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चालीसमो संधि अरुणद्धय-इंदगोव-छइउ गोलसुय-पहिं णीलइड धूय-धवल-कलावी-पंडुरिउ रणु पाउस-कालहो अणुहरिउ . तहि अवसरे एक्क-सहास-रहु सइणेयहो धाइउ कुरुव-पहु ते भिडिय परोप्यरु वे-वि जण णं केसरि अमरिस-कुइय-मण
धत्ता ताम वलुद्धरेण रण-रामा-लिंगण-कामें । अंतरे कुरुवइहो रहु दिज्जइ सउणिय-मामें ॥
गण-काम
तिलसेण-कणिढे सउवलेण तेण-वि रहु दिण्णु महा-वलेण आभिट्ट वे-वि सिणि-णंदणहो पडिभग्गु पसरु रिउ-संदणहो हय हयवर सारहि णिद्दलिउ गयणंगणे सच्चइ उल्ललिउ णर-णंदण-संदण-वीढे थिउ पडिवारउ समरारंभु किउ पेक्स्वतहो तहो दुज्जोहणहो छड्डविय तत्ति आओहणहो एत्तहे-वि भिडिउ रणे दुक्काहं कुरुवाहिव-भीम-घुडुक्काह भेसाविउ पढमणिसायरेण हउ णवहिं सरेहिं विओयरेण मुच्छाविउ कह-व ण मारियउ सूएण कह-व ओसारियउ
धत्ता तेत्तहे णवर णिउ अगणिय-सुरिंद-जम-धणयहो । विण्णि-वि भिडिय जहिं गंगेय-दोण-तव-तणयहो ॥
णासंधिय-भीमाओहणेण अहो पंडव-पक्खवाय-भरिय सावेण सरेण वि जो दहहि ण सिंहडि ण धट्ठज्जुणु णिहउ
विण्णि-वि गरहिय दुजोहणेण दुवियड्ढ दुट्ठ दोणायरिय सो मदि-सुयह-मि सक वहहि ण घुडुक्कउ णाहि अण्णु अजउ
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