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रिट्ठणेमिचरिउ
दस-सयई गयहं मय-णिग्गमाह एक्केक्कउं लक्खु तुरगमाई पुजिय चामीयर-कोडि कोडि, इयपर)हु सामण्णहुँ परम-कोडि एक्कु-वि पंडवह समाणु जुज्झु अण्णु-वि चक्कवइ सहाउ तुज्झु विण्णि-वि कारणई महत्तराई वलवंतई होति स-उत्तराई
घत्ता तं णिसुणेवि दुज्जोहणेण दिण्ण भेरि पार पयाणउ। परिपूर'तु दियंतरई चालिउ सेण्णु मयरहर-समाणउं ॥ ९
[१५] दुजोहणु मिलिंउ णराहिवासु णं गंगा-वाहु महण्णवासु विज्जाहर-चक्कई चल्लियाई सामंत-वलई मोक्कल्लियाई रह चलिय चक्क-चिक्कार देंत करि-पवर वलाहय-सोह लेत
रमाण तुरंग तरंग-लोल उट्ठिय-विचित्त-वाइत्त-रोल उब्भिय पवणुद्धय-धयवडाह गाहियाउह-णिवह पयह जोह कुरुखेत्तहो ढुक्कीहोंति जाम णारायण-केरउ दूउ ताम संपाइउ णामें लोहजंघु गरुडाणुगमणु मण-पवण-रधु कण्णंतरे कण्णहो कहिय वत्त वइसणए थाहि करे विजय जत्त ८
धत्ता कउ कुरुवइ को चक्कवइ सथल पिहिमि तउत्तणिय स-सायर । पंडु जणेरु कुंति जणणि . पंडव तुज्झ सहोयर भायर ॥
विहसेप्पिणु पभणइ अंगराउ किं एम्वहिं एहउ होइ गाउ एत्तिल्लउ णवर करेमि कज्जु सिरु कुरुहुँ देमि पंडवहुं रज्जु जिउ एम भणेप्पिणु दूउ तेत्थु कुरुवइ-मगहाहिव वे-वि जेथु वोल्लाविय तेण-वि कहिय वत्त पडिवालहो जायव जाम पत्त ___ 16.2a. अज्जु. 3. ज. धि पुणु दुत्ति तित्थु.
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