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________________ रिटमिचरिउ घत्ता विसमु धणंजउ विसमु रहु विसम सरासणि विसमु सरासणु दिठ्ठ असेसेहिं कउरवेहि णं चउ आहिरण्णु जम-सासणु ।। ९ [] तो खय-सूर-समप्पह-तेएं एंतु पडिच्छिउ णरु गंगेएं विसहर-विसम-विसोवम-वाणेहिं सत्तत्तर सत्तरि परिमाणेहिं णवहिं जयद्दहेण वावल्लेहि मदाहिवेण-वि णवेहिं जे भल्लेहिं पंचहि विसिहेहि सउणिय मामें दसहि विगणे णिग्गय-णामें किवेण विद्ध पंचासहिं वाणेहिं दोणे पंचवीस परिमाणेहिं दोणायणेण समाहेउ सट्टिहिं कुरु-परमेसरेण चउसट्टिहिं आएहि अवरोहि-भि सामंतेहिं छाइउ सरवर-सएहि अणंतेहि छिण्ण भिण्ण विणिवारिय पत्थे णाई कसाय महारिसि-सत्थे धत्ता सउणि-सल्ल-किव-कुरुव-पहु कुरु-गुरु-सुय-गंगेव-जयदह । चालिय अज्जुण-षाउसेण रिउ-अगाह-गंभीर-महादह ॥ [८] एक्क-रहेण सरासण-हत्थे अमरिस-कुद्भरण रणे पत्थे लाइय थरहरंत तर्हि अवसरे पंच सिलीमुह कुरु-परमेसरे पंचवीस णाराय पियामहे छह दूसासणे अट्ठ जयद्दहे णव किवे णव विकण्णे दस सउवले वारह सल्ले चउद्दह विहवले दो दोमुहे चयारि अत्तायणे सट्ठि दोणे सत्तरि दोणायणे सोण को-वि जो लयउ ण वाणेहिं परिह-मुसल-जम-दंड-पमाणेहि छिण्णई रह-तुडई रह-चक्कई कवय-धयायवत्त-सीसक्कई उर-सिर-कर-चरणोरु-पएसई तोणा-धणु-वाहणई असेसई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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