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चउतालीसमो संधि
केसरि वर-करिहि वियंभियउ आहउ रउह पारंभियउ छिंदइ धय छत्तई चामरई सीसक्कइ कवयई घणुवरई आहरणई वन्थई सेहरई रह-रहिय-रहंगई-जुय-सरई धर-कुवर सारहि वर-तुरय कर-चरण-सिरई भुय-दंड हय कप्पियई कुंभि-कुमत्थलई सावक्खर-पक्स्वर-कंबलई णक्खत्तमाल घंटा-जुयई कर-कण्ण-दंत-गत्तइ अयई
घत्ता
उवयरणेहिं एहिं सव्वेहि समरु अलंकरिउ । लक्खिज्जइ णाई जमहो सुअंतहो पत्थरिउ ॥
_ [१३] तो तहि वत्तीसहि रहवरेहि गंधव्व-णयर-सुमणोहरेहि चामीयर-मंडण-मंडिरहि
सुरगिरि-सिहरेहि-व हिंडिएहि णरु वेढिउ कोव-चलग्गएहि णं केसरि मत्त-महा-गएहि वत्तीस वि-सट्ठिहि सर-विहय विहुणंत-सरीरई कहि-मि गय परिवारिउ अज्जुणु राणएहि जायव-जण-पमुह-पहाणएहि. परिहरेवि जयबह-कुरुव-पहु गंगेयहो भिडिउ सिहंङि-रहु घणु पाडिउ दोमइ-भायरहो गिर जिग्गय पंडु-सुएसरहो किर पई मारेवउ गंग-सुउ समरंगणे णवर णिरत्थु हुउ
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घत्ता त णिसुणेवि सिहंडि घाइउ गंगा-गंदणहो । थिउ अग्गए सल्लु मग्गु णिरुंधेवि संदणहो ।।
J. after 8 b, reads मय इंद णाणा गयघडई.
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