणज्जुणहो आएसें सो महु तणेण गउ छहि जणेहिं अखत्ते ।मलेवि हउ गुरु-गुरु- सुय-भोयाहिव किवेहिं महादिव-कण्णेहि शक्किवेहि घत्ता अम्हइ-मि असेस एक्के धरिय जय बहेण । जिह तियस-गइंद वालाहिएम महदहेण ॥ ८ तं णिसुणेखि अजुण्णु मुच्छ गउ गिवडिउ गिरि कुलिलाहिहउ महुमहेण पत्ते उठविउणं मंदरू महणे परिट्ठविउ किं तुज्झु जे एक्कहो दुल्लहउ महु घई पुणु काई ण वल्लहउ अवसरु ण होइ रोवेवाहो कार चित परए पहरेवाहो ४ Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तावण्णमो संधि उम्मत्तउ होवि मुहुत्तु थिउ धणु वाम-हत्थे सरु इयरे किउ अवगण्णेवि हरि-उक्कोइयइं पुणु मुहई णरिंदहं जोइयइ अहो अहो सुहि-संढहो णिग्गुणहो सच्चइ-सिहंडि-धज्जुणुहो एक्केण-वि वालु ण रक्खियउ तुम्हेहिं सव्वेहिं उपेक्खियउ घत्ता थिय णिम्मुह होवि को जाणइ कहो धिवइ सरु । मं बोल्लउ को-वि मारइ पहिलीहूउ णरु ॥ ८ ४ आतंकिय णरवइ णिहुय थिय आले हय लेपिम गाइ किय तो पर्थे भौमु णिहालियउ महुशंदणु पइ-मिण पालियउ सो वहुहिं णिहम्मइ एक्कु जणु तुहुं णिय-धरु एहि अलद्ध-वणु पच्चेडिउ जसु वलिड चिरु सो केम जयबहु थाकु थिरु तव-शंदणु कहइ महोयरहो णउ अज्जुण दोसु विओयरहो ते सेंधउ मा सामण्णु गणे धू पइ-मि परज्जइ आयणे एत्तडेण चुक्कु जोतु ण-वि जिह सोमय-सिंजय-कइकय-वि सर-धारे वरिलिउ मेहु जिह ते महु-वि भग्ग आहमाण-सिह ८ नर आइय ताम चिंतणहं ण जाइ घत्ता कहिउ कण्ह-तव-सुध-णरहं । जा बट्टइ अवस्थ परहं ।। , अवथ पर ।। ९ घरे घरे वणिज्जइ पत्थ-सुउ सउ मारिउ कुरुवइ-गंदणहं णत्र-सयई गइंदहं मत्ताहं पायालहं चउद्दह सहस मय घरे घरे रुज्जइ जो को वि मुउ सहमठु णसुभिव्य संदणहं दस-सयई पहुहु पहरंताहं सहुँ विहवलेण दम सहस हय ४ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ परिवेदिउ छहि-मि महा रहे हिं समरंगणे कण्णे छिष्णु गुणु जिह खग्ग-रहंगे जुज्झियउ दूसासण- पुत्तहो अबिभडिउ बहु सुहो सुणेवि णिवांडर सहसति मुच्छा-विहलंघल हूउ णरु 'तुडि-वडणे चेयण- भाउ गड गुण-संभरणेण विमुक्क रटि को समर - महाभर धुर धरइ साहारहि हई उम्माहयउ पर एक्कु - बि णवर ण चल्लियउ पूरंतु मणोरह तब सुयहो उ जाणइ वृहहो णिग्गमणु कुरु-णाहु ण रुण्णु तुहं रोवहि काई -सयरेण ण रुण्णउं कोंति - सुय भणु केण रुण्णु संगामे हय तव - सुग्रहो भग्ग जें माण-सिंह तं वयणु सुणेवि दामोयरहो जिह वालउ वालु महा-गएहिं अण्णेहि अण्णु णिट्ठविउ पुणु तहिं परिसंखाणु ण वुझियउ सम- चाहिं धरणि-पट्टे पडिउ रिट्टणेमिचरिउ घत्ता पडिमुच्छित गंडीव धरु | दुप्पवणक्खउ जेम तरु ॥ [७] अणहि धणु अण्णहि पडिउ सरु उहिउ यि सुय-सोयाहिह कहो अहो एही चारहडि भड थडड-कडमद्दणु को करइ सय-वार भीमु अप्पाहियउ एकल्लउ तुहुं मोक्कल्लियर आए दिष्णु जें महु सुयहो किं रुत्रहि णिवारइ महुमहणु घत्ता पुत्र- सयहो गुण-सुमरणेण । एक्कहो पुत्तहो कारणेण ॥ [८] जसु सट्ठि सहस णंदणहं सुय खर- दूसण चउद्दह सहस मय सो जियइ रुत्रहि तुहुं रंड जिह मुहु जोइउ जेट्ठ-सहोयरहो ८ ४ ८ ९ ४ Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्ताबण्णमो संधि जो तुम्हहं माण-भंगु करइ चुक्कइ आयरिउ गुरुत्तणेण किउ बंभणु कियवम्मउ सयणु मारेवउ मदाहिवइ पई तं मारमि जइ-वि कण्हु धरइ गुरु-गंदणु गुरु-पुत्तत्तणेण तहो मरणु ण इच्छइ महुमहणु वासरे चउत्थे रवि-तणउ मई ८ घत्ता जइ कल्लए राय सीसु ण खुडमि जयहहहो । तो उप्परि झंप देमि वलंतहो हुयवहहो ॥ सिरु तोडमि परए जयदहहो पुरे पइसइ जइ-वि पियामहहो जा सामि-मित्त-गुरु-दोहाई जा इह-पर-लोय-विरोहाहं जा-रिसि-गो-वंभण-घायणहं जा जीव-दुक्ख-उपायणहं जो माय-वप्प-आकोसणहं जा पंच-महावय-णासणहं जा पावहं दुक्किय-गाराहं जा णिय धणु दे त-णिवाराहं जा पसु-पंचुवर-भक्खणहं जा मंस-सुरा-महु-चक्खणहं जा पर-धण-पर-तिय-हिंसणहं जा देव-भोग-विद्धसणहं जा कित्तण-पडिमा-भंजणहं जा मिट्ठ-मक्ख-पविहंजणहं घत्ता सा महु गइ होउ जइ णं जयद्दहु णिवमि । अत्यंतए सूरे कल्लए जम-पुरे पटवमि ॥ ९ [१०] जं पत्थे घोर पइज्ज किय तं रण-दिक्खहं सामंत थिय लहु पंचयण्णु दामोयरेण आऊरिउ देवयत्तु वरेण लल्लक्क-सद्द एक्कहिं मिलिउ णं जगु गिलेवि जमु किलिगिलिउ किउ कलयलु हय पडु-पडह-दडि णं महिहर-मत्थए पडिय तडि ४ Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ h रिट्टणेमिचरिउ तहि अवसरे वद्धिय-विग्गहहो किं अच्छहि आइय धुउ मरणु वइसवणहो पवण हो हुयवयहो खंधहो अ-हिमयरहो हिमयरहो सहसक्खहो धरणहो तक्खयहो चर-पुरिसेहि कहिउ जयबहहो जसु भावइ तासु जाहि सरणु मयरहरहो हरहो पियामहहो सुकहो सुर-गुरुहे सणिच्छरहो लइ ढुक्कउ तो-वि कुलक्खयहो ८ घत्ता परिरक्ख करेइ जइ-वि अणंतु अणंत-वलु । तोडे सइ पत्थु तो-वि तुहारउ सिर-कमलु ॥ [११] तं णिसुणेवि विद्ध-खत्तत्तणउ चल-णयण-जुयलु वुण्णाणउ कह-कह-वि ण मोहावत्थ गउ भय-जलण-जाल-मालाभिहउ परिचितिउ दुक्कु मज्झु मरणु कहो अक्खनि कासु जामि सरणु साहारु ण वंघइ मूढ-मइ गउ तउ जउ कुरुव-णराहिबइ ४ लइ जामि तवोवणु होमि मुणि जहिं कह-मि ण सुम्मइ पत्थ-झुणि देव-मि अदेव जसु समर-मुहे तहो णिग्गय वय वयणंबुरुहे सा णिप्फल होइ कया-वि ण-वि आयामइ देव-वि दाणव-वि सुर खंडवे गो-गहे कुरुव जिय बंदिग्गहे तुज्झु परित्त किय ८ सब्भावे कुरुबइ भणमि पई को रक्खइ तुम्हई मज्झे मई घत्ता जिम णिय-घर जामि घोर-वीरु जिम तउ करमि । अज्जुणे जीवंते धुउ जीवंतु ण उव्वरमि ॥ ९ Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तावण्णमो संधि तो भणइ दोणु करि चारहांड अजरामरु को-वि ण एत्थु जए ण पलायणु सोहइ खन्तियहं जिम सामिहे जिम सरणाइयहो जीवग्गह-जय-मरणेहि भडहो जय-लच्छि जएण समावडइ छ महारह सूई-चूहे जहिं कल्लए पयंगु जामत्थमइ [१२] अवलंबहि वित्ति समारहडि तो वरि पहरिउ संगर-समए सिरु उज्झइ कारणे एत्तियह जिम मित्तहो जिम अण्णाइयहो ४ तिहिं गइहिं सुद्धि जस-लेहडहो माणेण सुरंगण करे चडइ पइं रक्खमि को पइसरइ तहिं महि अम्महं ताह-मि सग्ग-गइ ८ ९ घत्ता तो सिंधव-णाहु चित्तु पडिस्थिर करेवि थिउ । जिम मारिउ पत्थु जिम ते महु सिर-छेउ किउ ॥ [१३] जं किय परिरक्ख जयबहहो तं चरेहि णिवेइउ महमहहो हरि होसइ-जणवए जंपणउं किय पत्थु डहेसइ अध्पणउं णउ पइजारहणहो !णबहणु को सक्कइ पइसेवि गुरु-गहणु जहिं दोणि दोगु किउ कण्णु सलु मदाहिउ भूरीस उ पवलु जहिं चित्तसेणु विससेणु सहुं दूसासणु दुम्महु दुविसहु दुजोहणु सउणि विगष्णु जहिं भणु वहरि णिहण्णइ केम तहिं मुहु कण्हें णरहो णियच्छियउ चर-चरिउ एउ परियच्छियउ पई पत्थ कियई अइ-वोल्लियई सुरवरह-मि चित्तई डोल्लियइं घत्ता असि-जाला-मालहो धय-धूमहो रिउ-हुयवहहो । पइसेप्पिणु तेत्थु को सिरु खुडइ जयदहहो ॥ ९ Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ तो पत्थो वियसि मुह-कमलु किं राहावेहु ण दिठु पई रक्खंतु महा-रह अट्ठ-रह रक्खंतु देव दाणव गह- वि रक्खंतु गरुड-गंधव्त्र - गण रक्खंतु रुद्द रकखंतु वसु रकख सहसक्खु तियकख - समु रक्खउ वइसाणरु वइसवणु परिरक्ख करेहि मारे कल्ले मई तो सयल - भुवण - जाणिय-गुण हो पडिवणें तर्हि संतोस भरे सिव - कंदणु सुक्कासणि-वडणु चिचयई कवंधई गयणयले अइ-बिरुवई रुव विहंगमहं चिताविय सुरवर सयल मणे उद्धसिउ धजउ जाउ दिहि नारायण-पवणालंखियउ [१४] णिव्वणहि केत्ति कुरुव-बलु बंदि-गह- गो-हे तुलिउ मई लइरह (?) रक्खंतु समत्त रह रक्खंतु दिवायर वारह-वि रक्खंतु महा-रिसि सत्त जण रख रक्खेव सचि जसु रक्खड कॉल - कालु कथंतु जमु रक्खउ रवि राहु-वि पवणु घगु घत्ता सहुं तइलोके तुहु-मि हरि | समरंगणे तो-वि अरि ॥ रिट्टणेमिचरिउ [१५] परितुट्ठ जणद्दणु अज्जुणहो उपाय जाय - कउरवहं घरे मयरहरखोहु महिहर-चलणु ओवुट्ठई रुहरई वरणियले पुच्छई जलियाई तुरंगमहं को जाणइ होसइ काई रणे पज्जलउ महारउ कोव - सिहि वरवइरिघण-संधुक्कियउ ८ ९ घत्ता हरि - जुए हरि - चिंधे सई भुत्र-वल-हीणु हरि-वलु करे गंडीउ जहिं । जाइ जयद्दहु संदु कहिं ॥ * इय रिट्ठणेभिचरिए धवलइयासिय सयंभुएव- कए सत्तावण्णमो इमो सग्गो । ४ Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठावण्णमो संधि भणइ धणंजउ पणय-सिरु पुण्णिम-इंदु-रुंद-मुहर्षदहे। . दुक्ख-दवाणलु उल्हवहि जाहि जणद्दण भवणु सुहहहे ॥१ [१] कोइल-कल-कोलाहल-सदहे काई भडारा जियइ सुहदहे पुत्त-विओय-सोय-तम-छाइय कि जीवइ कि मुइय वराइय जाहि गवेसहि देव जणदण। कालिय-देह-दमण दणु-महण एम भणेजहि णियय-सहोयरि लइ सुय-सोउ पमोयहि सुंदरि ४ केत्तिउ रुवहि खणंतरु सुप्पइ पडिउ धुरंधरु को धुरे जुप्पइ सव्वहो जीवहो जम्मणु मरण धम्मु मुएविणु को वि ण सरणउ तो वरि अप्प-हियत्तणु किज्जइ वउ चारित्तु सीलु पालिज्जइ वंघव-सयण सव्व जीवंतहं पच्छए को-वि ण जाइ मरंतह ८ घत्ता हउ-मि कुमारहो लग्गु कुढे जिम सिरु खुडिउ जियंते जयरहे। जिम कल्लए ओयारियई महुसूयण कंकणई सुहहहे ॥ ९ [२] अण्णु-वि सुहड मडप्फर-साडहो एम देव भणु दुहिय विराडहो उत्तरे तालुय-वम्म-वियारउ थिउ रण-दिक्खहे ससुरु तुहारउ जइ समरंगणे ण हउ जयबहु जइ ण समत्तु समाणित भारहु जइ तव-सुएण ण भुत्त जियंते तो पडिवण्णु सुहहहे कंते ४ रि-२ Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ जो उप्पज्जइ पुत्त तुहारउ गयउरु तासु तासु वाइत्तइं छत्तई तासु तासु सिंहासणु तुज्झु समक्खु सव्वु परिछिण्णउं एम भणे वे वीभच्छु थिउ संख-चक्क - सारंग धरु कंस-महासुर-जय-सुय- घाणु दिट्ठ तेण रावंति सहोयरि जण-मण-णयणाणंद-जणेरी जब जउ दुक्कइ तर तर भिदइ उट्ठइ पडइ समुद्द - णियंसी गोविय-कंधि वलय - पालवेहि तिवलि - तरंग - मज्झे तियकायहो घोलइ मोतिय-हारु थणंतरे वाह - जलोलिय- लोयणिय दिट्ठ सुहद्द जगहणेण णिएवि सोयरु सुठुम्माहिय हा परमेसर सिरे गिरि-धारा करव-संढहं वले पहरंतर जं तुहुं जगह सरणु तं अलिय तासु वसुंधरि दिण्ण ति-वारउ तासु सेय - चामरई विचित्तइं णं तो तुहुं जे सक्खि गरुडासगु अणु परिक्खि गाउं मई दिण्णउं ८ घत्ता रिट्ठणेमिचरिउ दुद्दम-दाणव- देह - विमद्दणु । पासु सुहहहे चलिउ जणद्दणु ॥ [ ३ ] गड णिय - वहिणि भवणु णारायणु पिहुल- नियंविणि कुलिस-किसोयरि हत्थ - भल्लि णं वम्मह - केरी कंतिए ससहर - कंति णिसिंघइ उर-रव-हक्कारिय-हंसी चंदण लय भुयंग - सिलिवेहि पाईं ति अंगुलि वम्मह - रायहो गंगा- वाहु-व सुरगिरि-कंदरे घता पुत्त-बिओय-सोय- उकंठुल । मोक्कल - केस - कलाव विसंकुल || [ ४ ] कम - कमलुप्परे पडिय स धाहिय तिहुयण - लग्गण-खंभ भडारा इ-मि ण रक्खिर वालु मरंतर सव्वहं देवहं दइउ जे वलियउं ९ ४ ९ ४ Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठावण्णमो संधि दइउ देइ दइउ जे उद्दाल मारइ दइउ दइउ परिपालइ तुहु-मि भडारा दइवायत्तउ दूसह-दुक्ख-परंपर-पत्तउ पइ-मि रुण्णु पज्जुण्णहो जम्मणे घल्लिउ महुरहे जिणेवि महा-रणे जई उयरेण वहहिं तइलोउ-वि तो किं वालु ण रविखउ एक्कु-वि ८ घत्ता तुहुं भायरु भत्तारु णरु भीमु भाउ भावंगु घुडुक्कर । केण-वि धारेवि ण सकियउ एकल्लउ कुमारु किह मुक्कउ ॥ ९ [५] धीरइ दुधर-धराधर-घारउ माए माए संसारु असारउ सत्रहो पिंडहो तिहि-मि पयारेहिं एक जे णि दुट्ट-किमि-छारेहिं एह जे णि णराह्वि-विदहं एह जे णिट्ठ-वि णाय-खगिदहं एह णिट्ठ वरुण-वइसवणह एह् जे पिठ हुवासण-पवणह ४ एह जे णि8 भाणु-वंभाणहं एह जे णि सव्व-गिवाणहं एह जे गिट्ठ णिसायर-जक्खहं एह जे गिट्ठ विहंगम-लकखहं एह जे णि गरुड-गंधवह एह जे गिट्ठ भुयंगम-सव्वहं ८ घत्ता जाह-मि महि जा महिअ-महि जाह-मि णिरवसेसु जगु भुंजइ । नाह-मि ताह-मि अम्हह-मि एह जे मिट्ठ माए किं रुज्जइ॥ ९ [६] वोर-जणेरि वीर-भत्तारी वीर-पिउच्छ वीर-भत्तिज्जी वीर-वडाय वीर-दोहित्ती धीरोहोहि रुवंति लज्जहि वोरहो धीय वीर-परिवारी वीरह वहुव वीर-सयणिज्जी वीरहो तणिय भइणी जगे वुत्ती माए माए सुय-सोउ विवजहि ४ Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिटुणेमिचरिउ माए माए घर-वासु णिहालहि माए माए परियणु परिपालाह माए माए सहारहि अप्पडं तरु दुक्ख-णइ करेवि दिहि-तप्पउं माए माए किं रुज्जइ वीरहो जसु ओसरइ ण लच्छि सरीरहो घत्ता अट्ठ सहास महारहहं सउ राउत्तहं सहसु णरिंदहं । सहस चउद्दह किंकरह हयई जेण णव-सयई गइंदहं ॥ ८ तो उठवाहुल-वटुल-वाह ए रुण्णु सुहद्दए मुक्कल-धाहए पुत्त पुत्त किह चूहे पइट्ठउ पुत्त पुत्त किह वइरिहि दिउ पुत्त पुत्त किह वाणेहिं भिण्णउ पुत्त पुत्त किह खग्गेहि छिण्णउ पुत्त पुत्त किह वइरिहिं दिट्ठउ पुत्त पुत्त किह महियले सुत्तउ ४ पुत्त पुत्त किह डाहुप्पाइउ पुत्त पुत्त णारायणु आइउ पुत्त पुत्त जयकारहि माउलु पुत्त पुत्त कहो छडिउ राउलु पुत्त पुत्त तुहुँ केहि दीसहि पुत्त पुत्त उत्तर मंभीसहि पुत्त पुत्त जायव-जणु दुच्छिउ पुत्त पुत्त पई को-वि ण पुच्छिउ ८ घत्ता देवइ-रोहिणी-रुप्पिणिहिं दोमइ-कोतिहिं णिच्च-णवल्लउ । वंधव-सयणई परिहरेवि कवणु दोसु जहिं गउ एकल्लउ ॥ ९ [८] सुह-गई लहहि पुत्त महु दुल्लह रण-वहु-अमर-वरंगण-वल्लह छिण्णइं जेहिं सव्व-पसु-पासई कियई जेहिं उपवास-सहासई लद्धइं जेहिं सुखेत्तई मरणइं चिण्णइं जेहिं महा-तव-चरणई दिण्णइं जेहिं चउठिवह-दाणइं वसियइं जेहिं पंच-कल्लाणई ४ Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठावण्णमो संधि पंच महावय जेहिं ण भग्गा जेहिं धम्म गुरु देव ण णिदिय ते गय जेत्थु जेत्थु जाएज्जहि तहिं अबसरे अच्चंत-विणीयउ जे पुरुएवहो सासणे लग्गा जेहिं परज्जिय पंच-वि इंदिय जिण-गुण-गणं-संपत्ति लहेज्जहि आयउ दुमय-विराडह धीयउ घत्ता तहिं धाहाविउ उत्तरए तुम्हेहिं जाणहुं कुरुवेहिं पिट्ठउ । णं मरइ गाहु महु-तणउ महु पइ अच्छइ हियए पइटनउ ॥ ९ [९] तेग ण हियवउ फुटु महारउ जइ ण वाजु तो किल मउयारउ णिवडिउ क रेहिं हगंतु उर-स्थलु थग-सिह रेहिं ण पत्त महि-मंडलु वसुमइ दइन दवत्ति पइसारउ जेण गवेसमि कंतु महारउ दइत्रहो कालहो जमहो कयंतहो सिरु ण फुटु अहिमण्णु हरंतहो ४ वरि तिण-सिह वरि विल्लिए खण्णी णउ मई जेही तिय उप्पण्णी रुण्णु रुतिए णहयले इंदे रुण्णु रुवंतिए दुमयाणंदें रुण्णु रुतिए पुणु-वि सुहद्दए xxx पभगइ कण्हु कण्हे जाहारहि उत्तर तुहुं रोवं ते णिवारहि ८ घत्ता धीरेय सुंदारे दोमइए महसूयणेण सुहाएवि । पत्थहो तणिय वत्त कहेवि गर णिय-भत्रणहो दारुइ लेवि ॥ ९ [१०] गरेण विरइय सेज वहु-वण्णेहिं णव-दब्भेहिं वेरूलिय-वण्णेहिं तहिं गिवण्णु रण-दिक्खए थारवि थंडिले सासण-देवय झापवि सबहो जगहो जाउ उण्णिद्दउ कुरुव-राउ समरंगणे णिहउ दुक्कर किय पइज्ज सेयासें विजउ ण जाणहुं कवणे पासें ४ Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ के-वि देति सु-पसत्थासीसउ दहि-दुव्वक्खय-सलिल-वि मी सउ जइ अम्हई गुरु-देवहं भत्ता माय वप्पु जइ वे-वि | सत्ता जइ किउ धम्मु सच्चु जइ पालिउ जइ तिण-समु पर-दव्वु णिहालिउ जइ णीसारिउ जिणवर-पुज्जर तो समरंगणे जिणउ धणंजउ ८ घत्ता जेहिं अक्खत्रों वालु हउ जेहिं ण दिण्णु अद्भु मग्गंतहं । ताहं हयासहं कउरवहं पडउ वज्जु सिरे दुण्णयवंतहं ।। ९. __ [११] जइ णरु मरइ मरइ तो माहउ वज्जिउ धम्म-सुएण महाहउ लोयहं पंडव-पक्खु वहंतहं अद्धरत्तु गउ एम चवंतह णिद्द ण जाइ ताम महसूयणु पभणइ सव्वाकरिसिय-पूयणु दारुइ जिह महु रुच्चइ अज्जुणु तिह ण संवु अणिरुद्ध ण पज्जुणु ४ तिह ण दसारुह सच्चइ-हलहर ण रह ण तुरय ण हस्थि ण किंकर तेण मरते मरमि णिरुत्तउ एउ तुज्झु मई अग्गए वुत्तउ किं तव-सुएण काई किर पत्थे मई मारेवा वइरि स-हत्थे मई गुरु-रइय वूह फोडेवा मई कुरु-कप्प-रुक्ख मोडेचा ८ सतह घत्ता सीस-फलई पाडेवाइ सर-दंडेहिं घाय-जज्जरियई। सउण-सयई भक्खेवाई वहु-मस्थिक्क-महारस-भरियइ ॥ ९ [१२] विस-जउ-भवण-जूय-केसग्गह ते दुण्णय डहंति महु अंगउं भाइणेय-वहु सहे वि ण सक्कमि दारुइ एत्तिउ करहि विहाणए वण-दुक्खई विगड-वह-गोग्गह णरहो तेण साहिज्जु करेवउ गरवर खयहो णेतु परिसक्कमि सज्जीहोज्जहि पढम-पयाणए ४ Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ अट्ठावण्णमो संधि जुत्ति जुआलए जुयल महाहय मेहपुप्फ-सुगंधि-वलाहय गारुड-धयहो म ढोयाह वासणु सज्जोकार सारंगु सरासणु रहवरु राय-बारु पइसारहि एम करेमि देव गउ साहि महुमहणे-वि पदुक्कउ तेत्तहे चिंतावण्णु धणंजउ जेत्तहे एयारह-अक्खोहणि-पलउ वूह-मझे किह वइरि णिहालउं घत्ता भणइ जणदणु किं ण हउं किं गंडीउ स-सरु णउ करयले । किं ण तुरंगम कि ण रहु जेण विसूहि तुहुं महु अग्गले ॥ १० [१३] तो णारायण-वयणु णिहाले वि उर-मुह-कर-चरणइ पक्खालेवि एक-मणेण दम्भ-सयणत्थे सुमरिय सासण-देवय पत्थे जइ मई पंचाणुव्वय पालिय जइ जणि व पर-णारि णिहालिय जइ पर-कसमरु तिण-समु मण्णिउ जइ गुरु-वयणु ण मई अवण्णिउ ४ जइ णिय-सामिसालु णउ वंचिउ जइ देवाहिदेउ मई अंचिउ जइ देवयउ अस्थि जइ सासणु तो तुहुं देहि भडारिए दंसणु सुर-अंजलिउ होउ उवलद्धउ एम भणेवि णिवण्णु कइद्धउ सासण-देवय ताम तुरंति आय म जाणहो केत्तहे होंति ८ पत्ता कहिउ तार सिविणंतरे विण्णि-वि जेत्थु लेमि तहिं गम्मइ । तं तुम्हहं दक्खामि सरु जेण जयबहु परए णिहम्मइ ।। ९ । [१४] एम भणेवि थिय देवय अग्गए। णर-णारावण धाइय मग्गए विण्णि-वि गयइ णहंगण-मग्गें । गह-तारायण-रिक्खालग्गे दिट्टई गाम-णयर-उज्जाणइ जम्मण-णिक्खवणई वहु-ठाणई वुड्डण-वावि दिट्ठ कउवेरी सुरयण-णयणाणंद-जणेरी Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ रिट्टणेमिचरिउ कंचण-कमल-करविय-णीरी विविह-विहंगम-सेविय-तोरी काल-महागिरि दिछु अणंतरु पुणु मणिवंत-सिहरु लिहियंवरु वम्ह-तुंग-विसदसु स-कंदरु पुणु मयसिंगु स-संगु स-मंदरु दिव्वु पुरिसु अण्णेतहे दीसइ संभासणु करेवि तें सीसइ घत्ता एहु जो णियडउं कमल-सरु तहिं अच्छंति विणि-वि दुज्जय । एक्कु सरासणु अवरु सरु पई पेक्खेप्पिणु होति धर्णजय ॥९ ४ [१] तं उवएसु लहेवि गय तेत्तहे आसीविस दएसय-फड जेत्तहे एक्कु जाउ सरु अवरु सरासणु लइय गरेण णवेवि गरुडासणु पडिणियत्त लद्धए धणुवरे सरे दीसइ वम्हचारि तहिं अवसरे ते संधाणु वाणु विण्णासिउ दिठ्ठि-मुट्ठि-धित्तणउं पयासिउ सव्वु धणंजएण त लिखिउ अंजलियत्थु कियत्थु णिरिक्खिउ कहिं एवहिं रिउ जति अ-घाइय पर-बलु एम चवंत पराइय तं सरु तं जे सरासणु लेप्पिणु थाणु रएवि संधाणु करेप्पिणु सिंधव-सिरु सिविणंतरे छेइउ णर-णारायणेहिं तं चेइउ घत्ता ताम गलिउ तारा-णिबहु दित्तुल्लसिय संझ णिसि दूसिय । कुंकुमेण णव-बहुय जिह पुत्व-दिसारुणेण सई भूसिय ॥ ९ इय रिट्ठणेमि चरिए धवलइयासिय-सयंमुएव-कए अट्ठावण्णमो इमो सग्गो । Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उणसहिमो संधि उयय-महीहर-सिंगे पत्थ-जयद्दह-जुज्झु उग्गमिउ भुअण-परिपालउ णं दिणमणि आउ णिहालउ ॥ राउ विउद्ध ढुक्कु पहु-पालिय मागह सूय बंदि वेयालिय मंगल-पाढा पढिय विचित्तई दिण्णई वायणेहिं वाइत्तई गेयई गायणेहिं आढत्तई णच्चाणेहिं णच्चाविय पत्ताई णड कइ छत्त डोंव थिय वारेहिं किंपि ण सुम्मइ जय-जय-कारेहिं ४ अण्णेत्तहे पइमंति णिओइय तलवर तलवग्गिय भड भोइय कुलवत्तलिय मति सासणहर । सेणावइ संगर-कडूढिय-हर वेज्ज पुरोहिय भंडागारिय अंतरवंसिय कोट्ठागारिय अण्णेत्तहे सामंत स-साहण साउह संगावरण स-वाहण ८ घत्ता रह-गय-तुरय-भडेहिं जउ गमइ दिष्टि तउ रुभइ। तव-सुउ सायरु जेम वाहिणिहिं वहंतिहिं खुब्भइ ॥ [२] तूरइ हयइ अणेय-पयार दुंदुहि द्यण-ससुद्द-रव-सारइं झल्लरि झज्झरि झिंखिर वज्जइ कत्तरि करड कणइ आउज्जई भंभा-भेरि-भूर-भीभीसई तूणव-षणव-गोमुह-गोसीसई मद्दल-गदि समुद्दातालइ खुंखग-संखा-संख-वमालइ काइल-टिविला-लंबल-णामई एयावरइ-मि हयई पगामई कंचण-कलस-सएण जल-भरिएं अट्ठोत्तरेण वाण-धरिएं Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ रिटणेमिचरिउ व्हाउ जुहिट्ठिलु जय-जय-सद्दे वद्धावणु अणुसरिस-णिणद्दे मंगल सिय सिचय परिहेप्पिणु इट्ठा-देवय-पुज्ज कराप्पणु ८ पत्ता धणु दीणाणाहहं देवि महासणे णाहु णिविट्ठउ । णरेहि णराहिउ तेत्थु णं सुरेहिं सुराहिउ दिउ । [३] तो दउवारिएण हक्कारिय महुमह-पमुह सव्व पइसारिय पंडव-णाहु णवेप्पिणु घोसइ एउ ण जाणहु किह हरि होसइ तेरह-वरिसई सुक्खु ण लद्धउ संधि-काले पडिवण्णु ण अद्धउ तेरह दिवस णिरंतरु जुज्जिउ वाल-मरणु तं तुम्हेहिं बुज्झिउ ४ एवहिं किय पइज्ज धर-धारा तिह करि जिह् णिवहइ भडारा तिह करि जिह भारहु जे समप्पइ तिह करि जिह महि सयल विढप्पइ हउं परियारु देव तुह खंडउ रणे वुड्डंतहो होहि तरंडउ तो महुमहेण हसेप्पिणु वुच्चइ आयह सव्वहं णरु जे पहुच्चइ ८ घत्ता कवणु धणुद्धरु तासु जो सवडम्मुहु थाइ सरवर-संधाणु करेसइ । सो रण-मुहे सव्वु मरेसइ । [४] तहिं पत्थावे पत्थु पस्थिव-सह पइसइ सक्कत्थाण-समप्पह किउ तव-सुयहो तेण अहिवायणु जय-कारिउ स-भीमु णारायणु मत्थए चुंवेवि पंडव-णाहे दिण्णासीस सु-णेह-सणाहें । सहल पइज्ज होउ समरंगणे सुर पेक्खंतु सब गयणंगणे जिणहि जयबहु हरिहे पलाए एमासीस दिण्ण जं राएं। भणइ धणंजउ सउरि जे मंगलु मुंजहि तुहु-मि देव कुरु-जंगलु Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उणसट्ठिमो संधि सु-विणउ कहिउ सुहिहिं अहिणंदिउ पंडव-लोउ सव्वु आणंदिउ पयहिण करेवि हयहं गुणवंतहं संदणे चडिउ भडहं पेक्खतहं पत्ता सच्चइ महमहु पत्थु रहे तिण्णि-वि चडिय चिरंतणे । णं जमु कालु कियंतु थिय एकहि जुय-परिवत्तणे ॥ पुत्तु जसोयहे गंदहो गंदणु सो थिउ धुरहे धरेपिणु संदणु दारुएण जमलीकिउ रहवरु सुरगिरि-कडय-लग्गु णं मंदरु ताम्व समुट्ठियाई सु-णिमित्तई णं सचारिम सुहई विचित्तई सुहु सीयलु सुअंधु अणुकूलउ वाइ समीरणु मंगल-मूल हरिणु पधाइउ पहिण देतउ वामउ खरु दिहि उपायंतउ ताई णिमित्तइणिएवि धणंजउ पभणइ तालुय-वम्म-पुरंजउ सिणिवइ जाहि जाहि वहु-जाणउ पई दोणहो रक्खेवउ राणउ वम्महु णवर एक्कु पई सोसइ जे पई जिणइ सो को-वि ण दीसइ ८ पत्ता सच्चइ जाहि दवत्ति परिरक्ख करेहि गरिदहो । मई णत्यंतए सूरे मारेबउ अज्जु जयदहो । णर-णारायण गय कुरखेत्तहो सच्चइ पासु पत्तु तव-पुत्तहो जहिं सण्णद्ध कुद्ध वेयंड-व सोमय-सिंजय-कइकय -पंडव जहिं पंचाल-मच्छ वल-सायर पुंडरीय-परिपिहिय-दिवायर जहिं अवर-वि रिद् कुरु-डामर चाल्य-चारु-चामीयर चामा जहिं मयंध गंधुद्धर सिंधुर करि-सिक्कार तहिण-तिम्मिय-खुर जाहिं पासाय-सम-पह संदण मागह-सूय-बंदि-कय वंदण ४ Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ रिट्टणेमिचरिउ जहिं णिग्गय कय-जय-सिरि संगम फुरुहुरंत तुरमाण तुरंगम तहिं सिणि-पुत्तु पत्त थिउ रक्खणु णं रामायणे रामहो लक्खणु घत्ता रह-गय-तुरय-णरिंद रण-रहेस कहि-मि ण माइय । गह-गण-रक्खस-रिक्ख णं एकहिं मिलेवि पधाइय ॥ ९ एत्तहे चंदके उ तव-गंदणु विविह-महाउहु कंचण-संदणु सेय-वत्थु सिार-खंड-पसाहणु कणय-पुच्छ-सेयउसो (?) वाहणु एत्तहे भीमसेणु जस-लुद्धउ वर-वेरुलिय-मइंद-महद्धउ लउडि-विहत्थु पयाव-पसाहणु रीरी-वण्ण-तुरंगम-वाहणु एत्तहे मदि-पत्त लहुयारउ हरिण-केउ कोताउह-धारउ एत्तहे रहे सहएउ समच्छरु हंस-केउ करवाल-भयंकरु एत्तहे गिद्ध -चिधु सूलाउहु भइमि भयावण-वयणंभोरुहु ओए-वि अवर वि तव-सुय-किंकर धाइय धोय-धार-पहरण-कर ८ घत्ता सेण्णु असेसु-वि एवं कुरुवहं उप्परि णाई ९ तो रउरव-रव-पंडव-रण-तूरई गलगज्जियई मत्त-मायंगहं गुरु-चिक्कार महारह थक्कई णर-णारायण-पूरिय-संखहं गर-गंडीव-सउरि-मारंगहं जाउ महाहउ पडियई चिंधई स-रहसु सण्णहेवि पयट्टउं । दीसई जमकरणु विसट्टउं ॥ [८] हयमाणहं गय मुहहं व कूरई भीसावण-हिसियई तुरंगहं चवल वहल-कलयल पाइकई कण्ण-कडुउ रउ हुयउ असंखहं सद्द सुणेप्पिणु कुरुव-कुरंगह गं गिरिवर-सिहरई पवि-विद्धई ४ Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९. उणसठिमो संधि तो धयरडे पुच्छिउ संजउ थिउ रण-महि पइसरेवि धणंजउ एवहिं किं कांति कहि कउरव गलिय-पयाव पाव गय-गउरब ८ पत्ता कल्लए करेवि अखत्तु जं धाइउ वालु हयासेहिं । तहो पावहो फलु अज्जु दावेवलं हरि-सेयासेहि ॥ [९] जइ पंडव परिपालिय-वंगहं जइ भीमहो विसु दिण्णु ण गंगई जइ जउ-भवणे ण हुयवहु लाइउ जइ अक्खेहिं ण कोउप्पाइड जइ दोमइहे ण किउ केसग्गहु जइ ण बिराड-णयरे किउ गोग्गहु जइ महि-अद्ध दिण्णु मग्गंतहं जइ दिवसा ण य गय कलहंतह ४ जइ रक्खिउ इरवंतु पयों जइ ण णिहउ अहिमण्णु अखत्तें तो किं एत्तिउ होइ णराहिव सई एमहि वलंतु कुरु-पत्थिव गए पाणिए किं वरणे वद्धे मुयहं काई किर ओसह-गंधे जं पहु पभणइ तं विसु केवलु पइ-मि सव्वु माराविउ कुरु-वलु ८ घत्ता मग्गइ मेइणि-अद्भु तव-गंदणु सम्वहिं जेहउ । पंच-वि गाम ण देइ दुम्मइ दुज्जोहणु हेउ ।। [१०] तो दोणायरिएण महारणे कोक्किय किंकर वृहहो कारणे आइय कुरु करंत अहिवायणु मरु मरु कहिं गरु कहि णारायणु कहिं अणिरुद्ध संवु कहिं पज्जुणु कहिंसच्चइ सिहंडि धज्जुणु सई गुरु कालसेण धय-दंडे सउवलु कउ सिएण किबु सोंडे ४ अउरगेण सइ कुरुत्र-णराहिवु धूमद्धय-धएण मदाहिवु करि-कर-काकेयणेण वियत्तणु हरि-लंगूलएण गुरु-णंदणु Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० मोर महाघएण सुउ कण्णहो -एम पराइय स-वल स-कलयल स- रहसु सं-रस-रोसु उ- दिस तूरई देवि चउ तुरयारूढें अक्खय - तोणे सहस चउद्दद्द तरुण- मयंगहं सट्ठि सहास रहहं परिसंखहं रक्खणु देपिणु सिंघव - राय हो मत्त गदहो णवहिं सहासेहि सुहडद्दं लक्ख चत्थे भाएं वारह गाउयाई आयामें - दस गाउयई परम - वित्थारे - अग्गए सायड - वूहु किउ सिणिउ जयद्दहु जेत्थु तिणि-वि वूहई थियई अ-भेयई सगड-पम-सूईमुहु-णामइ' महिहर-तुंग विलिहिय-गयणइ आइ पत्थु केम फोडेसइ ताम समुठियाई दु-निमित्तई वायस करयरति लल्लकइ घट्टज्जुणेण ताम्ब हय दाविय दिठ्ठे फुरंतु महाधए वाणरु अण्णें लंणेण घड अण्णहो सयल स-वाहण साउह-कलयल घत्ता रिमिचरिउ ओत्राहिय-रह-गय-वाहणु । करव - साह || उद्घाइड [११] ताम जयद्दहु धीरिउ दोणें आजानेयहं लक्खु तुरंग लक्खई एक्कत्रीस पाइकहूं पेसिउ वूहारुह-म तुरयहूं पंचवीस पंचासेहि - महि-भायहो उ दुज्जोहणु अग्गिम-भाएं वूहु रइन्जइ सायडु णामें गुरु- परिरक्खिण दुव्वारें घत्ता पउम - वूहु तहो पच्छए । सूई - मुहु तासु - वि पच्छए ॥ [१२] सुरवर-मणे चितंति अणेय * अइ-पिहुलई अचंतायामइ णं जम-काल- कंयहं वयणई' केम जयद्दह - सिरु तोडेसइ असिवई सिव आयरइ विचित्तई होंति अणेयई छिक्का - वकइ णं भयरहर - तरंग विहाविय णं विझइरि - सिहरि वइसाणरु ८ ८ ४ ८ Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उसद्धिमो संधि णिएवि धणंजय - चिंधु सिंधव - संदही कज्जे तो दुज्जोहणेण मइ - मूढें दक्खाविय - फुरंत - माणिकह सहसु महारहाहं सउ दुश्यह तामं घणंजय - रहवरु आइउ दढ - विणिवद्ध - गोहंगुलि ताणउ करे गंडीउ धुणंतु कइजउ करे सारंगु ससंतु भयंकरु विहि-मि कंड- मोक्खंतरे थाएवि अज्जुण - महुमहणेहिं गह- कल्लोले गाइ' घन्त्ता कुरु-लोएं एम णिव्वाइउ । संघाय - मरणु लइ आइउ ॥ [१३] पासे जणद्दणु गरुड - महद्धउ गणगणे - धणु पयोहरु पूरिय संख सत्तु णिज्झाएवि उत्तम - सेय-तुरंगारूढे सहसई पंचवीस पाइकहूं तिष्णि सयई अइ- उत्तम-तुश्यह हिम- गिरि लद्ध पक्खु णं धाइ ४ X X X * ३१ घन्ता सइ भुवेहिं लएप्पिणु वाइय । विहि-मि विणि (?) चंद मुहे लाइय || ९ इय रिट्ठमिचरिए धवलइयासिय सयंभू एव - कए समो इमो सग्गो । ९ Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहिमो संधि रहवरे चडियउ वूहई फोडेवि सुय-वह-वेहाइद्धउ । मंड पइछु कइद्धउ ॥१ [१] (हेला) गय-घड-सुहड-संकडे णिविड-भड-समूहे । रक्खिउ जं जयदहो थवेवि सूई-चूहे ॥ तं स-धणु धणंजउ भणइ एवं जइ वइरि ण मारमि अज्जु देव जई फोडोंहेडि(?) ण करमि वूहु पंचाणणु जिम वणे हरिण-ज्हु जइ सरेहिं ण सीरमि कुरुव-लोउ तो अण्णु ण लेमि ण पियर्याम तोउ ४. गंडीउ ण धमि ण करमि जुज्झु जइ भाम ण दोणु ण णवमि तुज्झु पइसरभि जलंतए जलण-जाले अहवइ पेक्खेमहि तहिं जे काले हरि वोल्लइ मं वोल्लहि अ-भव्वु किं कउरव -साणु संदु सव्वु जहिं गुरु जस-धवलिय-सयल-खोणि किउ कण्णु विकण्णु कलिंगु दोणि ८. दूसासणु सउणि सयाउ सल्लु जहिं गुरु-सुय भूरि-भडेक्क-मल्लु घत्ता तिण्णि-वि वूहई भिदेवि जाम ण गम्मइ । ताम जयबहु अज्जुण केम णिहम्मइ ॥ १० [२] (हेला) खंडव-डाह-डामरो पंडवो पलित्तो । णं जुय-खय-दवाणलो पलय-पवण-छित्तो । Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सठिमो संधि महुसूयण चंदाइच्च वे-वि हरि-हर-चउराणण तिणि ते-घि चउ सायर पंच -वि लोयपाल जम-सणि-कलि-पलय-कयंत-काल ओए-वि छ-वि सत्त महा-रिसिंद वसु अट्ठ णवग्गह दस दिसिद ४ एयारह रुद्द कियावलेव दिवसयर दुवारह सयल देव चउदह महिंद भुवण-ए-वि परिरक्ख करउ अवरे-वि के वि सरु दारुणु तोणा-जुयलु तिव्वु रहु पक्कल करे गंडीवु दिव्वु तुहुं जवलउ जायव-णाहु जासु कउ चुक्कइ वार जितु तासु ८ महु मरइ जयबहु अज्जु देव केसरि-कमे णिवडिउ हरिणु जेम महु महुसूयण . तुज्झु णियंतहो लहु कर करि जमलल संदणु । किज्जइ कउरव-कडमद्दणु ॥ ९ [३] (हेला) तो जमलिउ महारहो तुरिउ केसवेणं । दिण्ण देव-दुंदुही गयणे वासवेणं ॥ रण-रहसुब्भडु कड्ढिय-पइज्जु पर-महिहर-पत्थिव-पलय-वज्जु किय-कंचण-राहा-जंत-वेहु गिव्वाण-महा-सर-लिहिय-लेहु खंडव-डह-डामरु कुरु-मसाणु तब-तालुय-वम्म-वलावसाणु परिसेसिय-उध्वसि-सुरय-सोक्खु कुरु-णर-परमेसर-वंदि-मोक्खु रण-रामालिंगिय-वियड-बच्छु परियढिय-धणु-तोसविय-मच्छु मेरुग्णय-रहवरु वर-तुरंगु चंदक्क-चक्क-पक्कल-रहंगु पवणुद्धय-धयवडु धवल-छत्तु तवणिज्जावरणावरिय-गतु गोहाजिण-वद्धंगुलिय-ताणु गंडीव-धणुद्धरु लइय-वाणु ८ रि-३ Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्टणेमिचरिउ रहिउ धणजउ णं विहिं सइलहं घत्ता हरि जमलउ धए वाणरु । उप्परि तवइ दिवायरु ॥ [४] (हेला) उडुवइ णरिंदहो णिय-धए पयंगो । हरि वोलिउ भीमहो णउलहो कुरंगो ॥ सहएवहो हंसु सुवण्ण-घडिउ । हइडिंवहो गिद्ध धयग्गे चडिउ पंचालहूं पंच-वि लोयपाल वम्म-वलएवहं मयर-ताल सोवण्ण-सोहु सिणिणदणास । धय पेक्खेवि गरुडु जणदणासु ४ वीभच्छहो गग्गरु कंठु जाउ णयणंतरे थिउ जल-लव-णिहाउ एत्तडेण ण सोहइ सुहड-सिंधु जण्ण-वि अहिमण्णुहो तण चिंधु णिन्भच्छिउ अज्जुणु माह वेण जइ संकिउ ता किं आहवेण वोलंतह णर-णारायणाहं उप्पंगुरंत-गय-हरिण-णाह(१) ८ महुसूयणु घोसइ परम संति रिउ जिहि पत्थ णउ का-वि भंति घत्ता पर-वलु पेक्खेवि णरु परियढिय-मच्छरु । थिउ अवलोयणे कुरुवहं णाई सणिच्छरु ॥ [५] (हेला) तो दुम्मरिसणेण गंधारि-गंदणेण । वेढाविउ वलेण सोवण्ण-संदणेण ॥ स-रहसेण पवढिय-कलयलेण काहल-कुल-किय-कोलाहलेण तूर-वोहामिय-सायरेण सर-मंडव-पिहिय-दिवायरेण स-कवए स-धएण स-वाहणेण णरु वेढिउ किंकर-साहणेण Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सठिमो संधि छाइउ दप्प-हरण-पहरणेहि एककल्लउ विंधइ सबसाइ सर-सप्पेहिं खावइ पर-वलाई गय-गिरिहिं सपदह-सय-दलाई रहवरहं पलोट्टइ चिंध खंभ णव-पाउसे रवि-व महा-घणेहि लक्खिज्जइ लक्खह लक्खु णाई रिउ-ताडहं तोडई सिर-फलाई फोडइ कुंभयल-सिलायलाई पाडइ बहु जय-सिरि-कण्ण-लभ घत्ता स-धणु धणंजउ सर-संधाणु ण दोसइ । दउमरिसण-बलु णवर पडतउ दीसइ । १० [६] (हेला) आयस-तोमराहया णिग्गया गइंदा । तिक्ख-खुरुष्प-कप्पिया कंपिया गरिंदा ।। हय रह रहंग पाडिय तुरंग सुहडहं दु-खंड किय वाहु-दंड खुडियई सिराई कडु-भासिराई छिण्णइ धयाई वसुमइ गयाइ पर-वलु खयत्थु चिंतइ खयथु कहि तणउं अज्जु किर सामि-कन्जु पाणह-मि इछु ण कलत्तु दिछु सिरु गयउ तो-वि जाणइ ण को-वि कहि तणउ पत्थु आइउ अणत्थु णासणहं लग्गु परिगलिय-खग्गु चितंति के-वि रण-दिक्ख लेवि लइ जाहु केत्यु सव्वह-मि पत्थु पहरणेहिं पत्थु वाहणेहिं पत्थु १२ Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ ६ रिहणेमिचरिउ कवएहिं पत्थु अपणउ हत्थु अप्पणउ पाउ अप्पणउ देहु चिंधेहि पत्थु किर सो-जे पत्थु किर सो-जे आउ किर सो-जे एहु घत्ता जल थलु णहयलु पत्थ-णिरंतर दिउ । तं वलु भज्जेवि कुरु-वले गंपि पइट्ठउ ॥ १९ (हेला) तो दूसासणेण साहारिया गरिंदा । गल-गज्जत मत्त मोक्कल्लिया गईदा ॥ गय-साहणु धायउ गुलुगुलंतु हय-ढक्का-रव-वहिरिय-दियंतु सुरवर-वर-वइरि-पुरंजएण णाराएहिं लइउ धणंजएण कप्परियई करि-कुंभ-स्थलाइ कड्ढियइ धवल-मुत्ताहलाई सहुं करि-विसाणइं खुडेवि चित्त णं वंस-करीरइ भुअग-लित्त दस वीस तीस पंचास दंति एक्कक्के सरेण धरति जति काह-मि कुभयलेहिं पइसरंति सर पच्छिम-भाएं णीसति णीसरियई काह-मि दिहि ण दिति हथिहडहं णियडहं पाण लिंति दूसासणु सहुँ गयवरेहिं भग्गु कप्परिय-कवउ णासणहं लग्गु ४ ८ घत्ता णर-सर-पीडिउ केण-वि कहि-मि ण दिदठउ । वण-वियणाउरु दोणहो सरणु पइट्ठउ ॥ Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सटिमो संधि [८] (हेला) स-सर सरासणाउहे दढ-णिवद्ध-तोणो। मा भज्जहो भणतो थिउ वृह-वारि दोणो ॥ महु करयले संतए वाण-जाले को पइसइ वूहभंतराले लइ वलहो वलहो आयारणेण लज्जिज्जइ किण्ण पलायणेण संगामे मुएवि णिय-सामिसालु जीवेसहो किर केत्तडउ कालु गुरु-वयणुच्छाहिय थक्क के-वि तो णर-णारायण पत्त वे-वि सेयासे पणय-महा-सिरेण वोल्लाविउ सायर-रव-गिरेण पइसारु भडारा देहि ताय रक्खेवि पई महु तणिय छाय मारेवउ से धउ संदु पाउ गोत्तारु जे जइ तेलुक्कु साउ तो वंभणु भारवि भणइ एम मई रकिखउ तुडं आहणहि केम घता अज्जुण एत्थहो जइ एक्कु-वि पउ गम्मइ । तो पइ रण-मुहे दूसल-गाहु णिहम्मइ ॥ ८ [९] (हेला) एम भणेवि झंपिओ अज्जुणो सरेहिं । णं विंझइरि पाउसे स-जल-जलहरेहिं ॥ गुरु सीसें णवहिं सरेहिं णिहउ तेण-वि स-कण्हु दु-गुणेहिं पिहिउ हय जोव जोव गंडीव-हत्थु धणु पाडभि किर चितवइ पत्थु तो आसस्थामुप्पायणेण गुणु छिण्णु कमंडलु-केयणेण ॥ ४ जो अवर करेवि दूसह-पयावे खंडव-णिमित्त-सिहि-दिण्ण-चावे Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ छहिं सत्तहिं दसहि सएण विद्धु पुणु लक्खेहिं पुणु अगणिय - सरेहिं वज्जम एहिं चूरिय सयल जोह वाम एहिं उद्धविय गइंद जे जे पत्थेण ते ते दोणेण दोण महाघणेणं तेहत्तरि सरेहिं अज्जुण - मग्गए जले वोलीणए अवरेण थणंतरे जणिउ डाहु तिणि-वि आसीविस - फणि- मुहेहिं गुरु- चरिउ णिएटिपणु वासु जज्जाहि धणंजय वेय-गमणु जं एम वृत्त नारायणेण भालयले ठियउ जो पट्ट-बंधु पयहिण करेवि गड सव्वसाइ जमलीकिउ हरि रहु दारुएण फोडेपिणु व्हो तणउ वारु घन्ता दिव्व महासर पेसिय । पडसरेहिं णिण्णासिय ॥ पुणु सहि सहासेहिं पडिणिसिद्ध कुरु खद्ध णाई बहु विहरे हिं अग्गिएहिं दड्ढ महारदोह सूरम एहिं संताविय गरिद [१०] (हेला) णाराय - किरण - कूरो । परिपिहि पत्थ- सूरो ॥ तिहिं वाणरु पंचहि पउमणाहु पडिवारा पिहिय सिलीमुहे हिं चितवइ ण किज्जइ कालखेड गुरु- सीस किर संगामु कत्रणु रहु दिष्णु णं दु-णारायणेण सोवण सकिरहवखंधु (?) पर-वल जगडंतु कयंतु णाई णं सिहि संधु क्कर मारुएण पइसरइ करेपिणु हथियारु घत्ता रिट्ठणेमिचरिङ कुरु-गुरु पच्छ ए धावइ । वरणु विद्धउ णावइ || १० ११ Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सठिमो संधि [११] (हेला) पिह-सुय थाहि थाहि कहि जाहि महु जियंतो । अच्छमि हडं जयद्दहो वइरि-कुल-कयंतो ॥ पणवेप्पिणु सुरवइ-सुएण वुत्तु तुहुँ गुरु हउं आसत्थामु पुत्तु तुहुं पंडु जुहिट्ठिलु पउमणाहु जुझेवए ताय म कर्राह गाहु पई सहुं ण भिडंतहो कवणु दोसु सो हम्मइ उप्परि जासु रोसु गउ एम भणेवि किरोड-मालि पर-वले करंतु दारुण दुवालि परिरक्ख जुहामण-उत्तमोज्ज तो दोणहो वलिय विढत्त-लज्ज पडिलग्गु पत्थु पर-पत्थिवाहं वंगंग-कलिंग-णराहिवाई जउहेय-ज उण-जालधराई गंधारि-मगह-मद्देसराह कंबोज्ज-होज्ज-णारायणाहं सग-सूरसेण-पमुहहं गणाई घत्ता एक्कु धणंजउ फोडइ जाहइ लक्खई णरवर-विंदहं । सीहु व मत्त-गइंदहं ॥ [१२] (हेला) सई खर-पवण-पूरिओ रसइ देवयत्तो । हय वर फुरहुरंति थरहरइ रहु वहंतो।। उत्थरइ चक्क-चिक्कारु घोरु पवियंभइ णर-केसरि-किसोरु गंडीउ भमइ सर णीसरंति कोसावहे खग-वि ण संचति विष्फुरइ कणय वाणरु धयग्गे णं तवइ तवणु तणु-गयण-मग्गे ४ । हरि पेक्खइ पहरइ सम्बसाइ एकल्लउ णरवर-कोडी णाई पडिवारउ पच्छए लग्गु दोणु हर वह-व खंधु वसहुद्ध-घोणु (१) Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० पुणु णर-णारायण वे-वि विद्ध रु हिउ पंचवीसहि सरेहिं म्हत्थे अत्थे पडिणिसिद्ध विहिं पंचहिं अज्जुण-संग एहिं थु गुरु सीसेण कि रूसेव जुत्त पइसंतु धर्णजउ पडिणिसिद्ध तिह परेण परिंदा संसएण पंडवेण एकत्रीसेहि सरेहिं वीसहि पत्थु थणंतराले वच्छत्थले णवहिं णरेण भोउ हरि भणइ धणंजर पडिणिसिद्धे जं एम पवोल्लिङ णर-मुरारि हक्कारिउ ताव सुदकखण एम भर्णतु अज्जुगो भिण्णेवि वेणि वूहइं णं पर- मुहे जमेण वि-रह विद्ध ( ? ) णं मंतु करतेहिं अक्खरेहि ८ पुणु नर-नारायण वे - विविद्ध णक्खत्तणेमि दस - सत्तएहिं घन्ता जाहि ताय णिय थामहो । उप्पर आसत्थामहो || [१३] (हेला) गड गुरू नियन्तो । तइययं वि पत्तो ॥ घन्ता स-सरु स - कढिय - धम्मउ | जिह कयंतु कियवम्मर || ताम पराइड पत्थहो पच्छए 12.2 J उच्चलइ. 7b-9a Bh. drops. रिट्ठणेमिचरिउ कियarमें दसहि सरेहि विद्धु पंचासेहिं जायव - बंसि एण धणु अवरु छिण्णु कड्ढेवि करेहिं ४ कह-कह - विण पाउि तेत्थु काले मुच्छाविड वेविड कुरुव-लोड पडिवार उपरि चिंधे चिंधे तं वचेवि गउ गंडीव - धारि कंबोज णराहिब - सक्खिएण ११ ८ १० Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सठिमो संधि [१४] (हेला) ताम समुत्तमोज्ज- जुहमण्ण चक्क-रक्खा । भोयाहिवहो धाइया वे-वि वद्ध-लक्खा ॥ सम-कंडिउ विहि मि धणुद्धरेहिं ते तेण-वि सत्तिहिं मग्गणेहिं तेहि-मि तहो वीसहिं मग्गणेहिं धणु विद्ध विद्ध पडिलग्गणेहि ते अवरु परासणु लेवि ताह छिण्णई धणुहरई धणुद्धराह ॥ ४ अवरई विहिं विणि सरासणाई लइयइ जम-भउहा-भीसणाई कियवम्मु णिवारेवि जंति जाम णर-रहवरु दूरीहूउ ताम पइसारु ण लदु णियत्त वे-वि पहरंति परिट्ठिय कहि-मि ते-वि तहिं अवसरे माण-महिद-थक्क दोहि-मिणरेण पेसिय पिसक्क ॥ ८ तोडियई सिरई पंकयइ जेम थिय सयल णराहिव हिरवलेव घत्ता सामिय-अवमरे रण-रहसुद्धय-खंघेहिं । सीसई देप्पिणु णच्चिउ णाई कवंधेहिं ।। १० [१५] (हेला) माण-महिंद-मद्दणे संदणो पयट्टो । गं हय-गय-णरिदहं भमइ मयइवट्टो ।। कइ-केयणु णाई कयंतु पत्तु गुंजइ हरि-संखु ण देवयत्तु गज्जइ गंडोउ महा-उदु णं महणावत्थहे गउ समुद्द गोंदलु कोलाहलु वहलु जाउ णं भिण्णु तिसूलें कुरुत्र-राउ अहो अहो सामंतहो जहि (?)ण भाहु थिय णिय-णियि-थाणतरेहि थाहु ॥४ Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिटणेमिचरिउ एहु कलयलु केवलु वणे(१) अणत्थु पइसारिउ महुमहणेणं पत्थु ण णिवारिउ केहि म राणएहिं गुरु-पमुहेक्के क-पहाणएहिं तं सुणेवि सुआउहु भणइ एम दुजोहण महु देव वि अ-देव मणुसहुं अवज्झु वरुणहो वलेण को छिवइ जयबहु करयलेण ॥ ८ पत्ता वाणर-चिंधेण एउ धणंजउ जमलोकिएण कयंते । जइ संहरिउ कियंते !! [१६] हेला) ताम सुरिंद-गंदणो रुंद-संदणत्थो । कुरुहुँ जणदणेण पइमारिओ अणत्यो॥ चूरंतु असेसई साहणाई रह-तुरय-दुरय-वर-वाहणाई धय-छत्तई चिंधइ चामराई कर-धरणंगुलि-सिह-सेहराई पोवरणाहरणइ साहणाई णं महिहे किंतु तारायणाई ज दिठु धणंजय-रवि तवंतु सर-किरणेहिं कुर-तरु णिहंतु तं समुहोवाहिय-संदणेण हक्कारिउ वरुणहो गंदणेण हेवाइउ तल-तालुय-मएहि अवरेहिं समर-तण्हालुएहि णामेण सुआउहु हउँ पसिद्ध जसु पहरणु वारुण-तणउ सिद्ध ८ एम भणेप्पिणु णर-णारायण घत्ता छाइय सर जाले । जिह पाउस-काले ॥ Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम संधि ताम धणंज एण णं विसहर णिवारिया [ १७ ] (हेला) सर कप्पिया सरेहिं । विसम-विसहरेहिं ॥ तो वरुण सुरण सुआउहेण तहिं अज्जुणु एक्कें चिंधे विद्धु उहि णारएहिं णरेण विद्धु पंडवेण संख - परिवज्जिएहिं हर सारहि सीरिय वर तुरंग तहिं अवसरे सरि-रयणुक्ख- -गत्त जइयहुं वण्णासए लडु पुत्त अजरामर किज्जइ किण्ण तोड जा करिवर- करड-मयंवु-सित्त सुर- कुसुमोमालिय दिष्ण-धूअ दुद्दम- रिंद विद्दण - सील दुपक्ख- - तिक्ख-पडित्रक्ख- पलय चितियमेत्त आय सा णाई सु-कंत कंतहो कोवंड - चंड-कंडाउण सत्तरिहि जणदणु पडिणिसिद्धु तो सरि-सुएण सत्तरि - णिसिद्धु वाणेहि गंडीब-विसज्जिएहि घन्ता पुणु-वि नियंत्रिणि पियएण पयतें वुच्चइ | जो ण-वि जुज्झइ तहो संगामे ण मुच्चइ ॥ घउ पाडिउ दोहाइय रहंग गय चिंतय वारुणि वारुणत्त तइयहुं पणवेष्पिणु वरुणु वृत्त गय दिण्ण तेण लइ एम होउ [१८] (हेला) हयलाणुलग्गा । करयले बलग्गा ॥ वर - चंदण - कदम ( 2 ) - वित्ति कंकाल - करणि जम-पडिम धूअ णं गय-जिहेण थिय अमर-लील परिमल-मेलात्रिय-भसल - वलय ४३ ८ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ जग - जीव - गवेसण - करण कुंढ - कारिणि णरवरह (१) पदीह भूमीव भुवण - भोयण - रुसाढ कालायस - घडिय सुवण्ण-वण्ण भइ जणद्दणु तो एक्कु ण-वि जिज्जइ एह लउडि जइ एव-मि पसिद्धि एहु अज्जुण भरु सव्त्रो - वि मज्झु थिउ मुवि धम्म-संघाणु पत्थु हकारिउ वइरि तिविकमेण तो कोवे गएण गया उहेण किं किज्जइ अण्णे आहवेण उक्कमइ एहु जे कलह - मूल तो मुक्क गयासणि महुमहासु जीमुत्तें विज्जु व महिहरासु हरि-वच्छ-त्थले णाई चडाविय णं काल - गइंदहो तणिय सुंढ णं विउल लटाविय जमेण जीह णं गलिय कयंतो तणिय दाढ णं फुरिय - महामणि णाग- कण्ण घत्ता जइ पट्ठविय महा-गय | दुक्करु जावई धणंजय ॥ [१९] (हेला) उझिए पहरणं । तो काई जुज्झिएणं ॥ रिट्टणेमिचरिउ थिउ कारणु भारिउ तउ असज्झु हउँ करमि उवाएं रिउ णिरत्थु लइ मेल्लि लउडि णिय-विकमेण परिचितिउ एउ सुआउहेण रु हिउ जे हिएं माहवेण फेडिज करव-पट्टसूल दहगीवें सत्ति व लक्खणासु हिमवंते गंग व सायरासु घन्ता पडिय नियंतही इंदहो । कमल - माल गोविंदहो || Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सट्ठिमो संधि ४५. [२०] (हेला) णिएवि अ-जुज्झमाणु हरि पडिगया गया सा । तासु जे पडिय मत्थए विज्जुला-विलासा ॥ जं णिहउ सुआउहु रणे रउदु तं धाइउ किंकर-वल-समुद्द पवणुद्धय-धय-कल्लोल-लोलु गय-णक-गाह-उच्छलिय-रोल दप्पहरण-पहरण-जलयरोहु सेयंग-तुरंग-तरंग-सोहु हकारिउ गरु मुए वाण-जालु कहिं गम्मइ हणेवि अ-सामिसालु ४. तो पत्थे छिण्णई छत्त-धयई स-सरीरइं सीसइं सरेहिं हयई विणिवाइय हय-गय-रहवरोह कप्परिय खुरुप्पेहिं सयल जोह रुहिर-णइ वहाविय अप्पमेय णर-रुंड पणच्चाविय अणेय पहरंत के-वि धरणियलु पत्त णासंति के-वि सर-मरिय-गत्त ८ घत्ता को-वि धणुद्धरु अज्जुणु णिएवि रण-स्थले । स-सर-सरासणु घिवइ सयं भुव-मंडले ॥ डले ॥ १० इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए सट्ठिमो इमो सग्गो।। Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक संधि कप्पिय- कुरु-करिंद-कुंभ-त्थल धय- - लंगूल सरासण-आणणु विणिवाइए वण्णासा- णंदणे जिह गयवरु गयवरहो समत्थहो करे गंडीउ करेवि रणत्थले ते-विदसहिं सिलासिय वाणेहि रु पडिवारउ पंचहिं ताडि रहु खंडिउ चक्क विक्खिण्णई सत्ति सुदक्खिणेण तो पेसिय तेल्ल - घोय वर - कुसुमेहिं अंचिय विदु णराहिउ उरे विहिं वाणेहिं कडूढिय - कित्ति-धवल-मुत्ताद्दलु । वियरइ रण-वणे णर-पंचाणणु ॥ १ [१] किय-गय- घड-भड - थड - कडवंदणे भिडिउ सुदक्खिणु रणमुद्दे पत्थहो सत्तर्हि सरेहिं विदु वच्छ-त्थले तिहि माहउ जम- दूय- समाणेहिं ४ ते स-धणु महा-धर पाडिउ सारहि -तुरय- सरीरई भिण्णइ असइ व सु-पुरिसेण परिपेसिय घत्ता एंति घणंजएण स-वि वंचिय । पर-विण चल्लिउ मेल्लिउ पाणेहि ॥ [२] देवेहि कलुयल किउ गयणंगणे सुवहु गरिदेहि सारिउ वेढिउ छहिं सामंत - सहासेहि हम्म विविहाउह - विच्छोहे हि कुरुहुं गियंत पडिउ रणंगणे दोणहिं (?णेण भणिउ सुदक्खिणु मारिउ हि अवसरे यि णाम- पगासेहिं -जोहे हि रहवर - गयवर - हयवर - ८ ४ Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्सट्टिम संधि लइय धर्णजएण णारा एहि इत्थिय - वेसढ-वावल्ले हिं अद्धयंद-वरसूयर- कण्णेहिं दिट्टि - मुट्ठि - संघाणु ण दावइ विधइ एक्कु अणेय - विलासेहि साइणु णिरवसेसु लोट्टाविउ रहगय-तुरय-जोह - जंपाणई बहु कालहो किसि - कम्भु करतें - सारहि विष्णवंतु घुर-धारा हय थक्कंति चलति ण चक्कई मग्गु ण ल भइ सिर- पाहाणेहि गय- गिरिवरेहिं महागुरु-काएहि रह - रुक्खेहिं पडिएहिं अदंडे हिं णं णर-झंखरेहिं भुय - डालेहिं रुहिरामिस-विमद्द-चिक्खिल्ले हि ताव विहंग - सिरेहिं सव फेडिय तीरिय- तोमर -कण्णिय-घाएहिं बच्छदंत - खुरु - भल्लु (?) - भल्ले हिं आएहि अरेहि-मि बहु-बण्णेहिं भमइ अलाय - चक्कु धणु णावइ सर दीसंति णवर चउ-पासेहिं जंय वृहु सिवेहि वोट्टाविउ (?) घता पडियई वहुयई अप्परिमाणई । सूडिड वल्लरु णाई कयंते ॥ [३] वेण्ण वि-रह ण वर्हति भडारा कम्मई थियई होति ललक्कई पहरण- कंटएहि अ- पमाणेहि उद्ध- कवंध- खुट्ट- संघाएहि सोणिय-पूरायारिय-खंडे हिं - कुसुमेहि अंगुलिय-पवाले हि चक्क - तुरंगेहि दुष्परियल्ले हि कहइ सु-खेडएहि रह खेडिय घन्त्ता ४७ ८ ११ रु जगडइ माहउ जगडावइ सर लिहंति गंडीउ लिहावइ । विधइ तुरय संख उवलिंगइ ( ? ) किं जमकरणहो मत्थए सिंगई ||९ ८ Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ तोव चयोरि सहोयर भायर ताहं सयाउ राउ पहिलारउ दीहराउ णिउ गाउ चयारि-वि धाइय संदणेहि सोवण्णेहि चामरेहि चामीयर-दंडेहिं तहि जेठाणुजेट्ठ-कमवत्तेहिं विद्ध धणंजउ दस-सय-वाणेहि तोमरेण उरे भिण्णु सयाएं रिटणेमिचरिउ. [४] जिम्मज्जाय जाय णं सायर अवुआउ रण-भर-धुर-धारउ जाई ण समरे मल्लु तिउरारि-वि छत्ताह पंडुर-पड-पच्छण्णेहि ४ अमर-सरासण-सम-कोयंडे हिं विहि-मि समच्छरु रणे पहरंतेहि छिपण तेण तेत्तिहि पमाणेहि णं तरु कंपाविउ दुव्वाएं अमर घत्ता अणुजेठेण सुहड सहले णरु दूसहु जे समाहउ सुलेहि । मुच्छा-विहलंघल गय-सण्णउ अज्जुणु थिउ धय-थंभे णिसण्णउ ॥ णिएवि अवत्थ पुरन्दर-तोयहो पुण्ण मणोहर कउरव-लोयहो पंडव खयहो जाउ कलि-रोहणु भुंजउ सयलु पुहवि दुज्जोहणु जाउ पसाएं कुरु-कुलु गंदणु वसुमइ-वसु-भर-भारिय-फंदणु एह जो संख-चक-गय-धोरउ एवंहि कहि-मि जोउ मायारउ ४ कलयलु किउ बहु णरवर-विंदें सई सारंगु लयउ गोविन्दे पूरिउ पंचयण्णु रव-संदणु दारुव वाहि वाहि तहि संदणु अच्छइ जहिं परिवढिय-विग्गहु मई मारेवउ पाउ जयबहु जाम ण दुकइ रवि अस्थवणहो जाम ण इंदु जाउ णिय-भवणहो ८ घत्ता ताम पइज्ज णेमि णिव्वाहहो एत्तिउ णवर एक्कु अवरत्तउ देमि वसुंधर पंडव-णाहहो । जं ण णरेण दिछु पहरंतउ ॥ ९ Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९ एकसटिमो संधि [६] चेयण लहेवि ताम सेयासें जोइड णाई कयंत-सहासे वाम-करेण लयउ वाणासणु वारिउ खंडवे जेण हुवासणु जेण णिवालय-कवय णिवाइय काल-कंज सम-धाएं घाइय जेण णियत्तिउ गोगगहे गोहणु। छंडाविउ रण-महि दुज्जोहणुन जेण अणेय वार जालंधर छंडाविय धणुवरई धणुद्धर तं गंडीउ लएबि सहत्थे किउ वइसाह-वाणु रणे पत्थे सरवर-सहस एण रिउ रुद्धा जममुह-कुहरे चयारि-वि छद्धा पंच सयई किंकरहं समत्तइ रहिय पंच सयई महि पत्तई ४ । घत्ता सलहहं तणिय इत्ति जिह धावइ एककहो एक्कु-वि खंडु ण पावइ । जाय महावलु रणे सर-जालहो थिउ अवयच्छिउ जे मुहु कालहो ॥ ९ [७) तहिं अवमरे णरु वरिउ वरेण्णेहिं पारव-दरयाभीसव-सेण्णेहि भोट्ट-कोंठ-जावण-जउहेएहि जालंधर-णारायण-मेएहिं मउरल-केरल-कउहड-णामेहिं पच्छल-मेहल-गणेहि पगामेहि मालव-मद्दव-गण-गंधारेहि ललिय-तुरुक्क-तिउड-तोक्खारेहिं ४ वहुहिं रण-पुरवासिय-राएहि णाहल-मेच्छ-पुलिंद-चिलाएहि ववर-लंपड-कक्कस-कीरेहि गुज्जर-गउड-लाड-आहीरेहि ताइय-तामलित्त-बंगंगेहि दाहिणत्त-कंवोय-कलिंगेहि सुंड-पउंड कुणिंद कुणोरेहि कंसावरणावरिय-सरीरेहि घत्ता आएहि अवरेहि-मि सामतेहि वेढिउ अज्जुणु एककु अणंतेहि । सरु एक्केक्कु करइ बहु-वाणेहि सव्व धवावइ वाण-सहासेहि ॥९ रि-१ Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ [4 विधइ पत्थु णियय-विण्णाणेहि सरु एक्केक्कु करइ वहु-वाणेहि कुंजर वीस सहासय पोय इ(!) जमलीहोइ जणद्दणु जोयइ जेम तुरंगम तेम गरिद-वि तेम पयस्थ महा-भड विंद-वि किर होसंति कहि-मि खायंतहो सुवालक्खइं(?) कयई कयंतहो कत्थइ हय-गय-सुहड- सहासेहि पुंजोकयइं सेल-संकासेहि कत्थइ णर-सर-विसहर-भीयई गट्टउ दिसउ लएवि अणीयई कथइ सर-विभिण्ण गय गयवर गय-पय-सय-सचूरिय हयवर रह रहंग रंगाविय रहबर हय-खुर-खुण्ण ण उट्ठिय किंकर पत्ता एम पलायमाण वहु मारिय रह गय तुरय जोह वइसारिय । किय रण-महि वल-पड-पंगुत्तो पाडिय जमेण णाई समसुत्ती ॥ ८ ९ तहि अवसरे जल्लंधु समुठिउ गं सवड-मुहु एक्कु परिटिउ पीडिउ पत्थु तेण सर-जाले गं गंदंतउ देसु दुकाले छिण्णु णरेण-वि णिय-विण्णाणेहि गिलिय णाई झस झस-संघाएहि रहवरोवकरणइणिठवियई सव्वइ रण-वसुमइ पवियइ घाइउगय-विहत्थु गोविंदहो णावइ मत्त गइंदु मइंयहो देइ णदेइ घाउ किर जावहि विजएं लउडि वियोरिय तावहि अवर गयासणि लइय तुरते णाललाविय जोह कयंते सवि णाराय-हासेहिताडिय विहिं वे वाहु खुरुप्पे पाडिय अवरे तोडिउ सीसु स-कुंडलु णं तरु-तल-खुंटहो परिणय-फलु घत्ता पडेवि ण इच्छिउ थिउ गयणंगेण णर-णारायण धरेवि रणंगणे । स-रहसु समुहु स-मच्छरु धावइ गय-महु चंदाइच्च हु णावइ ॥ ९ Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकसठिमो संधि [१०] तं तेहउ णिएवि आओहणु एक्क-महारहेण दुज्जोहणु दिव्व-सरीरावरणावरियहो पासु पढुक्कर दोणायरियहो ताय ताय महु केरए साहणे किंकर-दुरय-तुरय-रह-वाहणे वे-वि पइ8 पत्थ-गरुडासण लग्ग णाई वणे पवण-हुवासण जइ सावेण सरेण-वि मारहि तो किं वइरि चूहे पइसारहि गरु ण भग्गु ण जयबहु रक्खिउ होहि णिरुत्तउ पंडव-पक्खिउ खत्तिउ मुएवि भिच्चु किं भुज्जइ डोड्ड-किराडहं एउ ण-वि जुज्जइ किवि-कतेण वुत्तु तो राणउ तुहुँ महु आसत्थाम-समाणउ ८ घत्ता] भणु भणु कुरुव-राय जं वुच्चइ को णारायण-णरहं पहुच्चइ । केत्तिउ दिवे दिवे कलहु पउंजहि दुण्णय-दुमहो फलइ अगुहूंजहि ॥ ९ [११] तो गंधारि-पुत्तु आहासइ अज-वि ताय कज्जु ण विणासइ अज्जि-वि सुहडहं सिरई ण छिदइ x x अज्ज-वि अट्ठ-महारह-पासेहि अन्ज-वि रक्खिउ सयण-सहासेहि ४ अज्ज-वि सुसइ ण कुरुव-महादहु अज्ज-वि सव्वहं मञ्झे जयबहु पई जे भडारा तेत्तहि ठवियउ कंदंतु-वि ण घरहो पट्ठवियउ भणइ दोणु वूहई दुब्भेयइ अंतरे अंतरे वलइ अणेयई जहि रह गय-तुरंग-हय पत्थे संदणु केम जाइ ते पंथे हउं सु-महत्तरु जिह परिसक्कमि पवलु धणंजउ जिणेवि ण सक्कमि . घत्ता जाहि णराहिव अप्पणु जुज्झहि सुरवइ-सुयहो परक्कमु वुज्झहि । मई संगामु महंतु करेघउ अज्जु जुहिठिलु अवसु धरेबउ ॥ १० Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिटुमिचरिउ [१२] कंचण-कवउ दिव्वु आइज्झहि जेण रणंगणे सुर-वि णिसिज्झहि इंदहो तणउ पत्तु अंगिरसहो पुणु सुमरंति(?) पुणु सिहि वइसहो पुणु महु मइ-मि दिण्णु तहो पत्थिव णर-णारायण जिणहि गराहिव दिव्वु सरासणु दिव्व महा-सर दिव्वु तोणु लइ कुरु-परमेसर ४ सायर लोयवाल णइ गिरिवर रिसि वसु गह दिस चंद-दिवायर सासण-देवयाउ आहंडलु सव्वई देतु णराहिव मंगलु तेण-वि लइयई कुरुवइ-हत्थहो गउ दुज्जोहणु पच्छ ए पत्थहो दोणु-वि वूह-वारे ठिउ जावहिं पंडव-सेण्णु पराइउ तावहि घत्ता बाहिय-रह-गय-तुरयाणीयइ आहय-तूरइ पहरण-वीयई। किय-कलयलई रुद्ध-रण-मग्गई पंडव-कुरुव-वलइ पडिलग्गई। ९ १३] सव्वारोहु करेवि स-वाहणु धाइउ तिहि मुहेहि कुरु-साहणु पहिलए गुरु कियवम्मु दुइज्जए मुहे जलु संवु परिठिउ तिज्जए तो स-सरासण-कर-परिहत्थे जिय विदाणुविंद रणे पत्थे जमलेहि सउणि-मामु ओसारिउ सच्चइ दूसासणेण णिवारिउ सरलु जुहिट्ठिलेण सोवण्णेहिं पहउ पिसक्केहि सत्तावण्णेहि तहि मदाहिव-तव-सुय-संगरे कियवम्मेण दिण्णु रहु अंतरे चूरेवि चंदिर-चमु वीसत्थउ स-रहसु स-सर-सरासण-हत्थउ । धाइउ भीमसेणु जरसंधहो णं गयवरु गयवरहो मयंधहो घrt तो पारावयास-सोणासह घोरागारे समरे आभिट्टई धुय-केसर-केसरि-संकासह । धणु-वावारहो अवसरे फिट्टई ॥ ९ Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकसठिमो संधि [१४] असि-फर-करु धट्ठज्जुणु धाइउ दोणहो रहवरे चडिउ महाइड देइ ण देइ घाउ सिरि जावहि दसहि सरेहि छिण्णु असि तावहि चामीयर-चामरु सय-चंदउ खंडिउ सर-सएण वसुणंदउ चक-रकख विहिवे-वि णिवारिय सहिहि कह-वि तुरंग ण मारिय ४ अबरें किर बच्छ-स्थले भिदइ सच्चइ चाउ ताम तहो छिदइ विहि-मि परोप्परु वाणे हे छाइउ विहि-मि परोप्परु कह-व ण घाइउ घता विहि-मि परोप्परु छिण्णई छत्तई चिधई विहि-मि वसुंधर पत्तई । सुरवर रण-रस-रहसुद्धआ रणु पेक्तखंह कोडीभूआ ॥ ८ [१५] तो सिणि-सुएण सरासणु ताडिउ पहिलउं वीयउं तइयउं पाडिउ एम चउत्थर्ड पंचमु छ? सउ एक्कोत्तरु जाम पणट्टर गुरु चितवइ चित्तु वद्वार अइसंधिउ विण्णाणु महारउं जं ण णरहो रामहो गंगेयहो धणु-विण्णाणु सव्वु तं एयहो ४ मणे चितेवि मुक्कई दिव्वत्थई सच्चइ सव्वई करइ णिरत्थई दोणे सरु अग्गेउ विसज्जिउ वारुणेण सिणि-सुएण परज्जिउ सोमय-सिंजएहि एत्यंतरे सव्वेहि दिण्ण महारह अंत में उठिउ रण-रउ कहि-मि ण माइउ णं अ-कुलीणउं उप्परि धाइउ ८ घत्ता वियलिय-खग्गई मुक्कल-के सइं कुसुमइ पंडव-भडे हे पयंडे हे भग्गइ कउबर-वलई असेसई । घित्तई सुरेहिं सई भुव-दंडेहिं ॥ ९ इय रिट्टगेमि बारेए धवलइयासिय -सयंभुऐव-कए एक्कसठिमो सग्गो ॥ Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वासहिमो संधि खंडव-डामरु चाव-करु ___णारायण-किय-साहेजउ । कणय-कइद्धउ दिव्व-रहु पर-वलु पइसरइ धणंजउ ॥१॥ [१] (मात्रा) रहहो दूसहु चक्क-विक्कार गंडीवहो विसमु रउ अइ-रउरउ सरु देवयत्तहो । तिहिं वहिरिउ कुरुव-वलु समुहु को-वि णउ णरहो जंतहो ।। (मंजरी) सर भमंति कोसावहि चउहु-मि पासेहिं । पहरणाई परिचत्तई सुहड-सहासेहिं ।। परिसक्कइ रहवर जेम जेम णासंति धणुद्धर तेम तेम फुटुंति दिसो-दिसि रिउ-वलाई मंदरहो जेम जलणिहि-जलाई तो णरहो वलिय विदाणुविद णं सीहहो मत्त महागइंद णं चिरु जमलज्जुण महुमहासु णं चंदाइच्च महा-गहासु कंचण-रह कंचण-चाव-दंड कलहोय-विंदु-चित्तलिय-कंड धवलायवत्त धूवंत-चिंध दुव्वार-वइरि-वाहिणि-णिसिद्ध १०. चउसट्ठि-पिसक्केहि पिहिउ पत्थु सत्तरिहिं सउरि सारंग-हत्थु सरसउ सारिच्छ-भुवंगमाहं लाइउ अट्ठदहेहि तुरंगमाहं वाणेहिं णवहिणवहिणरेण वे-वारउ छिण्णइं चावई । दुट्ठ-कलत्तइ जिह थियई णिग्गुणई अणुज्जुअ-भोवई ॥१४ Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बासहिमो संधि २] (मात्रा) हय तुरंगम णिहय जुत्तार चिधाई दोहाइयई पाडियाई सेयायवत्तई। कंचण-चावइ आयइ चक्क-रक्ख-चक्कई विहत्तई ॥५ (मंजरी) चामराई धवलाइ मणोहर-दंडइ । साडियाइरिउ-जोहरं णं जप्त-खंडइ ।। उन्भड-भू-भंगुर-भिडिउ भीसु अवरेण खुरुप्पे खुडिउ सीसु रण-रहस-वसुद्धय-अवय-खंधु दस-दिसइ गपि विडिउ कवंधु विणिवाइए विदे महाणुभावे दारुण-दवग्गि-दुसह-पयावे अणुविदु पधाइउ तेण-काले णारायणु लउडिए हउ णिडाले तो पत्थे सटिहि मग्गणेहि आसोविसाहिविसमाणणेहि सिरु पाडिउ पाडिय वाहु-दंड । चरणोरु वे-वि किय खंड-खड १० किंकर-साहणु पहरंतु पत्तु णिविसद्धहो अद्धे सो समत्तु विदाणुविद विविय जाम मज्झण्हहो गउ दिवसयरु ताम घत्ता भणइ जणहणु पत्थ पई पायथे वइरि धरेवा । तिसिय तुरंगम समहो गय सारहि-वि विसल्ल करेवा ॥ १४ [३] (मात्रा) भणइ फग्गुणु माहवासण्णु रण-रुक्खहो उड्डवमि करयरंत करव-विहंगम । सारहि-वि मेल्लंतु इह जलु पियंतु इच्छए तुरंगम ।। _ (मंजरी) भणइ कण्हु तं पाणिउ कहिं पाविजइ । एत्थु णस्थि सरि सरवरु केत्तहे पिज्जइ ।। Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिहणेमिचरिउ णारायणु पणिउ अज्जुणेण गंगेयहो जलु दक्खविउ जेहिं सहसत्ति विसज्जिउ वाण-जालु कडूढिय विचित्त पायाल-गंग हल्लिर-महल्ल-कल्लोल-लोल हर-ससहर-कर-संचलिय-तोय तुहिणइरि-तहिण कारण-विसुद्ध किउ सरि जे महासरु पंडवेण सर दिण्ण दिव्व महु पज्जुणेण कड्ढमि भाईरहि तलहो तेहि महि दारिय जोउ महो-खयालु तारोह-तार-तरलिय-तरंग परिहच्छ-मच्छ-कच्छव-विओल हरि-चरण-इ-पह-जाय-धोय १० णइ णिग्गय पावण वण-समिद्ध पच्छाइउ सो सर-मंडवेण घत्ता अच्छउ दारुणु ताम रणु सुरवरेहि णहंगणे वुच्चइ । जं जलु कडूढिउ अज्जुणेण लइ एण जि किण्ण पहुच्चइ ॥ १४ [४] (मात्रा) मुक्क संदण डीण जोत्तार पइसारिय तुरय जले किय विसल्ल परिमट्ठ पहाविय । तहिं अवसरे पडिभडेहि सउरि पत्थ पायत्थ जाणिय । (मंजरी) दिण्ण तूर किय-कलयल उखय पहरण । उद्ध-सोंड णं सीहहो धाइय मत्त वारण ॥ मरु विधहु वेढहु धरहु लेहु णिय-सामिय-कज्जावसरु एहु गोरायणु समरे अ-जुज्झमाणु ण समप्पइ पवर तुरंग-अण्हाणु एक्कल्लउ पत्थु धरत्थु जाव आढवहो अक्खत्वे मिलेवि ताव किं जोहिउ पुणु रह-पत्तु पत्थु पडिवारउ तुम्हहं वले अणत्थु अण्णोण्णुच्छाहिय कुरुव दुकक मयरहर व णिय-मज्जाय-चुक्क वंगंग-कलिंग-रिसिक्क-राय दूसासणु दूसासणहो भाय Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बासठिमो संधि रह तुरय गइंद णरिंद सव्व •सर-लक्खेहि छाइउ सबसाइ ओए-वि अवर-वि किय-गरुय-गव्व णव-पाउस-मेहेहि विंझु णाई घत्ता एक्कु धणंजउ रिउ बहुअ एत्तियह-मि धरेवि ण सक्किउ । मज्झे गइंदहं मत्ताई पंचाणणु जिह परिसक्किउ ॥ १४ (मात्रा) कण्ण-चामर-वइजयंतीउ पक्खरय-घंटा-जुयई पुरउ गेज्ज-णक्खत्तमालउ । सहुँ करिहिं कडंतरिय पाय-रक्ख-पय-रक्ख-सुहडउ ।। (मंजरी) छिण्ण टंक हय हयवर-गय-रह-चक्कइ । गर-णरिंद-किंकर-कर-सिर-सीसक्कइ । अणवस्य-णीरे परिहत्थे पत्थे गंडीउ वियंभइ वाम-हत्थे णेयरु करु दोसइ तेत्थु काले तोणोर-सरासण-अंतराले हरि एकक वार ओससइ जाम सय-वार करइ संधाणु ताम अपमाण वाण पेसिय णरेण णं चउ-दिसु किरण दिवायरेण तहो थायहो पउ-वि ण देइ एक्कु जुत्तारेहि जोइउ एक्कमेक्कु ण तुरंगु ण संदणु ण-वि गइंद ण पडाय ण छत्त णे णरवरिंद १० जसु भीम-भुवंगम-दीहरंग दस वीस तीस तोमर ण लगग तो सूएहि कुरु-णर-घायणाहं रह ढोइय णर-णारायणाई आरूढ पणछइ साहणाई पायत्थई छडिय-वाहणाई घत्ता ताम पराइउ कुरुव-पहु मंभीस देतु णिय-भिच्चहं । अग्गए विहि-मि परिदठियउ णं णव-घणु चंदाइच्चहं ॥ १४ Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिटुणेमिचरिऊ (मात्रा) गुरु-समप्पिय-दिव्य-कवचेण पच्छाइय णियय-तणु दसहि सहि ढक्का-मयंगहं । सहसेण महारहहं सय-सएण उत्तम-तुरगहं ॥ (मंजरी) एत्तिएण साहणेण परिठि उ अग्गए । अ-णयणेण धुरे पुच्छिउ णिय-वले भग्गए ।। कि कज्जे णासइ गर णिवहु किं करइ पत्थु कि कुरुव-पहु तं णिसुणेवि अक्खिउ संजएण सुणु जं किउ पढमु धणंजएण वलु सयलु भग्गु दुम्मरिसणहो गय-घड घाइय दूसासणहो गुरु भणेवि दोणु परिवज्जियउ कियवम्मउ सरेहिं परज्जियउ पुणु माणइ-मइंद-सुआउहहं जीवियई हियई गहिया उहहं स-सुदकिखण आउ चयारिध्य अंवट्ठ-विंद-अणुविंद मय पायालहो कड्ढिय अमर-सरि जोतारेहि पाइय हविय हरि अवरु वि जे काइ-मि किउ गरेण तं कहिउ सव्वु एक्कखरेण घत्ता बिहि रहिएहि विहि रहवरेहि विहि सूएहि वलु ओट्ठद्धउं । एक्कहिं मिलेवि मणिदिएहिं तिहुयणु असेसु णं खद्धउं ।। १४ (मात्रा) गुरु विगरहिउ कुरु-णरि देण पई वारे परिठिएण केम हे अज्जुणु पइट्ठउ । कि दोणु ण होहि तुहूं कि अत्थ कि साउ झुट्ठः ।। (मंजरी) कि ण तोण कि ण-वि सर किं ण सरासणु । कि ण सामि हउं कि ण महार पेसणु । Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बासहिमो संधि जं वेहाइद्धउ दिदछु कुरु तं लग्गु चवेवए दोणु गुरु अज्जुणु जुवाणु जगे पायडउ हउं कुरुव राय पुणु थेरडउ ण पहुच्चहि अप्पुणु करहि रणु लइ अस्थई लइ देहावरणु इंदहो अंगिरसहो सुर-गुरुहो सिहि-वइसहो मज्झु तुन्झु कुनहो अइ हत्योहथिए अप्पियउ णउ वज्ज सुरेहि-मि कप्पियउ तो तेण होइ दूणाहिवहोणं अयसु चडाविउ पत्थिवहो १० करयले धणु स-सरु परिदठविउ वकत्तणु विउणउं गाई किउ घत्ता तुहुं ण पहुच्चहि अज्जुणहो धग्धर-गुण-धणु-गुण-रवेण भमरावहि-भुय-सर-दंडेहि । णं वुत्तु काय-कोयंडेहिं ॥ १४. [८] (मात्रा) स-सा सरासणु कवउ(?) तं लेप्पिणु दुज्जोहणु आथउ (?) पभणइ भिच्च थक्कहो म भज्जहो । एक्कहो जि रिउ-संदणहो पुट्ठि देत रणे कि ण लज्ज हो ।। (मंजरी) खत्तियाहं तं कुल-धणु जं पहरिज्जइ । जसु जएण सुर-बहु मरणेण लइज्जइ । सामिय-सम्माण-दाण-रिणहो एह अवसरु सीसई विक्किणहो ओसरेवि लहेसहु कवण गइ को महु जीवंतहो परिहवइ पेक्खंतु सुरासुर गयण--वहे लायमि सर-धोणि पत्थ-रहे पाडमि धय-ट्टि पवंगमहो सहुं गरुडे चिधु तिविकमहो भंजमि गंडीउ धगंजयहो सउरिहे सारंगु रणुज्जयहो दोमइहे करमि बिहव तणउं भाणुवइहे घरे बद्धावणउं १० Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० रिट्ठणेमिचरिउ गंधारिहे देमि अणंत दिहि जय-लच्छि समप्पमि कउरवहं कोतिहे वडूढारमि सोय-सिहि दावमि जम-पट्टणु पंडवहं घत्ता एम भणेवि णराहिवइ धणु-लोल-ललाविय-जीहहं । धाइउ णर-णारायणहूं __णं एक्कु हत्थि विहिं सोहहं ॥ १४ [९] (मात्रा) एत्थु अवसरे रिठ्ठ-णिठ्ठवणु कंसासुर-पलय-करु वासुएउ दक्खवइ पत्थहो । कुरु-णाहु समावडिउ एक्कु मूलु सव्वहो अणत्थहो । (मंजरी) 'एण-वि विसु दिण्णु भीमहो जउहरु वालियउं । महिय-अद्ध जूय-च्छलेण उहालियउं ॥ एहु अंकुरु भारह-तरुवरहो एहु कारणु दाइय-मच्छरहो एहु दणु दोमइ केस-ग्गहहो वणवासहो अरणिहे गोग्गहहो तं एण जे संधि-कज्जु ण किउ एण जे समरंगणु आढविउ सरि-सुय-भयवनहं एहु जे खउ माराविउ णंदणु एण तउ एहु दुण्णय-दुज्जस-कुसुम-सहो( ) एहु फलु अवराह-महा-दुमहो १० कलिरुक्खहो मूल-जालु खणहो को काल-खेउ लहु आहणहो भडु भणइ भडारा महुमहण एहु दुम्मइ समर-भरुवण चुक्कइ एत्तडेण अ-मारियउ जं भीमें थुत्थुक्कारियउ घत्ता पूरिउ देवयत्तु गरेण दिज्जइ णिय-संखु अणते । गं तिहुवणु उवसघरेवि विहिं वयणेहिं हसिउ कयंते ॥ १४ Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बासहिमो संधि [१०] (मात्रा) पलय-घंघलु दिण्ण-रण-तूरु । घण-घोस-समुद्द-रउ णारसीह-ओरालि-भीमणु । हर-हास-सहास-समु दस-दिसा-विसटुंत-णीसणु ॥ (मंजरी) सुरवरेहिं तो दुंदुहि दिण्ण णहंगणे । भिडिय पत्थ-दुज्जोहण वेवि रणंगणे ।। ते वे-वि पंडु-धयरट्ठ-सुय णग्गोह-रोह-पारोह-भुय सोवण्ण-पवंग-भुवंग-धय सुर-वहु-कडक्ख-विक्खेव-हय स-धणुद्धर दुद्धर दुव्विसह तुरमाण-तुरंगम-गमिय-रह मणि-कुंडल-मंडिय-गंडयल रण-रामालिंगिय-बच्छयल दोमइ-भाणुवइ-लद्ध पसर भुयइंद-भयंकर-भूरि-सर कंपाविय-सायर-स-घर-घर परिचिंतिउ मणे णारायणेण होएवउ केण-वि कारणेण कुरु कासु-वि वलेण परिप्फुरइ अवरेण पयारेण वित्तुरइ (?) तो माण-गइंदारोहणेण पच्चारिउ णरु दुजोहणेण घत्ता देवेहि दिण्णइ जाई तउ लइ ताई पत्थ दिव्वत्थई । दुक्खई अणवेल्लियई जिह जा सव्वई करइ(? मि) णिरत्थई । १५ [११] (मात्रा) तुहुं विहंदलि वे-वि वलयाइ रूवेण महिलामएण महिल-मज्झे-णच्चंतु सोहहि । गोवीहिं य विग्गोवियउ णंद-गोव-गोहणइ रक्खहि ।। Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्ठणेमिचरिउ (मंजरी) अक्खु संढ गोवालेहिं कहि महि भुत्तिय । कइयवेहिं किं लब्भइ पर-कुलउत्तिय ॥ स-कसाएं कुरु-परमेसरेण अक्कोसेवि स-सर-धणु-धरेण तिहिं णरु वाणरु वारहेहि हउ णारायणु णवहिं णिरत्थु कउ णाराय-चउक्के चउ तुरय विहि वे-वि णिवाइय पाण-गय छहि अहिं विद्ध कइद्ध एण गय ते-विणिरत्थ खणद्धएण पुणु मुक्त च उद्दह पवर सर गय ते-वि कुभिच्च व णिप्पसर १० पुणु वीस विसज्जिय विहल गय आराहण रहियह मंत-पय हरि हसिउ ल्हसिउ गंडीव-धर कइयहु वि ण गय अकयस्थ सर राहाहवे खंडवे सुर-समरे तब-तालुय-वम्म-वहावसरे घत्ता जो जर गोग्गहे लद्ध पर भययत्त-तिगत्त-महाहवे । पेक्खमि तासु विणासु हउं उप्पण्णु महाहउ माहवे(?) :: १४ [१२] (मात्रा) किं ण करयले स-सरु गंडोउ किं तोणा-जुयलु ण-वि किण्ण हत्थ किं गुणु ण भल्लउ । किं पवर तुरंग ण-वि किं ण सूउ किं रहु ण भलउ ।। (मंजरी) कि-ण पत्थु तुहूं किं ण उ हउं णारायणु । कुरुहे जेण णउ लग्गइ एक्कु-वि पहरणु ॥ पणवेप्पिणु पंडु-पुत्तु चव जस-हाणि केम महु संभवइ णेयारु जासु तुहुं महुमहणु दुज्जोहणु तासु कवणु गहणु Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जासठिमो संधि एत्तडिय वार चितंतु थिउ कि वंभहो रुदहो दिणयरहो किं अवरे केण-वि दिण्णु वरु किं दइवे लोह-पिडु घडिउ मई एवहि णवर वियप्पियउ महिलए जे होवि आढविउ रणु कहो वलेण एण संगामु किउ किं धणयहो जमहो पुरंदरहो किं तुहुँ पसण्णु सारंग-धरु १० कि वज्ज-खंडु रहवरे चडिउ जिह दोणे कबउ समष्पियन कहि मिगु कहिं विसइ सोह-भवणु घत्ता तउ पेक्खंतहो महुमहण कुरु देहावरणु जे दामि । तरु-कोडरेहिं भुवंग जिह भुय दंडेहिं सरई पइसारमि ।। १४ [१३] (मात्रा) हरि णवेप्पणु पंडु-पुत्तेण वाणासणि पविय हय तुरंग जोत्तारु बिद्धउ । रह खंडिउ छिण्णु धणु थरहरंतु पाडिउ मह द्वउ ।। (मंजरो) खुडिउ छत्तु महिमंडले-वि थिउ अ-सहाइउ । दंड-हीणु जिह कुरुवइ तिह पच्छाइउ ।। दुज्जोहण-मण-संताव-कर दसमिहि अंगुलियहिं गमिय सर णं केवइ-सूइहि भमर गय गं घर-जुवइहि सहुं वीर सय ण रवियर अवर-दिसा-मुहेहि वण-दर-फुलिंग णं गिरि-मुहेहि विसहर भवणेहिं अप्पणेहि तिह सर पइट्ठ णह-दप्पणेहि णं उद्ध-वाहु रिसि तउ करइ पच्छाउहुं पउ पउ ओसरइ १० कहई असेसहो सुरशणहो हर अणहियारि तब-गंदणहो विणु कज्जे कह विण मारियउ सूइउ णहेहि पइसारियउ घत्ता के एकल्लउ सर-गियरु अण्णु-शि जो परु संतावइ । छिद-पडिच्छउ विद्वणउ णह-सम पीइ विहावइ ॥ १ Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिट्टणेमिचारच [१४] (मात्रा) भग्गु कुरुवइ भग्गु कुरु-सेण्णु विहडाविय हस्थि-हड भिण्णु बहु पंचालि-कंतेण । गंडीउ विष्फारियउं पंचयण्णु पूरिउ अर्णतेण ।। (मंजरी) धण-रवेण हरि-संख-रवेण रउद्देणं । रसिउ गाई वड्ढतए महेण समुहेणं ॥ ५ विहि सद्देहि वहिरिउ कुरुत्र-वलु णं कण्णहो भिण्णु कण्ण-जुयलु किउ कंपिउ कंपिउ सल्लु मणे सलु सललु जेम उड्डविउ खणे तो दुण्णय-सलिल-महहहहो धणु हत्थहो पडिउ जयहहहो णिस्थामिउ आसा-थामु हुए भूरीसउ रवेण जे णाई मुउ विससेणु णाई घारिउ विसेण गं पडिउ वज्जु धणुव-मिसेण १०, भय जाय परोप्परु कुरु-जणहो । पेक्खंतहो अवस्थ दुज्जोहणहो अज्जुणु ण आउ आय उ मरणु कहिं णासहुं पइसहुँ कहो सरणु एक्कु जे तिहुयणु उवसंघरइ विहिं कहिउ के-वि किं उठवरउ घत्ता धुउ मरिएवउ कउरवेहिं धयरट्ठहो सिह भंजेवी । णरहो पहावे पंडवेहि महि सयल सई भुंजेवी ।। इय रिगेनिवरिए धाइयासिय-सयंभुएव-कर बासट्ठिमो इमो सग्गो॥ Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेसहिमो संधि कुरुव-णराहिवे भग्गए गंडीव-ललोविय-जीहेण । दिछु जयदह-हरिणउ रण-कारणे अन्जुण-सीहेण ॥ १ [१] (दुवई) णिय-गब्भरूव-विओइयउ करि-व जूह-विच्छोइयउ । पडिगय-वह-लालस-मणउ भमइ भग्ग-तरु वारणउ ॥ १ जर-णरायणाहिं पइसंतेहिं रह-चक्क-चिक्कारु करतेहिं फुरहुरंत-तुरमाण-तुरंगेहि चिंध-बलगगह गरुड-पवंगेहि णिय-कंवुव-वर-धणु-टंकारेहि वहिरिउ सयलु भुअणु फुक्कारे हि पहु-सम्माण-दाण-रिण-घत्था रिक्ख-समप्पह पहरण-हत्था ४ रहसुद्धाइय अट्ठ महारह भूरीसव-किव-कण-जयदह सल-विससेण-सल्ल-गुरुणंदण गिरिवर-गरुओवाहिय-संदण अज्जुण थाहि थाहि कहिं गम्मइ एवहि समर-महापिडु रम्मइ ८ । जिह भुव-दंड भिण्ण कुरु-रायहो तिह उरु ओड्डहि सर-संधायहो पत्ता देवि महारण-तूरह अट्ठहि-मि करेप्पिणु करयलु । वेढिउ खंडव-डामरु णं दिस-गयवरेहि महि-मंडलु ॥१०. [२] (दुवई) उज्जोइय-समवरउ । तवइ धणंजय-दिणयरउ । विडाविय-रिउ-जलहरउ सर-किरणोह-भयंकरउ रि-५ Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिटणेमिचरिउ तो तिहिं भल्लेहि सव्वायामें विद्ध विरुद्धे आसत्थामें तेहत्तरिहि णिहउ महुसूयणु एक्के कणय-महाकइ-केयणु चरहिं तुरंगम कह-वि ण घाइय तेण-वि तहो छम्मग्गण लाइय ४ छव्विससेणहो बारह कण्णहो भूरीसवहो तिण्णि छ विगण्णहो सम्ब-पत्थ-पत्थिव-पडिमल्लहो सउ अट्ठोत्तरु लाइय सल्लहो भूरीसवेण णिहउ तिहि वाणेहि कण्णे वारह परिसंखाणेहि पंचहिं पंचाहिव-दायाएं तेहत्तरिहि जयदह-राएं दसहि किवेण णवहि मदेसे सठिहिं गुरु-सुएण सविसेसे घत्ता वीसह विलम-खुरुप्पेहि आउंखिउ देवइ-णंदणु । मलय-महागिरि-मत्थए णं कमण-फणिदे चंदणु ॥ १ दुवई वणयर-वाह-णिवद्ध-कमउ दस-गुण-वद्धिय-विक्कमउ । आयामिरा- जूहाहिवइ वियरइ णरहो णराहिवइ ।। दसहि कण्णु तिहि कण्णहो गंदणु तिहि भूरीसउ कंचण-संदणु किउ सर-सयहो चउत्थे भाएं सिंधउ सएण पडु दायाएं। गुरु-सुरण ओसरिउ जगहणु भूरीसवेण पुरंदर णंदणु सयल-वि ते गंडोव-विहत्थे मएण सएं विणिवारिय पत्थे धाइउ सल्लु हुवासण-वीयए धय-धूवए कंचणसय-मीय ए सिंघउ सूयरेण सोवण्णे हत्थे कक्खकिय-चिंधए कण्णे बसहु किवेण मोरु विससेणे' हरिणंगूल हो णिग्गुण-थाणे घत्ता हरि चामोयर-गारुडेण णरु वाणरेण सोवण्णेण । एक रहेण वियंभइ सर-णियरे अगाणेय-गणेण ॥ ९ Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेसठिमो संधि १ (दुवई) लक्खई जेण परजिज यई कियई मडाफर-वज्जियई। तहो दह-हरिणाहय-करिहे धुर धरंति कउ केसरिहे ॥ मुहु मुहु पंचयण्णु ओरंजइ मुहु मुहु गुणु गंडोवहो रुंजइ मुहु मुहु पंचयण्णु जगु वहिरइ मुहु मुहु गुणु गंडीवहो वियरइ मुहु मुहु पंचयण्णु भेसावइ मुहु मुहु गुणु गंडीवहो तावइ एम महाहउ जाउ भयंकर वद्धइ कुरु-पर-गरह परोप्परु धाइउ ताम दोणु दुप्पेच्छह उपरि सोमय-सिंजय-मच्छह कइकय-पंडु-पुत्त-पंचालह अबसेसह-मि महा-महिपालह जाउ अजायसत्त-किविकंतह संगरु वग्धदंत-सिणिपुत्तहं भीमालंबुस-उल-विगणहै। धाइय अण्ण रणंगणे अण्णहं ४ घत्ता माणियई जुज्झई पंडव-कउरव-सामंतहं । जायई णिम्मज्जायइ' गंजमहं परोप्परु-खंतह ॥ [५] (दुबई) करिणी-विरह-विसंठुलई जस-विसकंदुकंठुलई। एकमेक-वहणाउलई रण-वणे भिडियई करि-कुलइ ॥ १ तो तव-सुएण णवहिणाराएहि तच्छिउ कुरु-गुरु णवहिजे धाएहिं सइ-संजमिअक्खय-तोणीरें दोणे सधर-धराधर-धीरे पंचवीस सर सुक्क खणंतरे . पडिवउ वीसहि विद्ध थणंतरे ४ पंडव-णाहु महावइ पाविउ सुर-णिहाउ संदेहे चडाविउ वणिय तुरंगम सारहि ताडिउ करहरभाणु महाधउ पाडिउ. विणि वार वाणासणु खंडिउ णिग्गुण दुक्कलत्तु जिह छडिउ Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ रिटणेमिचरित पडिवउ धाइउ वाण-सहासेहि लइ लइ लइउ लइउ तव-णंदण हाहाकारु समुठिउ पासेहि पंडव- लोउ परिट्ठिउ दुम्मणु ८ घत्ता ताम विओयर-जेठेण आसत्थामहो वप्पेण सोवण्ण सत्ति रणे घत्तिय । भत्थे एंति विहत्तिय ॥ (दुवई) जं तव-तणउ णिरत्थु किउ असरु सरासणु लेवि थिउ । पडिभत्थु विसज्जियां दोणहो चाउ विहंजियउ॥ १ मुक्कइ एम विहि-मि वंभत्थई सुका-पयाइव गयइ कियस्थइ बाणासणइ विहि-मि रणे छिण्णई विहि-मि सरीरावरणई भिण्णई धाइय वे-वि गयागणि-करयल उक्खय-खंभ णाइ वर मयगल ४ विहि-मि परोप्परु कह-व ण मारिउ तो सहएवें पहु ओसारिउ णियय-महारहेण णिवाहिउ संदणु दुम्मुहेश तो वाहित वलु वलु राउ वृत्त कहिं गम्मई सुर पेक्वंतु परोप्परु हम्मइ एम भणेवि सट्टि सर पेसिय महि-सुएण दसहि जीसेसिय ८ अवरे धउ अवरे धणु घट्टिउ अवरे सारहि-सिरु णिग्घट्टिउ पत्ता अवरेहिं चउहिं तुरंगम अवरेण महारहु खंडिउ । अच्छउ पडिपहरेवउ जहिं रणु सो देसु वि छंडिउ ॥ १० (दुवई) रह खत्तियए विखवत्तिएण चडिउ णिरामंत्तहो तणठं । सो सहएवं णिविठ वइवस-पट्टणु पट्ठविउ ॥ १ दुम्मुहु झंप देवि गउ णिय-वलु ण किउ जेण किउ तेण वि कलयल Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेसट्ठियो संधि ताम विकण्णु समच्छरु घाइउ उले अंतरे वाहिर संदणु - मही- सुयहो परक्कमु वुझेवि तहि अवसरे रण - रामासन्तहो रहु विद्धसिउछिष्णु सरासणु वग्धदंतु वग्धाजिण - संदणु धाइउ तो सच्चइहे समच्छरु केम व लद्धावसरेण उरे कपरि खुरुप्पेण वदते विणिवाइयए मगहाहवेण मउक्कडेहि तो सच्चइ - णाराय - वियारिउ तहि अवसरे ओवाहिय रहवरु भाइ धट्ठके वीरहणहो वीराहिवेण सरासणु छिज्जइ गाउ वीराहिउ वइत्रस - पट्टणु धाइ दोमइ - सुयहं विरुद्धउ पंच-वि पंचहि पंचहि कंडेहि तेहि मितिहि तिहि विद्धु थणंतरे .. रहू केण - विधउ केण वि जिह पर कलत्तु (१) वलनंतर सरु सह एव-महद्धए लाइउ जाउ महंतु विहि-मि कडवंदणु भग्गु विकण्णु ण सक्कउ जुज्झेवि खेमपुति तिहि विहसंतहो पाडिउ सीसु णाई थेरास धणु- कश्यलु मगहाहिब-णंदणु णं झस - रासि समुह सणिच्छरु घत्ता सो वग्घदंतु सिणि- पुत्तेण । विझवि रेवा-सोतेण ॥ [ ८ ] ( दुबई ) सिणि-णंदणे पोमाइयए । परिवेढाविय गय - धडेहि ॥ गय- साह असेसु ओसारिउ संधिय-सरु आयडूढिय - धणुधरु णाई महागहु गहवइ - गहणहो वेवेण उरे सत्तिए भिज्जइ ताम दोणु परवल - दलवट्टणु णं इंदियहं महारिस कुद्धउ वसह णाई हय हाणिय- दंडेहि सोमयत्तु थिउ कुरु-गुरु-अंतरे १० घत्ता वाणासणु केण - वि ताडिन । स-मउडु सिरु केण वि पाडिउ ।। ९ ४ ८ ६९ Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० रिट्ठणेमिचरिउ. [९] (दुवई) पंचहिं तिहिं धाइउ एक्कु जणु ताम णिसायरु कुविय-मणु । धाइउ णिय-रहवरे चडिउ अज्जुण-जेट्ठह अभिडिउ । भिडिय भडुब्भड भीमालंवुस मत्त महागय णाई णिरंकुस विष्णि-वि वावरंति विण्णाणेहिं रुपिय-पुंख-सिलासिय-वाणेहि णवहिं विओयरेण धारायरु तेण-वि पंचहि तव-सुय-भायरु एम परोप्परु पिहिउ पिसक्केहिं दूसह-दिणयर-कर-लल्लक्केहि आरिससिगि समरे संतावइ पंडु-पुत्तु केत्तहे-वि ण पावइ जुज्झिउ ताम जाम मुच्छाविउ कुरुव-वलहो रोमंचु चडाचिउ णिसियरेण पंडव-परिपालहं हयई चयारि सयई पायालहं चेयण-भाउ लहेवि विओयरु उठिउ णर-णरवइ-एक्कोयरु घत्ता उम्भड-भिडि-भयंकर आयंविर-लोयणु कुद्धउ । दिठु भीमु कुरु-लोएणणं सुएवि कयंतु विउद्धउ ॥ १० [१०] (दुवई) कोवारुण-किरणावरिउ पहरण-वित्रालंकरिउ । सर-घउ-तेय-भयंकरउ उइउ विओयर-दिणयरउ १ तो रयणीयरेण आसोइउ वलु मारुइ कहिं जाहि अ-घाइट। अज्जु मित्त लइ लइ उरे दुक्कहि मइ जिते जीवंतु ण चुक्कहि तो वरि णासु णासु मिल भायह अंगु ण सक्कहि ओड्डेवि धायहं ४ जइ भुक्खिएण कहि वि मई भुजहि तो धुउ एक्कु-वि कवलु ण पुज्जहि Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम संधि तुहुं सो भीमु हिडिव - पियारउ तुहुं सो भीमु भीम - किम्मीरहो तुहुं सो भीमु जडासुर-धायणु तुहुं सो दूसासणु मारेसाह तुहुं सो रक्खस- डामरु णवर महुत्तणए x x धणु-ण-संधुक्कियउ धय- धूमावलि - भीसावणड त्रिद्धु अलंबुसु एक्के वाणें खणे राहुखणे मत्त - - महाकरि खणे आरण्ण - महिसु खणे तरुत्ररू खणे मयारि सुखणंतरे सायरु चितेवि पंडव-कुल- पायारे' णिसियर - णाहहो णट्ठउ मायउ कह कह व सो मरणु ण पत्तउ ताम स-पहरणु अग्गए ढुक्कड प्रभणिउ आरिससिंग रणे कुरु- पंडब णियंताह कुरुवइ-तव-सुय-किंकरहं जाउ महाहर दुकाएं टुहुं सो भीमु वगासुर - मारउ जीविउ जे णिउ मड्ड सरीरहो तुहुं सो कीया कुल-विणिवायणु तुहुं कुरु - णाहहो मउडु मलेसहि घत्ता उब्भडु भज्जद्दि भड - वाएण । मुच्छाविउ एक्के घाएण ॥ त्त गयउ ण केण वि पायउ दोणहो पासु पइछु तुरंत णं आयासहो पडिउ घुडुक्कर [ ११ ] (दुबई) वाण - फुलिंगा लुंखियउ । पज्जलियउ भीम - हुवासउ || णवर वियंभिउ विज्जा-पाणे' खणे सद्दूल रिक्खु खणे केसरि खणे कुल-पव्वउ खणे वइसारु ४ खणे ससहरू खणे होइ दिवायरु विद्ध महाउहेण तट्ठारे घन्ता बलु बलु कहिं एवहिं गम्मइ । विहि एक्कु रणंगणे हम्मइ ॥ [ ४२ ] ( दुबई ) माया - रूव भयंकरह । आरिसलिंग - घुडुक्काहूँ || -- ७१ ८ १० १ ८ १ Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ तो खयकाल - दूय-पडिविंवे' सो-वि अल्बुसेण अ-पमाणे हि जं जं करइ रूड भीभंगड तो पंडव-पत्थिवेहि पयन्तें वाण-सएण दुमय-दायाएं राय - चउत्थए भीमो णंदणेण लल्लक्के हिं तेण वि ते जमदंड - समाणेहिं विहिं सट्ठ सव्वेहिं विद्धु पडोव अरुणोकिउ रयणीयरु घन्ता दीहरणाराय - सहासेहि । णं फग्गुणु फुल्ल - पलासेहि ॥ afts असेसेहिं एक्कु जणु सयल-बिसरेहिं गया उसेण तो फुरंत - णक्खत्त-समाणेहिं भीमहो पंचवीस सर पेसिय तत्र - सुय-पाय-पओरुह - सेव हो भीम - सुयहो इस पंच विसब्जिय पुणु पंचहि सत्तहिं विग्भाडि उत्तम - वेग्गु करेपिणु रहवरे धुरहिं धुरग्गु देवि स - विसेसें लग्गु भमाडण मुयहं घुडुक्कर बीसहिं सरेहिं चिदु हइडिवें चित्तभाणु- सम-प-वाणेहि तं तं फुसइ रक्खु रोसंग उ मिलेवि असेसेहि लइड अखते वहिं विओयरेण पिहि-काएं पंचमेण पंचहि सर- लट्ठिहिं पंचेहि सत्तरिहिं पिसक्के हिं ताडिय पंचहि पंचहि वाणेहिं रिट्ठणेमि चरि [१३] ( दुबई ) तो-वि तासु ण-वि फुट्ट मणु । छाइय गिरि जिह णव - पाउसेण ॥ १ विज जुहिहिल सट्ठिहिं वाणेहि तिहतरि णउलंगे णिवेसिय लाइय पंच वाण सह एव हो तेण वि ते वारहहिं परज्जिय छिण्णु महावउ सारहि पाडिउ घाइड भीमसेणु तहिं अवसरे घरि अलंबु वाहु - पएसें जाम वइरि जोवेण त्रिमुक्कड १० ४ ८. Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३ रितुणेमिचरिउ घत्ता पुणु धरहिं अप्फालेवि मेलिउ णिसियरु भयगारउ । कुरवेहि दिठु असेसेहिं णं णहहो पडिउ अंगारउ ।। ९ (१४) दुवई दिण्णई तूरई पंडु-वले सुर परिओसिय गयणयले । थिउ कुरु-साहणु भग्ग-मणु तुहिण-दछु णं कमल-वणु।। १ तो संताविय-रिउ-णिउरुवहो धाइउ कलस-केउ हइडिंकहो एंतु पडिच्छिउ गुरु जुज्जहाणे विद्धु थणंतरे एक्के वाणे पडिवा पंचवीस सर-पेसिय किवि-कतेण णवेहिं णीसेसिय पङिबउ वजसारु सुमसारिउ पंचेहिं देहावरणु वियारिउ पंचासेहिं सिणि-सुरण स.तोणे वाण-सएण समाहउ दोणे जाउ णिरुज्जमु रणु परिसेसिउ ताम जुहिट्ठिलेण वलु पेसिउ ८ धावहो जाम ण खयहो पबच्चइ गुरु-दंत तरे बट्टइ सच्चइ धाइय सोमय-सिंजय राणा पंडव-कइकय-मच्छ-पहाणा धत्ता एहए अवसरे पडिवण्णए जिह णइ-णिवह समुदेण रणभर-धुरे जेहिं समिच्छय । ते दोणे एंत पडिच्छिय ॥ ११ Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिमि संधि एक्क - महारहु आइरिउ तो-वि ण तीरइ घरेविं रणे दुसह दो जाउ तर्हि अवसरे विवइ वलइ घाइ रहु रुंभइ कक्कय पंचवीस रणे धाइय सोमयसिंजय-मच्छ गरिंदहं एम करेवि संगामु भयंकरु वूह-वारे थिउ स वलु स वाहणु ताम समुद्दु जेम गज्जतउ अज्जुण. धणु-गुण-सण सुव्वइ खणे खणे संखु जणद्दणु मंछुडु भाइ समत्तु (१५) दुवई णरवर-सएहिं समोत्यरिउ । इरिहि जिह हरिणेंदु वणे || णं रवि जेट्टहो केरए वासरे जो दुक्कइ सो सरेहिं णिसुंभइ अवर णराहिव बहु विणिवाइय सउ मारियउ सरह गईं दह कलस-केउ गउ निय-थानंतरु जाउ णिरुज्जमु पंडव - साहणु सुबइ पंचयण्णु वज्जत उ णिज्झुणि देवयच ण विउव्वद घत्ता सई भुएहिं लेवि आऊरइ । -दणु हियर विसूरइ || ७४ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय सयंभूएव कए तिसहिमो संधि समनो ॥ ४ ११ Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________