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________________ ११० रिट्ठणेमिचरिउ तेण-वि सोराएं जुज्झु जिउ कह-कह-वि ण घाइउ वि-रहु किउ अहिमण्णुहे ताम विरुद्ध-मण घाइय कुमार-वर तिणि जण ४ दुम्मरिसणु चित्तसेणु पवरु अवगण्णिय रिउ-वेयण अवरु ते तिण्णि-वि तणु-ताणावरिय तिण्णि-वि कुंडलेहिं अलंकरिय तिण्णि-वि सोवण्णेहिं रहवरेहिं विज्जिज्जमाण-वर-चामरेहि तिण्णि-वि तहिं छत्तेहि पंडुरेहिं तिण्णि-वि तुरएहिं दप्पुद्धरेहि ८ धत्ता ते पत्थ-सुरण कुरुवइ-भायर वि-रह किय । णं कुसुमसरेण तिण्णि-वि लोयालोय जिय ॥ [११] किर भीमहो खंभ महा-पिसुणे ण समाहय तेण तेण सिसुणे गंगेएं ताम पडिक्स्खलिउ सरहद्द स-रोसु ताम बलिउ रणु जाउ महंत-महारहहुं दोण्ह-वि पुत्तरूय-पियामह हुं कणियार-तालवर-केयणहु दुवियत्तणु-ताणुब्भेयण तो समर-सहासेहिं दुज्जएण णिय-सारहि वुत्तु धणंजएण रहु वाहि वाहि जहिं गंग-सुउ णग्गोह-पवर-पारोह-भुउ दुज्जोहण-पेसिय-राणएहिं परिगरिउ तिगत-पहाणरहिं णिसुणेवि तं संदणु दिण्णु तहिं सउहद्द-पियामह भिडिय जहिं ८ पत्ता मण-गमण-रहेहिं उब्भिय-धएहि धणुधरेहि । सवडम्मुहु पत्थु घरिउ एंतु जालंधरेहि ॥ [१२] सारवेहि दिण्ण-वाइत्तएहि वेढिउ वीभच्छु तिगत्तरहि णं वण-दउ वणह समावडिउ णं गरुडु भुयंगह अभिडिउ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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