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पण्णासमो संधि
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हउ आसण-वायव-वारणई दुज्जोहण दुज्जउ णरु समरे पंडवेहि सम उ कज्जेण विणु स-कलत्तु सपुत्तु स-बंधु-जणु
आयई अवरइ-मि सु-दारुण वसुहद्ध देवि वरि संधि करे केत्तिउ कलहिज्जइ रत्ति-दिणु में खयहो जाहि आढवेवि रणु ८
घत्सा
बुच्चइ कररव-णाहे कोव-सणाहे अज्जु संधि ण पयट्टइ । परए पहप्परु हम्मइ रण-पिडु रम्मइ समहो कालु को वट्टइ ॥ ९
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जयकोरू करेपिणु संतणहो गउ कुरुबइ णियय-णिहेलणहो तो भणइ जुहिट्ठिलु ताय सुणे दुज्जोहण-वुद्धि-पमाणु मुणे विसु ढोइउ जउहरे दिण्णु सिहि कवडक्खेहिं दरिसिय जूय-विहि पुणु किउ दोवइ-केस-ग्गहुणु वण-वसणु अणंतरु गो-ग्गहणु ४ ण धरद्रु द्ध पारद्भु लहु दस दिवस कलहु किउ दुविसहु भणु अज्ज-वि वुत्तउं जइ करइ तो तब-सुउ मच्छरु परिहरइ रणु भट्ठ जाउ दुक्खागरउं जइ महइ संधि तो सागरउं जयकार करेप्पिणु णीसरिउ भीमज्जुण-जमलालंकरिउ
घत्ता तहि अवसरे गउ थामहो पुणु-वि पियामहु वलिय दिट्टि विवरेरी । विरह-विसंठुल -चित्ती जोवणइत्ती ऊढ व वुड्ढहो केरी ॥९
तईि काले पराइउ सूर-सुउ सो चरणु णवेप्पिणु विण्णवइ कोमार-वंभ-वय-धाराएं णइ-णंदणु पभणइ कोंति-सुय
केऊरंगय-गारविय-भुउ हउं अंगराउ अंगाहिवइ उम्माहिउ पयहं तुहाराह तउ भायर पंडु-पुत्त लहुय * मावर पडु पुत्त लहुय
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