________________
११२
परिखलिउ महा-रहु णिक्किवेण तो दुमय- सुरण वि दारुणेण
कुरु-वंस-नित्रद्ध-फलट्ठिलेण
कीया - कुल-काल- कयंतरण थिउ चित्तसेणु सवडम्मुहउ मद्दाहिउ जिणेवि स-संदणेण णाराउ खुरेण णिवारियउ उले हिउ कडूढियउ
तहिं काले सिडि अवहेरि करेवि
घट्टज्जुण- सच्चइ वे-वि जण विणि विहणंति कुरु- साहणई विंदाणु-विंद तहि ताव थिय उच्छल्लिय चित्त दुज्जोहणहो त णिसुणेवि वाहिय-वाहण पडवण्णु महाहउ दुव्विसहु एत व दिवायर अत्थमिउ पइसरेवि मज्झे अनिवारियई
Jain Education International
[१४]
अभ्गेउ मुकु मदाहिंवेण जलणत्थु णिवारिउ वारुणेण आयामिउ सल्लु जुहिट्ठिलेण
किउ सिंघउ विरहु विओयरेण
रिट्टणेमिचरिउ
हय- रहवरु भग्गु परम्मुहउ संतणउ विद्धु तव णंदणेण रहु खंडिउ कह व ण मारियउ कुरुवहु - परिओसु पवडूढियउ
धत्ता
थिउ गंगेयहो सम्मुहउ | उरणे सो-वि परम्मुहउ ||
[१५]
णं जलण-पत्रण वण- डहण-मण रह- तुरय- जोह-गय-वाहण अवरोप्पर आहव- केलि किय विणिवारहो मारहो आह हो आभिट्ट पडवा साहणई हय - खुरहिं समुट्ठिउ रय - निवहु तम-नियरु निरंतरु परिभमिंउ रय- रयणेहिं णं ओसारियइ
For Private & Personal Use Only
४
www.jainelibrary.org