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________________ रिडणेमिचरिउ [८] संसत्त-सेण्णु अणज्जुणेण किउ पाराउट्ठउ अज्जुणेण तहिं अवसरे भायर पंच थक्क ण सग्गहो णिवडिय पंच सक्क णं पंच परिट्ठिय लोयवाल ण जम-कलि-पल य-कयत-काल पंचहि-मि पूरिय पंच संख पंचहि-मि विसज्जिय सर असंग्व ४ पंचहि मि महारह समुह दिण पचहि-मि धणंजय वाण छिपण दस दसहि सरेहिं पंचहि-मि विद्ध कह-कह-वि ण पाडिउ पवय-चिंधु इसु गरेण सुवाहुहे तीस छिण्ण पुणु चाव-लट्ठि दस दिसिहि दिण्ण रहु सुरहहो किउ सय-खंड-खंडु विद्धलिउ(?) सुसम्महो छत्त-दंडु ८ तणु-ताणु सुवम्महो तणउ भिण्णु सु-धणुधर-सिरु भल्लेण छिण्णु घता भडु पडेवि ण इच्छइ सीसु पडिच्छइ जइ पडिबारउ थाइ थिरु । तो णिय-वले भग्गए सामिहे अग्गए धत्तमि वइरिहे तणउ सिरु ॥९ तहो रणभर-पवर-धुर धरासु ज' लइयउ सीसु धणुद्धरासु त णिय-वलु परिलविय-किवाणु धीरविउ सुसम्में भज्जमाणु संभरहो सु ताई गलगज्जियाई संभरहो कुलइ मल-वज्जियाई संभरहो भडत्तणु साहिमाणु संभरहो सामि-संमाण-दाणु संभरहो पइज्जउ दुक्कराउ गय काइ भणेसहो कुरुव-राउ वहुएहिं हणेवउ एक्कु जेत्थु को पाण-भयहो अवगासु तेत्थु त' णिसुणेवि वलिय परिंद के-वि णिय-णामइ पवरई संभरेवि णारायण-वलई पधाइयाई जल-थल-आयासई छाइयाई - घत्ता पहरण-पब्भारें रय-अंधारें रहु ण दिट्ठ ण तुरंग ह्य । मरणु चितिउ सव्वेहिं भडेहि स-गव्वेहिं णर-णारायण कहि-मि गय ॥९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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