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पणतीसमो संधि
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तं णिसुणेवि मगहाहिवेण अज्जु-ब कल्ले-व तव करमि
घत्ता
धीरिय घीय माए कि रोवहि । जेंव वइरि सिज्जहं सोवहिं ॥
१
विणिवाइय जेहिं विसुद्ध-वंस ते स-बल-स-वाहण णंद-गोत्र दारावइ जइ कल्लइ ण लेमि अवलोइय मंति स-मच्छरेण कइयहु-मि ण पाविय एह वत्त गरवइ विण्णविउ महत्तरेहिं ते हरि-वल णउ सामण्ण देव . अहिठाणु जासु किउ चासवेण
मुट्ठिय-पलंव-चाणूर-कंस . . णिद्ववेवि ठवेत्रि एक्को व दो व तो जलणे जलंतए झंप देमि . णं रासि-गएण सणिच्छरेण जिह वल-णारायण रिद्धि-पत्त चिंतविय विचित्त-पत्तरेहि दुब्बिसह वलुचर सावलेव मंगामु कवणु सहु केसवेण घत्ता जसु सहाउ सयमेव पुरंदरु । जुज्झेवउ कुसुमेहि मि अ-सुदरु ।।
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चेइ-राउ रणे जेण जिउ तेण समउं वरि संधि किय
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महुसूयणु पूयण-पलय-लीलु जमलज्जुण-दुम-भंजण-सरीरु आसीविस-विसहर-सयण-कारि कालिंदिय-कालिय-काल-वासु सय-बार-णिवारिय-कालजमणु सो केण धरिज्जइ गरवरेण जसु भायर भायरु कामपालु वसुएउ वप्पु वसु-मयणु पुत्तु
5. 4b रामिहो थिएण.
आरुढ-रिट्ठ-णिट्ठवण-सीलु गोवद्ध ण-धर-धरणेक्क-धीरु गय-संख-चक्क-सारंग-धारि चाणूर-कंस-मुट्ठिय-विणासु अवराइय-जीविय-अंत-गमणु जसु दिण्णइ रयणइं सायरेण सयणिज्जउ तिहुयण-सामिसालु अवइण्णु जणद्दणु सो णिरुत्तु
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