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छत्तीसमो संधि
घत्ता
तं कुरुखेत्तु णिहालियउ विहि-मि वलहं सद्धालुएणं
दारावइ-पुरि-परिपालेण । णं मुहु णीवाइउ कालेण ॥
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कुरुखेत्तहो वाहिरे सउरि-वलु दडि-झल्लरि-भंभ-मेरि-मुहलु सरसइहे तीरे आवासियउ णं करणु णियंतें पेसियउ उप्पाय जाय चक्कवइ-बले रवि-गहणु पदीसिउ गयणयले रूहिरामिस-रस-वस-चच्चियउ छाया-कवंधु सु-पणच्चियउ महि कंपिय मेहावलि रडिय धय-छत्तेहिं गिद्ध-पंति चडिय सहुं मंतिहिं पिहिमिपाल चवइ दुणिमित्तई एयई मणु तवइ परिचत्त-जयासा-भरण पच्चारिउ णरवइ डिभएण रूसिओसि आसि सिक्खविउ मई हरि-उप्परि आइउ दिट्ठ पई
पत्ता दुज्जय जायव-णाहु रणे सो जोहिउ कवणे' जोहेण । सीसु धुणाविउ देव हउ जिह एंते कत्ता छोहेण ॥
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पहु पभणइ विहुणिय-भुय-जुवलु कहे केत्तिउ वइरिहिं तणउ वलु अक्खइ य मंति परवइ वलिय जे दाहिण ते तेत्तहो मिलिय रयणायर-वासिय आडविय आहीर-लाड-किव-मालविय अवरत्तय आसिय मुरल-भत्र महरगृह पंच कुडुक्क-चव वर-केरल-चोल-पंडि-मलय कुस-सिंधल-जवण-लंक-णिलय वसुएव-सेण्ण(?)-सुय-ससुर जहिं विज्जाहर मिलियाणेय तहिं अहवइ किं वलेण चउग्गुणेण एक्केण पहुच्चइ अजुणेण सुर खंडवे कालंजय गयणे गंधव्व कुरुव-चंदि-ग्गहणे गो-गहे दुग्जोहण-पमुह जिय कउरव कह-कह-वि ण खयहो णिय
3.1b ज. भेरिरवमुहुलु.
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