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रिट्ठणेमिचरिउ
वुत्तु णाहु णाइत्तएहिं अम्हह होउ विढत्तएण
घत्ता मंछुडु आय रायगह-घट्टणे । मूलहो संसउ वट्टइ पट्टणे ॥
[३]
जइ त्रिहियत्थित्तणु होत राय तो कि वारवइ मुएवि आय जा सायरु सारेवि वासवेण णिम्मविय कुवेरें केसवेण मेलवेवि पंच पुर एक्क-लग्ग अट्ठारह-कुल-कोडी-समग्ग भुजइ समुद्दविजय हो अमेय कामिणि-व वियड्ढहो वसि विहेय ४ वसुरउ जेत्थु जहिं कामपाल जहिं महुमहु णर-सुर-पलय-काल उप्पण्णु भडारउ णेमि जेत्थु को वण्णेवि सक्कइ रिद्धि तेत्थु अवइण्णु मणोहरु जहिं अणंगु किउ जेण कालरांवरहो भंगु
घत्ता
सो जणवउ सा वारवइ जइ णिवसिय दस दिवस तहिं
ते जायव सो संववहारु । तो संसारहो इत्तिउ सारु ॥
८
तं वयणु सुणेवि चक्कवइ-दुहिय जीवंजस पुण्णिम-चंद-मुहिय मुच्छंगय णिवडिय भूमि-भाए सहयरिहि भणंतिहिं उठ्ठि माए सिंचिय हरियंदण-वाहिणीहिं विज्जिय चल-चामर-गाहिणीहि कह-कह-वि समुट्ठिय कंस-पात्त णं मगहाहिवहो महा-सिरत्ति संतेण-वि पई चक्केसरेण वसुमइ-ति-खंड-परमेसरेण णिहि-रयणद्धद्ध-धुर घरेण अमरह-मि रणंगणे दुद्धरेण . संतेण-वि पइं एहिय अवस्थ विहवत्तणु गिरलंकार हत्य संतेण-वि पई पइ-मरणु पत्त . संतेण वि पई जीवंति सत्त
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