________________
१४६
रिट्ठणेमिचरिउ
[१८]
पंडव-लोउ सव्वु आदण्णउ वट्टइ धम्म पुत्त उच्छण्णउ संतणु पलउ करतु ण थक्कइ अ-वलु सिह डि जिणेवि ण सक्कइ तो धज्जुणेण णि भच्छिउ भणु एत्तडिय वार कहिं अच्छिउ अज्ज-वि सरेहिं ण छिज्जइ संदणु अज्ज-वि जीवइ गंगा-णंदणु अज्ज-वि कउरव-बलु मंभीसइ अज्ज-वि फरहरंतु धउ दीसइ अज-वि तणु-तणुताणु ण फेडइ अज्ज-वि धुरिउ तुरगम खेडइ अज्ज-वि सामिउ हियइ विसूरइ अज्ज-वि परम जयास ण पूरइ तं णिसुणेवि सिह डि आरुट्टउ मत्त-महा-गइंदु णं दुट्टउ
पत्ता
सर पेसिय दुमयहो पुत्तण णं मलयह सोसण-सीलेण
रिउ-वह-कम्म-कियायरेण । दूसह किरण दिवायरेण ॥ ९.
जे पट्टविय दुमय-दायाएं ते सर छिण्ण सब जुयराए. रहवर छत्त दंड धय तोडिय य गय णर णरिंद वहु पाडिय सो-वि धणजएण विणिवारिउ कउरव-लोउ सव्वु पच्चारिउ जाणिय-णिरवसेस-धणुवेयहो सिहि व सिहडि ढुक्कु गंगेयहो ४ संतण-तणुरुहेण दुल्लक्खें दसहिं सएहिं सहासें लक्खें धण-जालेण व मग्गण-जाले छाइउ जण्णसेणि असराले पर-क्लु णिरवसेसु ओवग्गइ एक्कु-वि सरु ण सिहडिहे लग्गइ धम्म-पुत्त जहिं तहिं जउ धम्महो णाहि विण सु पुराइय-कम्महो ८ ।
धत्ता अ.पमाणई वज्ज-समाण महिहर-सिहर-वियारणइ । जसु मणुसहो दइउ सहेजउ कि कर ति तहो पहरणइं ॥ ९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org