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सत्तचालीसमो संधि
[२०] तिहिं सिलीमुहेहि रिउ छाइय रहियह पंच सहस विणिवाइय भणइ जुहिट्ठिलु अहो वय-धारा वरि मारहि अम्हई जि भडारा पय-पूरणेहिं काई जीयतेहिं दुक्खहं भायणेहिं सुह-चत्तेहिं वारह वरिसई वसिय वणंतरे वरिसु विराडहो केरए पुरवरे मग्गिय पंच गाम णउ दिण्णा सुहिय भाव-कारणे णिविण्णा धम्म-पुत्तु करुणामय-सिंचिउ अण्णु-त्रि कुरुव-णराहिउ किंचिउ सेवा-धम्म-सुहह णिविण्णउ थिउ जीवेवए णिहाखिण्णउ सिरु सामिहे महि पंडन-रायहो पाण सिहडि-वाण-संवायहो
धत्ता
मणु सासय-पुर-परिपालहो एम चयारि-वि देवाई। आराहण-गंगा-संगमे
गई मई चित्तेवाई॥ ९
[२१] जं केवलिहिं आसि आइट्ठउ तं गंगेयहो हियए पइट्ठइ अवसु सिहडिहे सरेहिं मरेवउ एवमि एवमि वरि पहरेवउ मं वोल्लेसइ को-वि अ-विणीयउ जिह णइ-णंदणु पाणह भीयउ एम भणेवि ओवडिउ पडीवउ कुरु-कुल-भवणुज्जोयण-दीवउ
मनोरण-दीवउ ४ जे सर घिवइ तर गिणि-णंदणु ते लग्गंति परहो णं चंदणु जे पट्टवइ सिह डि सिलीमुह ते णिवडंति णाई वज्जाउह दसहिं पियामहु दसहि सरासणु सारहि दसहिं दसहि तल-लंछणु वीयउं तीयउं एम चउत्थउ पुणु पौंचम छिण्णु पुणु छट्टउं ८
धत्ता धणु जं जं लेइ पियामहु तं तं छिंदइ दुमय-सुउ । । मग्गणहं असेसु वि दितउ महियले णिद्धणु कोण हुउ ।। ९ ।।
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