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पंचचालीसमो संधि
महण-मणोरहइं अवहस्थिय-रण-भय-जीवई । अट्ठमे दिवसए भिडियई कुरु-पंडवाणीयई ॥ १
[१] अवियल-जिणवर-मत्ति-साहे. पुच्छिउ मह-रिसि मागहणाहे गउ परमेसर सत्तमु वासरु अट्ठमे को कहो भिडइ गरेसरु अक्खइ इंदभूइ-विणिओएं विरइउ पवर-वूहु कुरु-लोएं अग्गए थिउ भाईरहि-गंदणु पुणु गुरु सोण-तुरंमम-संदणु पुणु भययत्तु गइंदारोहणु पुणु सयमेव राउ दुजोहणु पुणु किव-पमुहेक्केक्क-पहाणा गय कुरुखेत्त पराइय राणा एत्तहे कुरुव-मडप्फरु-साडउ किवु धट्ठज्जुणेण संघाडउ सच्चइ-भीम परिट्ठिय सिंगेहि अवर णराहिव अवरेहि अगेहि
धत्ता भिडियई साहणइ रोमंचुब्भिण्ण-सरीरई । एक्कहि लग्गाई णं जण्हवि-जउणा-णीरई ॥
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[२]
भिडियई वलई वेवि वहु-भंगेहि जंगम-गिरि-समेहिं रह.विदेहि जम-दूओवमेहिं पायालेहि दिणयर-चक्क-समप्पह-चक्केहिं
पहा
पवण-जवण-मण-गमण-तुरंगेहि घण-संकासेहि मत्त-गइंदेहि णहयल-सण्णिहेहिं करवालेहि विसहर-विसम-मुहेहिं पिसक्केईि ४:
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