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तेत्तीसमो संधि
सुमरइ केस-गहु दोमइहे जइ तत्ति ण किज्जइ वसुमइहे तं कुरव-राउ संभरइ मणे . मेल्लाविउ वइरिहिं के व रणे संभरिउ पत्थु दुज्जोहणेण किह ण लइउ सिरु सहुं गोहणेण चंपाहिउ चंगउ संभरइ जइ तुम्ह मज्झे मज्झिमु मरइ संभरइ सउणि जइ वीसरेवि अच्छहो वारमइहिं पइसरेवि
धत्ता काई जुहिट्ठिल आएं वयणुग्धाएं जुज्झु कंखु रणे रोहणु । अच्छउ महि खलु खेत्तु-वि तिल-तुस-मित्त-वि देइ णाहि दुज्जोहणु ॥ १०
[१६] कुरु कुरु-कुल-चित्तें दइव-हय तुम्हइं परमागम-पार-गय ते णिग्गुण तुम्हि गुण-अहिया णय तुम्ह होति दुग्णय-सहिया जसु तुम्हहुं दुज्जसु ताहं घरे महि ताहं परक्कम तुम्ह-करे ते णिग्धिण तुम्हइं खंति-कर ते स-कलुस तुम्हई धम्म-पर ४ गुरु वप्पु पियामहु जहिं मरइ जहिं बंधव-जणु उवसंहरइ जहिं महरिसि-गो-वंभणहुं दुहु सो कवणु रज्जु तं कवणु सुहु ‘जइ सक्कहो तो वरि कहि-मि गय __णउ दोण-पियामह वे-वि हय जइ सक्कहो तो वरि तव-चरणु णउ बंधव-सयणहुं किउ मरणु
धत्ता वरि अण्णई दुद्धरिसइं तेरह वरिसइं अच्छिय कहि-मि महावणे । णउ जच्चंधे जाया सय-णव-राया घाइय भूमिहे कारणे ॥ ९
. [१७] सुहि मारेवि कारणे दुज्जसहो लइ काई करेसहो वइवसहो ढुक्कइ पच्छइ जे जर-मरणु तहि अवसीरे तुम्हहो को सरणु पर-बइर अणेय-भवंतरइं णउ सोक्खइं लहहो णिरंतरई अट्ठारह अक्खोहिणिउ जहिं सिद्धति सत्ति किर कवण तहिं ४
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