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लकुवर थेर सक्कंदणह दुज्जोहण किज्जइ संधि लहु जिहिं णिज्जिउ हउ म सिहंडिएण
एवं भणेवि विउ विरह-व संगय-वत्तउ
भोईरहिणंदणु मुच्छ गर दुरुज्झिय - विक्कम चारहडि कुरु पंडव जायत्र मागहिय तो संतणु लद्ध-सण्णु चत्रइ जं चंदाइच्चेहि छित्त वि सुंदरु सुगंधु सीयलु विमलु गंडी चडाविउ लइउ सरु वारुणेण विणिम्मिर विमलु जलु
दिणयर-कर-पश्चिड्डिउ मोक्ख-पुरिहे जं पिज्जइ
घन्त्ता
सुट्टु बिसण्णउ महिला सत्त
जग्गोह-रोह - पारोह - भुउ महि-महिहर-महिरुह - दारणई
इयत्रायर इं
वम्हत्थ - सउम सामुद्द- पउम - वइशेयणई
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वसुद्धु देहि पहि-गंदणहं सो कवणु मणुसु जो भिडइ महु तं कि संगामें मंडिएण
रिहणेमिचरिउ
मुच्छ - विहलु स-वेयणु ।
सog होइ णिच्चे
॥ ९
[३]
णं लक्खणु रावण-सत्ति-हउ हा ताय भगत मुक्त - रडि धाइय- भिंगार-वारि- सहिय जलु पियभि दिव्वु जइ संभवइ ४ जहि भिडिय ण पत्रण - विहंगम वि तो पत्थो वियसि मुह-कमल णं थिउ सिंदाउहु अंबुहरु गंगेएं वंकिउ मुह- कमलु
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[४]
सरि सुएण पसंसिउ पंडु-सुर कहो अण्णहो दिव्वई पहरणई
कउवेरग- सुर-पउरंदरई नारायणत्थ - तइलोयणइ
धत्ता
ए मईच्छिउ णिरुवमु अवरु णिएवउ । कहोर्नव ण दिज्जइ तं सुहु सलिलु पिएवउ ||
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