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रिट्ठणेमिचरिउ
[१४] तो सयलेहि-मि गरिदेहि थक्केहिं पंचहिं पंचहिं विद्ध पिसक्केहि हसमाणे णव-पवर-रहत्थे भिदेवि भिंदेवि घत्तिय पत्थें मद्दाहिवेण णिहउ पुणु सत्तहिं तव-सुउ तिहिं णारायणु पंचहिं णव णाराय विओयरे लाइय | तिण्णि ताव सामंत पराइय कलसद्धय-जयसेण-जयद्दह णाई धणागमे खुहिय मह-दह पर वल-पाण-महाधण-थेणे अट्टहिं सरेहिं विद्ध जयसेणे पंचाणण-चिंधेण सुधीमें पंचासेहिं णिवारिय भीमें खंडिउ रहु जुत्तारु वियारिउ हय हयवर कह-कह-वि ण मारिउ
पत्ता तहिं अवसरे दोणापरिएण पंचसट्टि सर पट्टविय । ते भीमें णवहिं स-सट्ठियहिं अहि-व खगिदें णिट्टविय ।।
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ताव गरें णबहिं जाराएहिं विद्ध तिगत्त-गत्त तिहिं थाएहिं जायइं जुञ्झई भडहं विचित्तई सरि-सुय-रक्खण-हणण-णिमित्तई सल्ल-जुहिट्टिल-कोसल-पंडिहिं दुमय-दोण-गंगेय-सिहंडिहिं सव्वसाइ-भययत्त णरिंदह भीमु पधाइउ मत्त-गइंदहं आसत्थामु वरिउ जुजुहाणे पउरउ धट्टकेउ-गामाणे दुज्जोहणु अहिमण्णु-कुमारे सिंघउ मच्छे विक्कम सारें अवरेहि अवर तुरंग वुर गेहिं रह रहवरेहिं मयंग मयं गेहिं
धत्ता चल-वहल-धूलि.अंधारए वलई परोप्परु ढुक्कियई। छत्त-धय-चामर-चिंधई पहरण-जलण-झुलुक्कियई॥
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