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२९.
उणसठिमो संधि तो धयरडे पुच्छिउ संजउ थिउ रण-महि पइसरेवि धणंजउ एवहिं किं कांति कहि कउरव गलिय-पयाव पाव गय-गउरब ८
पत्ता कल्लए करेवि अखत्तु जं धाइउ वालु हयासेहिं । तहो पावहो फलु अज्जु दावेवलं हरि-सेयासेहि ॥
[९] जइ पंडव परिपालिय-वंगहं जइ भीमहो विसु दिण्णु ण गंगई जइ जउ-भवणे ण हुयवहु लाइउ जइ अक्खेहिं ण कोउप्पाइड जइ दोमइहे ण किउ केसग्गहु जइ ण बिराड-णयरे किउ गोग्गहु जइ महि-अद्ध दिण्णु मग्गंतहं जइ दिवसा ण य गय कलहंतह ४ जइ रक्खिउ इरवंतु पयों जइ ण णिहउ अहिमण्णु अखत्तें तो किं एत्तिउ होइ णराहिव सई एमहि वलंतु कुरु-पत्थिव गए पाणिए किं वरणे वद्धे मुयहं काई किर ओसह-गंधे जं पहु पभणइ तं विसु केवलु पइ-मि सव्वु माराविउ कुरु-वलु ८
घत्ता मग्गइ मेइणि-अद्भु तव-गंदणु सम्वहिं जेहउ । पंच-वि गाम ण देइ दुम्मइ दुज्जोहणु हेउ ।।
[१०] तो दोणायरिएण महारणे कोक्किय किंकर वृहहो कारणे आइय कुरु करंत अहिवायणु मरु मरु कहिं गरु कहि णारायणु कहिं अणिरुद्ध संवु कहिं पज्जुणु कहिंसच्चइ सिहंडि धज्जुणु सई गुरु कालसेण धय-दंडे सउवलु कउ सिएण किबु सोंडे ४ अउरगेण सइ कुरुत्र-णराहिवु धूमद्धय-धएण मदाहिवु करि-कर-काकेयणेण वियत्तणु हरि-लंगूलएण गुरु-णंदणु
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