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रिहणेमिचरिउ
कवएहिं पत्थु अपणउ हत्थु अप्पणउ पाउ अप्पणउ देहु
चिंधेहि पत्थु किर सो-जे पत्थु किर सो-जे आउ किर सो-जे एहु
घत्ता
जल थलु णहयलु पत्थ-णिरंतर दिउ । तं वलु भज्जेवि कुरु-वले गंपि पइट्ठउ ॥ १९
(हेला) तो दूसासणेण साहारिया गरिंदा ।
गल-गज्जत मत्त मोक्कल्लिया गईदा ॥ गय-साहणु धायउ गुलुगुलंतु हय-ढक्का-रव-वहिरिय-दियंतु सुरवर-वर-वइरि-पुरंजएण णाराएहिं लइउ धणंजएण कप्परियई करि-कुंभ-स्थलाइ कड्ढियइ धवल-मुत्ताहलाई सहुं करि-विसाणइं खुडेवि चित्त णं वंस-करीरइ भुअग-लित्त दस वीस तीस पंचास दंति एक्कक्के सरेण धरति जति काह-मि कुभयलेहिं पइसरंति सर पच्छिम-भाएं णीसति णीसरियई काह-मि दिहि ण दिति हथिहडहं णियडहं पाण लिंति दूसासणु सहुँ गयवरेहिं भग्गु कप्परिय-कवउ णासणहं लग्गु
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घत्ता
णर-सर-पीडिउ केण-वि कहि-मि ण दिदठउ । वण-वियणाउरु दोणहो सरणु पइट्ठउ ॥
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