________________
१०९
चउतालीसमो संधि कड्ढिय-कोवंड-महाउहहो तव-णंदणु भिडिउ सुआउहहो णव सर विमुक्क पिहिवीसरेण सत्तासुग कुरुवइ-किंकरेण तणु-ताणु णरिंदहो कप्परिउ सोवण्ण-महामणि-विप्फुरिउ स-कसाएं राएं तव-सुरण ताडिउ वराह-कण्णासुएण पंडवेण विसंज्जिउ वाण-गणु वण्णासा-तणयहो छिण्णु धणु
घत्ता
णिढविय तुरंग पाडिउ सारहि छिण्णु धणु । अबरें उरु भिण्णु गउ तहिं जेत्तहिं कुरुव-पहु ॥
[] 'एत्तहे किव-चेइयाण भिडिय अवरोप्पर सरेहि समावडिय अवरोप्पर चिंधई ताडियई अवरोप्पर छत्तइं पाडियइं अवरोप्पर छिण्णइं धणुवरइं अवरोप्वरु-वि लयई चामरई अवरोप्परु रह-जोत्तार हय अवरोप्पर पाडिय वर तुरय ४ अवरोप्परु पाडिय कणय रह अवरोप्परु पाविय सर-णिवह 'पउरुसई विहि मि परिवढियई फर लइय किवाणई कड्ढियई परिभवणुप्पवणोरग्गणेहिं अप्फोडण-खेलण-लग्गणेहिं केसारे-वर-रउरव-णी लणेहि परिभमियई करणेहिं भीसगेहिं
घत्ता सम-घाएं वे-वि मुच्छ-विहलीहोवि थिय । णिय-रहेहिं थवेवि सउवल-पत्थेहिं कहि-मि णिय ॥ . ९
[१०] तो रण-रस-रहस-समोवडिय भूरीसव-घटकेउ भिडिय . सर णउ-वि विसज्जिय चेइवेण . णं भुवणहो किरण दिवायरेण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org