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. छत्तीसमो संधि . सरहसु कुरुव-णराहिवइ जं मिलिउ गपि जरसिंघहो । जउ जलु वालुय-वरणु जिह सु-णिवद्रु वि एइ ण वंवहो ॥१॥
[१] अट्ठारह-कुल-कोडिहिं सहिउ अण्णु-वि तित्ययर-परिंग्गहिउ वारवाहि पगुण-गुणग्घविउ कह-कह-वि समुद्दविजउ थविउ संचल्लिउ सरहसु सउरि-वलु णं जगे ण मंतु मयरहर-जलु तो रुप्पिणि-सच्चहाम-सर्हि गंघारि-गोरि-पउमावइहिं सिंवदेवी-देवइ-दोमइहिं रोहिणि-जसोय-पिह रेवइहि आसीस दिण्ण तहो महुमहहो अणिरुद्धहो संवहो वम्महहो वलएकहो णिसढहो सच्चइहे सव्वहो सेण्णहो सेणावइहे तव-तणयहो भीमहो अजुणहो मिच्छहो दुमयहो धट्टज्जुणहो
घत्ता केवल-कारणे केवलिहि जं सिद्धहं सिद्धिहे कारणे । तुम्हह सव्वह णरवइहिं तं मंगल होउ महारणे ॥
[२] आसीस-वयणु तं लहेवि गय दूरुज्जिय रण-वण-मरण-भय जो गंदहो गंदणु पढमयरु णंदाणुउ णंदिणि-णंदयरु दारुउ विण्णाणालंकियउ णारायण-णामेहि अंकियउ सो सारहि वइरि-पुरंजयहो गोविदें दिण्णु धणंजयहो माया-मउ घर हणुवंतु थिउ णं दइवे सच्चमउ जे किउ सुपरिट्ठिय हरि-वल वे-वि तहिं परिरक्खण केसव(?) कोडि जहिं दिवसहिं रण-भूमि परावरिय ण इंद-पडिद-सुरावरिय एक्कहिं पएसे आवासु किउ जलु जोइउ खंघावारु थिउ
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