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पणतीसमो संधि राय-लच्छि-लंछिय-उरहो रण-धुर-धरण किणकिय-खंघहो। स-बलु स-वाहणु सामरिसु कुरुवइ मिलिउ गपि जरसंघहो ॥ १
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जहिं वंछिय-विग्गहु कुरुव-राउ किव-कण्ण-पियामह-गुरु-सहाउ पइसरइ तित्थु चक्कवइ-दूउ विण्णाण-कला-गुण-सार-भूउ उवविसणु देवि सव्वायरेण परिपुच्छिउ कुरु-परमेसरेण किं कुसलु गरिंदहो तणए गेहे कि साणुराय सिय वसइ देहे किं गंदण आणावसि विहेय किं किंकर परह अइण्ण-मेय किं हय-गय-रह-रण-भर-समत्थ । किं आण-पडीवा वइरि-सस्थ कि मागह-मंडलु णिरुवसग्गु किं कालजमणु केण-वि ण भग्गु किं जायव सयल करति सेव किं पुच्छिउ दुजोहणेण एव
घत्ता वुत्तु णरिंद-महत्तरेण सवह कुसलु अणुझिय-सेकह। एक्कह णवर स-बंधवह अकुसलु वासुऐव-वलएवह ।।
[२] कउ कुसलु कण्ह-सकरिसणाई पडिवखु पिहिमि-परिपालु जाहं कउ कुसलु असेसह जायवह कुद्धउ चक्कवइ-कयंतु जाह सुणु कुरुवइ वइयरु कहउं तुज्झु जिह केसव-चक्केसरहं जुज्झु जवणहो जावण-जाण-जुत्त वारवइहे मज्झे वहु वाणि-पुत्त गय पुरु अम्हारउ भंडु लेवि परमेसरु दीसइ तेहिं एवि मरगय-पत्राल-मुत्ताहलेहि कलहोय-महामगि-कंवलेहि तो राएं अखलिय-सासणेण भासिय-पिय-संभासणेण .. किं तुम्हहं कुसल सरीर-वत्त किं सहल मणोरह सहल जत्त
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