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पंचचालीसमो संधि
११५.
सक्क-सरासण-सम-कोयंडेहि फर-रयणेहिं ससि-विव-समाणेहिं आएहि अवरेहि-मि उवयरणेहिं तुरय-खुरहिं उच्छलिउ महा-रउ
जम-दंडोवमेहिं गय-दंडेहि कंस-लोह-रुप्पिय-तणु-ताणेहिं विण्णि-वि वावरंति वावरणेहि गउ सुरवरह णाई हक्कारउ
८.
घत्ता
रण-रउ मइलणउं किं अकुलीणहो
रुहिर-णइ मलिणि परिहीणी । अणुहरइ कया-वि कुलीणी ॥
[३]
तहिं समरंगणे दूसह-तेएं पंडव-वलु जगडिउ गंगेएं काहि-मि सीसई खुडइ स-गीवई हंसु स-णालइ जिह राजीवई काह-मि का-वि लील दरिसाबई सिरई लेइ रुंडई णच्चावइ काह-मि पाण लेवि तणु वज्जइ सव्वस-हरणु ण कासु-वि छज्जइ ४. काह-मि वाहु सहंगुलि तक्खइ खगवइ पंच-फणाहित्र भक्खइ काह-मि पहु पायवह पहावइ पाण-विहंगम-सयई उड्डावइ काह-मि हणइ पडाया-छत्तई णं स-वलायावलिय सयवत्तई काह-मि पहरण-लक्खई छिदइ काह-मि देहावरणई भिंदइ ८
धत्ता रहु पहु गउ तुरउ जो जो सवडम्मुहु ढुक्कइ । सो सो सरि-सुयहो रण-मुहे जीवंतु ण चुक्कइ ॥
९.
[४]
ताम विओयरेण रहु चोइउ सारहि गाई कियंतहो ढोइउ विण्णि-वि भिडिय पियामह-पोत्ता विण्णि-वि णिय-णिय साहण-गोत्ता
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