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________________ छयालीस संधि गय अट्ठ दिई जुज्झतह रणे पंडव करव- केराई महाहिउ पुच्छर अक्खु देव उप्पर पुणु होसइ कवणु जुज्झु सुणु अट्टमर दिवसे महा-रहेण तु कुरु धरहि किरीडमालि पर एक्कु मुएप्पिणु रणे सिहंडि सोमयसंजय पंचाल -मच्छ पति खत्तिय खयहो णेमि 'परमेसरु णरवर - पुज्जणिज्जु कुरु- पंडव - पणय-पयारविंदु णीसरिउ स- साहणु दिण्ण- तूरु दुणिमित्तई ताम समुट्ठिय जंवर पसरइ मज्झे हो Jain Education International तो वि ण समियई वाहणई । भिडियई विणि-वि साहणई ॥ १ [१] अट्टमउ दिवसु अइकंतु केव परभेसरु पभणइ कहमि तुज्झु दुज्जोह व पियामहेण उ करमि कियंतोत्रम दुयालि ण गणमि जायव - पंडव स- पंडि चेइय-सक्खड़ कय (?) कालि- कच्छ सायर - पेरत धरित्ति देमि उग्गमिय- महाउहु किय-पइज्जु णं सग्गहो णिवडिउ सुरवरिंदु दुब्बिसहु णाई थिउ पलय- सूरु धत्ता सव्वई असुहई सित्र रडइ । छतेहिं गिद्ध-पंति चडइ ॥ For Private & Personal Use Only ४ ११ www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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