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________________ पणतीसमो संधि कुरुखेत्ते करेवी जमहो तित्ति जर सिंधु वहेवउ महुमहेण तव - सुरण सल्लु भड-मदणेग घाएवउ गुरु घट्टज्जुगेण तेण वि चंपाहिव रणे गंधारेय त्रिओयरेण गउ एम भणेवि पलट्टि दूउ दाराव णाहो कहिय वत्त जर सिंधु पयाणउं देवि आउ तं णिसुणेवि हय-गय-रह-वरेण्णु रुप्पिणिपइ पूरिय-उ-पंचयण्णु वलएउ वलायावलि - वक्लखु तव-तणउ भीमु णरु णउलु अण्णु अणिरुद्धु संवु सच्चइ अंगु सन्बु सपहरणु सामरिसु स सयंभुव-भूसियउ Jain Education International अम्हारी कउ तुम्हहं परत्ति गंगेउ सिहंडि दुम्मुण भूरीसउ सिणिवइ-णंदणेण भययत्तु जयद्दहु अज्जुणेण घत्ता कुरु-कुमार अहिवण्ण- कुमारें । पु०वे जे (एउ) सज्जिउ सिट्ठारें ॥ [१७] य- विक्कम-वंत - पहाण- भूउ पर केसरि हरि करि विजय जत्त तहो मिलिउ स- साहणु कुरुवराउ सणइ स-रहसु सउरि- सेण्णु घट्टज्जुणु दुमउ सिहंडि अण्णु उत्तरु विराडु मइरासु संखु सहएउ घुडुक्कउ साहिवण्णु विज्जाहर - साहणु पुलइयां गु घत्ता २९ सव्व जणदण-ह- निवद्भउ | स- रहसुस कवउ सव्व सण्णउ ॥ * इय रिट्ठमिचरिए धवलइयासिय सयंमुव कए पणतीसमो परिसग्गो ॥३५॥ For Private & Personal Use Only ४ www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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