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सटिमो संधि
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(हेला) स-सर सरासणाउहे दढ-णिवद्ध-तोणो।
मा भज्जहो भणतो थिउ वृह-वारि दोणो ॥ महु करयले संतए वाण-जाले को पइसइ वूहभंतराले लइ वलहो वलहो आयारणेण लज्जिज्जइ किण्ण पलायणेण संगामे मुएवि णिय-सामिसालु जीवेसहो किर केत्तडउ कालु गुरु-वयणुच्छाहिय थक्क के-वि तो णर-णारायण पत्त वे-वि सेयासे पणय-महा-सिरेण वोल्लाविउ सायर-रव-गिरेण पइसारु भडारा देहि ताय रक्खेवि पई महु तणिय छाय मारेवउ से धउ संदु पाउ गोत्तारु जे जइ तेलुक्कु साउ तो वंभणु भारवि भणइ एम मई रकिखउ तुडं आहणहि केम
घता अज्जुण एत्थहो जइ एक्कु-वि पउ गम्मइ । तो पइ रण-मुहे दूसल-गाहु णिहम्मइ ॥
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[९]
(हेला) एम भणेवि झंपिओ अज्जुणो सरेहिं ।
णं विंझइरि पाउसे स-जल-जलहरेहिं ॥ गुरु सीसें णवहिं सरेहिं णिहउ तेण-वि स-कण्हु दु-गुणेहिं पिहिउ हय जोव जोव गंडीव-हत्थु धणु पाडभि किर चितवइ पत्थु तो आसस्थामुप्पायणेण गुणु छिण्णु कमंडलु-केयणेण ॥ ४ जो अवर करेवि दूसह-पयावे खंडव-णिमित्त-सिहि-दिण्ण-चावे
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