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पंचचालीसमो संधि
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[१८] भेल्लिउ सीह-णाउ णहे थारवि पभणइ धम्म-पुत्तु उण्णाएविं मई परमोव एसु अखेउ भीम घुडुक्कउ पई रक्खेवउ णरु णारायणे ग पारेशलिउ भलउ रणंगणे केण णिहालिउ महु सिहांडे धट्ठजुणु सच्चइ तिण्णि-वि रक्खणु किं ण पहुच्चइ ४ कुरु-परमेसरेण मोक्कलिउ सरहसु भीमसेणु संचलिउ णं फणि-भक्खणे गरुडु विअउ महणहो मंदरु णाई पयट्टउ अच्छउ ताम गयए पहरेवउ . स-सरु सरासणु अवरु घरेवउ कह-वि कह-वि जं एकहि मिलियउ पर-वलु दिट्ठिए जि णं गिलियउ ८
धत्ता ताम घुडुक्कएण णिय-जणणु दिट्ठ समुहाणणु । मत्त-गइंद-थडे णं पइसंरतु पंचाणणु ॥
खत्तदेउ अहिमण्णु स-णीलउ तिह सउदित्ति मयाहिव-लीलउ ते पय-रक्ख देवि चउ-पासेहिं छहि पभिण्णु मायंग-सहासेहि अ-गणिय-रहेहि तुरंगेहि दुक्कउ तेत्थु जेत्थु हइडिवु घुडुक्कर जीउ महाहउ पेल्लिउ कुरु-वलु पंडव सेण्णे समुट्ठिउ कलयलु ४ पेक्खेवि हीयमाणु आओहणु छाइउ रहवरेण दुज्जोहणु भीमहो भिडिउ रगंगणे घोरहो मत्त-गइंदु व सीह-किसोरहो ताव णिसायरेण रहु वाहिउ विहि-मि णराहिउ कह-व ण साहिउ छब्बीसेहि सरेहि झड देंतउ दोणे विद्ध विओयरु एतउ
८
१९ एतउ
घत्ता
तेण-वि दसहि हउ णिवडिउ णियय-रहे
कुरु-गुरु मुच्छ-विहलंघलु । इंद-महै णाई आखंडलु ॥
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