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रिट्ठणेमिचरिड
[२०] छाइय कुरुव-राय-गुरु-गंदण मंदर-मेरु-समप्पह-सौंदण भिडिय वे-वि तहि मज्झिम-पत्थहो भीमहो भीम-गयासणि-हत्यहो रहु परिहरिउ हिडिवा-कंते गुरु-सुएण उरे विद्ध तुरते तहि अवसरे चंदंकिय-णामहो णीलु पधाइउ आसत्थामहो ४ रहु दोणायणेण तहो खंडिउ कहि-भि ण छाइउ मोहेवि छंडिउ. तं पेच्छेवि मज्जाय-विमुक्कउ पलय-कालु जिह आउ घुडुक्कर माया-वलेण तेण वलु मोहिउ सीहें हरिण-जूहु णं रोहिउ . विविहाहरणे अणेय-पसाहणे दिण्णइ तूरइं पंडव-साहणे
दिणमणि अत्थमिउ कुरु-पंडव-वलई णियत्तई । विण्णि-वि साहणइं रण-भूमि सई भूसतइ ॥
इय रिट्टणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए पंचतालीसमो इमो सग्गो ।
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