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उणतालीसमो संधि
धत्ता सरवर-णहर-वियारियई भय-विहलई कंठ-ट्टिय- जीयई । हरिणई हरिणाहिवहो जिम णट्टइं पत्थहो कुरवाणीयई ॥
भग्गए णिय-वले कउरव-णाहे गरहिउ गंगा-सुउ असगाहे अच्छहि ताय काई वीसत्थउ णिरवसेसु जगु जिणेवि समत्थउ किं पंडवेहि समाणु णहु जुज्झहि अम्हई वचेत्रि कहिं तुई सुज्झहि पहु-दुव्वयणेहि वलिउ पियामहु णं विझइरिहे अहिंमुहु हुयवहु भिडिय वे-वि गंगेय-धणं जय विण्णि-वि जय-सिरि-गहण-समुज्जय विण्णि-त्रि संतण-पंडु-सुहकर विण्णि-वि तत्रसुय-कुरुवइ-किंकर विण्णि-वि णं गिब्वाण-महागय विण्णि-वि ताल-पवंग-महाधय . विण्णि-वि जायरूवमय-सदण विणि-वि जण्हवि-जायवि-णंदण
धत्ता पिहिय-दिसामुह तडि-चवल हय-पडु-पडह-पवड्डि-मलहर । सर-धाराहर-गुण-गहिर णहे उत्थरिय णाई णव जलहर ॥ ९
[१०] विक्कम-विणय-णयागम-जुत्ते जय-जयकारिउ पंडुहे पुत्ते थाहि ताय रणु होउ सउण्णउं अज्जुणु अज्जु करइ पाहुण्णउ तो संतणवें संतणु-जाएं लइय-सिलासिय-सर-संधाएं दसहिं दसहिं पुणु दसहिं स-तीसहि पुणु पडिवारउ णवहिं स-वीसहिं ४ तिहिं महु-मग्गणेहिं विचित्तेहिं णं पर दंसण-णाण-चरित्तेहिं तो फग्गुणेण गुंज-पुजक्खें विद्ध दहुत्तरेण सर-लक्खें विहि-मि परोप्परु छाइड वाणेहिं विण्णि-वि पोमाइय गिव्वाणेहिं
२.५ ज. फुट्टइ.
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