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सत्तचालीसमो संधि
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सल्ल-जुहिट्ठिल भिडिय परोप्परु संपहारु पडिवण्णु भयंकर कोसल-पंडिहिं तिह रणु किज्जइ जिह विहिं एक-वि जिणइ ण जिज्जइ दुमय-दोण पहर ति पिसककेहिं साहुक्कारिय णरवर-चक्केहि जण्णसेण गंगेय समच्छर वावर ति परिओसिय-अच्छर रणु भययत्त-किरीडिहे जेहउँ दुक्कर रावण-रामहुँ तेहउ गय-घड भीमहो भएण णिलुक्कइ जिह णव-वहु णव-वरहो ण ढुक्कइ सच्चइ-आसत्त्यामहं संगरु जाउ घोरु परिओसिय सुरवरु पउरव-धट्ठकेउ समरंगणे खगा-फरावसेस थिय तकखणे
धत्ता असि-धाएहिं हगेवि परोप्पर मुच्छ पराइय वे-वि जण । णं जुय स्वय-काल-पहावेण णिवडिय महि यले विज्जु-धण ॥९
। [१७] घट्टकेउ जमलेहिं परिवारिउ पउरवु कउरवेहिं ओसारिउ कुरु-णरिंद-अहिमण्णु-कुमारह जाउ महाहउ विक्कम-सारहं सुइरु करेवि घोरु कडवंदणु छहिं छहिं सरेहिं विद्ध णर-णंदणु छित्त सत्ति देवइ-सुय-जाएं छिण्ण खुरुप्पे कउरव-राएं स-सर-सरासग कर-परिहच्छह रणु एत्तहे-वि जयदह-मच्छह एत्तहे सुट्ठ रु? धज्जुणु कढिय सर विप्फारिउ धणु गुणु अंतराले थिउ णिरुवम-चरियह दुमय-णराहिव-दोणायरियह एत्तहे सरि-तुरण पहर ते पंडव-साहणे पलउ करतें
धत्ता सामंत-सत्थु विणिवाएवि जिणेवि अणज्जुण वइरि.सय । दह दह रह-तुरय-गइंदहं भडह चउद्दह सहस हय ॥ ९
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