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बावण्ण:समो संधि
१९७ [१०] किउ कलयलु तुरई हयई तेहिं रण-रसिरहिं कुरुवइ-किंकरेहि मुउ मछुडु महुसूयगु स-पत्थु संसए वलग्गु गिवाण-सत्थु तो दुद्दम-दणु-तणु-धायणेण वोल्लाविउ णरु णारायणेण अहो अज्जुण सुर-गिरि-गरुअ-धीर। खंडव-डामर एककल्ल-बीर कि छिण्णु महारहु खुडिय चक्क किं पहर-विहुर-रह-तुरय थक्क किं निट्ठिय तोणहो कंड-संड किं पडिय तुहारा वाहु-दौंड किं चंडु चंडु गडीउ भग्गु कज्जेण जेण संसय-वलग्गु हरि गरेण वुत्तु थिरु थाहि देव रिउ मारमि सीहु सियाल जेम ८
घत्ता
तो एम भणेप्पिणु णर-णियरु णिवारिउ
सर-सय लेप्पिणु तालुय-बम्म-विमद्दणेण । णं ओसारिउ कोंकण-उवहि जणदणेण ॥ ९
[११]
सर घिवइ चउदिसु सव्वसाइ थिउ किरणहुँ मज्झे पंयगु णाई णाराय ण विणु दुज्जोहणेण वामोहिय अच्छे मोहणेण जालंधरु रुद्ध णिरुद्धणेण संसत्तग थंभिय थंभणेण उड्डविय तिगत्ता वायवेण जिय सूरसेण सूरायवेण कालेय कुलीर कुणिंद भग्ग पच्छल मेहल उप्पहेहिं लग्ग गंधार मगह मद्दासिया-वि मालव-हिरण पुर-वासिया-वि जायव जोहेया जवण जट्ट आहीर कीर खस टक्क भोट्ट कासेय उसीणर तामलित तोक्खार तिउर अवर-वि विचित्त ८
धत्ता दुद्दम दुलक्खेहि गरवर-लक्खेहिं जे रणमुहे ण परज्जिय । ने एक्के पत्थे किय धणु-हत्थे सयल मडप्फर-वज्जिय ॥ ९
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