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चालीसमो संधि
पसरिय-कलयलई हय-तूरई उक्खय-खग्गई । तइयए दिवस-मुहे कुरु-पंडुव-वलई आलग्गई ॥ १
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मगहाहिउ पुच्छइ परम-रिसि गउ दिवसु दुइज्जउ गलिय णिसि कहि तइयए वासरे काई किउ विहिं सेण्णह कवणु कवणु विजिउ परमेसर अक्खइ सेणियहो विढविय-सम्मत्तहो खोणियहो सुणु तइयए दिवसे भयावहेण किउ गारुड-बूहु पियामहेण ४ सई वयणे परिट्टिउ दुविसहु गले सिंघउ पुट्ठिहे कुरुव-पहु विदाणुविंद दाहिण-दिसए कालोर-कुणीर वाम-विसए पंडवेहि-मि अद्धई दुहइउं हय-गय-रह-णरवर-अभइउ भीमज्जुण कोडिहिं विहि-भि थिय अवसेस णराहिव गम्भु किय ८
धत्ता बृहुँ रएविणु णिय-वलेहिं कुरु-पंडण भिडिय रणंगणे । विविहेहिं विमाणेहिं (?) वंदारय थिय गयणंगणे ॥ २.
। [२] थिउ णहे स-पुरंदरु अमरयणु णत्र-पाउसु जिह आलग्गु रणु गज्जत-मत्त-मायंग-घणु मंडलिय-सरासण-इंदहणु विफ्फुरिय-खग्ग-विजुक्करिसु सर-धारा-थोर-त्थेभ-वरिसु वरिसंत-धूलि-कद्दमिय-णदु णीसरिय-णिरंतर-णइ-णिवहु ४
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