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________________ १९८ रितुणेमिचरिउ ११२] ओसारु देवि थिउ वइरि-वलु ण जंबुद्दीवहो उबहि-जलु णं रवियर-णियरहो तम-पडलु संधाणु वाणु घणु भुय-जमलु लक्विज्जइ णरहो ण वावरणे पर हय गय भड णिवडंति रणे सो ण-वे णरु सोण-वि मत्त-गउ सो ण-वि तुरंगु सो ण-वि धयउ ४ सो ण-वि णरु ण-वि करु ण-वि चरणु तं ण-वि सदेहु देहावरणु तं गाउहु णायवत्त धरिउ ज अजुण-सरेहि ण जज्जरिउ कुरु-कलयलु ताम समुच्छलिउ जिह पंडव भग भीमु वलिउ जिह दोण महा-धणु उत्थरिउ जिह केण-वि धम्म-पुत्त धरिउ ८ घत्ता तं रउ उण्णाएवि पर-बलु खाएवि पत्थें णिय-मज्जायएण । पुणु कउरव जोइय णिय-मुहे ढोइय काले णाइ अ-घाइएण ॥९ [१३] तो तव-सुय वेहाविद्धएण सोणासें कलस-महाधएण अवगणिवि पंडव-भड-समूहु गरुयारउ गारुडु रइड वूहु सई मुहै दुजोहणु उत्तमंगे कि-वि वामए कि-वि पयाहिणंगे कि-वि पुट्टिहिं कि-वि पक्खंतरेहिं कुरु-पत्थिव थिय थाणंतरेहि त बूहु रएप्पिणु अप्पमेउ तव-तणयहो धाइउ कलस केउ एत्तहे-वि पचोइय-अज्जुणेण पडिवूहु रइउ धट्टज्जुणेण धीरविउ जुहिट्ठिलु जिय-वरेण को छिवइ भडारा किकरण मई जीवमाणे पारावयासे कचण-कलसद्धय-कुल-त्रिणासें ८ घत्ता णिय सामिउ धीरेवि तुरय समारेवि दुमय-पुत्तु रहवरे चडिउ । मेहउल-विहजणु पलय-पहजणु ण णहे दोणहो अभिडिउ ॥९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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