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________________ रिट्टणेमिचरिउ तुहुं धम्म-पुत्त दय-धम्म-परु खम-दम-सम-सच्च-सउच्च-घरु जइ अद्ध ण देति दीण-वयण तो किं मारेवा पई सयण जइयतुं दिवसयर-सम-प्पहेण कइकइहे दिण्णु वरु दसरहेण तइयतुं वइसणउं वसुंधर-वि कि रामें भरहहो दिण्ण ण त्रि धत्ता भीमज्जुणेहिं विरुध्देहि वुच्चइ कुध्देहि ताम समरे पहरेसहुँ । लग्गेवि कुरुहुं कडच्छए णिहयहं पच्छए पायच्छित्तु चरेसहुँ ॥ १८ ] जोएप्पिणु वयणु धणंजयहो संदिसइ जुहिट्ठिलु संजयहो भणु कुरुव-णराहिब केत्तिएण णिय-धम्मु चरेवउ खत्तिएण करवाल करेप्पिणु पवरु करे जो हणइं हणेवउ सो समरे ताह-मि महि-अध्दु ण देंताई अम्ह-वि बलिवंडए लिंताई जं होइ होउ तं आहयणे गावग्गणि गंपिणु एम भणे णारायणु भासइ सार-गउ जुज्झेवउ कारणु पद्धरउ परिपुज्जिउ संजउ वियड-पउ सरहसु धयरट्ठहो पासु गउ वित्तंतु कहिउजइ राणाहो लइ आउ विणासु अयाणाहो धत्ता विक्कम-बल-संजुत्तेहिं पंडव-पुत्तेहिं तुम्हहं सिह भंजेवी । दासि जेम उज्जलए वसुमइ कल्लए लेवि सई भुंजेवी ।। इय रिट्ठणेमिचरिए धवलासिया-सयंभुव-कए तेत्तीसमो सग्गो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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